कोविड काल और भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी

भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचेम) के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में 2021 में तीव्र सुधार दर्ज किया गया है तथा यह अर्थव्यवस्था V-आकार में वृद्धि कर रही है।

V-आकार का सुधार (V-shaped recovery)

अर्थव्यवस्था में वी-आकार का सुधार, एक प्रकार की आर्थिक मंदी और उसकी रिकवरी है जो किसी अर्थव्यवस्था में तेज गिरावट के बाद तेजी से सुधार की स्थिति को प्रदर्शित करता है तथा यह ग्राफ में ‘V’ आकार में प्रदर्शित होता है।

  • यह अर्थव्यवस्था में तेज आर्थिक गिरावट के बाद आर्थिक प्रदर्शन के उपायों में त्वरित और निरंतर सुधार को प्रदर्शित करता है।
  • यह बहुत छोटे समय में आर्थिक क्रियाओं में तीव्र गिरावट को दिखाता है। लगातार गिरावट के दौरान किए जाने वाले आर्थिक सुधारों के चलते होने वाले तीव्र सुधार के प्रदर्शन को V-आकार के ग्राफ द्वारा प्रदर्शित किया गया था।
  • वर्तमान में कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में होने वाली तीव्र गिरावट के बाद अब जिस तेजी से आर्थिक क्रियाकलाप में सुधार हो रहा है उससे भारत की अर्थव्यवस्था में V-आकार का सुधार देखने को मिल रहा है।

वर्तमान में ट-आकार के सुधार के कारण

  • कोरोना वायरस की शुरुआत से पहले भारत की जीडीपी वृद्धि दर 4.5 फीसद तक सुस्त हो चुकी थी और कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए सख्त लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था की स्थिति को और कमजोर कर दिया था।
  • 2020-21 के मध्य में भारतीय अर्थव्यवस्था V-आकार की वृद्धि अर्थव्यवस्था की बुनियादी मजबूती और लॉकडाउन को धीरे-धीरे हटाया जाना तथा आत्मनिर्भर भारत मिशन की मुख्य भूमिका रही थी।
  • कृषि क्षेत्र की मजबूती ने इस रिकवरी को आसान बनाया क्योंकि यह क्षेत्र विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की तुलना में न के बराबर प्रभावित हुआ है।
  • लॉकडाउन हटाये जाने के बाद से निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र भी अर्थव्यवस्था को समर्थन दे रहे हैं।

आर्थिक मंदी में सुधार के अन्य प्रमुखख प्रारूप

  • जेड-आकार की रिकवरी (Z-shaped recovery): यह सबसे आशावादी परिदृश्य होता है, इसमें अर्थव्यवस्था में गिरावट के बाद तेजी से वृद्धि देखी जाती है। यह अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव आता है (जैसे, लॉकडाउन हटाए जाने के बाद खरीददारी में वृद्धि इत्यादि) को दर्शाता है।
  • U-आकार की रिकवरी (U-shaped recovery): जिसमें अर्थव्यवस्था के गिरने, संघर्ष करने और कुछ अवधि के लिए कम विकास दर के बाद भी यह धीरे-धीरे सामान्य स्तर तक वृद्धि करती है। इस प्रवृत्ति में लोगों की नौकरियों के ऊपर असर पड़ता है और लोगों की बचत में कमी देखने को मिलता है।
  • W-आकार की रिकवरी (W-shaped recovery): यह प्रवृत्ति जोखिम युक्त होती है। इसमें विकास दर में कमी तथा वृद्धि होती है, तथा उभरने के बाद यह फिर गिरती है और पुनः वृद्धि करती है,
  • L-आकार की रिकवरी (L-shaped recovery): यह अर्थव्यवस्था की सबसे खराब स्थिति होती है, जिसमें अर्थव्यवस्था में गिरावट के बाद विकास निम्न स्तर पर पहुँच जाता है और यह लंबे समय तक ठीक नहीं हो पता है। इसमें, अर्थव्यवस्था वर्षों के बाद भी वर्तमान जीडीपी के स्तर को हासिल करने में विफल रहती है। L-आकार से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता में स्थायी नुकसान होता है।

अर्थव्यवस्था की K शेप रिकवरी

किसी अर्थव्यवस्था में K शेप रिकवरी वह प्रक्रिया है जिसमें किसी मंदी के बाद नई तकनीक या बड़ी पूंजी वाली मजबूत कंपनियों की स्थिति छोटे कारोबारियों और लघु उद्योगों की तुलना में ज्यादा तेजी से सुधरती है।

