यूरेशिया में भू-राजनीतिक परिवर्तन

यूरेशिया भौगोलिक रूप से एक विवर्तनिक प्लेट है जो यूरोप और एशिया के अधिकांश हिस्सा समाहित करता है परन्तु राजनीतिक सीमाओं के रूप में इसके संघटन के संबंध में कोई साझा अंतर्राष्ट्रीय परिभाषा मौजूद नहीं है।

  • यूरेशिया के सम्बन्ध में मैकिंडर ने कहा था की ‘जो पूर्वी यूरोप पर शासन करता है, वह इस केन्द्रीय-स्थल पर भी नियंत्रण करता है; जो इस केन्द्रीय-स्थल पर शासन करता है वह वैश्विक द्वीप पर नियंत्रण करता है; और जो वैश्विक द्वीप पर नियंत्रण करता है, वह संपूर्ण विश्व पर नियंत्रण करता है।
  • 1904 में अटलांटिक और प्रशांत के बीच के भू-भाग को दक्षिण हिमालय से तथा उत्तर में आर्कटिक टुंड्रा से घिरे होने के कारण विश्व के द्वीप अर्थात यूरेशिया का नाम दिया था।
  • इस यूरेशियाई भू-भाग, जिसमें मुख्य रूप से पूर्वी यूरोप शामिल था। उसे मैकिंडर ने ‘हार्टलैंड’ कहा था और यह माना गया था की विश्व में प्रधानता स्थापित करने के लिए यह प्रमुख स्थान होगा।
  • मैकिंडर के विपरीत, अमेरिकी रणनीतिज्ञ एडमिरल एल्फ्रेड थेयर महान ने यह निष्कर्ष निकाला कि सामुद्रिक क्षेत्र का नियंत्रण नए युग में साम्राज्य-निर्माण का प्रमुख केन्द्र होगा तथा स्पाइकमैन ने रिमलैंड सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसमें यूरेशिया की केन्द्रीयता स्वीकार की गई परंतु उन्होंने यह भी दावा कि कि इसकी सिद्धहस्तता अटलांटिक और प्रशांत महासागरों पर इसकी महासागरीय परिधि के नियंत्रण पर निर्भर करती है। उनका सिद्धांत था ‘जो रिमलैंड पर नियंत्रण करता है, वह यूरेशिया पर शासन करता है जो यूरेशिया पर नियंत्रण करता है, वह विश्व की नियति को नियंत्रित करता है।’

हालिया घटनाक्रम

वर्तमान में चीन का मुखर उदय, रूस यूक्रेन संघर्ष,अफगानिस्तान से अमेरिकी एवं नाटो सैन्य बलों की वापसी तथा तालिबान का कब्जा, इस्लामी कट्टरपंथी शक्तियों का उदय और रूस की ऐतिहासिक रूप से स्थिरताकारी भूमिका के कारण बदलती गतिशीलता (हाल ही में कजाखस्तान में) ने यूरेशियाई भू-भाग में भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के तेज कर दिया है।

यूरेशिया की वर्तमान स्थिति

रूस का प्रभावः यूरेशियाई भू-राजनीति में रूस केंद्र में है तथा बेलारूस, यूक्रेन, काकेशस और कजाखस्तान में विद्यमान संकट यूरेशिया की भू-राजनीति को पुनः आकार दे रहे हैं तथा यूरेशिया के देश कजाखस्तान में मास्को का सैन्य हस्तक्षेप और यूरोप की सुरक्षा पर अमेरिका के साथ इसकी हाल की वार्ता यूरेशिया में रूस की केंद्रीयता को रेखांकित करती है।

चीन का हस्तक्षेपः चीन का प्रमुख शक्ति के रूप में न केवल समुद्री क्षेत्र, बल्कि यूरेशियाई महाद्वीप पर भी अपना विस्तार कर रहा है इसके तहत वह मध्य एशिया में बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) परियोजनाएं को आगे बाढ़ रहा है।

