डिजिटल कृषिः तकनीकी आधारित कृषि सुधार

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 14 सितंबर, 2021 को डिजिटल कृषि को आगे बढ़ाने के लिए सिस्को, निन्जाकार्ट, जियो प्लेटफॉर्म्स लिमिटेड, आईटीसी लिमिटेड और NCDEX ई-मार्केट्स लिमिटेड के साथ पायलट परियोजनाओं के लिए 5 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना और उनकी उपज की रक्षा करना है।

  • 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण में, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 17.8 प्रतिशत था, जोकि 2020-21 में बढ़कर 19.9 प्रतिशत हो गया है। भारत सरकार द्वारा कृषि विकास हेतु चलाई जा रही योजनाओं की इस वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका रही है, किन्तु 2050 में खाद्य सुरक्षा से संबंधित आने वाली कृषि चुनौतियों से सामना करने हेतु भारत को स्मार्ट कृषि तकनीकों को बड़े पैमाने में क्रियान्वित करना होगा।
  • विश्व भर में कृषि कार्यों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ड्रोन जैसी तकनीकी का उपयोग बढ़ रहा है। इसलिए भारतीय कृषि को वैश्विक चुनौतियों हेतु सक्षम बनाने के लिए भारत सरकार भी कृषि के क्षेत्र में डिजिटल तकनीकी के उपयोग को बढ़ावा प्रदान कर रही है।
  • यह प्रयास किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ श्रम और समय की बचत करेगा तथा ज्यादा प्रभावी रूप से उर्वरक , सिंचाई और कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकेगा।

डिजिटल कृषि मिशन (2021-25)

  • भारत सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस (GIS) तकनीक, ड्रोन व रोबोट के उपयोग जैसी नई तकनीकों पर आधारित परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2021 से वर्ष 2025 के लिये ‘डिजिटल कृषि मिशन’ का आरम्भ किया गया है।
  • केंद्र ने राज्यों से अपने भूमि रिकॉर्ड को डेटाबेस में संलग्न करने तथा इसे वर्ष के अंत तक 8 करोड़ किसानों तक बढ़ाने के लिए कहा है।
  • किसानों की आय दोगुनी करने वाली समिति (डीएफआई) ने भारत सरकार की डिजिटल कृषि पहलों को और विस्तार देने और बढ़ानेकी सिफारिश की है।
  • इसके अंतर्गत ई-गवर्नेंस योजना में स्मार्ट कृषि के नवीन प्रबंधन प्रारूप जैसे रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), डेटा एनालिटिक्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन ल²नग (एमएल), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), रोबोटिक्स, ड्रोन, सेंसर और ब्लॉकचेन शामिल किए गए हैं।
  • स्मार्ट कृषि को कार्यान्वित करने हेतु भारत सरकार ने कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (छमळच्।) दिशानिर्देशों को 2020-21 में संशोधित किया है तथा दो मुख्य कदम एकीकृत किसान सेवा मंच (यूएफएसपी) तथा किसानों ने डेटाबेस निर्माण जैसे कदम उठाए गए हैैं।

स्मार्ट कृषि

स्मार्ट कृषि आधारित ड्रिप सिंचाई प्रणाली की ऑन-फार्म दक्षता, पारंपरिक सिंचाई विधियों की तुलना में 90 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है।

  • फल और सब्जी फसलों में उत्पादकता में 42.53 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए, ड्रिप सिंचाई कृषि लागत को 20.25 प्रतिशत, बिजली की खपत को लगभग 30 प्रतिशत और उर्वरक की खपत को लगभग 28 प्रतिशत तक कम करने में म करता है।
  • देश में कुल सिंचित क्षेत्र 68,649 हजार हेक्टेयर है। सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत आने वाली कृषि 12,908.44 हजार हेक्टेयर है, जिसमें ड्रिप सिंचाई 6,112.05 हजार हेक्टेयर और छिड़काव सिंचाई 6,796.39 हजार हेक्टेयर है।
  • देश में कुल सिंचित भूमि में से केवल 19 प्रतिशत ही सूक्ष्म सिंचाई के अधीन है, जिसका अधिकतम भाग स्मार्ट कृषि आधारित भी नहीं है। भारत को न सिर्फ अपने सूक्ष्म, सिंचाई क्षेत्र की वृद्धि करनी होगी बल्कि इजराइल के समान भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) का उपयोग कर स्मार्ट सिंचाई तकनीकों पर जोर देना होगा।
  • एकीकृत किसान सेवा मंच (यूएफएसपी): एकीकृत किसान सेवा मंच देशभर में कृषि परिस्थिति की विभिन्न सार्वजनिक और निजी आईटी प्रणालियों के मुख्य बुनियादी ढांचे, डेटा, अनुप्रयोगों और उपकरणों का एक संयोजन हैं।
  • यह स्मार्ट कृषि एवं डिजिटल सेवाओं से जुड़े सार्वजनिक और निजी सेवा प्रदात्ताओं के साथ-साथ सरकार से किसान (G2F), सरकार से व्यवसाय (G2B), व्यवसाय से किसान (B2F), और व्यवसाय से व्यवसाय (B2B) के पंजीकरण को सक्षम बनाता है।

कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एनईजीपीए): कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एनईजीपए) नामक एक केंद्र प्रायोजित योजना 2010-11 में सात पायलट राज्यों में शुरू की गई थी।

  • वर्ष 2014-15 में इस योजना को शेष सभी राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों के लिए आगे बढ़ाया गया था, जिसका उद्देश्य कृषि तक समय पर पहुंच के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के उपयोग के माध्यम से भारत में तेजी से विकास हासिल करना था।

ड्रोन का उपयोगः कृषि ड्रोन खेती के आधुनिक तकनीकों में से एक है जिसके इस्तेमाल से बड़े क्षेत्रफल में कुछ ही मिनटों में कीटनाशक, खाद्य या दवाओं का छिड़काव किया जा सकता है। इससे सिर्फ लागत में कमी आएगी बल्कि समय की भी बचत होगी।

स्मार्ट कृषि तकनीकों का कृषि के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उपयोग

कृषि क्षेत्र

स्मार्ट कृषि तकनीकों का प्रयोग

फसल जल प्रबंधन

कृषि गतिविधियों को कुशल तरीके से करने के लिए पर्याप्त पानी आवश्यक है। सिंचाई के लिए उचित जल प्रबंधन सुनिश्चित करने एवं पानी की बर्बादी को कम करने के लिए कृषि IoT को वेब मैप सर्विस (WMS) और सेंसर ऑब्जर्वेशन सर्विस (SOS) के साथ एकीकृत किया गया है।

सुव्यतता कृषि (प्रेसिजन कृषि)

मौसम की जानकारी के सन्दर्भ में उच्च सटीकता की आवश्यकता होती है, जिससे फसल के नुकसान की संभावना कम हो जाती है। कृषि IoT किसानों को मौसम की भविष्यवाणी, मिट्टी की गुणवत्ता, श्रम की लागत और कीट एवं रोगों के संदर्भ में वास्तविक समय के डेटा की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करता है।

एकीकृत कीट प्रबंधन या नियंत्रण (आईपीएम/सी)

कृषि IoT सिस्टम तापमान, नमी, पौधों की वृद्धि और कीटों के स्तर का उचित लाइव डेटा निगरानी के माध्यम से किसानों को सटीक पर्यावरणीय डेटा प्रदान करता है, ताकि उत्पादन के दौरान उचित देखभाल की जा सके।

खाद्य उत्पादन और सुरक्षा

कृषि IoT प्रणाली कृषि उत्पाद भंडारण हेतु गोदाम के तापमान, शिपिंग परिवहन प्रबंधन प्रणाली जैसे विभिन्न मापदंडों की सटीक निगरानी करती है और क्लाउड आधारित रिकॉर्डिंग सिस्टम को भी एकीकृत करती है।

