हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्थाः चुनौतियाँ और सम्भावनाएं

इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (आईआरईएनए) के नए विश्लेषण के अनुसार, वैश्विक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास महत्वपूर्ण भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक बदलाव ला सकता है, जिससे नई परस्पर निर्भरता का उदय हो सकता है।

  • ‘जीओपॉलिटिक्स ऑफ द एनर्जी ट्रांसफॉर्मेशनः द हाइड्रोजन फैक्टर’ रिपोर्ट हाइड्रोजन को ऊर्जा व्यापार और क्षेत्रीय ऊर्जा संबंधों के भूगोल को बदलते हुए देखती है, जो पारंपरिक तेल और गैस व्यापार में गिरावट के रूप में हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग पर निर्मित भू-राजनीतिक प्रभाव के नए केंद्रों के उद्भव की ओर इशारा करती है।

ग्रीन हाइड्रोजन नीति

  • भारत के बिजली मंत्रालय ने ग्रीन हाइड्रोजन व ग्रीन अमोनिया नीति को अधिसूचित किया है। इसका उद्देश्य नेट जीरो कार्बन अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। इस नीति से 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा तथा ग्रीन एनर्जी के इस्तेमाल से बनाये जाने वाली हाइड्रोजन व अमोनिया को ग्रीन हाइड्रोजन व ग्रीन अमोनिया का दर्जा दिया जायेगा।
  • ग्रीन हाइड्रोजन नीति को लाने का उद्देश्य यह है कि इसमें लोगों को स्वच्छ ऊर्जा मिलने के साथ कार्बन उत्सर्जन करने वाले ईंधन पर निर्भरता में कमी आएगी तथा देश में अमोनिया और ग्रीन हाइड्रोजन के निर्यात का हब बनाया जा सकेगा।
  • 2050 तक वैश्विक ऊर्जा उपयोग के 12 फीसदी में हाइड्रोजन की भूमिका होगी तथा आईआरईएनए का अनुमान है कि 2050 तक 30 फीसदी से अधिक हाइड्रोजन का व्यापार सीमाओं के पार किया जा सकता है, जो आज प्राकृतिक गैस की तुलना में अधिक है।
  • भारत ने भी इसके महत्व को समझते हुए पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत द एनर्जी फोरम (टीईएफ) और फेडरेशन ऑफ इंडियन पेट्रोलियम इंडस्ट्री (एफआईपीआई) 15 अप्रैल, 2021 को हाइड्रोजन गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया है जिसका विषय है ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था भारतीय संवाद-2021’ जो उभरते हाइड्रोजन इकोसिस्टम और साझेदारी, सहयोग तथा संगठन की संभावनाओं से जुड़े अवसरों का पता लगाने हेतु आयोजित किया गया था।

हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था

  • शब्द ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था’ हाइड्रोजन को कम कार्बन ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने की दृष्टि को संदर्भित करता है- जैसे, गैसोलीन को परिवहन ईंधन के रूप में या प्राकृतिक गैस को हीटिंग ईंधन के रूप में बदला जाता है।
  • गैसोलीन (पेट्रोल) या प्राकृतिक गैस जैसे ईंधनों को हाइड्रोजन से प्रतिस्थापित करने के दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है, जो ऊर्जा क्षेत्र के प्रबंधन, कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के साथ-साथ आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
  • इसमें कार और हवाई जहाज जैसे वाहन पेट्रोलियम डिस्टिलेट के बजाय, बिजली के लिए हाइड्रोजन ईंधन कोशिकाओं का उपयोग किया जाता है।
  • हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था एक प्रणाली का वर्णन करती है जिसमें जीवाश्म ईंधन के बजाय हमारी ऊर्जा की जरूरतें मुख्य रूप से हाइड्रोजन से पूरी होती हैं।
  • हाइड्रोजन पृथ्वी पर शुद्ध रूप में नहीं पाया जाता है, इसलिए इसे अन्य यौगिकों जैसे प्राकृतिक गैस, बायोमास, अल्कोहल या पानी से उत्पादित किया जाता है। शुद्ध हाइड्रोजन में बदलने में ऊर्जा लगती है। उस कारण से, हाइड्रोजन वास्तव में अपने आप में एक ऊर्जा स्रोत के बजाय एक ऊर्जा वाहक या भंडारण माध्यम है और इसका उपयोग करने का जलवायु परिवर्तन प्रभाव इसे उत्पन्न करने के लिए उपयोग की जाने वाली ऊर्जा के कार्बन पदचिह्न पर निर्भर करता है।
  • हाइड्रोजन का उपयोग करने के सबसे संभावित उपयोगी तरीकों में से एक ईंधन सेल के साथ इलेक्ट्रिक कारों या बसों में है जो हाइड्रोजन को बिजली में परिवर्तित करता है।

