भारतीयों के लिए केज जलीय कृषि का महत्व

मत्स्य पालन पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा आजादी का अमृत महोत्सवके हिस्से के रूप में ‘केज एक्वाकल्चर इन रिजर्वायरः स्लीपिंग जाइंट्स’ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया

  • भारत में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ (PMMSY) के तहत केज कल्चर जलीय कृषि को बढ़ावा देने हेतु निवेश लक्ष्य निर्धारित किये हैं।

क्या है केज जलीय कृषि

इसके अंतर्गत मौजूदा जल संसाधनों के अन्दरही मत्स्यपालन किया जाता है। इसमें एक केज पिंजरे के माध्यम से इस प्रकार खेती की जाती है जिससे पानी मुक्त प्रवाह निरंतर बना रहता है।

  • यह एक जलकृषि उत्पादन प्रणाली है जो फ्लोटिंग फ्रेम, जाल और मूरिंग प्रणाली (रस्सी, बोया, लंगर आदि के साथ) से बनी होती है, का उपयोग किया जाता है।
  • इसमें बड़ी संख्या में मछलियों को पकड़ने और पालने के लिये एक गोल या चौकोर आकार का तैरता हुआ जाल शामिल होता है, और इसे जलाशय, नदी, झील या समुद्र में स्थापित किया जा सकता है।
  • इसके तहत प्राकृतिक धाराओं का उपयोग किया जाता है जो मछली को ऑक्सीजन तथा अन्य उपयुक्त प्राकृतिक स्थितियाँ प्रदान करते हैं।

सम्भावना

  • भारत के जलाशयों का संयुक्त सतह क्षेत्र 3.25 मिलियन हेक्टेयर (हेक्टेयर) है। उनमें से अधिकांश उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में हैं, तथा यह देश का सबसे महत्वपूर्ण अंतर्देशीय जल संसाधन है, तथा भारत की लंबी तटरेखा के किनारे स्थित तटीय राज्यों में उपलब्ध विशाल लवणीय जल के क्षेत्र और अन्य कम उपयोग वाले जल निकायों का बेहतर उपयोग केज कल्चर’ को अपनाकर किया जा सकता है।

कारण

  • भारत मछली की बढ़ती खपत और मांग के अनुरूप कम उत्पादन होना तथा जंगली मछलियों के घटते स्टॉक और खराब कृषि अर्थव्यवस्था जैसे कारकों ने केज कल्चर में मछली उत्पादन को प्रोत्साहित किया है।
  • छोटे या सीमित संसाधन वाले किसानों का नई कृषि विकल्प की और झुकाव उत्पन्न होना।
  • भारतीय जलाशयों में विशेष रूप से छोटे जलाशयों में ऑटो-स्टॉकिंग की सफलता दर बहुत कम है।
  • कई छोटे जलाशय गर्मियों के दौरान सूख जाते हैं आंशिक रूप से या पूरी तरह से कोई स्टॉक नहीं बचता है। हालांकि भारत में हर साल 22 बिलियन फिश फ्राई का उत्पादन किया जाता है लेकिन जलाशयों के भंडारण के लिए फिश फिंगरलिंग की भारी कमी है।

लाभ

  • व्यापक प्रयोज्यताः केज कल्चर खुले मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र विशेष रूप से जलाशयों की एक विस्तृतश्रृंखला के लिए उपयुक्त है।
  • कुशल दोहनः यह जल निकायों का कुशलतापूर्वक तथा प्राकृतिक उत्पादकता का दोहन करता है और इस तरह अन्य संसाधनों पर दबाव कम करता है।
  • सतत और धारणीय विधिः यह पिंजड़े के निर्माण और संचालन के लिए सरल तकनीक और स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करती है जिससे यह आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से मजबूत हो जाती है।
  • लागत प्रभावीः चूंकि पिंजरे की खेती का गहन अभ्यास किया जा सकता है उच्च पैदावार बहुत लागत प्रभावी ढंग से प्राप्त की जा सकती है, जिसमें उच्च रिटर्न और कम-से-कम कार्बन उत्सर्जन गतिविधि होती है।
  • जल प्रवाह में बाधा नहीं: यह मौजूदा जल निकायों में मत्स्य पालन की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक अर्थात् ऑक्सीजन युक्त जल के निरंतर प्रवाह की आवश्यकता को दूर करती है।
  • निम्न प्रदूषणः भारत में अधिकांश जलाशयों को पीने के पानी की आपूर्ति सहित कई उपयोगों के लिए उपयोग किया जाता है। केज कृषिके द्वारा कम से कम प्रदूषण उत्पन्न होता है तथा यह जलाशय के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बनाए रखती है।

बायोफ्लॉक प्रणाली और रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस)

