भारत की शरणार्थी नीति

हाल ही में म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट और उसके बाद उत्पन्न राजनीतिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप भारत में अवैध प्रवासियों की संख्या में वृद्धि हुई है। भारत में पहले से ही शरणार्थियों का मुद्दा विद्यमान रहा है। ऐसे में म्यांमार में वर्तमान राजनीतिक संकट के कारण अवैध प्रवासियों का मुद्दा निश्चित तौर पर चिंता का विषय है।

  • ऐतिहासिक रूप से भारत में कई पड़ोसी देशों के शरणार्थी आए हैं, जो राज्य के लिये एक समस्या बन जाते हैं क्योंकि इससे देश के संसाधनों पर आर्थिक बोझ बढ़ने के साथ ही लंबी अवधि में जनसांख्यिकीय परिवर्तन में वृद्धि कर सकता है, जिससे अतिरिक्त सुरक्षा जोखिम भी उत्पन्न हो सकता है।
  • शरणार्थियों की देखभाल मानवाधिकार प्रतिमान का मुख्य घटक है। इसके अलावा किसी भी स्थिति में भारत में शरणार्थी प्रवास के भू-राजनीतिक, आर्थिक, जातीय और धार्मिक संदर्भों को देखते हुए इसके जल्द समाप्ति की संभावना नहीं दिख रही है।

शरणार्थी कौन हैं?

शरणार्थी सम्मेलन 1951 और शरणार्थियों की स्थिति से सम्बंधित 1967 के प्रोटोकॉल के अनुसार शरणार्थी एक ऐसा व्यक्ति है, जो राजनीतिक या अन्य प्रकार के उत्पीड़न के कारण अपने मूल देश से विस्थापित हो जाता है और उस देश की सुरक्षा हासिल करने में असमर्थ या अनिच्छुक होता है और इस तरह वह अपनी राष्ट्रीयता खो देता है।

  • निम्नलिखित नियमों और अधिनियमों के अंतर्गत मान्यता प्राप्त व्यक्ति शरणार्थी हैः
  • शरणार्थी के दर्जे से संबंधित यूनाइटेड नेशंस 1951 सम्मेलन
  • 1967 प्रोटोकॉल (Relating to the status of refugees)
  • अफ्रीका में शरणार्थी समस्याओं के विशेष पहलुओं का प्रबंधन करने के लिये 1969 में बनी अफ्रीकी एकता संस्था
  • यूएनएचसीआर के विधान के अनुसार मान्यता प्राप्त लोग
  • पूरक सुरक्षा अथवा अस्थायी सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति
  • 2007 से शरणार्थी आबादी में वे लोग भी जोड़े गए हैं, जो ‘शरणार्थियों जैसी स्थिति’ में रह रहे हैं।

राजनैतिक शरणार्थी

  • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR), राजनैतिक शरण मांगने वाले (आश्रय याचक) को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो एक शरणार्थी के रूप में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की मांग करता है, लेकिन आवेदन के समय के निरपेक्ष उनकी शरणार्थी के रूप में स्थिति अभी निश्चित नहीं की गई है।
  • कोई व्यक्ति इस आधार पर राजनैतिक शरण के लिये आवेदन कर सकता है कि यदि वह अपने मूल देश में लौटता/लौटती है तो नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनैतिक धारणा या किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता के कारण उसे अपने उत्पीड़न की आशंका है।
  • नोटः सतत विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र 2030 के एजेंडे में शामिल किए जाने के बाद वर्ष 2015 से शरणार्थी सरकारों और विकास भागीदारों का एक सुरक्षित एजेंडा बन गया है।

भारत की शरणार्थी संबंधी नीति

विदेशी अधिनियम, 1946: भारत में शरणार्थियों के प्रवाह को कानून के प्रशासनिक निर्णयों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो विदेशी अधिनियम की धारा 3 के तहत पारित प्रशासनिक आदेशों कीशृंखला से विकसित हुई है। यह केंद्र सरकार को किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने के लिये शक्ति प्रदान करता है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019: इसमें मुस्लिमों को बाहर रखा गया है और यह केवल हिंदू, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, सिख जो बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से आए प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है।

विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपराः भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज 1967 प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं होने के बावजूद भारत में शरणार्थियों बहुत बड़ी संख्या निवास करती है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।

नागरिकों के संबंध में संवैधानिक प्रावधानः भारत का संविधान भी मनुष्यों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा का सम्मान करता है, जो भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों को प्राप्त है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम स्टेट ऑफ अरुणाचल प्रदेश (1996): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘सभी अधिकार नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं जबकि विदेशी नागरिकों सहित व्यक्तियों को समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार उपलब्ध हैं।’

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR)

  • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय की स्थापना 14 दिसम्बर, 1950 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने की थी।
  • कार्यः विश्व में शरणार्थियों के संरक्षण और शरणार्थी समस्याओं के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का नेतृत्व और उसमें समन्वय करना।
  • उद्देश्यः शरणार्थियों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा करना।

शरणार्थियों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों को लेकर भारत का दृष्टिकोण

वर्ष 1951 के सम्मेलन के अनुसार, शरणार्थियों की परिभाषा केवल नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है लेकिन व्यक्तियों के आर्थिक अधिकारों से संबंधित नहीं है।

  • उदाहरण के लिये सम्मेलन की परिभाषा के तहत एक ऐसे व्यक्ति पर विचार किया जा सकता है, जो राजनैतिक अधिकारों से वंचित है लेकिन आर्थिक अधिकारों से वंचित होने की स्थिति में उस पर विचार नहीं किया जाता है।
  • यदि शरणार्थी की परिभाषा में आर्थिक अधिकारों के उल्लंघन को शामिल किया जाता तो यह स्पष्ट रूप से दुनिया पर एक बड़ा आर्थिक बोझ बढ़ा देगा। अगर यह प्रावधान दक्षिण एशियाई संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है तो भारत के लिये भी आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • शरणार्थी सम्मेलन द्वारा एक शरणार्थी को एक समूह या समुदाय के बजाय केवल एक व्यक्ति के रूप में देखना भारत की अनूठी राष्ट्रीय कल्पना और नागरिकता के अवधारणा का विरोधाभासी है। इसलिए शरणार्थी व्यक्तिवाद का सैद्धांतिक रूप से जनप्रवाह से टकराव है, क्योंकि जनप्रवाह में एक व्यक्ति व्यतिगत उत्पीडन और वापसी के लिए असहाय स्थिति को साबित करने में असमर्थ होता है।

भारत की शरणार्थी नीति से संबद्ध चुनौतियाँ

फ्रेमवर्क में अस्पष्टताः अवैध अप्रवासियों और शरणार्थियों के प्रति हमारी नीतियों का मुख्य कारण यह है कि भारतीय कानून के अनुसार, दोनों श्रेणियों के लोगों को एक समान माना जाता है और इन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत कवर किया जाता है।

तदर्थवादः इस तरह के कानूनी ढांचे की अनुपस्थिति भी नीति अस्पष्टता की ओर ले जाती है, जिससे भारत की शरणार्थी नीति को मुख्य रूप से तदर्थवाद द्वारा ही निर्देशित किया जाता है। तदर्थ उपाय सरकार को कार्यालय में ‘किस तरह के शरणार्थियों’ को राजनीतिक या भू-राजनीतिक कारणों से यह स्वीकार करने में सक्षम बनाते हैं। इससे भेदभावपूर्ण कार्रवाई होती है जो एक प्रकार मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।

CAA से संबंधित विवाद: भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित किया है।

CAA भारत के पड़ोस में धार्मिक अल्पसंख्यकों और राज्य द्वारा प्रताड़ित लोगों को नागरिकता प्रदान करने की परिकल्पना करता है।

  • इसके अलावा कई राजनीतिक विश्लेषकों ने CAA को शरणार्थी संरक्षण से नहीं बल्कि शरणार्थियों से बचने के अधिनियम के रूप में स्वीकार्य किया है। क्योंकि इसकी गहरी भेदभावपूर्ण प्रकृति है तथा एक विशेष धर्म को इसके दायरे में शामिल नहीं किया गया है।