वर्तमान में भारत तथा अन्य विकासशील देशों में जिस आधुनिक कृषि प्रणालियों को अपनाया जा रहा है उसके कई दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। भारत में भी हरित क्रांति के दुष्परिणाम सिर्फ खेती में ही नहीं बल्कि पर्यावरण तथा मानवीय स्वास्थ्य पर भी दिखने लगे हैं। आधुनिक कृषि प्रणालियों की मुख्य समस्याएं निम्न हैं-
पर्यावरणीय हितैषी प्रमुख कृषि प्रणाली
उद्देश्य
समेकित कीट प्रबंधनः इस विधि का प्रमुख उद्देश्य कीट/ खरपतवार नियंत्रण में कीटनाशी/शाकनाशी की मात्र को कम करना है।
कीटों तथा रोगों का जैविक नियंत्रणः खेती में प्रयोगशाला जनित मित्र जीवों जैसे धान के तना के लिए ट्राइकोग्रामा जयोनिकमा, तना के लिए टाईकोग्रामा चीलोनिस तथा टमटर फल छेदक और तंबाकू की इल्ली लिटुराद्ध के लिए न्यूक्लियोपोल वायरस का उपयोग इन कीटों के अनुकूल नियंत्रण के लिए किया जा सकता है।
नीम लेपित यूरियाः फसल उर्वरक के रूप में यूरिया जब विघटित होता है, तो यह नाइट्रस ऑक्साइड नाइट्रेट अमोनिया और अन्य तत्वों में बदल जाता है तथा नाइट्रस ऑक्साइड हवा में घुल कर स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाती है।
कृषि वानिकीः कृषि वानिकी भूमि प्रबन्धन की ऐसी पद्धति है, जिसके अन्तर्गत एक ही भू-खण्ड पर फसलों के साथ बहुउदेशीय पेड़ों, झाड़ियों के उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन को भी लगातार या क्रमबद्ध तरीकों से किया जाता है।
फसल विविधीकरणः यह प्रणाली फसलों की पैदावार में कमी तथा गुणवत्ता में भी गिरावट को रोकती है। इसमें धान फसलों के साथ दलहन फसले, बागवानी फसले, पशुपालन, मछली पालन व मधुमक्खी पालन किया जाता है।
जैविक खेतीः बजट 2020-21 में रासायनिक उर्वरकों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए पारम्परिक जैविक खादों के उपयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। जैविक, प्राकृतिक और एकीकृत खेती को बढ़ावा देने की नीति पर जोर दिया जा रहा है।
आगे की राह