नौवहन विभाग (अधिकार क्षेत्र और समुद्री दावों के निपटारे) अधिनियम, 2017

इस अधिनियम ने अदालतों के एडमिरैलिटी क्षेत्रधिकारों, समुद्रतटीय दावों पर अदालती कार्रवाही, जहाजों की जब्ती और अन्य संबंधित मुद्दों से जुड़े मौजूदा कानूनों को सुदृढ़ किया है। अभी तक भारतीय न्यायालयों के एडमिरैलिटी (नौ-अधिकरण) क्षेत्रधिकार का वैधानिक ढांचा ब्रिटिश काल में बनाए गए पांच कानूनों के अंतर्गत था। यह वैधानिक ढांचा कुशल शासन में बाधा उत्पन्न करता था।

  • यह कानून नागरिक मामलों में नौवहन विभाग के क्षेत्रधिकार से जुड़े ब्रिटिश काल के पांच पुराने कानूनों को निरस्त करके लाया गया है। ये पांच पुराने कानून इस प्रकार हैं: एडमिरैलिटी कोर्ट ऐक्ट - 1840, एडमिरैलिटी कोर्ट ऐक्ट - 1861, कॉलोनियल कोर्ट्स ऑफ एडमिरैलिटी ऐक्ट - 1890, कॉलोनियल कोर्ट्स ऑफ एडमिरैलिटी (इंडिया) ऐक्ट - 1891 बंबई, कलकत्ता और मद्रास उच्च न्यायालयों के एडमिरैलिटी क्षेत्रधिकारों पर लागू लेटर्स पेटेंट के प्रावधान - 1865।
  • यह अधिनियम भारत के तटवर्ती राज्यों में स्थित उच्च न्यायालयों पर एडमिरैलिटी क्षेत्रधिकार प्रदान करता है और इस क्षेत्रधिकार का विस्तार समुद्री सीमा (आधार रेखा से 12 नॉटिकल मील) तक है। केंद्रीय सरकार के अधिसूचना के द्वारा इस क्षेत्रधिकार को विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र या किसी भारतीय समुद्री क्षेत्र या द्वीपसमूह तक बढ़ाया जा सकता है।
  • यह सभी जहाजों पर लागू होगा चाहे उसके मालिक का आवास या निवास स्थान कहीं भी हो।
  • अंतर्देशीय जहाजों और निर्माणाधीन जहाजों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है लेकिन जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार एक अधिसूचना जारी कर इन जहाजों को भी इसके दायरे में ला सकती है।
  • यह युद्धपोतों एवं नौसेना के सहायक जहाजों और गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जहाजों पर लागू नहीं होगा।
  • जिन पहलुओं के लिए इस विधेयक में प्रावधान नहीं दिए गए हैं उन पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 लागू होगी।