हरित हाइड्रोजन के उपयोग का क्षेत्र

  • परिवहन (खास तौर पर अल्पावधि में भारी वाहनों के लिए और दीर्घावधि में समुद्री जहाज और उड्डयन में)
  • बिजली उत्पादन
  • ऊर्जा भंडारण
  • औद्योगिक इस्तेमाल (उत्पादन, लौह और इस्पात उत्पादन, रसायन सेक्टर, ऑयल रिफाइनिंग)
  • बिल्डिंग (हीटिंग और कूलिंग) सेक्टर और
  • ऊर्जा निर्यात शामिल हैं

चुनौतियाँ

  • हाइड्रोजन का उत्पादन और भंडारण अत्यधिक महँगा एवं कठिन होता है तथा यह अत्यधिक ज्वलनशील होता है तथा इसे विस्फोटक की श्रेणी में रखा जा सकता है।
  • हाइड्रोजन निष्कर्षण की प्रक्रिया ऊर्जा-गहन तथा उच्च लागत वाली होती है।
  • प्राकृतिक गैस से हाइड्रोजन उत्पादन की लागत गैस का मूल्य और पूँजीगत व्यय पर निर्भर करता है।
  • हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहनों को अपनाने के लिए एक बड़ा अवरोधक ईंधन स्टेशन की बुनियादी सुविधाओं की कमी है।
  • ईंधन सेल कारें पारंपरिक कारों के जैसे ही समान पद्धति से ईंधन भरती हैं, लेकिन समान स्टेशन का उपयोग नहीं कर सकती हैं।
  • हाइड्रोजन को एक क्रायोजेनिक टैंक में दबाया और संग्रहीत किया जाता है और यह काफी जोखिम भरा होता है। वहां से इसे एक निम्न-दबाव सेल में डाला जाता है और विद्युत-रासायनिक प्रतिक्रिया से गुजारा जाता है, जो बिजली पैदा करता है।
  • उद्योगों द्वारा व्यावसायिक रूप से हाइड्रोजन का उपयोग करने में हरित या ब्लू हाइड्रोजन के निष्कर्षण की आर्थिक वहनीयता सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
  • हाइड्रोजन के उत्पादन और दोहन में उपयोग की जाने वाली तकनीकें जैसे-कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) तथा हाइड्रोजन फ्यूल सेल प्रौद्योगिकी आदि अभी प्रारंभिक अवस्था में हैं एवं ये महँगी भी हैं। जो हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को बढ़ाती हैं।
  • एक संयंत्र के पूरा होने के बाद फ्यूल सेल के रखरखाव की लागत काफी अधिक हो सकती है।
  • ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन के व्यावसायिक उपयोग के लिये अनुसंधान व विकास , भंडारण, परिवहन एवं मांग निर्माण हेतु हाइड्रोजन के उत्पादन से जुड़ी प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में काफी अधिक निवेश करने की आवश्यकता होगी।

लाभ

  • इसका उपयोग CO2 संबंधित उत्सर्जन को काफी कम कर सकता है और संपूर्ण मूल्यश्रृंखला को गैर-कार्बनीकृत कर सकता है, जिससे कम उत्सर्जन और कम जलवायु परिवर्तन खतरों को सक्षम किया जा सकता है।
  • हाइड्रोजन का उपयोग, नवीकरण के मामले में मौसमी और दैनिक आपूर्ति-मांग दोनों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। ग्रामीण भारत में, जहां ग्रिड तक पहुंच नहीं है, हाइड्रोजन का उपयोग ऊर्जा सेवाएं प्रदान कर सकता है।
  • हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था एक भावी भविष्य है जहां हाइड्रोजन का उपयोग वाहनों, ऊर्जा भंडारण और ऊर्जा की लंबी दूरी के परिवहन के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है।

राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन

  • केन्द्रीय बजट 2021-22 के तहत राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन की घोषणा की गई थी जो हरित ऊर्जा संसाधनों से हाइड्रोजन उत्पादन पर बल देता है।
  • यह वर्ष 2022 तक भारत के 175ळॅ के नवीकरणीय लक्ष्य को पूरा करने में सहायक होकर कोयला तथा अन्य अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत पर भारत की निर्भरता को कम करेगा।
  • यह भारत को पैरिस समझौते के तहत अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा, साथ ही जीवाश्म ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता को भी कम करेगा। इस मिशन का उद्देश्य हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग कर हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से भारत वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के अपने लक्ष्य के आधार पर आगे बढ़ते हुए अपनी ‘ऊर्जा लक्ष्य’ को अंतिम रूप देगा। इसी कारण से सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत भी की है।

हाइड्रोजन के प्रकार

  • ग्रीन हाइड्रोजनः अक्षय ऊर्जा का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
  • ब्राउन हाइड्रोजनः ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन कोयले के प्रयोग से किया जाता है।
  • ग्रे हाइड्रोजनः ग्रे हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।
  • ब्लू हाइड्रोजनः प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है जहाँ कार्बन कैप्चर और स्टोरेज का उपयोग करके उत्सर्जन को कैप्चर किया जाता है।

हाइड्रोजन अर्थव्यस्था के आर्थिक लाभ

  • भारत वर्तमान में अपने तेल का 85% और गैस की मांग का 53% आयात करता है। इससे भारत का भुगतान संतुलन पर प्रभाव पड़ने के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भण्डार को भी प्रभावित करता है।
  • हाइड्रोजन ऊर्जा के विकास से भारत को क्रूड आयल तथा अन्य ऊर्जा आयात को कम करने में म मिलेगी तथा विदेशी मुद्रा बहिर्गमन को भी कम किया जा सकता है।
  • प्रदूषण कम होने से उस पर होने वाले खर्चों में कमी आयेगी जिसका उपयोग सामाजिक सुरक्षा तथा मानव विकास हेतु किया जा सकता है।
  • लागत-प्रभावी हरित हाइड्रोजन, तेल और इस्पात जैसे उद्योगों में कार्बन उत्सर्जन को काफी कम कर सकता है। इससे देश कोयले पर अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे समाप्त कर सकता है और वर्तमान में उत्पन्न कोयला समस्या भविष्य के लिए संकट भी नहीं बनेगा।
  • ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत हर साल 12 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च करता है इसलिए भारत का यह प्रयास अगले 25 वर्षों में देश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना कर ऊर्जा आयात को कम करने में म करेगा।
  • हाइड्रोजन काउंसिल अनुमान के मुताबिक अगर हाइड्रोजन की कीमत 1-80 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम हो तो 2030 तक वैश्विक ऊर्जा मांग का 15 प्रतिशत हिस्सा हाइड्रोजन से पूरा किया जा सकता है। ब्लूमबर्ग के मुताबिक अगर एक मजबूत और व्यापक नीति को लागू किया जाए तो हाइड्रोजन 2050 तक वैश्विक ऊर्जा मांग का 24 प्रतिशत हिस्सा पूरा कर सकता है।

यह भारत को क्वांटम जंप प्रदान करेगा

  • हाल के दिनों में भारत अनेक बिजली उत्पादन संयंत्रों में कोयले की कमी के कारण उत्पादन प्रभावित भारत में बिजली के उत्पादन का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा कोयले से चलने वाले पावर प्लांट से आता है। दुनिया के सबसे बड़े कोयला उत्पादक देशों में शामिल भारत भविष्य में होनेवाले कोयला संकट से बच सकता है।
  • भारत के ताप विद्युत कोयला संयंत्रों से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड की बचत होगी जिससे भारत को कार्बन क्रडिट की प्राप्ति होगी।
  • हाइड्रोजन का उपयोग न केवल भारत को पेरिस समझौते के तहत अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा, बल्कि यह जीवाश्म ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता को भी कम करेगा।

आगे की राह

  • हाइड्रोजन ऊर्जा भू-राजनीतिक संतुलन को भी असंतुलित करेगा। हाइड्रोजन का अंतरराष्ट्रीय कारोबार वैश्विक ऊर्जा व्यापार के परिदृश्य को काफी हद तक बदलेगा, ऊर्जा निर्यातकों और आयातकों के नये वर्ग को विकसित करेगा। साथ ही अलग-अलग देशों के बीच भू-राजनीतिक संबंधों और गठबंधन को नये सिरे से परिभाषित करेगा।