प्रमुख उपयोग

  • इसका उपयोग मैपिंग, सर्वेक्षण और कीटनाशक छिड़काव के लिए किया जाता है।
  • भूमि की मैपिंग तथा सर्वेक्षण
  • शुष्क और बाढ़ क्षेत्रों की पहचान और निगरानी
  • फसल के जल ग्रहण क्षमता में सुधार हेतु
  • सिंचाई में रिसाव का पता लगाने हेतु
  • फसलों में कीटों तथा बीमारियों का पता लगाने में (जैसे ट्यिóी हमला)
  • मृदा सर्वेक्षण
  • बीजों रोपण और नाइट्रोजन स्तर के प्रबन्धन में
  • जानवरों तथा सोए हुए पशु धन की निगरानी में

लाभ

  • कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है।
  • मृदा के क्षरण को रोकती है।
  • फसल उत्पादन में रासायनिक अनुप्रयोग को कम करती है।
  • जल संसाधनों का कुशल उपयोग।
  • गुणवत्ता, मात्र और उत्पादन की कम लागत के लिये आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार करती है।
  • किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव लाती है।

चुनौतियाँ

  • उच्च पूंजी लागतः यह किसानों को खेती के डिजिटल तरीकों को अपनाने के लिये हतोत्साहित करती है।
  • छोटी जोतः भारतीय खेत आकार में बहुत छोटे होते हैं और 1-2 एकड़ खेत के भूखंड काफी आम है। साथ ही भारत में कृषि भूमि को पट्टे पर देना भी व्यापक रूप से प्रचलित है।
  • भूमि किराए पर लेने और साझा करने की प्रथाएँ: सीमित वित्तीय संसाधनों और छोटे खेत के भूखंडों के कारण ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि जैसे उपकरण और मशीनरी हेतु एकमुश्त खरीद के बजाय भूमि को किराए पर देना और साझा करना काफी आम है।
  • ग्रामीण क्षेत्र में निरक्षरताः बुनियादी कंप्यूटर साक्षरता की कमी ई-कृषि के तीव्र विकास में एक बड़ी बाधा है।

आगे की राह

कृषि के डिजिटल इकोसिस्टम की स्थापना के लिए नवाचार को प्रोत्साहन देने के अलावा इंटरऑपरेबिलिटी, डेटा गवर्नेंस, डेटा गुणवत्ता, डेटा मानक, सुरक्षा और निजता के पहलुओं पर एक दीर्घकालिक नजरिए की जरूरत होती है।

  • किसानों के संस्थागत डेटाबेस को देश भर के किसानों की जमीनों के रिकॉर्ड के साथ जोड़ा जाएगा, साथ ही विशेष फार्मर आईडी तैयार की जाएगी। इस एकीकृत डेटाबेस के अंतर्गत सभी किसानों के लिए केन्द्र व राज्य सरकार के सभी लाभों और विभिन्न योजनाओं के समर्थन से जुड़ी जानकारी रखी जाएगी और यह भविष्य में किसानों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से जानकारियां हासिल करने का स्रोत बन सकता है। अभी तक, डेटाबेस लगभग 5.5 करोड़ किसानों के विवरण के साथ तैयार है।
  • एक धारणीय अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि देश कि बढ़ती जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा को बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए कैसे सुनिश्चित किया जाए।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष भी यही समस्या उपस्थित है। प्रौद्योगिकी-संचालित सटीक कृषि (precision agriculture) के माध्यम से कृषि दक्षता और उत्पादकता दोनों को बढ़ाया जा सकता है।
  • इस कृषि प्रणाली में भू-आकृति विज्ञान, उपग्रह इमेजरी, वैश्विक स्थिति (global positioning) और स्मार्ट सेंसर का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही खाद्य अपव्यय भी कम करना आवश्यक है। डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर आपूर्तिश्रृंखला, पारगमन प्रणालियों, प्रशीतन आदि सुविधाओं को बेहतर बनाया जा सकता है।