न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिकता और चुनौतियाँ

वर्तमान में भारत में तीन कृषि कानूनों को लागू किये जाने और इसके निरस्त किये जाने के बाद से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का विषय चर्चा में रहा है तथा कृषि कानून वापसी के पश्चात केंद्र सरकार द्वारा सभी किसानों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) सुनिश्चित करने हेतु एक समिति गठित करने की किसान संगठनों की माँग को भी स्वीकार किया है।

  • इस सम्बन्ध में इसकी वैधानिकता, इसके लाभ तथा चुनौतियों को समझना आवश्यक हो जाता है क्योंकि कृषि सब्सिडी की भांति किसानों को प्रदान किया जाने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य भी प्रत्यक्ष रूप से सरकार की राजकोषीय स्थिति से संबंधित है तथा इस पर लिया गया कोई भी निर्णय सरकार के राजकोषीय नीति को प्रभावित करेगा।

वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की स्थिति

वर्तमान समय में एमएसपी मात्र एक संकेतक अथवा वांछित मूल्य है और किसान कानून के माध्यम से इसकी गारंटी चाहते हैं।

  • यह कोई आय समर्थन कार्यक्रम नहीं है, बल्कि इसे कीमतों को स्थिर करने और किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने के लिये सरकारी हस्तक्षेप के रूप में तैयार किया गया है।
  • यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये एक सार्वजनिक खरीद कार्यक्रम को समर्थन प्रदान करता है।

वैधानिकता की आवश्यकता

पिछले 10 वर्षों में कृषि क्षेत्र के समक्ष कई चुनौतियाँ उत्पन्न हुई है, जिसके कारण किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाया है तथा उनकी कृषि उत्पादन की बढ़ती लागत और उत्पादों के घटते मूल्य ने मूल्य को वैधानिक बनाये जाने की मांग को समर्थन प्रदान किया है। कुछ प्रमुख कारण निम्न हैं-

  • वर्ष 2014 और वर्ष 2015 में आए लगातार दो सूखों के कारण कृषि वस्तु की कीमतों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
  • विमुद्रीकरण और ‘वस्तु एवं सेवा कर’ ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से गैर-कृषि क्षेत्र के साथ-साथ कृषि क्षेत्र को प्रभावित किया गया है।
  • डीजल और खाद्य तथा बीजों की बढ़ती कीमत और कालाबाजारी के कारण किसानों को उत्पादन में उच्च लागत का सामना करना पड़ रहा है।
  • वर्ष 2016-17 के बाद अर्थव्यवस्था में जारी मंदी और उसके बाद कोविड महामारी के कारण अधिकांश किसानों के लिये परिदृश्य विकट बना हुआ है।
  • डीजल, बिजली और उर्वरकों के लिये उच्च इनपुट कीमतों ने उनके संकट को और बढ़ाया दिया है।

वैधानिक मूल्य के लाभ

सभी किसान इससे लाभान्वित होंगे क्योंकि 2015 में शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि किसानों को MSP का मात्र 6% ही प्राप्त हो सका अर्थात् देश के 94% किसान MSP के लाभ से वंचित रहे हैं।

  • अतिरिक्त उत्पादन और अधिक आपूर्ति की स्थिति में वैधानिक मूल्य किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान कर सकती है तथा उनसे एक न्यूनतम मूल्य की प्राप्ति होगी।
  • कानूनी रूप प्रदान किए जाने के बाद वैध एमएसपी मूल्य के तहत सरकार, घोषित मूल्यों पर खाद्यान्नों को खरीदने के लिए कानूनी रूप से बाध्य हो जाएगी।
  • निजी कम्पनियाँ तय मूल्य से कम पर उत्पादों को नहीं खरीद सकेगी क्योंकि वह कानूनी रूप से वैध नहीं होगा।

वैधानिकता से हानि

निजी व्यापारी की विमुखताः मांग से अधिक उत्पादन होने पर बाजार की कीमतों में गिरावट की स्थिति में पूर्व निर्धारित एमएसपी मूल्य निजी व्यापारियों को कृषि की खरीद प्रक्रिया से दूर कर देगा।

  • सरकार पर दबाबः निजी क्षेत्र की विमुखता से सरकार पर अतिरिक्त उत्पादन की खरीद की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी। दीर्घ काल में ऐसी स्थिति कृषि को अस्थिरता की दशा में ले जा सकती है।
  • मुद्रास्फीतिः न्यूनतम समर्थन मूल्य उच्च कीमत पर फसलों की खरीद को बढ़ावा देगा, जो अंततः खाद्यान्नों की कीमत में वृद्धि करके मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है। इसका व्यापक प्रभाव देश के गरीबों की खाद्य आवश्यकताओं पर पड़ेगा।
  • कृषि निर्यात पर प्रभावः न्यूनतम समर्थन मूल्य, भारत के कृषि निर्यात को प्रभावित करेगा। कृषि उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी आने पर कृषि संबंधी वस्तुओं का निर्यात हतोत्साहित होगा। वर्तमान समय में भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में 11% हिस्सा कृषि संबंधी वस्तुओं का है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रभावः भारत सरकार द्वारा कृषि विकास को बढ़ावा देने के लिए किए जाने वाले मूल्य संबंधी समर्थन उपायों का विकसित देशों द्वारा विश्व व्यापार संगठन में लगातार विरोध किया जा रहा है। कानूनी रूप से गारंटीकृत उच्च एमएसपी प्रदान करने की दशा में भारत को विश्व व्यापार संगठन में कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा।
  • अन्य फसलों हेतु एमएसपी की मांगः वैधानिकता को मान्यता देने से 23 फसलों के अतिरिक्त फलों, सब्जियों तथा मसालों से संबंधित फसलों का उत्पादन करने वाले किसान भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को बल मिलेगा।

क्या है न्यूनतम समर्थन मूल्य?

यह सरकार द्वारा फसलों के लिए घोषित वह मूल्य होता है, जिस पर सरकारें कीमतों में गिरावट आने पर फसलों की खरीद को सुनिश्चित करने का वचन देती है। इसकी सिफारिश फसल बुवाई के वक्त कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) के द्वारा की जाती है तथा आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा अनुमोदन पर इसकी की घोषणा की जाती है।

  • वर्तमान में सरकार 23 फसलों के लिये MSP की आधिकारिक घोषणा करती है। वस्तुतः यह एक प्रकार का बीमा है जिसका उद्देश्य संकट के समय में किसानों को उनकी फसलों के लिए उचित कीमत प्रदान करना है।

समिति के गठन की घोषणा

  • कृषि कानूनों के विरोध तथा वापसी के पश्चात केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य और शून्य बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming) को बढ़ावा देने सहित विभिन्न कृषि संबंधी मुद्दों पर विचार के लिए एक समिति के गठन की घोषणा की है। इसका लक्ष्य फसल उत्पादन की लागत को कम करने के साथ-साथ किसानों की आय में वृद्धि करना है।

एमएसपी से सम्बन्धित चुनौतियाँ

  • घरेलू बाजार की कीमत से सम्बन्ध नहीं: मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था का घरेलू बाजार की कीमतों से अधिक सम्बन्ध नहीं है। यह केवल खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। वस्तुतः यह एक खरीद मूल्य का रूप है।
  • गेहूँ और धान की प्रमुखताः MSP प्रणाली में चावल और गेहूँ पर ज्यादा ध्यान देती है इसलिए यह इन फसलों के अति-उत्पादन अन्य फसलों एवं बागवानी उत्पादों की खेती के लिये हतोत्साहित करती है, जबकि उनकी मांग अधिक है और वे किसानों की आय में वृद्धि में उल्लेखनीय योगदान कर सकते हैं।
  • मध्यस्थ और बिचौलियों की उपस्थितिः इस प्रणाली में मध्यस्थों/बिचौलियों, कमीशन एजेंटों और APMC अधिकारियों की पकड़ होती है जो किसानों का शोषण करने के साथ-साथ उन्हें उचित मूल्य प्रदान नहीं करते है जिसे छोटे किसान अपनी पहुँच के लिये कठिन और जटिल पाते हैं।
  • गैर-आनुपातिक वृद्धिः देश में विभिन्न फसलों के लिए प्रदान किए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य फसलों की उत्पादन लागत में वृद्धि के बराबर नहीं हैं। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार 2014-17 के दौरान भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य में गिरावट देखने को मिली है।
  • अतिरिक्त भंडारणः पर्याप्त भंडारण सुविधाओं के अभाव में गोदामों में फसलों की निश्चित मात्रा से अधिक स्टॉक एकत्र हो जाता है। यह पाया गया है कि जन वितरण प्रणाली (PDS) तथा बफर स्टॉक जैसी योजनाओं के तहत आवश्यकता से अधिक राशन उपलब्ध है। उचित रखवाली के अभाव में प्रतिवर्ष एक बड़ी मात्रा में अनाज नष्ट हो जाता है।
  • राजकोषीय बोझः न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान और गेहूं की खुली खरीद, बाजार कीमतों से मेल नहीं खाती। ऐसी दशा में सरकार की राजकोषीय स्थिति पर बोझ बढ़ जाता है।
  • पारिस्थितिक समस्याः न्यूनतम समर्थन मूल्य कुछ निश्चित फसलों को महत्व प्रदान करके उनके उत्पादन में वृद्धि के लिए गैर-वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देता है। इससे मृदा लवणीकरण, जलस्तर में कमी तथा जलजमाव जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं।
  • फसल विविधताः एमएसपी भारत की फसल विविधता को भी प्रभावित करता है। एमएसपी समर्थित फसलों के उत्पादन को बढ़ावा मिलने से फसलों के प्रतिरूप पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

आगे की राह

वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा जब भी बाजार की कीमतें पूर्वनिर्धारित स्तर से नीचे गिरती हैं तब उसमें हस्तक्षेप करने की नीति को अपनाना चाहिए तथा अतिरिक्त उत्पादन और अधिक आपूर्ति तथा अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय कारकों के कारण मूल्य में गिरावट आने पर किसानों को मूल्य सुरक्षा का आश्वासन प्रदान करना चाहिए।

  • साथ ही सरकार को उन फसलों के लिए भी प्रोत्साहन मूल्य जारी किया जाना चाहिए जो पोषण सुरक्षा के लिये वांछनीय हैं (जैसे मोटे अनाज, दाल एवं खाद्य तेल) और जिनके लिये भारत आयात पर निर्भर है।
  • यदि वर्तमान में एमएसपी के अंतर्गत आने वाली सभी फसलों के लिए एमएसपी को वैध कर दिया जाता है तो 2021-22 के लिए बजटीय खाद्य सब्सिडी वर्तमान 1.2% से बढ़कर 2.3% हो जाएगी।
  • एमएसपी को वैध किये जाने की स्थिति में विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि छोटे तथा सीमांत किसानों को छोड़कर बड़े किसानों की कृषि आय पर कर संबंधी छूट को बंद किया जाना चाहिए। देश में लगभग 86% किसान छोटे एवं सीमांत किसानों की श्रेणी में आते हैं और ऐसी स्थिति में बड़े किसानों की एक निश्चित संख्या ही कर के दायरे में आएगी।
  • बड़े किसानों पर लगाए जाने वाले कर से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय का उपयोग कृषि विकास को बढ़ावा देने में किया जा सकता है।
  • पर्यावरणीय हितैषी जलवायु स्मार्ट कृषिः सतत कृषि विकास का आधार संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2021 को विश्व पर्यावरण दिवस का मुख्य विषय ‘पारिस्थितिकी तंत्र बहाली’ घोषित किया है, पारिस्थितिकी तंत्र बहाली कई रूपों में किया जा सकता है; जैसे पेड़- पौधे लगाकर, कृषि वानिकी को बढ़ावा देकर व कृषि में पर्यावरण हितैषी उचित तकनीक अपनाकर तथा जलवायु स्मार्ट कृषि को देकर इसे विकसित किया जा सकता है।
  • यह संकल्पना सतत कृषि की संकल्पना को पूर्ण कर संयुत राष्ट्र संधारणीय विकास लक्ष्य के एजेंडा 2030 के अंतर्गत शामिल 17 सतत विकास लक्ष्य जिनका उद्देश्य 2030 तक भूख मुक्त विश्व का लक्ष्य प्राप्त करना है, को पूरा करने से सम्बन्धित है तथा इस तरह की सतत कृषि प्रणालियों को अपनाना होगा जो जलवायु अनुकूल होने के साथ-साथ स्मार्ट तथा पर्यावरण हितैषी भी हो अतः पर्यावरण हितैषी खेती को लाभदायक बनाने के लिए मुख्य रूप से दो उपायों में उत्पादन को बढ़ाना तथा लागत खर्च को कम करना महवपूर्ण है।