रूस-यूक्रेन क्षेत्रीय विवाद और भारत

रूस - यूक्रेन क्षेत्रीय संकट और वैश्विक संतुलन की विभीषिका से निकलती दुनिया के सामने अब नई विपदा दिख रही है वह है, यूक्रेन संकट। अंतरराष्ट्रीय मामलों के कुछ जानकार तो इसे तीसरे विश्व युद्ध की आहट के तौर पर भी देख रहे हैं।

संघर्ष की पृष्ठभूमि

  • सोवियत संघ से विघटित हुए यूक्रेन के पूर्वी हिस्से के लोगों का देश के प्रति गहरा असंतोष है। रूस इस मौके का फायदा उठाना चाहता है। इससे पहले वह यूक्रेन के ही असंतुष्ट हिस्से क्रीमिया की सरहदें अपने अधिकार क्षेत्र में ला चुका है। वर्तमान में रूस पूर्वी यूकेन के असंतोष को बढ़ाबा देने की कोशिश कर रहा था तभी अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो समूह में यूक्रेन को शामिल किए जाने की घोषणा ने उसके इस कोशिश को मौका प्रदान कर दिया पूर्वी यूक्रेन में अलगाववाद के समर्थन में उसने अपनी सेनाओं से यूक्रेन को तीन तरफ से घेर लिया।
  • सोवियत संघ के विघटन से करीब तीन करोड़ रूसी लोग अपने मूल देश से बाहर हो गए थे। इनमें ज्यादातर यूक्रेन, बाल्टिक स्टेट्स और कजाखस्तान में थे।
  • यूक्रेन के राष्ट्रवादी लोग रूस की छाया से बाहर आने और पश्चिमी देशों का हिस्सा बनने के लिए यूरोपीय संघ और नाटो से जुड़ने की पैरवी करते हैं।
  • यूक्रेन के इस कदम को रूस भू-राजनीतिक और सुरक्षा कारणों से स्वीकार नहीं करता है। साथ ही धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक आधार पर भी वह ऐसा नहीं चाहता।
  • यूरोपीय संघ या नाटो से जुड़ने के मामले में यूक्रेन के अंदर भी आम राय नहीं बनने के कारण स्थिति और भी जटिल हो गई है।
  • पिछले कुछ वर्षों में यूक्रेन और रूस के बीच लगातार तनाव बढ़ा है। यूरोप और रूस को लेकर लोग बंट रहे है। इसी टकराव के चलते 2014 में रूस ने क्रीमिया पर नियंत्रण कर लिया और डानेत्स्क और लुहांस्क न जनमत संग्रह के जरिये खुद को स्वायत घोषित कर लिया।

भारत की भूमिका

  • यूक्रेन मसले पर संयुक्त राष्ट्र में हुई खुली बहस से खुद को बाहर रखकर भारत ने अपनी तटस्थता की नीति का परिचय दिया है तथा गुट निरपेक्षता की नीति की प्रासंगिकता को एक बार फिर से साबित किया है
  • परन्तु इस संकट में आज भारत की भूमिका को एकदम से दरकिनार नहीं किया जा सकता है क्योंकि महामारी के चलते किसी तरह से खड़ी हो रही अर्थव्यवस्थाओं के सामने फिर से चुनौती आ सकती है। ऐसे में यूक्रेन संकट को लेकर भारत की भूमिका और उस पर पड़ने वाले काफी निर्णायक और दूरगामी होंगे
  • भारत वर्तमान में अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने सामरिक और आर्थिक तथा विदेश नीति को बेहतर करने की कोशिश में है ताकि वह चीन की विस्तारवादी नीति के समक्ष वैश्विक संतुलन में मजबूत स्थिति में रह सके। वर्तमान में यूक्रेन के मुद्दे पर भारत ने तटस्थता की नीति का पालन किया है।

भारत के समक्ष चुनौती

पेट्रोल-डीजल की कीमतें: वर्तमान संकट के समय से क्रूड की कीमते लगातार बाढ रही है तथा युद्ध की स्थिति से बढ़ने की सम्भावना है क्योंकि क्रूड उत्पादन में रूस की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत है। पश्चिमी यूरोप प्राकृतिक गैस के लिए भी काफी हद तक रूस पर निर्भर है। यदि यह आपूर्ति बाधित हुई तो वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ेगी, जो भारत पर भी नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करेगी।

