भारत की समुद्री सुरक्षा

भारत का विशाल प्रायद्वीप और इसके चारों ओर फैली हुई द्वीपीयश्रृंखला की सामरिक अवस्थिति के कारण ये क्षेत्र समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 90 प्रतिशत (मात्र में) तथा 70 प्रतिशत (मूल्य के आधार पर) समुद्री मार्ग से संचालित होता है। अतः भारत की सुरक्षा रणनीति में समुद्री सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण अवयव है।

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए विभिन्न रणनीतिकारों और सुरक्षा विशेषज्ञों ने यह महसूस किया है कि भारत की महाद्वीपीय रणनीति (Continental 'Grand' Strategy) अस्तित्व के संकट से गुजर रही है।

  • भारत एक प्रायद्वीपीय देश है जो पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में हिंद महासागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। भारत अपनी जलीय सीमा पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ साझा करता है।
  • भारत के उत्तर में स्थित पाकिस्तान से सीमापार आतंकवाद की लगातार गतिविधियों, अधिक सैन्य क्षमता प्राप्ति और परंपरागत संघर्ष में परमाणु हथियारों का प्रयोग करने के घोषित उद्देश्य के कारण उतार-चढ़ाव वाले संबंध बने हुए हैं।
  • विदित है कि वर्ष 2016 में पाकिस्तान ने समुद्र के रास्ते भारत में घुसपैठ कराने का नाकाम प्रयास किया था। भारत की विभिन्न देशों के साथ लंबी जलीय सीमा से कई प्रकार की सुरक्षा संबंधी चिंताएं उत्पन्न होती है।
  • इन चुनौतियों में समुद्री द्वीपों निर्जन स्थानों में हथियार एवं गोला-बारूद रखना, राष्ट्रविरोधी तत्त्वों द्वारा उन स्थानों का प्रयोग देश में घुसपैठ करने एवं यहां से भागने के लिये करना, अपतटीय एवं समुद्री द्वीपों का प्रयोग आपराधिक क्रियाकलापों के लिये करना, समुद्री मार्गों से तस्करी करना आदि शामिल हैं।
  • समुद्री तटों पर भौतिक अवरोधों के न होने तथा तटों के समीप महत्त्वपूर्ण औद्योगिक एवं रक्षा संबंधी अवसंरचनाओं की मौजूदगी से भी सीमापार अवैध गतिविधियों में बढ़ोतरी होने की संभावना अधिक होती है। मुंबई हमले के बाद से तटीय, अपतटीय और समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने के लिये सरकार ने कई उपाय किये हैं।

भारत के समक्ष समुद्री चुनौतियाँ

समुद्री डकैतीः अरब सागर के क्षेत्र में सोमालियाई लुटेरों से भारतीय व्यापारिक जहाजों को सदैव खतरा बना रहता है। कोलाराडो स्थित वन अर्थ फाउंडेशन (One Earth Foundation) की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री डकैती की वजह से दुनियाभर के देशों को प्रतिवर्ष 7 से 12 अरब डॉलर का व्यय करना पड़ता है। इसमें उन्हें दी जाने वाली फिरौती, जहाजों का रास्ता बदलने के कारण हुआ खर्च, समुद्री लुटेरों से लड़ने के लिये कई देशों की तरफ से नौसेना की तैनाती और कई संगठनों के बजट इस अतिरिक्त व्यय में शामिल हैं।

आतंकवादः समुद्री मार्ग से आतंकवाद का दंश भी भारत झेल चुका है। 26/11 का मुंबई हमला, भारतीय समुद्री सुरक्षा पर बड़े प्रश्न-चिह्न पहले ही खड़े कर चुका है।

संगठित अपराधः समुद्री रास्तों से हथियारों, नशीले पदार्थों और मानवों तस्करी, संगठित अपराध के रूप में एक बड़ी सामुद्रिक सुरक्षा चुनौती है। वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट, 2020 के अनुसार वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान भी मादक द्रव्यों की तस्करी अनवरत रूप से जारी रही। लॉकडाउन के कारण स्थलीय सीमाओं पर होने वाला आवागमन प्रतिबंधित था, परंतु मादक द्रव्यों व मानव तस्करी समुद्री मार्गों के द्वारा की गई थी।

स्वतंत्र नौवहन में बाधाः चीन द्वारा भारतीय सीमा के समीप विकसित किये जा रहे बंदरगाहों ने तनाव की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिसके कारण भविष्य में भारत के लिये स्वतंत्र नौवहन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। चीन द्वारा भारत के चारों ओर बंदरगाहों का इस प्रकार विकास उसकी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल (String of Pearls) नीति को दर्शाता है।

स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल

  • ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ हिंद महासागर क्षेत्र में संभावित चीनी इरादों से संबंधित एक भू-राजनीतिक सिद्धांत है, जो चीनी मुख्य भूमि से सूडान पोर्ट तक फैला हुआ है।
  • वर्ष 2017 में चीन ने जिबूती में अपनी पहली विदेशी सैन्य सुविधा (Overseas Military Facility) शुरू की और वह अपने महत्त्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative-BRI) के हिस्से के रूप में श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और अफ्रीका के पूर्वी तट, तंजानिया तथा केन्या में बुनियादी ढांचे में भी भारी निवेश कर रहा है।
  • इस प्रकार की गतिविधियां चीन की भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश को दर्शाती हैं, जिसे ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ कहा जाता है।