  • बायोफ्लॉक प्रणाली मछली पालन को नई ‘नीली क्रांति’ के रूप में माना जा रहा है। यह एक पर्यावरण अनुकूल जलीय कृषि तकनीक है जो स्वस्थानी सूक्ष्मजीव उत्पादन पर आधारित है। इसमें टैंकों में मछली पाली जाती है। टैंकों में मछलियां जो वेस्ट निकालती है उसको बैक्टीरिया के द्वारा प्यूरीफाई किया जाता है। यह बैक्टीरिया मछली के 20 प्रतिशत मल को प्रोटीन में बदल देता है। मछली इस प्रोटीन को खा लेती हैं। इस तकनीक में पानी की बचत तो है ही साथ ही मछलियों के फीड की भी बचत होती है। मछली जो भी खाती है उसका 75 फीसदी वेस्ट निकालती है और वो वेस्ट उस पानी के अंदर ही रहता है और उसी वेस्ट को शुद्ध करने के लिए बायो फ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है।
  • रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस): इसमें पानी के बहाव की निरंतरता को बनाए रखने के लिए पानी के आने जाने की व्यवस्था की जाती है। इस तकनीक से कम जगह एवं कम पानी में ज्यादा मछलियों का पालन किया जा सकता है।

चुनौतियां

  • पिंजरे जल निकायों की सतह पर अगर खराब स्थिति में हैं तो जगह घेरते हैं तथा नेविगेशन को बाधित कर सकते हैं या जलाशय के प्राकृतिक मूल्य को कम कर सकते हैं।
  • लो डीजॉल्व ऑक्सीजन सिंड्रोम (LODOS) एक सबसे बड़ी समस्या है और इसके लिये यांत्रिक वातन (mechanical aeration) की आवश्यकता हो सकती है।
  • अवैध शिकार तथा जल गुणवत्ता मानकों में परिवर्तन होने का खतरा है।
  • खराब तरीके से रखे गए पिंजरे वर्तमान प्रवाह को बदल सकते हैं और अवसादन को खराब कर सकते हैं।
  • अनुपयुक्त रूप से गहन या खराब प्रबंधन वाली पिंजरे की खेती पर्यावरण को दूषित कर सकती है तथा फीड और मछली के मल अपशिष्ट जलाशयों में रहने से जिससे यूट्रोफिकेशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • गर्मियों के महीनों के दौरान तेज हवाओं या बाढ़ से पिंजरों को नुकसान हो सकता है।

आगे की राह

  • केज कल्चर प्रणाली में प्राप्त होने वाले उच्च उत्पादन को देखते हुए यह भारत में समग्र मछली उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। निजी भूमि पर किए गए भूमि आधारित जलीय कृषि के विपरीत, सामान्य संपत्ति संसाधनों में पिंजरा पालन किया जाता है।
  • इसलिए, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पिंजड़े की खेती का विस्तार मछुआरों की आजीविका और आय को प्रभावित न कर करें व्यक्तिगत निवेशकों और कॉरपोरेट घरानों को पिंजड़े की खेती करने की अनुमति देकर विशुद्ध रूप से राजस्व दृष्टिकोण का पालन करना समावेशी विकास की भावना के खिलाफ होगा और सामाजिक तनाव पैदा कर सकता है।
  • स्वयं सहायता समूहों, सहकारी समितियों या ऐसे अन्य समूहों को पिंजरा पालने के लिए लाइसेंस दिया जाना चाहिए शिकायतों के समाधान के लिए एक संघर्ष प्रबंधन प्रकोष्ठ की स्थापना की जानी चाहिए।

नीली अर्थव्यवस्था

  • ब्लू इकोनॉमी के अंतर्गत ऐसी अर्थव्यवस्था आती है, जो प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से महासागरों व समुद्रों पर आधारित होती है। ब्लू इकोनॉमी या समुद्री अर्थव्यवस्था का सीधा मतलब है कि समुद्र में व्याप्त खनिज पदार्थों, गैस, तेल एवं अन्य उपयोगी तत्वों का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में हो। भारत की नीली अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का एक उपवर्ग है, जिसके अंतर्गत संपूर्ण महासागर संसाधन प्रणाली तथा देश के विधिक क्षेत्रधिकार के अंतर्गत समुद्र एवं तटवर्ती क्षेत्रों में मानव निर्मित आर्थिक बुनियादी ढांचा शामिल है।
  • भारत की जीडीपी में समुद्र आधारित यानी नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के योगदान को बढ़ाना, तटीय समुदाय के लोगों की जिंदगी में सुधार लाना, समुद्री जैव विविधता को संरक्षित रखना तथा समुद्री क्षेत्रों व संसाधनों की राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखना।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2030 तक न्यू इंडिया के भारत सरकार के विजन के अनुरूप नीली अर्थव्यवस्था नीति तैयार की है।
  • न्यू इंडिया विजन में नीली अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय विकास के लिए 10 प्रमुख आयामों में माना गया है।
  • इसके अंतर्गत सात निम्नलिखित विषय पर बल प्रदान किया गया है
  • नीली अर्थव्यवस्था तथा समुद्री शासन संचालन के लिए राष्ट्रीय लेखा ढांचा
  • तटीय समुद्री आकाशीय नियोजन तथा पर्यटन
  • मरीन मछली पालन तथा मछली प्रसंस्करण
  • मैन्यूफैक्चरिंग, उभरते उद्योग, व्यापार, टेक्नोलॉजी, सर्विसेज तथा कौशल विकास
  • पार-लदान सहित अवसंरचना तथा शिपिंग
  • तटीय तथा गहरे समुद्री खनन तथा अपतटीय ऊर्जा
  • सुरक्षा, रणनीतिक आयाम तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग