नैनो उर्वरकों का बढ़ता महत्व

भारत में कृषि कार्यों में उर्वरकों का संतुलित और न्यायोचित उपयोग किसानों द्वारा नहीं किया जा रहा है, जिस कारण न केवल फसलों की उपज, उत्पाद की गुणवत्ता, मृदा स्वास्थ्य और किसानों के लाभ पर बुरा असर पड़ रहा है बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। किसान द्वारा यूरिया और डीएपी की प्रयोग दर बढ़ता जा रहा है और इससे खेती का खर्च भी बढ़ता जा रहा है परन्तु उसे यथोचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि कुछ ऐसे स्मार्ट उर्वरक की खोज की जाए, जिनकी उपयोग क्षमता पारम्परिक उर्वरकों की तुलना में काफी अधिक हो इस संदर्भ में नैनो प्रौद्योगिकी द्वारा विकसित स्मार्ट उर्वरकों का एक महत्वपूर्ण विकल्प किसानों के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है।

नैनो यूरिया और परम्परागत यूरिया

यह यूरिया के परंपरागत विकल्प के रूप में पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करने वाला एक पोषक तत्व (तरल) है तथा यह पारंपरिक यूरिया की आवश्यकता को न्यूनतम 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

  • इसकी 500 मिली. की एक बोतल में 40,000 मिलीग्राम/ लीटर नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग/बोरी के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व प्रदान करेगा।
  • परंपरागत यूरिया पौधों को नाइट्रोजन पहुँचाने में 30-40% प्रभावी है, जबकि नैनो यूरिया लिक्विड की प्रभावशीलता 80% से अधिक है। इसकी प्रभावशीलता का परीक्षण चावल और गेहूँ जैसी 94 फसलों के लिये 11,000 से अधिक किसानों के खेतों में किया गया है। इसके उपयोग से उपज में औसतन 8% की वृद्धि पाई गई है। इसमें एक कण का आकार लगभग 30 नैनोमीटर होता है।

नैनो टेक्नोलॉजी का कृषि में उपयोग

  • नैनो टेक्नोलॉजी का कृषि क्षेत्र में उपयोग निरंतर बढ़ रहा है। ये प्रयोग कृषि अनुसंधान, उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण से लेकर कृषि उत्पादों के परिवहन तक में देखे जा सकते हैं। इस क्रम में प्रीसिजन फार्मिंग तकनीक, पौधों में पोषक तत्वाें की ग्रहणशीलता के स्तर को बढ़ाने, कृषि खाद्यान्नों का अधिक दक्ष एवं लक्षित प्रयोग, रोगों की पहचान एवं नियंत्रण, नैनो टेक्नोलॉजी से उर्वरकों का कुशल और बेहतर उपयोग, मुदा उर्वरता बढ़ाने आदि जैसे कार्यकलापों का उल्लेख किया जा सकता है।
  • इस तकनीक के प्रयोग से नैनो हर्बिसाईड का भी विकास किया जा रहा है, जिनसे खरपतवारों का समय रहते अधिक लागत प्रभावी और कुशलतापूर्वक नियंत्रण कर पाना संभव हो सकेगा। इसी प्रकार, पशु चिकित्सा के क्षेत्र में भी नैनो पार्टिकल्स का इस्तेमाल कर अधिक प्रभावी दवाइयों का विकास अब संभव हो सका है।

नैनो उर्वरक अनुसंधान तथा नैनो उर्वरक उत्पादन

उर्वरक क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी संस्था इफको (IFFCO) की मातृ इकाई कलोल, गुजरात के अत्याधुनिक नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) द्वारा नैनो प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों जैसे-नैनो यूरिया, नैनो जिंक व नैनो कॉपर को पूर्णतया स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है।

  • नैनो संरचना से निर्मित ये उत्पाद पौधों को असरदार पोषण प्रदान करते हैं। इफको की ओर से 3 तरह के नैनो उर्वरकों की दक्षता का अध्ययन किया गया है, जिसमें नैनो यूरिया, नैनो जिंक एवं नैनों कॉपर जैसे नैनो उत्पाद शामिल थे।
  • नैनो यूरिया को भारत सरकार की ओर से नैनो यूरिया (तरल) नाम दिया गया है। अब यह उर्वरक फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा फर्टिलाइजर कंट्रोल आर्डर में भी सम्मिलित कर लिया गया है।

नैनो यूरिया के लाभ

नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए यूरिया सर्वाधिक प्रचलित उर्वरक है। परन्तु यूरिया द्वारा दिए गए नाइट्रोजन का मुश्किल से 30 से 50 प्रतिशत भाग की फसलें उपयोग कर पाती हैं, शेष बची मात्र वातावरण को प्रदूषित करती है। दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए फसल उत्पादन में वृद्धि के लिए नैनो उर्वरक वरदान साबित हो रहे हैं।

