रेनफ़ेड फ़ॉर्मिंगः एक कृषि पारिस्थितिक दृष्टिकोण

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम कृषि-पारिस्थितिकी को ‘कृषि के लिए एक पारिस्थितिक दृष्टिकोण के रूप में परिभाषित करता है, जिसे अक्सर कम-बाहरी-इनपुट खेती के रूप में वर्णित किया जाता है। इसके लिए पुनर्योजी कृषि या पर्यावरण-कृषि जैसे अन्य शब्दों का भी उपयोग किया जाता है।

  • कृषि-पारिस्थितिकी केवल कृषि प्रथाओं का एक समूह नहीं है, यह सामाजिक संबंधों को बदलने, किसानों को सशक्त बनाने, स्थानीय रूप से मूल्य जोड़ने और लघु मूल्यश्रृंखलाओं को विशेषाधिकार देने पर केंद्रित है। यह किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने, प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता के सतत उपयोग और संरक्षण की अनुमति देता है।
  • इसमें कोई संदेह नहीं कि मानवीय गतिविधियों ने वायुमंडल, महासागरों और भूमि को गर्म करने में महत्वपूर्ण योगदान किया है, जिसका उल्लेख हाल की प्च्ब्ब् रिपोर्ट में भी किया गया है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत भर में ग्रीष्म लहरों की तीव्रता में वृद्धि होगी, जिसका हमारी कृषि और जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
  • भारत द्वारा व्यापक योजनाबद्धता और प्रयासों के बाद भारत खाद्य सुरक्षा प्राप्त कर पाया था। पोषण सुरक्षा को संबद्ध करते हुए इस खाद्य सुरक्षा की स्थिति बनाए रखना और इसमें सुधार लाना हमारे लिये अनिवार्य है। भारत में वर्षा आधारित कृषि अथवा ‘रेनफेड फार्मिंग’ (त्ंपदमिक थ्ंतउपदह) के तहत एक बड़ा भूभाग शामिल हैं, और इसलिये देश में कृषि क्षेत्र की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिये इस क्षेत्र पर ध्यान देना अनिवार्य है।

वर्षा आधारित कृषि अथवा ‘रेनफेड फार्मिंग’

वर्षा आधारित क्षेत्रों में भारत की लगभग 57 प्रतिशत कृषि भूमि है। ये क्षेत्र लाखों लोगों के लिए पारिस्थितिकी (Ecology), कृषि उत्पादकता और आजीविका के मामले में विशेष महत्व रखते हैं। उचित प्रबंधन के साथ, बारिश आधारित ये क्षेत्र खाद्यान्न उत्पादन में बड़ा योगदान देते हैं। वास्तव में यह क्षमता ऐसी है कि सिंचित क्षेत्रों की तुलना में यहां तेजी से और अधिक कृषि विकास के अवसर पैदा किए जा सकते हैं।

  • देश के वर्षा सिंचित क्षेत्र लगभग 90% बाजरा, 80% तिलहन एवं दलहन और 60% कपास का उत्पादन करते हैं। जो जलवायु परिवर्तन के प्रति पहले से मौजूद भेद्यता या आरक्षितता को प्रस्तुत करते हैं।
  • वर्षा सिंचित क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से कमजोर हैं और इसलिये जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता रखते हैं, जबकि निर्धन किसानों की एक बड़ी आबादी इस पर निर्भर है। इसके साथ ही, वर्षा सिंचित क्षेत्र बाजरा, दलहन और तिलहन के माध्यम से पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।
  • इन क्षेत्रों की अधिकांश स्थानिक और कृषियोग्य भूमि प्रजातियाँ अल्पकालिक हैं। ‘अल्पकालिक’ (Ephemerals) शब्द उन सभी पादपों को इंगित करता है जो अल्पकालिक अवधि में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं और वे वर्षा सिंचित क्षेत्रों में उपजते हैं।
  • भारत 15 कृषि जलवायु क्षेत्रों वाला एक उपोष्णकटिबंधीय देश है और मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है। भारत के 329 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से लगभग 140 करोड़ हेक्टेयर शुद्ध बुवाई क्षेत्र है और इसमें से 70 मिलियन हेक्टेयर वर्षा पर निर्भर है।

कृषि पारिस्थितिकी का महत्व

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार कृषि पारिस्थितिकी (Agro-Ecology) को कृषि के प्रति पारिस्थितिक दृष्टिकोण के रूप में जाना जाता है। यह ‘लो- एक्सटर्नल इनपुट फार्मिंग’ (Low-External Input Farming), पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture) या पर्यावरण अनुकूल कृषि (Eco-Agriculture) भी कहा जाता है।

  • कृषि पारिस्थितिकी केवल कृषि पद्धतियों का एक समूह भर नहीं है, बल्कि यह सामाजिक संबंधों में परिवर्तन लाने, किसानों को सशक्त बनाने, स्थानीय स्तर पर मूल्य निर्माण और लघु मूल्य श्रृंखलाओं को विशेष महत्व देने पर केंद्रित है।
  • यह किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनने और प्राकृतिक संसाधनों एवं जैव विविधता के संवहनीय उपयोग और संरक्षण का अवसर देती है।

रेनफेड फार्मिंग की चुनौतियां

सूखा और अकालः सूखा और अकाल भारत में वर्षा आधारित कृषि अथवा ‘रेनफेड फॉर्मिंग’ के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौती है।

