फरवरी 2021 में म्यांमार की सेना ने एक सैन्य तख्तापलट के उपरांत देश के शासन पर पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 1948 में ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् ऐसा देश के इतिहास में तीसरी बार हुआ है।
भारत के लिये म्यांमार का भू-रणनीतिक महत्व
भारत और म्यांमार के संबंधों की आधिकारिक शुरुआत वर्ष 1951 की मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद हुई, जिसके बाद वर्ष 1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की म्यांमार यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच अधिक सार्थक संबंधों की नींव रखी गई।
म्यांमार की भू-सामरिक अवस्थितिः भारत के लिये म्यांमार भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया मध्य में अवस्थित है।
म्यांमार एकमात्र दक्षिण-पूर्व एशियाई देश है, जो पूर्वोत्तर भारत के साथ लगभग 1,624 किलोमीटर स्थलीय सीमा साझा करने के साथ ही बंगाल की खाड़ी में 725 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा भी साझा करते हैं।
भू-राजनीतिक हितः म्यांमार एकमात्र ऐसा देश है, जो भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ और ‘एक्ट ईस्ट नीति’ दोनों के लिये समान रूप से महत्वपूर्ण है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की क्षेत्रीय कूटनीति को संचालित करने में म्यांमार एक महत्वपूर्ण घटक है और यह दक्षिण एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने के लिये सेतु का कार्य करता है।
सांस्कृतिक संबंधः भारत और म्यांमार के बीच घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध है। भगवान बुद्ध के जीवन के भारत से जुड़ाव को देखते हुए विशेष रूप बौद्ध समुदाय में बंधुत्व की गहरी भावना मौजूद है। भारत सरकार बगान स्थित आनंद मंदिर के जीर्णोद्धर का काम कर रही है।
चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धाः यदि भारत एशिया में एक मुखर क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाहता है, तो इसे ऐसी नीतियों के विकास की दिशा में काम करना होगा जो पड़ोसी देशों के साथ इसके संबंधों को बेहतर और मजबूत बनाने में सहायक हों।
राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु महत्वपूर्णः पूर्वोत्तर भारत के राज्य वामपंथी उग्रवाद और मादक पदार्थों के व्यापार मार्गों (स्वर्णिम त्रिभुज) से प्रभावित हैं। म्यांमार-चीन सीमा की भूमि से संचालित हो रहे स्थानीय सशस्त्र अलगाववादी समूहों और साथ ही असम के यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) तथा नागालैंड के नेशनल सोशलिस्ट काउन्सिल ऑफ नागालैंड जैसे भारतीय विद्रोही समूहों के लिए एक शरणस्थली बन गई है।
आर्थिक सहयोगः भारत का म्यांमार के प्राकृतिक संसाधनों से हित जुड़ा हुआ है। भारत, भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग तथा कालादान बहुविध परियोजना जैसी कुछ परियोजनाओं का विकास कर रहा है। उल्लेखनीय है कि म्यांमार की अस्थिरता इन परियोजनाओं के समक्ष एक बाधक है।
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट का भारत पर प्रभाव
राजनीतिक पुर्ननिर्धारणः म्यांमार के सैन्य तख्तापलट को लेकर विश्व के अधिकांश देशों से तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है और इसके साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों से म्यांमार पर प्रतिबंधों का जोखिम भी बढ़ गया है। पश्चिमी देशों से प्रतिबंध के परिणामस्वरूप म्यांमार की सेना को चीन के करीब जाने के लिये विवश कर सकता है, जो भारत के हित में उचित नहीं होगा।
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट पर वैश्विक प्रतिक्रिया
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद भारत के विदेश नीति
विदेश नीति हमेशा राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। हालांकि भारत ने म्यांमार के हालिया घटनाक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त की है, परंतु म्यांमार की सेना के साथ संबंधों को स्थगित करना एक व्यवहार्य विकल्प नहीं होगा क्योंकि म्यांमार और उसके पड़ोस के साथ भारत के महत्वपूर्ण आर्थिक तथा सामरिक हित जुड़े हैं।