सुक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को आर्थिक विकास में योगदान बेहतर रोजगारों के सृजन, सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं के प्रावधान के साथ-साथ गरीबी उन्मूलन और असमानता घटाने के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए पृष्ठभूमि व्यापक रूप से जाना जाता है।
महत्व
कुल अर्थव्यवस्था के सकल मूल्य में लगभग एक तिहाई योगदान इस क्षेत्र का है।
वृद्धि के कारक
सतत आर्थिक विकास और बढ़ता निर्यातः एमएसएमई निर्यात का 95 प्रतिशत से अधिक हिस्सा गैर-पारंपरिक उत्पादों का है (अधिकतर खेल के सामान रेडीमेड परिधानों, प्लास्टिक उत्पादों आदि के निर्यात में)।
एमएसएमई और रोजगार सृजनः सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को अगर भरपूर प्रोत्साहन मिले तो, वे अगले 4.5 वर्षों में एक करोड़ रोजगार सृजित कर सकते हैं। सभी क्षेत्रों में एमएसएमई पिछले चार वर्षों में सबसे बड़ा रोजगार सृजनकर्ता रहा है।
एमएसएमई के समक्ष चुनौतियां
एमएसएमई को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तथा अधिकांश अपंजीकृत एमएसएमई में मुख्य रूप से सूक्ष्म उद्यम शामिल है जो विशेष रूप से ग्रामीण भारत तक सीमित हैं जिनमें पुरानी अप्रचलित प्रौद्योगिकी का प्रयोग हो रहा है और संस्थागत दिन तक उनकी सीमित पहुंच है आदि। बड़ी संख्या में मौजूद अपंजीकृत एमएसएमई को पंजीकृत एमएसएमई में तब्दील करने की आवश्यकता है।
एमएसएमई के लिए सरकार की पहल
सरकार ने एमएसएमई क्षेत्र की सुविधा के लिए निम्नलिखित पांच प्रमुख पहलों को आरम्भ किया है-
आगे की राह
एमएसएमई बड़े उद्योगों के मुकाबले न केवल कम पूंजी लागत पर बड़े रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बल्कि पिछड़े क्षेत्र आयोगकरण में भी म करते हैं। वे राष्ट्रीय आय और धन के समान वितरण को सुनिश्चित करके क्षेत्रीय असंतुलन का कम करने में भी म करते है।
एमएसएमई सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के पूरक है। एमएसएमई क्षेत्र देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में बहुत बड़ा योगदान देता है। यह क्षेत्र प्रौद्योगिकी उन्नयन और डिजिटलीकरण पर बल देने तथा वैश्विक समकक्षों के साथ प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करने के साथ मेक इन इंडिया अभियान में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।