ऊर्जा एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच प्राप्त कर निवेश को बढ़ाबा देकर पूरे महाद्वीप में राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव का विस्तार कर रहा है।

अमेरिकी प्रभाव में कमीः अमेरिका सैन्य उपस्थिति इस क्षेत्र में बनी हुई है परंतु मुख्य यूरेशियाई भूभाग पर अमेरिकी सैन्य उपस्थिति पर्याप्त कम हो गई है।

हालांकि इस क्षेत्र में अमेरिका एक पूर्व-प्रतिष्ठित नौसैनिक शक्ति है, विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, अपनी स्वयं की शक्ति के आलोक में अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को परिभाषित करता है।

भारत और यूरेशिया

वर्तमान समय भारत के लिए यूरोप के साथ यूरेशिया की सुरक्षा पर रणनीतिक वार्ता शुरू करने का है, क्योंकि यूरेशिया भारत की महाद्वीपीय रणनीति के पुनर्संयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है क्यूंकि भारत के लिए यह आवश्यक है की ‘हिंद-प्रशांत’ की ही तरह ‘यूरेशियाई’ नीति के विकास पर भी ध्यान केंद्रित करें।

  • भारत और यूरेशिया के मध्य सम्बन्ध बौद्ध युग में संघ और श्रेणी के बीच से चले आ रहे है तथा दोनों भूभागों के बीच दीर्घकालिक सम्बन्ध स्थापित है। ‘ग्रेट गेम’ के दौरान रूस के साथ ब्रिटिश प्रतिद्वंद्विता ने यूरेशियाई भू-राजनीति को अविभाजित भारत के सुरक्षा एजेंडे में सबसे ऊपर रख दिया था।
  • स्वतन्त्रता के पश्चात भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन और आंतरिक एशिया से भारत के भौतिक अलगाव ने भारत को यूरेशियाई भू-राजनीति से अलग-थलग कर दिया।

अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता (Delhi Regional Security Dialogue on Afghanistan)

नवम्वर 2021 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल (Ajit Doval) की अध्यक्षता में अफगानिस्तान (।हिींदपेजंद) के मुद्दे पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में इस बैठक का आयोजन किया गया था इससे पहले साल 2018 और 2019 में अफगानिस्तान के मुद्दे पर ईरान बैठक का आयोजन कर चुका है। यह भारत द्वारा एक यूरेशियाई रणनीति विकसित करने का भाग है इसमें पाकिस्तान, ईरान, मध्य एशिया, रूस और चीन के अपने समकक्षों को आमंत्रित किया गया था। पाकिस्तान और चीन ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया तथा

  • अफगानिस्तान के मामले में भारत के साथ संलग्न होने में पाकिस्तान ने इच्छा नहीं है। पकिस्तान की अनिच्छा ने एक नई यूरेशियाई रणनीति के निर्माण में भारत के लिए चुनौती खड़ी की है।

चुनौतियाँ

  • यूरेशिया में राजनतिक और आर्थिक परिदृश्य की संवृद्धि एक प्रभावी सुरक्षा ढांचे की मांग करती है जिससे इसकी मूल्यवान संसाधन आस्तियों तथा उन गलियारों की सुरक्षा की जा सके जो इसके सतत् विकास और समृद्धि के लिए अवसंरचना उपलब्ध कराते हैं।
  • स्थलीय क्षेत्र में कम प्रभावः यूरेशिया में भारतीय स्थिति को मजबूत करने में अमेरिका की भूमिका एक महत्वपूर्ण सहयोगी की हो सकती है परन्तु अमेरिका हिन्द प्रशांत क्षेत्र स्थल क्षेत्र पर तुलनात्मक रूप से कम प्रभाव छोड़ा है।
  • भारत की सीमा संपर्कताः चाबहार बंदरगाह भारत के लिए इस क्षेत्र में कई मायनों में फायदेमंद होगा। भारत के पश्चिमी तट से ईरान के दक्षिणी तट तक आसानी से पहुंचा जा सकता है जो ऊर्जा संसाधनों से काफी समृद्ध है। इस बंदरगाह के जरिये स्थल-बद्ध देश अफगानिस्तान की समुद्र तक पहुंच के लिए पाकिस्तान पर निर्भरता भी कम करेगा। पाकिस्तान और चीन से लगातार सीमा पर खतरे की स्थिति ने भारत की सुरक्षा को कठिन बना दिया है साथ ही पाकिस्तान और चीन के साथ लगी सीमाओं के सैन्यीकरण की वृद्धि हुई है।