सैन्य सहयोग पर प्रभावः भारत के सैन्य आयात में रूस की बड़ी हिस्सेदारी है। भारत के आयात में रूस की हिस्सेदारी लगभग 60: है। वर्तमान में भारत रूस से ै-400 जैसे मिसाइल आयात कर रहा है यद्यपि भारत रूस के मध्य वस्तुगत व्यापार अपेक्षाकृत प्रभावी नहीं है फिर भी वर्तमान में भारत ै-400 जैसे हथियार वहां से आयात कर रहा है। सैन्य आयात पर असर भारत और रूस के बीच सामान्य कारोबार भले ही कम हो। लेकिन किसी प्रतिबंध की स्थिति में भारत के लिए रूस का विकल्प खोजना मुश्किल होगा।

व्यापार संकटः सोवियत संघ के विघटन से पहले भारत के निर्यात में रूस की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत थी। इस समय यह घटकर एक प्रतिशत से कम पर आ गई। आयात में भी हिस्सेदारी 1.4 प्रतिशत है।

इसलिए कारोबार पर सीधे असर नहीं पड़ता दिख रहा है, लेकिन रूस के साथ कारोबार बढ़ाने में भारत की कोशिश प्रभावित होगी।

  • 280 अरब डालर अंतरराष्ट्रीय सलाहकार संस्था सेंटर फार इकोनामी एंड बिजनेस रिसर्च के अनुसार रूस से तनाव के चलते यूक्रेन को 2014-2020 के दौरान हुआ नुकसान सालाना करीब 40 अरब डालर है यह रकम तनाव के पहले यूक्रेन की जीडीपी का करीब 20 फीसद है।

रूस और चीन के बीच नजदीकीः मौजूदा संकट, मास्को को चीन जैसे दोस्तों पर और अधिक निर्भर बना देगा, और एक क्षेत्रीय समूह का निर्माण करेगा, और भारत जिसका हिस्सा नहीं होगा। हाल ही में, भारत ने बीजिंग में होने वाले ओलंपिक खेलों के राजनयिक और राजनीतिक बहिष्कार की घोषणा की, जबकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन, अन्य मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान, शी जिनपिंग के साथ एकजुटता दर्शाते हुए बीजिंग में मौजूद रहे है।

टकराव की स्थिति

अमेरिका लगातार कह रहा है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है। पूरी दुनिया की निगाहें इस संकट पर टिकी हुई है।

  • मौजूदा टकराव 2013 में उभरा था जब यूक्रेन में रूस समर्थक राष्ट्रपति ने यूरोपीय यूनियन से चल रही अहम राजनीतिक एवं कारोबारी डील रोक दी थी। इसके विरोध में वहां कई हफ्ते हिंसक आंदोलन हुए थे।
  • मार्च, 2014 में रूस ने क्रीमिया पर नियंत्रण कर लिया इसके कुछ ही समय बाद युक्रेन के डोनरक और लुहास्क में रूस समर्थक अलगाववादियों ने इन क्षेत्रों को स्वायत घोषित कर दिया।
  • फ्रांस और जर्मनी के प्रयासों से इन क्षेत्रों को स्वायत्त घोषित करने के लिए यूक्रेन और रूस में समझौता किया गया परन्तु इससे सफलता नहीं मिली।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार मार्च 2014 से अब तक विभिन्न टकराव् में 3000 से ज्यादा नागरिकों की हत्या हो चुकी है।
  • अक्टूबर 2021 की संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन एवं रूस के समर्थकों के बीच युद्ध में 3,393 सामान्य नागरिक मारे गए थे।
  • 2015 में, फ्रांस और जर्मनी की मध्यस्थता में मिश्र में यूक्रेन और रूस के मध्य शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • इसके बावजूद यूक्रेन और रूस के द्वारा संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जाता रहा है और छिट-पुट संघर्ष होते रहे हैं।

