सुक्ष्म, लघु और मधयम उद्यमः चुनौतियाँ और संभावनाएं

सुक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को आर्थिक विकास में योगदान बेहतर रोजगारों के सृजन, सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं के प्रावधान के साथ-साथ गरीबी उन्मूलन और असमानता घटाने के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए पृष्ठभूमि व्यापक रूप से जाना जाता है।

  • भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने के लिए भारत के विनिर्माण उत्पादन का 33.4 प्रतिशत योगदान करने वाले एमएसएमई को रोजगार सृजन, निर्यात, लोगों को कुशल बनाने में और इस क्षेत्र को और अधिक औपचारिक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभानी होगी, ताकि वे जीएसटी जैसे सुधारों का लाभ मिल सके। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र पिछले पांच दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था के बेहद जीवंत और गतिशील क्षेत्र के रूप में उभरा है।
  • यह उद्यमिता को बढ़ावा देकर और कृषि के बाद तुलनात्मक रूप से कम लागत पर रोजगार के सर्वाधिक अवसर पैदा कर देश के आर्थिक और सामाजिक विकास, देश के समावेशी औद्योगिक विकास में तथा उद्यमिता का विकास महत्वपूर्ण योगदान देता है।

महत्व

कुल अर्थव्यवस्था के सकल मूल्य में लगभग एक तिहाई योगदान इस क्षेत्र का है।

  • देश के विनिर्माण उत्पादन का लगभग एक-तिहाई इनके द्वारा होता है। ये उद्यम देश के सभी प्रतिष्ठानों का तीन-चौथाई भाग है। देश के समस्त भू-भाग में स्थापित 4 करोड़ से अधिक इकाइयों द्वारा एमएसएमई योगदान करते हैं।
  • विनिर्माण सकल घरेलू उत्पाद का 6.11 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद का 24.63 प्रतिशत भारत के विनिर्माण उत्पादन का 33.4 प्रतिशत का योगदान देता है।
  • एमएसएमई लगभग 12 करोड़ व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करने में सक्षम रहे हैं।
  • भारत से कुल निर्यात में इनका लगभग 45 प्रतिशत योगदान है।
  • इस क्षेत्र में लगातार 10 प्रतिशत से अधिक की विकास दर बनाए रखी है। लगभग 20 प्रतिशत एमएसएमई ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित है। तथा एक बड़ा ग्रामीण कार्यबल कार्यरत है।
  • भारत सरकार के एमएसएमई मंत्रालय के आकलन के अनुसार यह क्षेत्र देशभर में स्थित 4.6 करोड़ से अधिक इकाइयों के माध्यम से लगभग 10 करोड़ रोजगार उत्पन्न करता है।
  • भारत में एमएसएमई क्षेत्र में 1960 के बाद से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इकाइयों की संख्या में 44 प्रतिशत और रोजगार में 4.62 प्रतिशत (वर्तमान में तीन करोड़ रोजगार) की औसत वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई।

वृद्धि के कारक

सतत आर्थिक विकास और बढ़ता निर्यातः एमएसएमई निर्यात का 95 प्रतिशत से अधिक हिस्सा गैर-पारंपरिक उत्पादों का है (अधिकतर खेल के सामान रेडीमेड परिधानों, प्लास्टिक उत्पादों आदि के निर्यात में)।

  • विकास को समावेशी बनानाः एमएसएमई समावेशी विकास के साधन है। ये सबसे कमजोर और हाशिए के लोगों के जीवन को अवलंबन प्रदान करते हैं। कई परिवारों के लिए यह आजीविका का एकमात्र स्रोत है।

एमएसएमई और रोजगार सृजनः सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को अगर भरपूर प्रोत्साहन मिले तो, वे अगले 4.5 वर्षों में एक करोड़ रोजगार सृजित कर सकते हैं। सभी क्षेत्रों में एमएसएमई पिछले चार वर्षों में सबसे बड़ा रोजगार सृजनकर्ता रहा है।

एमएसएमई के समक्ष चुनौतियां

एमएसएमई को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तथा अधिकांश अपंजीकृत एमएसएमई में मुख्य रूप से सूक्ष्म उद्यम शामिल है जो विशेष रूप से ग्रामीण भारत तक सीमित हैं जिनमें पुरानी अप्रचलित प्रौद्योगिकी का प्रयोग हो रहा है और संस्थागत दिन तक उनकी सीमित पहुंच है आदि। बड़ी संख्या में मौजूद अपंजीकृत एमएसएमई को पंजीकृत एमएसएमई में तब्दील करने की आवश्यकता है।

  • समग्र एनएसएमई क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार की आवश्यकता है, जिसमें निम्नलिखित कार्यक्षेत्र शामिल होते हैं।
  • प्रौद्योगिकी तक पहुंच नहीं होना
  • बौद्धिक संपदा अधिकार से सम्बन्धित मुद्दे
  • डिजाइन से सम्बन्धित मुद्दे
  • संसाधनों/मानव बल का अनावश्यक उपयोग
  • ऊर्जा अकुशलता और उससे संबद्ध उच्च लागत।
  • आईसीटी का अल्प उपयोग।
  • बाजार में कम पहुँच
  • गुणवत्ता आश्वासन त्तथा प्रमाणन
  • नए बजरों में प्रवेश करने के लिए उत्पादों का मानकीकरण
  • पूंजी की कमी

एमएसएमई के लिए सरकार की पहल

सरकार ने एमएसएमई क्षेत्र की सुविधा के लिए निम्नलिखित पांच प्रमुख पहलों को आरम्भ किया है-

  1. ऋण तक पहुंचः 59 मिनट के ऋण पोर्टल का शुभारम्भ जिसमें एक करोड़ तक के ऋणों को सैद्धानिक मंजूरी दी जा सकती है। सभी एसटी पंजीकृत एमएसएमई के लिए नए ऋणों पर 2 प्रतिशत छूट भी प्रदान करती है।
  2. बाजार तक पहुंचः सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को अब अपनी कुल खरीद का 25 प्रतिशत अनिवार्य रूप से एमएसएमई से ही देना होता है।
  3. प्रौद्योगिकी उन्नयनः प्रौद्योगिकी तक पहुंच के लिए पूरे देश में टूल रूम्स के रूप में 100 स्पोक चाल 20 प्रौद्योगिकी हब स्थापित किए जाएंगे।
  4. कारोबारी सुगमता (ईज ऑफ इस बिजनेस): मंजूरी और प्रमाणन प्राप्त करने की सुविधाओं के लिए कई पहल शुरू की गई है, जिससे कारोबार करने में सुगमता मिल सके।
  5. सामाजिक सुरक्षाः एमएसएमई क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा एक मिशन शुरू किया गया है, जो कर्मचारियों के लिए जन-धन खातों भविष्य निधि और बीमा तक पहुंच सुनिश्चित करता है।

आगे की राह

एमएसएमई बड़े उद्योगों के मुकाबले न केवल कम पूंजी लागत पर बड़े रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बल्कि पिछड़े क्षेत्र आयोगकरण में भी म करते हैं। वे राष्ट्रीय आय और धन के समान वितरण को सुनिश्चित करके क्षेत्रीय असंतुलन का कम करने में भी म करते है।

एमएसएमई सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के पूरक है। एमएसएमई क्षेत्र देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में बहुत बड़ा योगदान देता है। यह क्षेत्र प्रौद्योगिकी उन्नयन और डिजिटलीकरण पर बल देने तथा वैश्विक समकक्षों के साथ प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करने के साथ मेक इन इंडिया अभियान में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।