बाल विवाह

हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 और लोक सभा में पेश किया गया बाल विवाह (संशोधन) विधेयक 2021 ने बाल विवाह संबंधी मुद्दों को रेखांकित किया है।

  • NFHS-5 के अनुसार देश के कुछ राज्यों में बाल विवाह के मामलों में वृद्धि हुई है, जिनमें त्रिपुरा (वर्ष 2015-16 में 33.1% से बढ़कर 40.1%), मणिपुर (वर्ष 2015-16 में 13.7% से बढ़कर 16.3%) और असम (वर्ष 2015-16 में 30.8% से बढ़कर 31.8%) प्रमुख हैं।
  • बाल विवाह की समस्या देश भर में व्यापक पैमाने पर फैली हुई है। हालांकि यह उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी भारत में बहुत सामान्य है। राष्ट्रीय अपराध रिकोर्ड ब्यूरो (NCRB) के वर्ष 2020 के डेटा के अनुसार बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के तहत कुल 785 मामले दर्ज किए गए थे।

बाल विवाह क्या है?

बाल विवाह एक ऐसा औपचारिक विवाह या अनौपचारिक बंधन है, जिसे कोई व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु से पहले संपन्न करता है।

  • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष था, जिसे बाल विवाह (संशोधन) विधेयक 2021 के अनुसार विवाह की न्यूनतम वैध आयु को 18 वर्ष से बढाकर 21 वर्ष (पुरुषों के बराबर) करने का प्रावधान किया गया है।
  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) के आकलन के अनुसार भारत में हर साल 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी की जाती है, जो वैश्विक संख्या का एक तिहाई है और इस प्रकार अन्य देशों की तुलना में भारत में बाल वधुओं की सर्वाधिक संख्या मौजूद है।
  • संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 5.3 में सभी प्रकार के कुरीतियों जैसे बाल विवाह, कम आयु में और जबरन विवाह तथा महिलाओं के खतने के उन्मूलन पर बल दिया गया है।

भारत में विवाह की आयु के निर्धारण का ऐतिहासिक कालक्रम

प्राचीन काल

  • वैदिक काल में स्पष्ट तौर पर यह नियम था कि एक महिला विवाह के लिए द्विदाशम (20 वर्ष की आयु) पार करना चाहिए।
  • प्राचीन भारत के सभी 18 पुराणों में, किसी युवा लड़की के कम आयु में विवाह के कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

पूर्व-मध्यकाल एवं मध्यकालीन

  • छठी सदी इसवी के बाद से लेकर आधुनिक काल तक ब्राह्मण लड़कियों का विवाह आठ से 10 वर्ष की आयु के बीच में कर दिया जाता था।

औपनिवेशिक काल

  • एज ऑफ कंसेंट एक्ट या सम्मति आयु अधिनियम 1891 में लैंगिक संबंधों के लिए सहमति की आयु को 10 वर्ष से बढाकर 12 वर्ष कर दिया गया था।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम 1929, जिसे शारदा अधिनियम भी कहा जाता है, के तहत लड़कियों के विवाह के लिए न्यूनतम आयु 14 वर्ष और लड़कों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई थी।

उत्तर-औपनिवेशिक काल

  • विशेष विवाह अधिनियम 1954; हिन्दू विवाह अधिनियम 1955; और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 ने लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लडके की 21 वर्ष निर्धारित की।
  • इस्लाम में यौवन प्राप्त करने वाले नाबालिगों को विवाह योग्य माना जाता है।

बाल विवाह के कारण

  • रुढ़िवादी परम्पराः समाज में बालिका को बोझ मानने की मानसिकता होने कारण बालिका को विवाह कर परिवार जल्द से जल्द उत्तरदायित्व से मुक्त होना चाहते है। इसके साथ ही लोगों का मानना है कि लडके ही वंश चलाते है लड़कियां नहीं।
  • दहेज प्रथाः दहेज को कानूनन अपराध घोषित करने के वावजूद देश के अधिकांश हिस्सों में इसे सामाजिक शान के रूप में देखा जाता है। इसलिए लड़कियों के परिवार वाले को मानना होता है कि लड़की की शादी में जितना देर होगा, उतनाही उन्हें दहेज की रकम चुकाना पड़ेगा।
  • यौन हिंसाः बालिकाओं को यौन हिंसा से बचाने के लिए भी समुदाय बाल विवाह के पक्ष में तर्क देते हैं। यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के नवीनतम वैश्विक अनुमानों के अनुसार, 15 या उससे अधिक उम्र की हर तीन में से एक महिला को, अपने अन्तरंग साथी या गैर-यौन सम्बन्ध साथी, या फिर दोनों से अपने जीवनकाल में, कम से कम एक बार, शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा है।
  • पितृसत्तात्मक समाजः पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कमतर माना जाता है। पितृसत्ता असमान सत्ता संबंधों पर आधारित है, जिसमें महिलाओं के जीवन के हर पक्ष पर पुरुष का नियंत्रण होता है।
  • इस व्यवस्था का पीढ़ी दर पीढ़ी सामाजिक कायदों और सांस्कृतिक मूल्यों के नाम पर पोषण होता रहता है, जिससे महिलाओं का पूर्ण विकास नहीं हो पता है और बाल विवाह के लिए बाध्य होना पड़ता है।
  • आर्थिक विपन्नताः बाल विवाह अमीर परिवारों में अधिक मौजूद नहीं है, जो अधिक बच्चे पैदा करने का खर्च उठा सकते हैं। लेकिन गरीब परिवारों के लिये एक उपाय यह होता है कि इन बेटियों की समय से पहले शादी करा दी जाए, जिससे बाल वधुओं और बच्चे की आपूर्ति का दुष्चक्र लगातार बना रहता है।

