हाल ही में म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट और उसके बाद उत्पन्न राजनीतिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप भारत में अवैध प्रवासियों की संख्या में वृद्धि हुई है। भारत में पहले से ही शरणार्थियों का मुद्दा विद्यमान रहा है। ऐसे में म्यांमार में वर्तमान राजनीतिक संकट के कारण अवैध प्रवासियों का मुद्दा निश्चित तौर पर चिंता का विषय है।
शरणार्थी कौन हैं?
शरणार्थी सम्मेलन 1951 और शरणार्थियों की स्थिति से सम्बंधित 1967 के प्रोटोकॉल के अनुसार शरणार्थी एक ऐसा व्यक्ति है, जो राजनीतिक या अन्य प्रकार के उत्पीड़न के कारण अपने मूल देश से विस्थापित हो जाता है और उस देश की सुरक्षा हासिल करने में असमर्थ या अनिच्छुक होता है और इस तरह वह अपनी राष्ट्रीयता खो देता है।
राजनैतिक शरणार्थी
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भारत की शरणार्थी संबंधी नीति
विदेशी अधिनियम, 1946: भारत में शरणार्थियों के प्रवाह को कानून के प्रशासनिक निर्णयों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो विदेशी अधिनियम की धारा 3 के तहत पारित प्रशासनिक आदेशों कीशृंखला से विकसित हुई है। यह केंद्र सरकार को किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने के लिये शक्ति प्रदान करता है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019: इसमें मुस्लिमों को बाहर रखा गया है और यह केवल हिंदू, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, सिख जो बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से आए प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है।
विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपराः भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज 1967 प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं होने के बावजूद भारत में शरणार्थियों बहुत बड़ी संख्या निवास करती है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।
नागरिकों के संबंध में संवैधानिक प्रावधानः भारत का संविधान भी मनुष्यों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा का सम्मान करता है, जो भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों को प्राप्त है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम स्टेट ऑफ अरुणाचल प्रदेश (1996): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘सभी अधिकार नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं जबकि विदेशी नागरिकों सहित व्यक्तियों को समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार उपलब्ध हैं।’
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR)
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शरणार्थियों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों को लेकर भारत का दृष्टिकोण
वर्ष 1951 के सम्मेलन के अनुसार, शरणार्थियों की परिभाषा केवल नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है लेकिन व्यक्तियों के आर्थिक अधिकारों से संबंधित नहीं है।
भारत की शरणार्थी नीति से संबद्ध चुनौतियाँ
फ्रेमवर्क में अस्पष्टताः अवैध अप्रवासियों और शरणार्थियों के प्रति हमारी नीतियों का मुख्य कारण यह है कि भारतीय कानून के अनुसार, दोनों श्रेणियों के लोगों को एक समान माना जाता है और इन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत कवर किया जाता है।
तदर्थवादः इस तरह के कानूनी ढांचे की अनुपस्थिति भी नीति अस्पष्टता की ओर ले जाती है, जिससे भारत की शरणार्थी नीति को मुख्य रूप से तदर्थवाद द्वारा ही निर्देशित किया जाता है। तदर्थ उपाय सरकार को कार्यालय में ‘किस तरह के शरणार्थियों’ को राजनीतिक या भू-राजनीतिक कारणों से यह स्वीकार करने में सक्षम बनाते हैं। इससे भेदभावपूर्ण कार्रवाई होती है जो एक प्रकार मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।
CAA से संबंधित विवाद: भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित किया है।
CAA भारत के पड़ोस में धार्मिक अल्पसंख्यकों और राज्य द्वारा प्रताड़ित लोगों को नागरिकता प्रदान करने की परिकल्पना करता है।