क्षेत्रिय जनसंख्या नियंत्रण नीति

हाल ही में, विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) पर उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2021 से वर्ष 2030 की अवधि के लिए एक नई जनसंख्या नीति की घोषणा की है। इससे पूर्व राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात राज्य ने भी जनसंख्या नियंत्रण मानदंडों का अनुपालन कर रहा है।

  • वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधनों पर पड़ रहे दबाव ने जनसंख्या नियंत्रण नीति की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
  • उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है। इसकी जनसंख्या लगभग 22 करोड़ है।
  • प्रस्तावित उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण) विधेयक, 2021 के अधिनियम बन जाने के उपरांत इसके प्रावधान राजपत्र में प्रकाशन की तिथि से एक वर्ष पश्चात् लागू होंगे।

इस नीति की प्रमुख विशेषताएं

परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत जारी किए गए गर्भनिरोधक उपायों की सुलभता में वृद्धि के प्रयास करना और सुरक्षित गर्भपात के लिए एक उचित प्रणाली प्रदान करना।

  • नवजात शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर को कम करना।
  • जनसंख्या नियंत्रण मानदंडों का अनुपालन करने वाले उन कर्मचारियों को पदोन्नति, आवास योजनाओं में रियायतें और अन्य सुविधाएं प्रदान करना, जो जनसंख्या नियंत्रण मानदंडों का पालन करते हैं और उनके दो या उससे कम बच्चे हैं।
  • एक बच्चे वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रस्तावित प्रोत्साहनों में वेतन वृद्धि, पदोन्नति और आवास योजनाओं में रियायतें शामिल हैं।
  • गैर-सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रस्तावित प्रोत्साहन में जल, आवास करों और गृह ट्टण या होम लोन पर छूट सम्मिलित है।
  • यदि एक बच्चे के माता-पिता पुरुष नसबंदी (Vsaectomy) का विकल्प चुनते हैं, तो उनका बालक 20 बर्ष की आयु तक निःशुल्क चिकित्सा सुविधाओं का पात्र होगा। इसके क्रियान्वयन के लिए एक राज्य जनसंख्या कोष का गठन किया जाएगा।

जनसंख्या नियंत्रण नीति के पक्ष में तर्क

वर्तमान में, भारत की जनंसख्या विश्व की जनसंख्या का लगभ 17 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ष 2027 तक चीन को पीछे छोड़कर विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बना जाएगा।

  • भारत के पास वैश्विक सतही क्षेत्रफल का केवल 2-45 प्रतिशत और जल संसाधन का केवल 4 प्रतिशत है, जिसके परिणामस्वरूप निम्नलिखित संदर्भों में कुछ चुनौतियां उत्पन्न होती हैं:
  • बेरोजगारीः अत्यधिक जनसंख्या बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी की समस्या को बढ़ा देती है। रोजगार की इच्छा रखने वाले लोगों की संख्या की तुलना में रिक्तियों की संख्या नगण्य है, जिसके परिणामस्वरूप निम्न आय वाले समूह और बड़े परिवार अंततः एकल आय-अर्जक पर निर्भर रहते हैं।
  • मूलभूत आवश्यकताओं पर दबावः तेजी से बढ़ती जनंसख्या वाले देश का मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे कि आवश्यक भोजन, न्यूनतम वस्त्र और उचित आवास सुविधाओं की कमी के कारण गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा रहा है। यह मानव जीवन शैली को प्रभावित करता है, जिसका परिणाम, मलिन बस्तियों, भुखमरी आदि के रूप में परिणत होता है।
  • जीवन स्तर का निम्नतर बना रहनाः अत्यधिक जनसंख्या के परिणामस्वरूप निम्न आय वाले बड़े परिवारों का सृजन होता है, जिससे संबंधित व्यक्तियों का जीवन-स्तर निम्नतर बना रहता है।
  • शिक्षाः निम्न आय वाले बड़े परिवार अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का व्यय वहन नहीं कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप निरक्षरता की समस्या उत्पन्न होती है और संबंधित वर्ग के मध्य सीमित जागरूकता की स्थिति बनी रहती है।
  • पर्यावरण-क्षरणः तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर्यावरण में परिवर्तन उत्पन्न करता है। जनसंख्या वृद्धि से बेरोजगार पुरुषों एवं महिलाओं की संख्या में तीव्र वृद्धि होती है। जिसके चलते पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे पहाड़ी क्षेत्रों उष्णकटिबंधीय जंगलों इत्यादि को कृषि कार्यों के लिये काटा जाता है। बढ़ती जनसंख्या वृद्धि से औद्योगीकरण के साथ बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्रों का प्रवास/विकास होता है, जिससे बड़े शहरों एवं कस्बों में प्रदूषित हवा, पानी, शोर इत्यादि में वृद्धि होती है।
  • अवसंरचना पर दबावः दुभार्ग्य से अवसंरचनात्मक सुविधाओं का विकास जनसंख्या वृद्धि के साथ संतुलन स्थापित नहीं कर पा रहा है। परिणामस्वरूप परिवहन, संचार, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभल आदि का अभाव बना रहता है।
  • आय असमानता का बढनाः बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण देश के भीतर आय का असमान वितरण होता है, जिससे असमानता में वृद्धि होती जाती है।

