भारतीय कृषि क्षेत्र में बढ़ती लैंगिक भागीदारी

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) द्वारा जारी 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार कृषि कृषि क्षेत्र में महिला श्रम बल की भागीदारी में वृद्धि हुई है। भारत में कृषि क्षेत्र से संबंधित अनेक श्रम गहन कार्यों यथा निराई, कटाई, रेशों से बीजों को पृथक करना, पशुओं की देखभाल और अन्य संबद्ध गतिविधियों जैसे दूध दुहना आदि महिलाओं द्वारा निष्पादित किया जाता हैं।

  • भारत के अधिकांश ग्रामीण महिलाएं सवैतनिक श्रमिक, अपनी भूमि पर श्रमिक कृषक के रूप में तथा कृषि उत्पादन से संबद्ध कुछ गतिविधियों के प्रबंधनकर्ता के रूप में कृषि गतिविधियों में संलग्न रही है।
  • कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार, महिलाओं द्वारा परिचालनीय जोत का आकार वर्ष 2010-11 के 12.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 14.0 प्रतिशत हो गया है। यह देश में कृषि जोत के प्रबंधन या संचालन में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता करता है, जिसे कृषि के महिलाकरण के रूप में भी संदर्भित किया जा सकता है।
  • खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार भारत के कृषि श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग एक-तिहाई है तथा कृषि उत्पादन में इनकी हिस्सेदारी लगभग 55 से 66 प्रतिशत है।

कृषि में महिलाओं की भूमिका का महत्त्व

  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में: महिलाओं ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और स्थानीय कृषि-जैव विविधता (Agro-Biodiversity) को सुरक्षित बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
  • दैनिक जीवन की जरूरतें पूरी करने में: ग्रामीण महिलाओं ने विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग कर प्रबंधन का एक एकीकृत ढांचा विकसित किया हैं जिससे दैनिक जीवन की जरूरतें पूरी की जाती है। महिला कृषि विकास और संबद्ध गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाती है।
  • कृषि उत्पादकता में सुधारः भारत सहित अधिकतर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिलाओं का सबसे अधिक योगदान है। वैश्विक स्तर पर ऐसा देखा गया है कि महिलाओं को अधिकार दिये जाने के बाद कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ है।
  • भारत में लगभग 18% खेतिहर परिवारों का नेतृत्व महिलाएं ही करती हैं। कृषि का ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी न हो।
  • सामाजिक कारकः सामाजिक मानदंडों के कारण महिलाएं प्रायः गांवों में रहती हैं। इसलिए महिलाएं कृषि कार्यों में संलग्न हो जाती हैं। भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक व पितृसत्तात्मक मानदंड ने उन्हें इंट भट्टों जैसे गैर-कृषि कार्यों में शामिल होने से रोकता है।
  • पुरुषों का प्रवासनः पुरुष सदस्यों के शहरों की ओर प्रवासन हो जाने के कारण, महिलाओं को अपने परिवार की देखभाल हेतु अतिरिक्त दैनिक आय अर्जक की भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है। पुरुषों के शहरों की ओर प्रवासन ने महिलाओं को कृषि गतिविधियों का ध्यान रखने के साथ-साथ कृषि श्रमिकों के रूप में भी कार्य करना पड़ता है।
  • कृषि अनिश्चितताः भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है। इसलिएकृषि को अलाभकारी उद्योग माना जाता है। कृषि क्षेत्र में व्याप्त संकट के कारण पुरुष सदस्यों को गैर-कृषि गतिविधियों को अपनाने हेतु बाह्य होना पड़ाता है। कृषि क्षेत्र में पुरुषों की रिक्तता ने महिलाओं को कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों में संलिप्त होने हेतु प्रेरित किया है।
  • श्रम प्रधान कार्यों के लिए महिलाओं को प्राथमिकताः कृषि को श्रम प्रधान उद्योग माना जाता है। इसलिए महिलाओं को इसके लिए उपयुक्त मानी जाती है। महिलाओं को विनम्र और मेहनती माना जाता है। कुछ श्रम गहन कार्यों के लिए केवल महिलाओं को ही अधिक उपयुक्त माना जाता है।

