पेगासस स्पाइवेयरः राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम गोपनीयता से जुड़ी चुनौतियां

हाल ही में पेगासस स्पाइवेयर विवाद ने भारत में साइबर निगरानी से संबंधित वाद-विवाद को और बढ़ा दिया है। निगरानी का आशय किसी व्यक्ति या समूह पर विशेष नजर रखने या गहन निरीक्षण से है, विशेष रूप से ऐसे व्यक्ति/समूह जिनकी स्थिति या गतिविधियां संदेहास्पद हैं या जिनकी गतिविधियों या स्थितियों का पर्यवेक्षण करना आवश्यक है।

  • जब किसी व्यक्ति द्वारा लोगों या स्थानों की निगरानी करने के लिए डेटा नेटवर्क के माध्यम से संचार करने वाले फ्स्मार्टय् या फ्कनेक्टेडय् साधनों का उपयोग किया जाता है तो उसे साइबर-निगरानी के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। इस प्रकार की संयोजित तकनीक को इंटरनेट ऑफ थिंग्स (सवज) के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।

पेगासस स्पाइवेयर क्या है?

पेगासस एक स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जिसे इजरायली साइबर सुरक्षा कंपनी NSO द्वारा विकसित किया गया है, जो उपयोगकर्त्ताओं के मोबाइल और कंप्यूटर से गोपनीय एवं व्यक्तिगत जानकारियां चोरी करता है एवं उन्हें नुकसान पहुंचाता है।

  • जासूसी के लिये पेगासस ऑपरेटर एक खास लिंक उपयोगकर्त्ताओं के पास भेजता है, जिस पर क्लिक करते ही यह स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर उपयोगकर्त्ताओं की स्वीकृति के बिना स्वयं ही इंस्टॉल हो जाता है।
  • पेगासस स्पाइवेयर इंस्टॉल होने के बाद पेगासस ऑपरेटर को फोन से जुड़ी सारी जानकारियां प्राप्त हो जाती हैं।
  • पेगासस स्पाइवेयर पासवर्ड द्वारा रक्षित उपकरणों को भी निशाना बना सकता है। पेगासस मोबाइल में संगृहीत सूचनाएं, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे कम्युनिकेशन एप के संदेश स्पाइवेयर ऑपरेटर को भेज सकता है।
  • पेगासस स्पाइवेयर ऑपरेशन पर पहली रिपोर्ट वर्ष 2016 में सामने आई, जब संयुक्त अरब अमीरात में एक मानवाधिकार कार्यकर्ता को उनके आईफोन 6 पर एक एसएमएस लिंक के साथ निशाना बनाया गया था।

भारत में साइबर निगरानी और इससे संबंधित कानून

भारत में साइबर निगरानी मुख्य रूप से भारतीय तार अधिनियम, 1885 तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत की जाती हैः

  • भरतीय तार अधिनियम, 1885: इस अधिनियम की धारा 5 में, केंद्र या राज्य सरकार को किसी संदेश/कॉल को निम्नलिखित दो परिस्थितियों में अंतर्रुद्ध (intercept) करने की शक्ति प्रदान करती है, यदि वह-
  • लोक सुरक्षा या लोक आपात के विरुद्ध हो; या
  • भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या लोक व्यवस्था हितों में अथवा किसी अपराध के किए जाने के उकसावे के निवारण के लिए आवश्यक हो। ज्ञात हो कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी समान प्रतिबंध आरोपित किए गए हैं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: इसे इलेक्ट्रॉनिक संचार, इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य आदि के लिए कानूनी मान्यता प्रदान करने और साइबर अपराधों का निवारण करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 और सूचना प्रौद्योगिकी सूचना के अवरोधन, निगरानी एवं डिक्रिप्शन के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा) नियम, 2009 को सभी इलेक्ट्रॉनिक संचार की निगरानी के लिए विधिक ढांचा प्रदान करने हेतु प्रवर्तित किया गया था।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम डेटा चोरी और हैकिंग के दीवानी एवं फौजदारी अपराधों को शामिल करता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम गोपनीयता से जुड़ी चुनौतियां

निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताः उचित संदेह पर आधारित कथित जोखिम, विवादास्पद या उत्तेजक विचारों को व्यक्त करने, साझा करने और उन पर चर्चा करने की क्षमता को प्रभावित करता है।

प्रेस की स्वतंत्रताः ऐसे मे पत्रकारों और उनके स्रोतों की निजी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, विशेषकर जिनका कार्य सरकार की आलोचना करना होता है। इसलिए, निजता के अभाव के कारण इन पत्रकारों में अविश्वास की भावना का सृजन होगा और प्रभावी रूप से उनकी विश्वसनीयता को प्रभावित करता है। ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा प्रकाशित विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के वर्ष 2021 संस्करण में 180 देशों में से भारत को 142वां स्थान प्रदान किया गया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष खतराः साइबर-आतंकवाद और साइबर-अपराधों की बढ़ती घटनाओं के कारण सूचना, कंप्यूटर सिस्टम एवं प्रोग्राम तथा डेटा के विरुद्ध हमला करने संबंधी गतिविधियों में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूपउप-राष्ट्रीय समूहों या गुप्त एजेंटों द्वारा गैर-लड़ाकू लक्ष्यों के विरुद्ध हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं।

वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताः संसदीय या न्यायिक निरीक्षण की कमी के कारण, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी विशेषकर कार्यपालिका को, निगरानी के विषय और व्यक्तियों को प्रभावित करने की शक्ति प्रदान करती है। इसके परिणामस्वरूप भय उत्पन्न कर लोगों की वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया जा सकता है।

विधि की सम्यक् प्रक्रिया का उल्लंघनः कार्यपालिका द्वारा की जाने वाली निगरानी संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 (क्रमशः उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा रिट जारी करने की शक्ति) के तहत प्रदत्त अधिकारों को सीमित करती है, क्योंकि कार्यकारी निगरानी को गुप्त तरीके से संचालित किया जाता है। इसलिए, प्रभावित व्यक्ति अपने अधिकारों के उल्लंघन संबंधी साक्ष्य को प्रस्तुत करने में असमर्थ होता है।