जनसंख्या नियंत्रण नीति के विरुद्ध तर्क

भारत का जनसंख्या स्थिरीकरण की ओर बढ़नाः NFHS-5 के तहत पहले चरण में जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का सर्वे किया गया उनमें से लगभग सभी में NFHS-4 के बाद से कुल प्रजनन दर (TFR) में कमी आई है। कुल 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 19 में प्रजनन दर घटकर (2.1) पर आ गई है या उससे कम प्रजनन क्षमता की प्रतिस्थापन दर प्राप्त कर ली है।

  • TFR एक महिला द्वारा उसके जीवनकाल में पैदा किए गए बच्चों की संख्या है। 2.1 की प्रजनन दर, जनसंख्या स्थिरीकरण की ओर संकेत करती है। इसके अतिरिक्त, दशकीय वृद्धि दर वर्ष 1990-2000 की 21.54 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2001-11 में 17.64 प्रतिशत रह गई है।
  • चीन की अनुभवः जनसांख्यिकीविदों ने चीन की एक बच्चा नीति का अध्ययन करने के उपरांत यह चेतावनी दी है कि कठोर जनसंख्या नियंत्रण उपायों के नकारात्मक परिणाम होंगे। इनमें बुजुर्गों की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि, विषम लिंगानुपात और कार्यशील आयु की आबादी में गिरावट आदि शामिल हैं। इससे आर्थिक विकास के समक्ष चुनौतियां उत्पन्न होगा। चीन ने वर्ष 2016 में एक बालक नीति को शिथिल कर दिया था।
  • महिलाओं के विरुद्ध भेदभावः विश्व में भारत में महिला बंध्याकरण (sterilçation) की दर उच्चतम है, जिसमें लगभग 37% महिलाओं का ऑपरेशन हुआ है। पुरुषों का केवल एक छोटा हिस्सा पुरुष बंध्याकरण का विकल्प चुनता है।
  • कन्या भ्रूण हत्याः यह नीति लैंगिक भेदभाव की एक चिंताजनक प्रवृत्ति को भी उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि लड़के की इच्छा से गर्भपात और कन्या शिशु हत्या की घटनाएं हो सकती है।
  • प्रतिकूल परिणाम की संभावनाः अध्ययनों से यह ज्ञात होता है कि दो बच्चों की नीति अपनाने वाले राज्यों में पुरुषों ने अपनी पत्नियों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के लिए तलाक दे दिया और अयोग्यता से बचने के लिए परिवारों ने दूसरों के द्वारा दत्तक ग्रहण के लिए बच्चों को त्याग दिया है।

जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय

  • परिवार नियोजनः भारत विश्व का प्रथम देश है, जिसने वर्ष 1952 में ही परिवार नियोजन के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम आरंभ किया था।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000: इस नीति ने जनसंख्या स्थिरीकरण की समस्या के लिए एक केंद्रित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
  • राष्ट्रीय जनसंख्या आयोगः इसका गठन वर्ष 2000 में किया गया था। इसका अध्यक्ष प्रधान मंत्री होता है। यह राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के कार्यान्वयन की समीक्षा, निगरानी और संबंधित निर्देश देने हेतु अधिदेशित है।
  • विस्तारित गर्भनिरोधक विकल्पः वर्तमान गर्भनिरोधक विकल्पों का विस्तार किया गया है। इनमें नए गर्भ निरोधकों अर्थात् इंजेक्शन योग्य गर्भनिरोधक (अंतरा कार्यक्रम) और सेंटक्रोमैन (छाया) को सम्मिलित किया गया है।
  • पुनः डिजाइन की गई गर्भनिरोधक पैकेजिंगः कंडोम, मौखिक गर्भनिरोधक गोली (OCPs) और आपातकालीन गर्भनिरोधक गोली (ECPs) की पैकेजिंग में अब सुधार किया गया है और इनकी मांग को बढ़ाने के लिए इन्हें पुनः डिजाइन किया गया है।
  • परिवार नियोजन मीडिया अभियानः गर्भनिरोधकों की मांग सृजित करने के लिए एक समग्र मीडिया अभियान संचालित किया जा रहा है।
  • नसबंदी पखवाड़ाः पुरुष भागीदारी पर बल देने के लिए प्रत्येक वर्ष नवंबर में संपूर्ण देश में पुरुष नसबंदी पखवाड़ा मनाया जाता है।
  • गर्भ निरोधकों की होम डिलीवरी की योजनाः आशा (।ैभ्।) कार्यकर्ताओं द्वारा लाभार्थियों के घर-घर जाकर गर्भ निरोधकों की होम डिलीवरी की योजना आरंभ की गई है।