  • आकार में छोटे होने के कारण नैनो उर्वरक मृदा एवं पत्तियों में आसानी से वितरित हो जाते हैं और मृदा की गुणवत्ता वृद्धि और फसल पोषण में म करते हैं।
  • नैनो यूरिया का घोल बनाकर पर्णीय छिड़काव करने पर नाइट्रोजन का अमोनिया गैस के रूप में परिवर्तित होकर वातन द्वारा छीजन नहीं हो पाता। इसके अलावा नाइट्रोजन की नाइट्रेट के रूप में नीक्षालन/जलसारण द्वारा हानि भी पूर्णतया रूक जाती है।
  • नैनो यूरिया का प्रयोग पर्णीय छिड़काव द्वारा करने पर नाइट्रोजन की विनाइट्रीकरण द्वारा होने वाली हानि भी रूक जाती है।
  • इसका प्रयोग पर्यावरण सुरक्षा के लिए वरदान सबित हो रहा है। इफको नैनो यूरिया की 500 मिलीलीटर की एक बोतल अपनी क्षमता और नाइट्रोजन पूर्ति की दृष्टि से यूरिया के 45 किलोग्राम के एक कट्टे के बराबर सक्षम साबित होती है।
  • नैनो उर्वरक से कम लागत में कृषि भूमि में जरूरी सूक्ष्म तत्वों की कमी पूरी की जा सकेगी। इसके साथ प्रदूषण मुक्त फसल के साथ मृदा स्वास्थ्य में भी सुधार होगा।
  • सामान्य यूरिया के प्रयोग से पैदा होने वाले पर्यावरण संबंधी मौजूदा समस्याओं जैसे ग्रीनहाउस गैस, नाइट्रस ऑक्साइड और अमोनिया उत्सर्जन, मिट्टी में एसिड की मात्र बढ़ना और पानी के स्रोतों के यूट्रोफिकेशन आदि के समाधान में नैनो यूरिया लिक्विड पूरी तरह सक्षम है।
  • पौधे की नाइट्रोजन आवश्यकता को पूरा करने के लिए सामान्य यूरिया उर्वरक की तुलना में इसकी कम मात्र की आवश्यकता होती है।

नैनो यूरिया (तरल) का कार्य

द्रव रूप में उपलब्ध नैनो यूरिया का फसल की क्रांति अवस्थाओं पर यूरिया के स्थान पर पत्तियों पर छिड़काव करने से नाइट्रोजन की सफलतापूर्वक पूर्ति हो जाती है।

  • पर्णीय छिड़काव के बाद नैनो यूरिया के कण स्टोमेटा या अन्य रिक्त स्थानों के माध्यम से आसानी से पत्तियों में प्रवेश कर जाते हैं और पादप कोशिकाओं द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं।
  • ये कण फ्लोएम के द्वारा बड़ी आसानी से पौधे की आवश्यकतानुसार अन्य भाग में वितरित हो जाते हैं।
  • पौधे के उपयोग के बाद बची हुई नाइट्रोजन रिक्तिकाओं में जमा हो जाती है और आवश्यकतानुसार धीरे-धीरे मुक्त होकर पौधे की वृद्धि एवं विकास में योगदान देती हैं। जाहिर है इसके प्रयोग से न केवल यूरिया की बचत होती है बल्कि यूरिया की तुलना में यह सस्ता भी पड़ता है और वातावरण के प्रदूषण की समस्या भी समाप्त हो जाती है।
  • इसका भंडारण नमी रहित ठंडे स्थान पर करें और बच्चों एवं पालतू जानवरों की पहुंच से दूर रखें।

आगे की राह

दरअसल, भारतीय संदर्भ में मुख्यतः नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटेशियम का उपयोग किया जाता है। भारत एनपीके उवर्रक को 4:2:1 के अनुपात के उपयोग करने की सलाह दी गई, वहीं इसे 6:7:2,4:1 के अनुपात में उपयोग किया जा रहा है।

  • जाहिर-सी बात है कि इस बढ़े हुए अनुपात से कृषि लागत में भी वृद्धि हो रही है और दीर्घकाल में उत्पादकता भी प्रभावित हो रही है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि इसे उचित रूप से प्रबंधित किया जाए।
  • बेहतर तो यह है कि जैविक उर्वरकों का अधिकाधिक उपयोग हो ताकि कम लागत में स्थानीय रूप से उर्वरक भी प्राप्त हो जाए और मृदा की उर्वरता भी बनी रहे।