भारत में जनसांख्यिकीय लाभांशः चुनौतियाँ और अवसर

वर्तमान में भारत की आबादी एक प्रौढ़ विश्व में सबसे युवा आबादी में से एक है, हालाँकि भारत की आबादी का भी एक बड़ा हिस्सा वर्ष 2050 तक प्रौढ़ हो जाएगा। भारत का ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ आर्थिक विकास की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। इस क्षमता को वास्तविकता में बदलने के लिए किशोरों और युवाओं का स्वस्थ और सुशिक्षित होना आवश्यक है।

  • भारत की किशोर आबादी 253 मिलियन है जो विश्व में सबसे बड़ी आबादी है तथा जनसंख्या की औसत आयु 30 वर्ष से कम है। इस परिदृश्य में जनसंख्या गतिशीलता, शिक्षा एवं कौशल, स्वास्थ्य देखभाल, लिंग संवेदनशीलता को भविष्योन्मुखी नीति में शामिल करने और युवा पीढ़ी को अधिकार एवं विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि वे भविष्य में देश के आर्थिक विकास में अपनी अधिकतम क्षमता का योगदान कर सकें।

जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति

भारत में 62% से अधिक जनसंख्या की आयु 15-59 वर्ष के बीच है तथा जनसंख्या की औसत आयु 30 वर्ष से कम है। यह भारत जनसंख्या की आयु संरचना के आधार पर आर्थिक विकास की क्षमता का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ के चरण से गुजर रहा है। हालाँकि इस क्षमता को वास्तविकता में बदलने के लिये किशोरों और युवा को स्वस्थ एवं सुशिक्षित होना आवश्यक है।

  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) द्वारा भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश पर एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश का अवसर वर्ष 2005-06 से वर्ष 2055-56 तक 5 दशकों के लिये उपलब्ध है।
  • इसलिये ‘जनसंख्या विस्फोट’ की आशंका से अधिक यह महत्वपूर्ण है कि भारत युवा जनसंख्या की स्वास्थ्य सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करे क्योंकि भारत का कल्याण इसी पर निर्भर है।

जनसांख्यिकीय लाभांशः परिभाषा

  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार, ‘वैसी आर्थिक विकास क्षमता जो जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप प्राप्त हो सकती है जनसांख्यिकीय लाभांश कहलाती है, जो मुख्यतः कार्यशील उम्र की आबादी (15 से 64 वर्ष ) का हिस्सा गैर- कार्यशील उम्र (14 और उससे कम, तथा 65 एवं उससे अधिक) की आबादी से बड़ा हो’।

जनसांख्यिकीय लाभांश के समक्ष चुनौती

  • शिक्षा और कौशल की कमीः भारत की अल्प-वित्तपोषित शिक्षा प्रणाली युवाओं को उभरते रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने हेतु आवश्यक कौशल प्रदान करने के लिये अपर्याप्त है। विश्व बैंक के अनुसार, शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय वर्ष 2020 में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3.4% था, जबकि प्रति छात्र सार्वजनिक व्यय के मामले में भारत 62वें स्थान पर है और छात्र- शिक्षक अनुपात एवं शिक्षा उपायों की गुणवत्ता में इसका प्रदर्शन खराब रहा है।
  • महामारी का प्रभावः विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि स्कूल बंद होने से बच्चों की शिक्षा, जीवन और मानसिक कल्याण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक सुर्वेक्षण से पता चलता है कि दुनिया भर में महामारी के दौरान 65% किशोरों की शिक्षा में कमी आई है। भारत में, COVID -19 के कारण देशव्यापी तालाबंदी से 32 करोड़ से अधिक छात्र प्रभावित हुए हैं। इनमें से करीब 15.8 करोड़ महिलाएं हैं। जिन लोगों ने पढ़ाई छोड़ दी है उनमें से कई के वापस स्कूल जाने की संभावना नहीं है। किशोरों पर महामारी का प्रभाव गंभीर रहा है, विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य पर 17% युवा चिंता और अवसाद से पीड़ित होने की संभावना है।
  • युवा महिलाओं के मुद्देः बाल विवाह, लिंग आधारित हिंसा, दुर्व्यवहार और तस्करी के प्रति उनकी संवेदनशीलता, खासकर यदि प्राथमिक देखभाल करने वाले बीमार पड़ जाते हैं या मर जाते हैं जैसे मुद्दे युवा महिलाओं को उनकी पूरी क्षमता हासिल करने से रोकते हैं। महामारी के दौरान गरीबी के स्तर में वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत में लड़कियों की जल्दी विवाह और लिंग हिंसा हो सकती है।
  • भारत में निम्न प्रति व्यक्ति उपभोग और व्यय की स्थितिः भारत में एक बच्चा 20 से 64 आयु वर्ग के वयस्क द्वारा किये जाने वाले उपभोग का लगभग 60% उपभोग करता है, जबकि इसकी तुलना में चीन में एक बच्चे का उपभोग लगभग 85% है।
  • अपूर्ण शैक्षिक आवश्यकताएँ: शिक्षा में लैंगिक असमानता चिंता का विषय है, क्योंकि भारत में बालिकाओं की तुलना में बालक माध्यमिक और तृतीयक स्तर के विद्यालयों में नामांकित होने की अधिक संभावना रखते हैं। तुलनात्मक रूप से फिलीपींस, चीन और थाईलैंड में विलोम स्थिति है, जबकि जापान, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया में लिंग अंतर बेहद कम है।
  • कौशल उन्नयन का अभावः यूनिसेफ की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार कम-से-कम 47% भारतीय युवा उस शिक्षा और कौशल प्राप्ति की राह पर नहीं हैं, जो वर्ष 2030 में रोजगार पाने के लिये आवश्यक होंगे। जबकि भारत के 95% से अधिक बच्चे प्राथमिक विद्यालय में नामांकित हैं, NFHSs इस बात की पुष्टि करते हैं कि सरकारी स्कूलों में बदतर बुनियादी ढाँचे, बच्चों में कुपोषण और विद्यालयों में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी ने सीखने की क्षमता या ‘लर्निंग आउटकम’ को प्रभावित किया है।

जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत

  • इसका तात्पर्य यह है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास के समग्र स्तरों से जुड़ी होती है एवं प्रत्येक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप का अनुसरण करता है। जनसंख्या वृद्धि के तीन बुनियादी चरण होते हैं-
  • पहला चरण है समाज में जनसंख्या वृद्धि का कम होना क्योंकि समाज अल्पविकसित और तकनीकी दृष्टि से पिछड़ा होता है। जनसंख्या वृद्धि दर इसलिए कम होती हैं क्योंकि मृत्यु दर और जन्म दर दोनों ही बहुत ऊँची होती हैं इसलिए दोनों के बीच का अंतर (यानी शुद्ध वृद्धि दर) नीचा रहता है।
  • द्वितीय चरण में चिकित्सा प्रौद्योगिकी के विकास के फलस्वरूप मृत्यु दर में तीव्र गिरावट दर्ज की जाती है, जबकि जन्म दर पूर्व की तरह ही उच्च बनी रहती है। इसके परिणामस्वरूप जनसंख्या संक्रमण के इस दूसरे चरण में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होती है।
  • तीसरे और अंतिम चरण में भी विकसित समाज में जनसंख्या वृद्धि दर नीची रहती है क्योंकि ऐसे समाज में मृत्यु दर और जन्म दर दोनों ही काफी कम हो जाती हैं और उनके बीच अंतर बहुत कम रहता है।

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • एक विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाकर जहां जिला स्तर के अधिकारी स्थानीय COVID-19 संचरण दरों के आधार पर चरणबद्ध तरीके से स्कूलों को फिर से खोल सकते हैं।
  • प्रमुख मंत्रालयों, सरकारी एजेंसियों और नागरिक समाज द्वारा सहयोगात्मक कार्यों और बेहतर अंतर-क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को किशोरों के स्वास्थ्य और सीखने की क्षमता को सुरक्षित रखने में म करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी का प्रसार करने के लिए शिक्षा मंत्रालय के साथ सहयोग करना चाहिए।
  • लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन वितरित करने के लिए शिक्षक, फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ सहयोग करने के लिए स्वयंसेवकों के रूप में काम कर सकते हैं।
  • बेहतर पोषण शिक्षा जो माता-पिता को एक पौष्टिक भोजन के आश्वासन पर अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • पूर्वी एशिया के 1965-1990 के आर्थिक विकास से प्रेरणा लेकर पूर्वी एशियाई देशों ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों और नीतियों का विकास किया, जिससे उन्हें संक्रमण द्वारा बनाई गई विकास क्षमता का एहसास हुआ।

जनसांख्यिकीय लाभांश के कारण

  • प्रजनन दर में गिरावट का प्रभाव प्रजनन दर में गिरावट के साथ युवा आबादी की हिस्सेदारी घटती जाती है और यदि यह गिरावट तीव्र होती है तो कामकाजी आयु की आबादी में पर्याप्त वृद्धि होती है जिससे ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ प्राप्त होता है।
  • घटते प्रजनन दर (वर्तमान में 2.0) के साथ भारत की औसत/मध्यम आयु (Median Age) वर्ष 2011 में 24 वर्ष से बढ़कर अब 29 वर्ष हो गई है और वर्ष 2036 तक इसके 36 वर्ष हो जाने का अनुमान है।
  • भारत में ‘निर्भरता अनुपात’ (Dependency Ratio) अगले दशक में 65% से घटकर 54% होने का अनुमान है (15-59 आयु वर्ग को कामकाजी आयु आबादी मानते हुए), यह भारत को एक जनसांख्यिकीय ट्रांजिशन (Demographic Transition) के मध्य में स्थापित करता है।

आगे की राह

  • भारत को अगर जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ प्राप्त करना है तो उसे मानव विकास के सभी मानकों को सुदृढ़ करना होगा तथा कौशल विकास और तकीनीकी था ब्यवसायिक शिक्षा और स्वास्थ्य संरचना में सुधार कर इस कार्यशील आबादी को सही दिशा में उपयोग कर सकता है।
  • भारत के इस प्रयास में नई शिक्षा नीति, राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन था। नीति आयोग के आकांक्षी जिला कार्यक्रम और आयुष्मान भारत योजना जैसे कार्यक्रम प्रभावी सावित हो सकते हैं। इसके साथ-साथ शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में सूचना तकनीकी का उपयोग कर टेली शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ-साथ स्कूल के पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण, मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज (MOOCS) के साथ वर्चुअल क्लासरूम स्थापित करने के लिये नई प्रौद्योगिकी का उपयोग और ओपन डिजिटल यूनिवर्सिटीज में निवेश से उच्च शिक्षित कार्यबल प्राप्त करने का प्रयास किया जा सकता है।