बाल विवाह के परिणाम

  • स्वास्थ्य का प्रभावित होनाः छोटी आयु में विवाह करने से लड़कियों को सामान्य और प्रजननीय स्वास्थ्य का अधिकतम लाभ नहीं मिल पता है। छोटी आयु में विवाह के परिणामस्वरूप, अल्पायु में ही गर्भावस्था माता व बच्चों, दोनों के पोषण स्तरों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। इससे शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है।
  • इसके साथ ही कम आयु में विवाहित लड़कियों के पास घर की जिम्मेदारियों को संभालने की पर्याप्त समझ नहीं होती है। यह ऐसी विवाहित लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य प्रतिकुल बुरा प्रभाव डाल सकता है।
  • आर्थिक सहभागिता में कमीः कम आयु में विवाह के कारण भारत की एक-चौथाई महिलाएं आज भी पर्याप्त श्रमबल का हिस्सा नहीं बन पाई है। उल्लेखनीय है कि 130 करोड़ की जनसंख्या में लगभग आधी आबादी महिलाओं की है।
  • शिक्षा के अधिकार से वंचित होनाः बाल विवाह के कारण कई लड़कियों को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है, जिससे वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं या अकुशल रह जाते हैं और उनके सामने अच्छे रोजगार पाने और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की ज्यादा संभावना नहीं रह जाती है।
  • मानवाधिकारों का उल्लंघनः बाल विवाह लड़कियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और उन्हें नीति निर्धारण के लिये लगभग अदृश्य बना देता है।इन बुनियादी अधिकारों में शिक्षा का अधिकार, आराम और अवकाश का अधिकार, मानसिक या शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार (बलात्कार एवं यौन शोषण सहित) शामिल हैं।

बाल विवाह को रोकने में आने वाली चुनौतियाँ

  • सांस्कृतिक कारकः उत्तर भारत में बाल विवाह का कुछ पवित्र अवसरों से गहरा संबंध है। उदहारण के लिए राजस्थान में आखा तीज। इस त्योहार के दौरान कई जिलों में बड़ी संख्या में बाल विवाह होता है। लेकिन सामाजिक दबाव के कारण प्रशासन इस तरह के विवाहों को रोकने में असफल रहा है।
  • परिवारों के सम्मान को बहाल करने या बरकरार रखनाः बाल विवाह का संबंध परिवार के सम्मान को बहाल करने या बरकरार रखने से हो सकता है। इसके अतिरिक्त वित्तीय लाभ प्राप्त करने के स्त्रेत या कर्ज से मुक्ति के एक साधन के तौर पर भी इसका उपयोग किया जाता है।
  • विषम लिंगानुपातः गुजरात और हरियाणा जैसे कई राज्यों में लिंगानुपात बहुत विषम है। इससे दुल्हन मिलना कठिन हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, लड़की का अपहरण करके या भावी पति द्वारा खरीद कर जबरन विवाह करना एक रिवाज बन गया है।
  • NFHS-5 के अनुसार अधिकांश राज्यों में लिंगानुपात सामान्यतः 952 है, जो पुरूषों की तुलना में कम है। हालांकि तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, गोवा, दादर नगर हवेली और दमन व द्वीप में जन्म के समय लिंगानुपात 900 से भी कम है।
  • कानूनों का प्रभावी ढंग से लागू न होनाः बाल विवाह की रोकथाम के समक्ष कई बाधाएं हैं। उनमें आयु से जुड़े उचित दस्तावेजों का अभाव और बच्चों के मानवाधिकारों की सुरक्षा का अभाव तथा बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 जैसे कानूनों का प्रभावी ढंग से लागू न होना भी शामिल है।