महिला भागीदारी का प्रभाव

  • सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धिः अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (प्स्व्) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत में कार्यक्षेत्र में व्याप्त लैंगिक असमानता को 25% कम कर लिया जाता है तो इससे देश की जीडीपी में 1 ट्रिलियन डॉलर तक की वृद्धि हो सकती है।
  • सामाजिक और आर्थिक लाभ: विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि से कई सामाजिक और आर्थिक लाभ देखने को मिले हैं।
  • शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि से महिलाओं में अपने स्वास्थ्य तथा विकास के प्रति जागरूकता के बढ़ने के साथ अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता में वृद्धि होती है। इस बदलाव का सकारात्मक प्रभाव समाज तथा देश की अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलता है।
  • गरीबी, स्वास्थ्य और आर्थिक अस्थिरता से संबंधित चुनौतियों से निपटने में सहायताः देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार करते हुए बेहतर योजनाओं के क्रियान्वयन के माध्यम से गरीबी, स्वास्थ्य और आर्थिक अस्थिरता से संबंधित चुनौतियों से निपटने में सहायता प्राप्त हो सकती है।

कृषि क्षेत्र में महिलाओं के लिए विद्यमान चुनौतियाँ

  • उत्पादक संसाधनों और बाजारों तक पहुँच में कमीः कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार कृषि में परिचालन जोत का केवल 14 प्रतिशत ही महिलाओं के स्वामित्व में हैं। महिलाओं के पास संसाधनों की कमी के कारण संस्थागत ऋण एवं उर्वरक, बीज आदि पर सब्सिडी प्राप्त करने तथा पीएम-किसान या अन्य सरकारी योजनाओं के तहत किश्तों जैसे लाभ आर्जित करने में प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • महिलाओं को किसानों के रूप में मान्यता का अभावः सरकार द्वारा किसी व्यक्ति को किसान मानने के लिए भूमि के स्वामित्व को आवश्यक मानती है। लेकिन पितृसत्तात्मक मानदंड महिला को विरासत दिए जाने का विरोध करते हैं, जिससे वे लाभ और अधिकार प्राप्त करने में असमर्थ हो जाती है।
  • परिणामतः कृषि में अधिकांश महिला किसानों के लिए चलाई गई योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाती हैं। वर्ष 2017 की ऑक्सफैम इण्डिया की रिपोर्ट के अनुसार इन प्रतिबंधों से महिलाओं की कृषि उत्पादकता में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • लघु भूमि जोतः कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार लगभग 90 प्रतिशत महिलाओं के स्वामित्व वाली भूमि जोत छोटी और सीमांत जोत के श्रेणी में आती है। छोटे जोत के आकर होने के कारण महिला किसान बड़े पैमाने पर कार्य करने से मिलाने वाले आर्थिक लाभ से वंचित रह जाता है।
  • मजदूरी में असमानताः श्रम ब्यूरो के आंकडे के अनुसार महिलाओं द्वारा आर्जित मजदूरी पुरुषों द्वारा प्राप्त मजदूरी की तुलना में औसतन 35-8 प्रतिशत कम थी।
  • निर्णय लेने की क्षमता में अभावः महिलाओं को महत्वपूर्ण उत्तरदायित्वों के निर्वहन के बावजूद, फसल के चयन, कार्य के विभाजन, विपणन आदि महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
  • प्रशासनिक निकायों में प्रतिनिधित्व की कमीः कृषि विपणन समितियों और अन्य समान निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का अभाव है।

महिला कृषकों के लिए सरकार द्वारा किया गया प्रयास

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केन्द्रीय कृषिरत महिला संस्थानः यह भारत में अपनी तरह का प्रथम संस्थान है, जो विशेष रूप से कृषि में महिला आधार पर अनुसंधान के प्रति समर्पित है। इसी के साथ ही कृषि में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस के रूप में घोषित किया गया है।
  • महिला किसान सशक्तिकरण परियोजनः यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य कृषि में महिलाओं की भागीदारी और कृषिगत उत्पादकता बढ़ाने तथा उन्हें सशक्त बनाने, उनकी कृषि-आधारित आजीविका का सृजन करने तथा उसे बनाए रखने के क्रम में व्यवस्थित निवेश करना है।
  • महिला स्वयं सहायता समूहः क्षमता निर्माण के माध्यम से महिला किसान को सूक्ष्म ऋण से जोड़ने तथा उन्हें सूचना प्रदान करने के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों पर धयान केन्द्रित किया जा रहा है। साथ ही निर्णय लेने वाले संस्थानों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा रहा है।