भारत में कृषि कार्यों में उर्वरकों का संतुलित और न्यायोचित उपयोग किसानों द्वारा नहीं किया जा रहा है, जिस कारण न केवल फसलों की उपज, उत्पाद की गुणवत्ता, मृदा स्वास्थ्य और किसानों के लाभ पर बुरा असर पड़ रहा है बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। किसान द्वारा यूरिया और डीएपी की प्रयोग दर बढ़ता जा रहा है और इससे खेती का खर्च भी बढ़ता जा रहा है परन्तु उसे यथोचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि कुछ ऐसे स्मार्ट उर्वरक की खोज की जाए, जिनकी उपयोग क्षमता पारम्परिक उर्वरकों की तुलना में काफी अधिक हो इस संदर्भ में नैनो प्रौद्योगिकी द्वारा विकसित स्मार्ट उर्वरकों का एक महत्वपूर्ण विकल्प किसानों के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है।
नैनो यूरिया और परम्परागत यूरिया
यह यूरिया के परंपरागत विकल्प के रूप में पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करने वाला एक पोषक तत्व (तरल) है तथा यह पारंपरिक यूरिया की आवश्यकता को न्यूनतम 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
नैनो टेक्नोलॉजी का कृषि में उपयोग
नैनो उर्वरक अनुसंधान तथा नैनो उर्वरक उत्पादन
उर्वरक क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी संस्था इफको (IFFCO) की मातृ इकाई कलोल, गुजरात के अत्याधुनिक नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) द्वारा नैनो प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों जैसे-नैनो यूरिया, नैनो जिंक व नैनो कॉपर को पूर्णतया स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है।
नैनो यूरिया के लाभ
नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए यूरिया सर्वाधिक प्रचलित उर्वरक है। परन्तु यूरिया द्वारा दिए गए नाइट्रोजन का मुश्किल से 30 से 50 प्रतिशत भाग की फसलें उपयोग कर पाती हैं, शेष बची मात्र वातावरण को प्रदूषित करती है। दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए फसल उत्पादन में वृद्धि के लिए नैनो उर्वरक वरदान साबित हो रहे हैं।
नैनो यूरिया (तरल) का कार्य
द्रव रूप में उपलब्ध नैनो यूरिया का फसल की क्रांति अवस्थाओं पर यूरिया के स्थान पर पत्तियों पर छिड़काव करने से नाइट्रोजन की सफलतापूर्वक पूर्ति हो जाती है।
आगे की राह
दरअसल, भारतीय संदर्भ में मुख्यतः नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटेशियम का उपयोग किया जाता है। भारत एनपीके उवर्रक को 4:2:1 के अनुपात के उपयोग करने की सलाह दी गई, वहीं इसे 6:7:2,4:1 के अनुपात में उपयोग किया जा रहा है।