अगस्त 2021 में प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और मध्याह्न भोजन योजना सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत वितरित किए जाने वाले चावल को वर्ष 2024 तक फर्टिफिकेशन करने की घोषणा की, जो देश में महिलाओं और बच्चों के बीच उच्च स्तरीय कुपोषण पर केन्द्रित है।
फोर्टिफिकेशन क्या है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, फोर्टिफिकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें जानबूझकर किसी खाद्य पदार्थ में आवश्यक पोषक तत्व, जैसे विटामिन और खनिज (अल्प मात्रा में उपस्थित तत्व) की मात्रा को बढ़ाया जाता है।
उद्देश्यः खाद्य सामग्री की पोषक गुणवत्ता में सुधार करना और स्वास्थ्य के जोखिम को कम करने के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करना है। फोर्टिफिकेशन विशेष रूप से आयोडीन युक्त नमक के संदर्भ में सफल रहा है। विश्व की 71 प्रतिशत आबादी को आयोडीन युक्त नमक सुलभ है और आयोडीन न्यूनता वाले देशों की संख्या वर्ष 2003 से 54 से घटकर 32 हो गई है।
फूड फोर्टिफिकेशन के लाभ
प्रच्छन्न भुखमरी में कमी होनाः विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘प्रच्छन्न भुखमरी’ को विटामिन और खनिज की कमी के रूप में परिभाषित किया है। 70% से अधिक भारतीय प्रतिदिन सूक्ष्म तत्वों की दैनिक आधार पर निर्धारित मात्र के आधे से भी कम का अंतर्ग्रहण करती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसारः
उच्च लाभ-लागत अनुपातः कोपनहेगन कंसेंसस (एक थिंकटैंक) के अनुसार फूड फोर्टिफिकेशन पर व्यय किए गए प्रत्येक 1 रुपये से अर्थव्यवस्था को 9 रुपये का लाभ होता है। यदि सभी कार्यक्रम की लागत को भी उपभोक्ताओं पर ही आरोपित कर दिया जाए, तब भी उससे कीमत में होने वाली वृद्धि सामान्य स्थिति में कीमत में होने वाली बढ़ोत्तरी से 1.2% कम ही होगी।
स्वास्थ्य जोखिम में कमीः लोगों के पोषण में सुधार के लिए फूड फोर्टिफिकेशन एक सुरक्षित विधि है। खाद्य पदार्थ में सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाने से लोगों के स्वास्थ्य के समक्ष जोखिम उत्पन्न नहीं होता है। इसे तीव्रता से कार्यान्वित किया जा सकता है। साथ ही, स्वास्थ्य में सुधार से संबंधित परिणाम अपेक्षाकृत कम अवधि में दृष्टिगत होने लगते हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्यः इसके लिए लोगों की खाने-पीने की आदतों में किसी प्रकार के परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती। यह लोगों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने का सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य माध्यम है।
फूड फोर्टिफिकेशन के प्रभाव
हाइपरविटामिनोसिसः हाल ही में, मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ और ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन’ में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार एनीमिया तथा विटामिन ए की कमी का निदान अधिक होता है, जिसका अर्थ है कि अनिवार्य फोर्टिफिकेशन से ‘हाइपरविटामिनोसिस’ हो सकता है।
विषाक्तताः एक या दो सिंथेटिक रासायनिक विटामिन और खनिजों को जोड़ने से बड़ी समस्या का समाधान नहीं होगा। इसके विपरित अल्पपोषित अनाज में विषाक्तता हो सकती है। वर्ष 2010 के एक अध्ययन में बताया गया था कि कुपोषित बच्चों में आयरन फोर्टिफिकेशन के कारण आंत में सूजन और रोगजनक आंत माइक्रोबायोटा प्रोफाइल की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
प्रकृतिक खाद्य पदार्थों का बाजार सीमित होनाः कुपोषण से लड़ने के लिये आहार विविधता को एक स्वस्थ और अधिक लागत प्रभावी तरीका माना गया है। एनीमिया के उपचार हेतु आयरन जब से युक्त फोर्टिफाइड चावल बाजार में बेचा जाने लगा, तब से इसने प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कुछ लौह युक्त खाद्य पदार्थों, जैसे- बाजरा, हरी पत्तीदार सब्जियों की किस्में, मांस व अन्य खाद्य पदार्थों के बाजार को नितिगत्त रुप से सीमित कर दिया है।
हितों का टकरावः फोर्टिफिकेशन का समर्थन करने वाले साक्ष्य अनिर्णायक हैं और निश्चित रूप से प्रमुख राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिये FSSAI जिन अध्ययनों पर निर्भर है। वे खाद्य कंपनियों द्वारा प्रायोजित हैं, जो इससे लाभान्वित होंगी, जिससे हितों का टकराव होगा।
फूड फोर्टिफिकेशन के चुनौतियां
फूड फोर्टिफिकेशन के लिए किया गया प्रयास