यूरेशिया भौगोलिक रूप से एक विवर्तनिक प्लेट है जो यूरोप और एशिया के अधिकांश हिस्सा समाहित करता है परन्तु राजनीतिक सीमाओं के रूप में इसके संघटन के संबंध में कोई साझा अंतर्राष्ट्रीय परिभाषा मौजूद नहीं है।
हालिया घटनाक्रम
वर्तमान में चीन का मुखर उदय, रूस यूक्रेन संघर्ष,अफगानिस्तान से अमेरिकी एवं नाटो सैन्य बलों की वापसी तथा तालिबान का कब्जा, इस्लामी कट्टरपंथी शक्तियों का उदय और रूस की ऐतिहासिक रूप से स्थिरताकारी भूमिका के कारण बदलती गतिशीलता (हाल ही में कजाखस्तान में) ने यूरेशियाई भू-भाग में भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के तेज कर दिया है।
यूरेशिया की वर्तमान स्थिति
रूस का प्रभावः यूरेशियाई भू-राजनीति में रूस केंद्र में है तथा बेलारूस, यूक्रेन, काकेशस और कजाखस्तान में विद्यमान संकट यूरेशिया की भू-राजनीति को पुनः आकार दे रहे हैं तथा यूरेशिया के देश कजाखस्तान में मास्को का सैन्य हस्तक्षेप और यूरोप की सुरक्षा पर अमेरिका के साथ इसकी हाल की वार्ता यूरेशिया में रूस की केंद्रीयता को रेखांकित करती है।
चीन का हस्तक्षेपः चीन का प्रमुख शक्ति के रूप में न केवल समुद्री क्षेत्र, बल्कि यूरेशियाई महाद्वीप पर भी अपना विस्तार कर रहा है इसके तहत वह मध्य एशिया में बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) परियोजनाएं को आगे बाढ़ रहा है।
ऊर्जा एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच प्राप्त कर निवेश को बढ़ाबा देकर पूरे महाद्वीप में राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव का विस्तार कर रहा है।
अमेरिकी प्रभाव में कमीः अमेरिका सैन्य उपस्थिति इस क्षेत्र में बनी हुई है परंतु मुख्य यूरेशियाई भूभाग पर अमेरिकी सैन्य उपस्थिति पर्याप्त कम हो गई है।
हालांकि इस क्षेत्र में अमेरिका एक पूर्व-प्रतिष्ठित नौसैनिक शक्ति है, विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, अपनी स्वयं की शक्ति के आलोक में अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को परिभाषित करता है।
भारत और यूरेशिया
वर्तमान समय भारत के लिए यूरोप के साथ यूरेशिया की सुरक्षा पर रणनीतिक वार्ता शुरू करने का है, क्योंकि यूरेशिया भारत की महाद्वीपीय रणनीति के पुनर्संयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है क्यूंकि भारत के लिए यह आवश्यक है की ‘हिंद-प्रशांत’ की ही तरह ‘यूरेशियाई’ नीति के विकास पर भी ध्यान केंद्रित करें।
अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता (Delhi Regional Security Dialogue on Afghanistan)
नवम्वर 2021 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल (Ajit Doval) की अध्यक्षता में अफगानिस्तान (।हिींदपेजंद) के मुद्दे पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में इस बैठक का आयोजन किया गया था इससे पहले साल 2018 और 2019 में अफगानिस्तान के मुद्दे पर ईरान बैठक का आयोजन कर चुका है। यह भारत द्वारा एक यूरेशियाई रणनीति विकसित करने का भाग है इसमें पाकिस्तान, ईरान, मध्य एशिया, रूस और चीन के अपने समकक्षों को आमंत्रित किया गया था। पाकिस्तान और चीन ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया तथा
चुनौतियाँ
संभावित सुरक्षा चुनौतियाँ
भारत के सापेक्ष सीमापार से होने वाले आतंकवाद से लेकर क्षेत्र के अनेक देशों में इस्लामिक राष्ट्र (आईएस) के अंतर्गत फैलाए जा रहे धार्मिक कट्टरवाद तथा अफगानिस्तान में निरंतर जारी गृह युद्ध संपूर्ण क्षेत्र को अस्थिर बना सकता है।
इन चुनौतियों का सामना केवल वार्ता, पारस्परिक सम्मान पर आधारित घनिष्ठ प्रादेशिक सहयोग से तथा ऐसी बहुपक्षीय संस्थाओं और व्यवस्थाओं की स्थापना करके किया जा सकता है, जिसमें प्रत्येक हितधारक की अपनी भूमिका और उत्तरदायित्व होगा।
यदि अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के विपरीत शत्रु पड़ोसी राज्य द्वारा पहुंच को लगातार अवरुद्ध रखा रखना भारत की सबसे बड़ी चुनौती है।
यह क्षेत्र आज प्रमुख सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है जिनमें धार्मिक कट्टरवाद, आतंकवाद, नशीले पदार्थों का व्यापार तथा कमजोर शासन शामिल है। अफगानिस्तान में निरंतर जारी गृह युद्ध विशेष रूप से एक अस्थिरतावादी प्रभाव है। मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप, दोनों ही क्षेत्रों में चीन और रूस के मद हितों का स्पष्ट विवाद भी है।
आगे की राह
यूरेशिया भू-राजनैतिक प्रतिस्पर्धा का एक नया आयाम बनकर उभरेगा, परंतु यह उस प्रतिस्पर्धा में एक महत्वपूर्ण अवयव होगा। यूरेशिया के पश्चिमी और उत्तरी भागों में क्या गतिविधियां होंगी, यह प्रश्न एक नई वैश्विक व्यवस्था को स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखेगा।