वर्तमान में भारत में तीन कृषि कानूनों को लागू किये जाने और इसके निरस्त किये जाने के बाद से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का विषय चर्चा में रहा है तथा कृषि कानून वापसी के पश्चात केंद्र सरकार द्वारा सभी किसानों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) सुनिश्चित करने हेतु एक समिति गठित करने की किसान संगठनों की माँग को भी स्वीकार किया है।
वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की स्थिति
वर्तमान समय में एमएसपी मात्र एक संकेतक अथवा वांछित मूल्य है और किसान कानून के माध्यम से इसकी गारंटी चाहते हैं।
वैधानिकता की आवश्यकता
पिछले 10 वर्षों में कृषि क्षेत्र के समक्ष कई चुनौतियाँ उत्पन्न हुई है, जिसके कारण किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाया है तथा उनकी कृषि उत्पादन की बढ़ती लागत और उत्पादों के घटते मूल्य ने मूल्य को वैधानिक बनाये जाने की मांग को समर्थन प्रदान किया है। कुछ प्रमुख कारण निम्न हैं-
वैधानिक मूल्य के लाभ
सभी किसान इससे लाभान्वित होंगे क्योंकि 2015 में शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि किसानों को MSP का मात्र 6% ही प्राप्त हो सका अर्थात् देश के 94% किसान MSP के लाभ से वंचित रहे हैं।
वैधानिकता से हानि
निजी व्यापारी की विमुखताः मांग से अधिक उत्पादन होने पर बाजार की कीमतों में गिरावट की स्थिति में पूर्व निर्धारित एमएसपी मूल्य निजी व्यापारियों को कृषि की खरीद प्रक्रिया से दूर कर देगा।
क्या है न्यूनतम समर्थन मूल्य?
यह सरकार द्वारा फसलों के लिए घोषित वह मूल्य होता है, जिस पर सरकारें कीमतों में गिरावट आने पर फसलों की खरीद को सुनिश्चित करने का वचन देती है। इसकी सिफारिश फसल बुवाई के वक्त कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) के द्वारा की जाती है तथा आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा अनुमोदन पर इसकी की घोषणा की जाती है।
समिति के गठन की घोषणा
एमएसपी से सम्बन्धित चुनौतियाँ
आगे की राह
वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा जब भी बाजार की कीमतें पूर्वनिर्धारित स्तर से नीचे गिरती हैं तब उसमें हस्तक्षेप करने की नीति को अपनाना चाहिए तथा अतिरिक्त उत्पादन और अधिक आपूर्ति तथा अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय कारकों के कारण मूल्य में गिरावट आने पर किसानों को मूल्य सुरक्षा का आश्वासन प्रदान करना चाहिए।