भारत की स्थायी सदस्यता का मुद्दा

सुरक्षा परिषद में भारत को P-5 देशों (अमेरिका, फ्रांस, रूस, चीन, यूनाइटेड किंगडम) में चीन को छोड़कर लगभग सभी देशों का समर्थन है परन्तु भारत का समर्थन करने के साथ साथ P-5 के कई देश सुरक्षा परिषद् में किसी बदलाव को लेकर राजी नहीं हैं। भारत के साथ रहने वाले अमेरिका और चीन का रुख सुरक्षा परिषद् में भारत को शामिल किए जाने को लेकर बदल जाता है। ये देश नहीं चाहते हैं कि स्थायी या अस्थायी सदस्यों की संख्या में इजाफा हो।

क्यों मिलना चाहिए स्थाई सदस्यता

महात्मा गांधी ने 1945 में एक प्रेस वक्तव्य में कहा था, ‘भविष्य की शान्ति, सुरक्षा और दुनिया की प्रगति के लिए स्वतन्त्र राष्ट्रों के विश्व महासंघ की बहुत जरूरत है --- (और इसलिए) भारत का राष्ट्रवाद अन्तरराष्ट्रीयता को बढ़ावा देता है।’ इस तरह भारत ने 1946 के शुरू में ही, संयुक्त राष्ट्र में मताधिकार से वंचितों के लिए आवाज उठाई और एक नवीन व उभरती हुई अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था लाने का आग्रह किया, जिससे संयुक्त राष्ट्र चार्टर की भावना को कथनी और करनी में अपनाया जा सके।

  • भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है भारत अब तक दो वर्ष की गैर-स्थायी सदस्य सीट के लिये आठ बार निर्वाचित हुआ है।
  • भारत में P5 देशों की तुलना में जमीन पर तैनात शांति सैनिकों की संख्या लगभग दोगुनी है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के कारण इसे UNSC में स्थायी सदस्यता प्रदान करने के प्राथमिक कारण हैं।
  • भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के साथ विकासशील देशों तथा दक्षिण एशियाई देशों का नेतृत्वकर्ता बनकर उभरा है।
  • भारत तीसरी दुनिया के देशों का निर्विवाद प्रतिनिधि है, जो कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका से परिलक्षित होता है। भारत बहुपक्षीयता की नीति को समर्थन देता है साथ ही वह संयुक्त राष्ट्र शान्ति स्थापना, जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकारों और सतत विकास समेत सभी मुदों पर सक्रीय भूमिका निभाता है।
  • हाल ही में, कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था की पुनर्बहाली के लिए, भारत संयुक्त राष्ट्र के गरीबी उन्मूलन गठबन्धन में एक संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल हुआ।
  • इसमें भारत ने इस बात पर जोर दिया कि धनराशि या मुआवजा देना ही गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य नहीं है, बल्कि ये भी जरूरी है कि लोगों को गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वच्छता के साधन उपलब्ध हों।

आगे की राह

संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रेरक नेतृत्व के अनगिनत अन्य उदाहरण हैं।

इनमें अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा शामिल है; भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी निधि का संस्थापक रहा है।

दक्षिण-दक्षिण सहयोग पहल में विकासशील देशों में परियोजनाएं शुरू करने वाला पहला एकल-देश रहा।

टैक्स मैटर्स के संयुक्त राष्ट्र ट्रस्ट फंड में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग के लिए स्वैच्छिक रूप से योगदान देने वाला पहला देश, काले धन का प्रवाह रोकने और कर सहयोग पर बहुपक्षीय समर्थन में अपनी बात पर अडिग रहकर इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र तन्त्र को मजबूत करना।

अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक सम्मेलन का मसौदा तैयार करने की पहल (CCIT); आपदा लचीली संरचना के लिए गठबन्धन का संस्थापक; संयुक्त राष्ट्र लोकतन्त्र निधि (UNDEF) का संस्थापक अन्तरराष्ट्रीय सौर गठबन्धन (आईएसए) का संस्थापक, और संयुक्त राष्ट्र के साथ सन्धि-आधारित अन्तर-सरकारी संगठन में पंजीकृत; व 2030 के एजेंडा निर्धारण में अपने अतुल्य नेतृत्व के रूप में हमेशा से संयुक्त राष्ट्र में अहम योगदान देता रहा है।

  • इसलिए समय की मांग है की विश्व के सबसे महत्वपूर्ण संगठन में नई वैश्विक बदलावों के अनुसार सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए तथा भारत जैसे वैश्विक नेतृत्वकर्ता को सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्यता प्रदान की जाए।

सुरक्षा परिषद् के सदस्य

  • सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य देश हैं जिनमें से पांच स्थाई हैं और 10 अस्थाई सदस्य हैं। पांच स्थाई सदस्यों के नाम हैं - चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पांच अस्थाई सदस्यों के लिये, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के आधार पर हर साल चुनाव होता है और उनका कार्यकाल दो वर्ष का होता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र के दौरान हुए चुनाव में, भारत को वर्ष 2021 और 2022 की अस्थाई सदस्यता के लिये चुना गया था। सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में भारत का दो वर्षीय कार्यकाल 1 जनवरी 2021 को शुरू हुआ।
  • पी-5 देशः चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका यूएनएससी का स्थाई सदस्य है। यूएनएससी को पी-5 देश के रूप में भी जाना जाता है।
  • जी-4 समूहः भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान ने मिलकर जी-4 नामक समूह बनाया है। ये देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। जी-4 समूह का मानना है कि सुरक्षा परिषद को और अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण, न्यायसंगत व प्रभावी बनाने की जरूरत है।