संभावित सुरक्षा चुनौतियाँ

भारत के सापेक्ष सीमापार से होने वाले आतंकवाद से लेकर क्षेत्र के अनेक देशों में इस्लामिक राष्ट्र (आईएस) के अंतर्गत फैलाए जा रहे धार्मिक कट्टरवाद तथा अफगानिस्तान में निरंतर जारी गृह युद्ध संपूर्ण क्षेत्र को अस्थिर बना सकता है।

  • यह क्षेत्र नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार का शिकार बन गया है तथा नए परिवहन गलियारे भी नशीले पदार्थों के व्यापार को विस्तारित करने के लिए संभावित परिवहन क्षेत्र बन सकते हैं।
  • ये गलियारे विशाल दूरी लिए हुए हैं तथा इन पर बसावट के क्षेत्र भी अत्यंत कम है।
  • इनकी निगरानी करना एक बड़ी चुनौती है।
  • और अंत में, राष्ट्रवादी संवेदना और वैश्वीकरण के विरूद्ध आंदोलन अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं में पुनः अवरोध उत्पन्न कर सकता है जिससे न केवल व्यापार और निवेश प्रवाहों में व्यवधान आएगा, अपितु जनता के बीच संपर्क भी बाधित होंगे।

इन चुनौतियों का सामना केवल वार्ता, पारस्परिक सम्मान पर आधारित घनिष्ठ प्रादेशिक सहयोग से तथा ऐसी बहुपक्षीय संस्थाओं और व्यवस्थाओं की स्थापना करके किया जा सकता है, जिसमें प्रत्येक हितधारक की अपनी भूमिका और उत्तरदायित्व होगा।

यदि अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के विपरीत शत्रु पड़ोसी राज्य द्वारा पहुंच को लगातार अवरुद्ध रखा रखना भारत की सबसे बड़ी चुनौती है।

यह क्षेत्र आज प्रमुख सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है जिनमें धार्मिक कट्टरवाद, आतंकवाद, नशीले पदार्थों का व्यापार तथा कमजोर शासन शामिल है। अफगानिस्तान में निरंतर जारी गृह युद्ध विशेष रूप से एक अस्थिरतावादी प्रभाव है। मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप, दोनों ही क्षेत्रों में चीन और रूस के मद हितों का स्पष्ट विवाद भी है।

आगे की राह

यूरेशिया भू-राजनैतिक प्रतिस्पर्धा का एक नया आयाम बनकर उभरेगा, परंतु यह उस प्रतिस्पर्धा में एक महत्वपूर्ण अवयव होगा। यूरेशिया के पश्चिमी और उत्तरी भागों में क्या गतिविधियां होंगी, यह प्रश्न एक नई वैश्विक व्यवस्था को स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखेगा।

  • यूरेशिया भारत के विस्तारित पड़ोस का एक भाग भी है जिसके दीर्घकालिक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध रहे हैं। लेकिन, पाकिस्तान के सृजन तथा तिब्बत पर चीन के कब्जे से ये संबंध टूट गए हैं और सदैव ही बाधित रहे हैं।
  • विश्व में हिंद-प्रशांत, यूरेशिया और आर्कटिक जैसे नए भूक्षेत्रों के उभार से नए नियम-कायदों, संस्थाओं और भागीदारियों के निर्माण की जरूरत आ पड़ी है।