भारत का विशाल प्रायद्वीप और इसके चारों ओर फैली हुई द्वीपीयश्रृंखला की सामरिक अवस्थिति के कारण ये क्षेत्र समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 90 प्रतिशत (मात्र में) तथा 70 प्रतिशत (मूल्य के आधार पर) समुद्री मार्ग से संचालित होता है। अतः भारत की सुरक्षा रणनीति में समुद्री सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण अवयव है।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए विभिन्न रणनीतिकारों और सुरक्षा विशेषज्ञों ने यह महसूस किया है कि भारत की महाद्वीपीय रणनीति (Continental 'Grand' Strategy) अस्तित्व के संकट से गुजर रही है।
भारत के समक्ष समुद्री चुनौतियाँ
समुद्री डकैतीः अरब सागर के क्षेत्र में सोमालियाई लुटेरों से भारतीय व्यापारिक जहाजों को सदैव खतरा बना रहता है। कोलाराडो स्थित वन अर्थ फाउंडेशन (One Earth Foundation) की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री डकैती की वजह से दुनियाभर के देशों को प्रतिवर्ष 7 से 12 अरब डॉलर का व्यय करना पड़ता है। इसमें उन्हें दी जाने वाली फिरौती, जहाजों का रास्ता बदलने के कारण हुआ खर्च, समुद्री लुटेरों से लड़ने के लिये कई देशों की तरफ से नौसेना की तैनाती और कई संगठनों के बजट इस अतिरिक्त व्यय में शामिल हैं।
आतंकवादः समुद्री मार्ग से आतंकवाद का दंश भी भारत झेल चुका है। 26/11 का मुंबई हमला, भारतीय समुद्री सुरक्षा पर बड़े प्रश्न-चिह्न पहले ही खड़े कर चुका है।
संगठित अपराधः समुद्री रास्तों से हथियारों, नशीले पदार्थों और मानवों तस्करी, संगठित अपराध के रूप में एक बड़ी सामुद्रिक सुरक्षा चुनौती है। वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट, 2020 के अनुसार वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान भी मादक द्रव्यों की तस्करी अनवरत रूप से जारी रही। लॉकडाउन के कारण स्थलीय सीमाओं पर होने वाला आवागमन प्रतिबंधित था, परंतु मादक द्रव्यों व मानव तस्करी समुद्री मार्गों के द्वारा की गई थी।
स्वतंत्र नौवहन में बाधाः चीन द्वारा भारतीय सीमा के समीप विकसित किये जा रहे बंदरगाहों ने तनाव की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिसके कारण भविष्य में भारत के लिये स्वतंत्र नौवहन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। चीन द्वारा भारत के चारों ओर बंदरगाहों का इस प्रकार विकास उसकी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल (String of Pearls) नीति को दर्शाता है।
स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल
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