संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम कृषि-पारिस्थितिकी को ‘कृषि के लिए एक पारिस्थितिक दृष्टिकोण के रूप में परिभाषित करता है, जिसे अक्सर कम-बाहरी-इनपुट खेती के रूप में वर्णित किया जाता है। इसके लिए पुनर्योजी कृषि या पर्यावरण-कृषि जैसे अन्य शब्दों का भी उपयोग किया जाता है।
वर्षा आधारित कृषि अथवा ‘रेनफेड फार्मिंग’
वर्षा आधारित क्षेत्रों में भारत की लगभग 57 प्रतिशत कृषि भूमि है। ये क्षेत्र लाखों लोगों के लिए पारिस्थितिकी (Ecology), कृषि उत्पादकता और आजीविका के मामले में विशेष महत्व रखते हैं। उचित प्रबंधन के साथ, बारिश आधारित ये क्षेत्र खाद्यान्न उत्पादन में बड़ा योगदान देते हैं। वास्तव में यह क्षमता ऐसी है कि सिंचित क्षेत्रों की तुलना में यहां तेजी से और अधिक कृषि विकास के अवसर पैदा किए जा सकते हैं।
कृषि पारिस्थितिकी का महत्व
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार कृषि पारिस्थितिकी (Agro-Ecology) को कृषि के प्रति पारिस्थितिक दृष्टिकोण के रूप में जाना जाता है। यह ‘लो- एक्सटर्नल इनपुट फार्मिंग’ (Low-External Input Farming), पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture) या पर्यावरण अनुकूल कृषि (Eco-Agriculture) भी कहा जाता है।
रेनफेड फार्मिंग की चुनौतियां
सूखा और अकालः सूखा और अकाल भारत में वर्षा आधारित कृषि अथवा ‘रेनफेड फॉर्मिंग’ के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौती है।
मृदा क्षरणः हरित क्रांति के बाद से राष्ट्रीय कृषि नीति सिंचाई और उन्नत बीजों, रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के गहन उपयोग के माध्यम से फसल उपज को अधिकतम करने की आवश्यकता से प्रेरित रही है। शुष्क क्षेत्रों और रेनफेड फार्मिंग प्रणालियों में मृदा को संरक्षित करने में यह एक बड़ी चुनौती रही है।
निम्न निवेश क्षमताः भारत में वर्षा सिंचित कृषि में छोटे और सीमांत किसान संलग्न हैं, जो कि 1960-1961 में 62% की तुलना में 2015 - 2016 में 86% परिचालन जोत के लिये उत्तरदायी थे।
अकुशल बाजार संपर्कः ग्रामीण क्षेत्र निर्वाह अर्थव्यवस्था के कारण अतिरिक्त कृषि उपज तभी बेची जाती है जब परिवार को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हो गई है।
सुधार के उपाय
रेनफेड फार्मिंग के उन्नयन के लिये जल के अलावा मृदा, फसल और खेत प्रबंधन में निवेश के साथ ही बेहतर बुनियादी अवसंरचना और बाजारों की भी आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, भूमि एवं जल संसाधनों पर बेहतर और अधिक न्यायसंगत पहुँच और सुरक्षा सुनिश्चित करना होगा।
आगे की राह
इन क्षेत्रों पर विशेष रूप से नए सिरे से ध्यान देने की जरूरत है, विशेषकर जब जलवायु पूर्वानुमान उनके अनुकूल नहीं हैं।
रेनफ़ेड एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम
|