भारत की सेमीकंडक्टर नीतिः आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम

समकालीन समय में, सेमीकंडक्टर को विश्व में ‘नया तेल’ माना जा रहा है जबकि जापान और दक्षिण कोरिया ने सेमीकंडक्टर के महत्व की तुलना ‘चावल’ से किया है। यह कहा गया है कि ‘जो कोई भी इन माइक्रोचिप्स के डिजाइन और उत्पादन को नियंत्रित करता है, वे 21वीं सदी के लिए दिशा निर्धारित करेंगे। सेमीकंडक्टर कंप्यूटर, स्मार्टफोन के साथ-साथ कारों, चिकित्सा और सैन्य उपकरणों और संबंधित उपकरणों से लेकर विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का एक महत्वपूर्ण घटक बनाते हैं।

  • इस महत्व को पहचानते हुए भारत सरकार ने दिसंबर 2021 में एक सतत सेमीकंडक्टर एवं डिले पारिस्थितिक तंत्र विकसित करने के लिए व्यापक नीति को मंजूरी प्रदान की है जो घरेलू स्तर पर सेमीकंडक्टर चिप डिजाइन करने हेतु एक बेहतर पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करेगा। भारत में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और 5G तकनीक के आगमन के साथ सेमीकंडक्टर चिप की मांग बढ़ रही है और वर्ष 2025 तक इसकी मांग वर्तमान के 24 बिलियन डॉलर मूल्य से बढ़कर लगभग 100 बिलियन डॉलर मूल्य तक होने की संभावना है।
  • इसके विकास हेतु सरकार ने अपनी डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना के तहत 100 घरेलू कंपनियों, स्टार्ट-अप तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों से आवेदन मांगे हैं। डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव कार्यक्रम सेमीकंडक्टर चिप निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत के निर्धारित लक्ष्यों की ओर बढ़ने की अपनी पहल का प्रतिनिधित्व करता है।

सेमीकंडक्टर में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता

  • भारत में सेमीकंडक्टर की मांग बढ़ रही है और पूरी मांग आयात के जरिए पूरी होती है। सेमीकंडक्टर की मांग मौजूदा 24 अरब डॉलर से 2025 तक 100 अरब डॉलर तक बढ़ने की संभावना है।
  • ऑटो इंडस्ट्री पर चिप की कमी का पड़ता नकारत्मक प्रभाव।
  • भारत में इलेक्ट्रॉनिक तथा मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या काफी अधिक होना।
  • भारत विभिन्न गतिविधियों में प्रयोग किए जाने वाले सेमीकंडक्टर चिप हेतु पूर्ण रूप से विदेशी आयात पर निर्भर होना।
  • हाल ही के समय में अमेरिका एवं चीन तथा जापान एवं दक्षिण कोरिया के मध्य व्यापारिक तनाव व कोविड-19 महामारी के काल में अनेक पदार्थों के साथ सेमीकंडक्टर चिप की आपूर्ति प्रभावित होना।
  • भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन कर सेमीकंडक्टर क्षेत्र में प्रगति हेतु व्यापक निवेश की आवश्यकता होगी तथा इसमें अनेक सामरिक और आर्थिक विकास समाहित हैं।

सेमीकंडक्टर उपयोग

प्राथमिक रूप से इसका उपयोग कंप्यूटर, मोबाइल फोन, एलईडी बल्ब, रेफ्रिजरेटर, इंटरनेट और संचार सेटअप, चिकित्सा नेटवर्क, स्वच्छ प्रौद्योगिकी आदि में किया जाता है। इन सबके अलावा निम्न क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जाता है-

  • संचारः यह डिस्प्ले, बैटरी, राउटर तथा दूरसंचार को प्रभावित करता है। घरेलू उपकरण- सेमीकंडक्टर के माध्यम से तापमान, टाइमर और स्वचालित सुविधाओं को नियंत्रित किया जाता है।
  • बैंकिंगः बैंकिंग सेवा में एटीएम, सिक्योरिटी कैमरा तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सेवाओं के लिए सेमीकंडक्टर चिप की आवश्यकता होती है।
  • चिकित्सा उपकरणः चिकित्सा क्षेत्र में सेमीकंडक्टर तापमान, सेंसर, दबाव, गणना और अन्य कार्यों को निर्देशित करता है।
  • यातायातः विमानों कारों, बसों, रेलगाड़ियों के साथ परिवहन क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले जीपीएस नेविगेशन में सेमीकंडक्टर चिप का व्यापक उपयोग किया जाता है।

नीति की आवश्यकता

आयात में वृद्धिः इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के उपभोग की दर को देखते हुए यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि इलेक्ट्रॉनिक्स आयात जल्द ही भारत की सबसे बड़ी आयात मद के रूप में कच्चे तेल से आगे निकल जाएगा।

  • वैश्विक आपूर्ति में कमीः कोविड 19 महामारी तथा वैश्विक स्तर पर उत्पन्न लॉकडाउन ने जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और अमेरिका जैसे देशों में इस चिप के निर्माण को प्रभावित किया है। इससे भारतीय बाजार प्रभावित हुए है।

चीन विरोधी भावनाओं से लाभः कोविड-19 महामारी में चीन के संदेहास्पद रूख तथा सीमा विवाद के मध्य चीन से सम्बन्धों में आई कटुता और आर्थिक गतिविधियों में उत्पन्न तनाव तथा चीन की वस्तुओं के बहिष्कार के कारण भारत को इस नीति की आवश्यकता है।

  • कोविड महामारी के कारण अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादन को चीन से बाहर स्थानांतरित कर रही है। भारत इन कंपनियों को आकर्षित करके विदेशी निवेश में वृद्धि कर सकता है।