  • इस तरह की रिकवरी को K-शेप इसलिए कहते हैं, क्योंकि इकॉनमी के पिछड़े और मजबूत सेक्टर्स का ग्रोथ चार्ट एक साथ बनाने पर यह रोमन के "K" अक्षर जैसा दिखता है, जिसमें एक हिस्सा तेजी से ऊपर की ओर बढ़ रहा होता है, जबकि दूसरे में गिरावट का सिलसिला अब तक खत्म नहीं हुआ होता है।

प्रभाव

  • इस प्रक्रिया में आर्थिक तौर पर कमजोर सेक्टर और उनसे जुड़ी आबादी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो मध्यम वर्ग, सूक्ष्म और लघु उद्योग के लिए चिंताजनक स्थिति उत्पन्न करती है।

वर्तमान मौद्रिक नीति का प्रभाव

  • लंबे समय से चली आ रही ‘अति समायोजन की मौद्रिक नीति’ के कारण वास्तविक उधार दरों में गिरावट आई है जो अंततः ब्याज-संवेदनशील क्षेत्रों के लिये राहत का कार्य करेगी।
  • ‘आर्थिक प्रसार’ एक कंपनी के पूंजी निवेश पर आय सृजन की क्षमता संबंधी उपाय है।

टीकाकरण का प्रभाव

  • यात्रा, पर्यटन और टूरिज्म जैसे बड़े क्षेत्र आखिरकार कोविड-19 के प्रभाव से उभरेंगे।

COVID-19 के बाद आर्थिक पुनर्बहाली

वित्त वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7% हो गया है, जो पूर्व-महामारी लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद के 3.5% का दोगुना है। इसलिये सरकार उच्च ईंधन करों, विनिवेश और सिन टैक्स को प्रोत्साहित कर रही है।

  • भारत ‘K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी’ के दौर से गुजर रहा है, जिससे कॉरपोरेट्स और परिवारों की अच्छी आर्थिक स्थिति के साथ अधिक मजबूती आई है, जबकि छोटी फर्में और गरीब परिवार महामारी के कारण उत्पन्न गरीबी और ऋणग्रस्तता के दुष्चक्र में फँसे हैं।

क्या है इकोनॉमिक रिकवरी

  • यह मंदी के बाद की व्यावसायिक चक्र अवस्था है, इसकी प्रमुख विशेषता एक निरंतर अवधि में व्यावसायिक गतिविधियों में सुधार होना है। आर्थिक सुधार के दौरान सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता है, आय में वृद्धि होती है और बेरोजगारी कम होने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की पुनर्बहाली होती है।

K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी

K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी तब होती है, जब मंदी के बाद अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग दर, समय या परिमाण में ‘रिकवरी’ होती है। यह विभिन्न क्षेत्रों, उद्योगों या लोगों के समूहों में समान ‘रिकवरी’ के सिद्धांत के विपरीत है।

  • के-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी से अर्थव्यवस्था की संरचना में व्यापक परिवर्तन होता है और आर्थिक परिणाम मंदी के पहले तथा बाद में मौलिक रूप से बदल जाते हैं।
  • इस प्रकार की रिकवरी को ‘K-शेप्ड इकोनॉमिक रिकवरी’ कहा जाता है क्योंकि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र जब एक मार्ग पर साथ चलते हैं तो डायवर्जन के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो कि रोमन अक्षर ‘ज्ञ’ की दो भुजाओं से मिलता-जुलता है।

COVID-19 के बाद ‘K-शेप्ड रिकवरी’ के निहितार्थ

निचले वर्ग के परिवारों को नौकरियों और मजदूरी में कटौती के रूप में आय का स्थायी नुकसान हुआ है, अगर श्रम बाजार में तेजी से सुधार नहीं होता है तो यह मांग पर आवर्ती दवाब बढ़ाएगा।

  • COVID-19 के कारण आय का प्रभावी हस्तांतरण गरीबों से अमीरों की ओर देखा गया है, इससे मांग में बाधा उत्पन्न होगी क्योंकि गरीबों में आय की तुलना में उपभोग की एक उच्च सीमांत प्रवृत्ति होती है (यानी वे बचत करने के बजाय खर्च करने की प्रवृत्ति रखते हैं)।
  • यदि COVID-19 की वजह से आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा में कमी आती है या आय और अवसरों की बीच असमानता में वृद्धि होती है तो यह उत्पादकता को नुकसान पहुँचाकर और राजनीतिक-आर्थिक बाधाओं को बढ़ाकर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि की प्रवृत्ति पर रोक लगा सकता है।