मृदा क्षरणः हरित क्रांति के बाद से राष्ट्रीय कृषि नीति सिंचाई और उन्नत बीजों, रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के गहन उपयोग के माध्यम से फसल उपज को अधिकतम करने की आवश्यकता से प्रेरित रही है। शुष्क क्षेत्रों और रेनफेड फार्मिंग प्रणालियों में मृदा को संरक्षित करने में यह एक बड़ी चुनौती रही है।

निम्न निवेश क्षमताः भारत में वर्षा सिंचित कृषि में छोटे और सीमांत किसान संलग्न हैं, जो कि 1960-1961 में 62% की तुलना में 2015 - 2016 में 86% परिचालन जोत के लिये उत्तरदायी थे।

अकुशल बाजार संपर्कः ग्रामीण क्षेत्र निर्वाह अर्थव्यवस्था के कारण अतिरिक्त कृषि उपज तभी बेची जाती है जब परिवार को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हो गई है।

सुधार के उपाय

रेनफेड फार्मिंग के उन्नयन के लिये जल के अलावा मृदा, फसल और खेत प्रबंधन में निवेश के साथ ही बेहतर बुनियादी अवसंरचना और बाजारों की भी आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, भूमि एवं जल संसाधनों पर बेहतर और अधिक न्यायसंगत पहुँच और सुरक्षा सुनिश्चित करना होगा।

  • वर्षा सिंचित क्षेत्रों में उत्पादन और इस प्रकार ग्रामीण आजीविका में सुधार के लिये, वर्षा से संबंधित जोखिमों को कम करने की आवश्यकता है। इसका अर्थ यह है कि जल प्रबंधन में निवेश करना रेनफेड फार्मिंग की क्षमताओं को साकार करने के लिये एक आरंभिक कदम होगा।
  • वर्षा सिंचित क्षेत्र और उस क्षेत्र के किसानों को उर्वरकों, सिंचाई, बिजली, सब्सिडी का लाभ प्रदान करना है।
  • स्थानिक भूमि नस्लों को संहिताबद्ध करना, उनके बीज एकत्र करना, औपचारिक एवं नागरिक समाज से प्राप्त स्वदेशी ज्ञान का भंडार की सुविधा प्रदान करना है।

आगे की राह

इन क्षेत्रों पर विशेष रूप से नए सिरे से ध्यान देने की जरूरत है, विशेषकर जब जलवायु पूर्वानुमान उनके अनुकूल नहीं हैं।

  • वर्षा सिंचित क्षेत्रों में कृषि पारिस्थितिकी की शुरुआत करना एक बेहतर नीति विकल्प हो सकता है। इस तरह के हस्तक्षेपों के ‘डिजाइन एलिमेंट्स’ बीज स्तर से आरंभ होते हुए बाजार स्तर तक पहुँचने चाहिये।
  • पोस्ट-कोविड विश्व में प्रतिरक्षा वृद्धि और निम्न या नगण्य रासायनिक अवशेषों वाले पौष्टिक खाद्य पदार्थों की आवश्यकता है। वर्षों आधारित क्षेत्र इसके स्पष्ट विकल्प हैं और बाजारों को कृषि पारिस्थितिकों के लिये तैयार करना एक अच्छी रणनीति हो सकती है।
  • रेनफेड फार्मिंग में अधिकाधिक अनुसंधान एवं विकास के साथ ही वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सरकारी योजनाओं में आवश्यक फेरबदल करने जैसे अधिक नीति परिप्रेक्ष्य लाने की तात्कालिक आवश्यकता है।
  • मौजूदा संकट के समय किसानों की म करने के लिये आय समर्थन के साथ-साथ, अब यह उपयुक्त समय है कि भविष्य के लिये बेहतर संरचित हस्तक्षेपों को रूपाकार दिया जाए।
  • दीर्घावधि में कृषि को आकर्षक बनाने के लिये ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की तरह वर्षा सिंचित क्षेत्रों में बीज, मृदा, जल आदि के मापदंडों पर ‘ईज ऑफ डूइंग फार्मिंग’ को बढ़ावा दिया जा सकता है।

रेनफ़ेड एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम

  • वर्षा आधारित क्षेत्रों की कृषि प्रणाली अपनाकर कृषि उत्पादकता को टिकाऊ तरीके से बढ़ाना ही इस प्रोग्राम का लक्ष्य है। विविध और समग्र कृषि प्रणाली के माध्यम से सूखे, बाढ़ या असमान वर्षा वितरण के कारण फसल के प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जाता है। कृषि की उन्नत तकनीकों और खेती के तरीकों के माध्यम से निरंतर रोजगार के अवसरों का निर्माण करना भी इस योजना का मुख्य उद्देश्य है।
  • टिकाऊखेती प्रणाली (Sustainable Agriculture Farming) आधारित दृष्टिकोण अपनाकर एक स्थायी तरीके से वर्षा आधारित क्षेत्रों की कृषि उत्पादकता और उत्पादन में वृद्धि करना है।
  • विविध और समग्र खेती प्रणाली (Diversified and Integratedf arming system) के माध्यम से सूखा, बाढ़ या असमान वर्षा वितरण की वजह से फसल की विफलता के प्रभाव को कम करना है।
  • कृषि पर उन्नत तकनीकों और खेती के तरीकों के माध्यम से निरंतर रोजगार के अवसरों का निर्माण करके वर्षा आधारित कृषि में विश्वास की बहाली करना।
  • वर्षा आधारित क्षेत्रों में गरीबी में कमी के लिए किसान की आय और आजीविका में वृद्धि करना।
  • उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तनशीलता के साथ जुड़े जोखिम को कम करना।