मेक इन इंडिया को बढ़ावाः भारत की आत्मनिर्भर सेमीकंडक्टर चिप के निर्माण की नीति मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा मिलेगा। इसके माध्यम से भारत स्थानीय स्तर पर उत्पादन को बढ़ावा देकर घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ वैश्विक निर्यात में बढ़त हासिल कर सकेगा।

राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति को लाभः वर्ष 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति को अपनी मंजूरी प्रदान की थी। इस नीति में भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण के लिये एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की कल्पना की गई है। यह नीति इसे लाभ प्रदान करेगी।

भारत की सेमीकंडक्टर नीति

भारत की सेमीकंडक्टर नीति को इलेक्ट्रॉनिक्स पर राष्ट्रीय नीति 2019 (NPE 2019) के अनुरूप तैयार किया गया है जो भारत में सेमीकंडक्टर्स (Semiconductors) और डिस्प्ले तथा इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र (electronics manfuacturing ecosystem) को बढ़ावा प्रदान करेगा। इसके अंतर्गत सरकार द्वारा अगले 6 वर्षों में सेमीकंडक्टर्स और विनिर्माण पारिस्थितिक तंत्र के विकास हेतु 76,000 करोड़ रूपए की प्रोत्साहन राशि को मंजूरी प्रदान की गई है।

  • यह भारत में सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने के लिए बड़े निवेश को आकर्षित करेगा।
  • यह नीति भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण (Electronics System Design and Manfuacturing - ESDM) के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने का भी प्रयास करेगा।
  • सरकार भारत में दो सेमीकंडक्टर और दो डिस्प्ले फैब स्थापित करने के लिए परियोजना लागत के लगभग 50% की वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
  • इस योजना के लिए आवेदन विंडो 1 जनवरी, 2022 को 45 दिनों के लिए खुलेगी।
  • इस योजना के तहत सरकार 6 साल के लिए समान आधार पर सहायता प्रदान करेगी।
  • सरकार संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (Electronics Manufacturing Clusters - EMC 2.0) योजना के तहत अतिरिक्त बुनियादी ढांचा सहायता प्रदान करेगी।
  • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले के उत्पादन की एक सतत् प्रणाली विकसित करने हेतु एक ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ (ISM) स्थापित किया जाएगा। यह सेमीकंडक्टरों एवं डिस्प्ले प्रणाली पर आधारित योजनाओं के कुशल तथा सुचारू कार्यान्वयन हेतु नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।

प्रमुख चुनौतियाँ

पूंजी निवेशः यह नीति जटिल और प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र से जुड़ा है जिसमें शोध और अनुसन्धान हेतु भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी अवधि और भुगतान अवधि और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है तथा भारत में इस हेतु कम राजकोषीय समर्थन से चुनौती बनी हुई है।

  • फैब क्षमताओं की कमीः भारत में चिप फैब निर्माण नहीं होता है। इसरो और डीआरडीओ के पास अपने-अपने फैब फाउंड्री हैं, लेकिन उन्होंने इनका निर्माण मुख्य रूप से अपनी आवश्यकताओं के लिये ही किया है।
  • फैब निर्माण की उच्च लागतः फैब सेट का निर्माण काफी महंगा है। फैब सेटअप निर्माण में एक सेमीकंडक्टर निर्माण सुविधा (या फैब) की लागत एक अरब डॉलर के गुणकों में हो सकती है,
  • अनुदान की कमीः भारत की उत्पादन संबंध प्रोत्साहन (PLI) योजना कम से कम दो ग्रीनफील्ड सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करने की लागत की केवल 50% वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रावधान करती है।

आगे की राह

  • सेमीकंडक्टर्स आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स की नींव हैं जो उद्योग 4-0 को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेंगे। वर्तमान समय में सेमीकंडक्टर के निर्माण में अग्रणी देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे देश शामिल हैं। भारत और ताइवान ने भारत में सेमीकंडक्टर/चिप बनाने में निवेश पर चर्चा की है।
  • ताइवान सेमीकंडक्टर्स में अग्रणी बनकर उभरा है। ताइवान में सबसे उन्नत सेमीकंडक्टर वेफर फैब्रिकेशन (एफएबी) ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (टीएसएमसी) है। इसमें प्रौद्योगिकियों और सेवाओं की सबसे अत्याधुनिक रेंज है और यह वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार हिस्सेदारी का 63 प्रतिशत है। ताइवान द्वारा सेमीकंडक्टर निवेश से भारत-ताइवान व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
  • भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, बहुत बड़े पैमाने पर एकीकरण (वीएलएसआई) और चिप डिजाइन में अनुसंधान और विकास क्षमताओं ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बंबई में नैनो इलेक्ट्रॉनिक्स में उत्कृष्टता केंद्र में शुरू कर दिया है।
  • भारत में दो वाणिज्यिक सेमीकंडक्टर वेफर फैब इकाइयां ग्रेटर नोएडा और गुजरात में प्रस्तावित है। एक बार सेमीकंडक्टर उद्योग काम करना शुरू होने से भारत इससे सेमीकंडक्टर बनाने और सेमीकंडक्टर में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घटकों पर टैरिफ कम हो जाएगा।
  • चूंकि भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक आयात का एक तिहाई से अधिक हिस्सा चीन से आता है, इसलिए भारतीय सेमीकंडक्टर क्षेत्र के विस्तार से चीन पर निर्भरता कम होगी। इस प्रकार, इसकी विशेषज्ञता को देखते हुए; ताइवान भारत के लिए चिप
  • की कमी की अपनी समस्या को हल करने के लिए एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है। इसलिए, भारत के लिए सेमीकंडक्टर्स उद्योग में ताइवान के निवेश को आकर्षित करने का यह एक अच्छा अवसर है।