कर्बी आंगलोंगशांति समझौता

सितम्बर, 2021 में असम के पांच विद्रोही समूहों तथा केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया गया।

  • यह समझौता उग्रवाद मुक्त समृद्ध उत्तर-पूर्व के दृष्टिकोण के साथ समन्वित है, जिसमें पूर्वोत्तर के सर्वांगीण विकास, शांति और समृद्धि की परिकल्पना की गई है।

कर्बी-आंगलोंग शांति समझौते की मुख्य विशेषताएँ: कर्बी संगठनों ने आत्मसमर्पण कियाः 5 उग्रवादी संगठनों (KLNLF, PDCK, UPLA, KPLT और KLF) के 1000 से अधिक सशस्त्र कैडरों हिंसा छोड़ कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।

विशेष विकास पैकेजः कर्बी क्षेत्रों के विकास के लिये विशेष परियोजनाएं शुरू करने हेतु केंद्र सरकार और असम सरकार द्वारा पांच वर्षों में 1000 करोड़ रुपए का विशेष विकास पैकेज आवंटित किया जाएगा।

कर्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) को अधिक स्वायत्तताः यह समझौता असम की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता को प्रभावित किये बिना कर्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को अपने अधिकारों का प्रयोग करने हेतु यथासंभव स्वायत्तता हस्तांतरित करेगा।

  • KAAC एक स्वायत्त जिला परिषद है, जो भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षित है।
  • वर्तमान समझौते में KAAC को अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां देने का प्रस्ताव है।

पुनर्वासः इस समझौते में सशस्त्र समूहों के कैडरों के पुनर्वास का प्रावधान किया गया है।

स्थानीय लोगों का विकासः असम सरकारKAAC क्षेत्र के बाहर रहने वाले कर्बी लोगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु एक कर्बी कल्याण परिषद (Karbi Weflare Council) की स्थापना करेगी।

  • यह समझौता कर्बी लोगों की संस्कृति, पहचान, भाषा आदि की सुरक्षा और क्षेत्र के सर्वांगीण विकास को भी सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
  • KAAC कोसंसाधनों की आपूर्ति करने हेतु राज्य की संचित निधि में संशोधन किया जाएगा।

पूर्वोत्तर के अन्य हालिया शांति समझौते

  • NLFT त्रिपुरा समझौता, 2019: ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) को वर्ष 1997 से गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिये उत्तरदायी है।
  • NLFT ने 10 अगस्त, 2019 को भारत सरकार और त्रिपुरा के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
  • इसके तहत भारत सरकार द्वारा पांच वर्ष की अवधि के लिये 100 करोड़ रुपए के ‘विशेष आर्थिक विकास पैकेज’ (SEDP) की पेशकश की गई है।
  • ब्रू समझौताःब्रू या रेयांग (Bru or Reang) पूर्वोत्तर भारत का एक जनजातीय समुदाय है, ये लोग मुख्यतः त्रिपुरा, मिजोरम तथा असम में रहते हैं। त्रिपुरा में इन्हें विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • मिजोरम में इन्हें उन समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है, जो उन्हें राज्य के लिये स्वदेशी नहीं मानते हैं।
  • 1997 में जातीय संघर्षों के बाद लगभग 37,000 ब्रू मिजोरम से भाग गए तथा उन्हें त्रिपुरा में राहत शिविरों में ठहराया गया।
  • ब्रू समझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिजोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति बनी है।
  • बोडो शांति समझौताः असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है। वे 1967-68 से बोडो राज्य की मांग कर रहे हैं।
  • 2020 में भारत सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (Bodoland Territorial Area Districts-BTAD) के पुनर्निर्माण के साथ इसका नाम बदलकर बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (Bodoland Territorial Region-BTR) कर दिया गया।

कर्बी आंगलोंग संकट

  • मध्य असम में स्थित, कर्बी आंगलोंग राज्य का सबसे बड़ा जिला है और नृजातीय तथा आदिवासी समूहों - कर्बी, डिमासा, बोडो, कुकी, हमार, तिवा, गारो, मान (ताई बोलने वाले), रेंगमा नागा संस्कृतियों का मिलन बिंदु है।
  • इसकी विविधता ने विभिन्न संगठनों को जन्म देने के साथ-साथ उग्रवाद को बढ़ावा दिया है, जिसने इस क्षेत्र के विकास को अवरुद्ध किया है। कर्बी असम का एक प्रमुख जातीय समूह है, जो कई गुटों और भागों से घिरा हुआ है। कर्बी समूह का इतिहास 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध से हत्याओं, जातीय हिंसा, अपहरण और कराधान से युक्त रहा है।
  • कर्बी आंगलोंग जिले के विद्रोही समूह जैसे पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कर्बी लोंगरी (पीडीसीके), कर्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (केएलएनएलएफ) आदि एक अलग राज्य बनाने की मुख्य मांग से उत्पन्न हुए।