रूस का पक्ष

  • रूस यूक्रेन के नाटो में शामिल होने का विरोधी है
  • हथियार, प्रशिक्षण एवं सैनिक के रूप में यूक्रेन को नाटों से मिलने वाले सहयोग को रूस अपने लिए खतरा मानता है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ऐसा समझौता चाहते हैं, जिसमें गारंटी ली जाए कि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बनेगा और नाटो रूस की तरफ विस्तार नहीं करेगा।
  • पुतिन यूक्रेन में नाटो का मिसाइल सिस्टम तैनात होने पर भी आपति प्रकट की है।
  • रूस के अनुसार आगरा अमेरिका और नाटो यूक्रेन के मामले में अपना रवैया नहीं बदलेंगे, तो रूस को अपनी सुरक्षा के लिए कदम उठाने का पूरा अधिकार है।

नाटो और अमेरिका का पक्ष

  • नाटो और अमेरिका रूस को यूक्रेन पर हमला करने से रोक रहे है तथा हमले की स्थिति में आर्थिक वित्तीय और राजनीतिक प्रतिबंधों को लगाने की बात कह रहे हैं।
  • यूक्रेन अभी नाटो का सदस्य नहीं है, ऐसे में उसकी सहायता को लेकर नाटो के पास सीमित विकल्प है।
  • हालांकि नाटो के अनुसार यूक्रेन के पास सदस्य बनने का विकल्प हर समय खुला है। अमेरिका ने 2021 में यूक्रेन को 65 करोड़ डॉलर तक के सैन्य उपकरण प्रदान किया है

अन्य प्रमुख मुद्दे

  • कजाखस्तान का मुद्दाः इस साल की शुरुआत में कजाखस्तान में व्यापक पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए हैं।
  • हिंसक प्रदर्शनी के चलते वहां आपातकाल लगाना पड़ा और हिंसा से निपटने के लिए रूस की अगुआई में सेना भी लगाने पड़ी। निश्चित तौर पर कजाखस्तान में किसी भी तरह का तनाव रूस के हित में नहीं है।
  • नोर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइनः रूस और जर्मनी को जोड़ने वाली इस पाइपलाइन पर भी खतरा है क्योंकि यूक्रेन इसे अपने लिए खतरा मानता है तथा युद्ध की स्थिति में यह पाइपलाइन यहां से नहीं
  • गुजरेगी वर्तमान रूस से यूरोप जाने वाली ईंधन पाइपलाइन
  • यूक्रेन से होकर गुजर रही है तथा वह इसे अपनी सुरक्षा की गारंटी के रूप में देखता है तथा हमले के पश्चात यूक्रेन के पास ऊर्जा आपूर्ति को बाधित करने का विकल्प होगा जिससे वह रूस को रोक सकता है, परन्तु इस पाइपलाइन के आरभ हो जाने से यूक्रेन इस लाभ को खो सकता है।

यूक्रेन का पक्ष

यूक्रेन के अनुसार नाटो में शामिल होना या नहीं हो उसका आंतरिक मामला है और इसमें रूस को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

  • नाटो से जुड़ना या न जुड़ना उसके अधिकार में आता है। यूक्रेन को नाटो का सदस्य न बनने की गारंटी पूरी तरह अवैधानिक है।
  • यूक्रेन के राष्ट्रपति ने यह भी आरोप लगाया है कि रूस सैन्य तख्तापलट के जरिये यूक्रेन में अस्थिरता फैलाना चाहता है।
  • यूक्रेन अपने यहां ऊर्जा संकट के लिए भी रूस को जिम्मेदार मनाता है।

आगे की राह

  • वर्तमान में विश्व की प्रमुख शक्ति जैसे फ्रांस, जर्मनी चांने पुतिन से बात की है।
  • लेकिन कोई हल नहीं निकला है। अमेरिका ने यूक्रेन को नाटो सदस्य नहीं बनाने की रूस की मांग खारिज कर देने से स्थिति जटिल बनी हुई है।
  • हालांकि वह यूरोप में रणनीतिक स्थिरता के लिए बातचीत करने का इच्छुक है। वहीं पुतिन ऐसी कोई भी बातचीत तभी करने को तैयार हैं, जब इस बात की गारंटी मिल जाए कि यूक्रेन को नाटों की सदस्यता नहीं।
  • भारत के संबंध रूस और अमेरिका दोनों से ही अच्छे हैं। ऐसे में तटस्थ बने रहना भारत के लिए सही कदम है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने अपना यह रुख दिखाया भी है।