अमेरीका और मित्र राष्ट्रों से समर्थित नाटो सेनाओं का दो दशक (वर्ष 2001 से 2021) के बाद अफगानिस्तान से वापस आने के पश्चात अफगानिस्तान का राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक,
क्या था दोहा समझौता
29 फरवरी, 2020 को खाड़ी देश कतर की राजधानी दोहा अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता किया गया था जिसमें भारत को भी आमंत्रित किया गया था इसके प्रमुख विन्दु निम्न है।
अफगान संकट और अमेरिका की भूमिका
21वीं सदी में अफगानिस्तान को संकट 11 सितम्बर, 2001 को अमरीका के ‘वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर’ पर आतंकवादी हमले से जुदा हुआ है। जब तालिबान जिस वक्त अफगानिस्तान में शासन कर रहा था जिम्मेदार अलकायदा ओसामा बिन लादेन अमरीका को सौंपने से इनकार कर दिया।
वैश्विक प्रतिक्रिया
तालिबान शासन की स्थापना के पश्चात वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा अमरीका की आलोचना की गई तथा उसकी विदेश नीति की असफलता माना गया परन्तु अमेरिका द्वारा यह कहा गया की उसका उदेश्य वहां लोकतंत्र की बहाली था न की मानव अधिकारों की रक्षा करना।
अफगानिस्तान संकट का प्रभाव
तालिबान के कब्जे के पश्चात मानवीय संकट के साथ ही वैश्विक शक्ति संतुलन, मानवीय सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ने की सम्भावना है परन्तु कुछ महत्वपूर्ण चिंताएं निम्नलिखित है-
भारत पर प्रभाव
आगे की राह
अफगान में हुए इस बदलाव को लेकर पूरी दुनिया के देश ‘वेट एंड वॉच’ की नीति पर चल रहे हैं, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैन्यबल की वापसी के प्रभाव भारत पर भी पड़ेंगे, उसे अपने हितों की रक्षा के लिये और अफगानिस्तान में स्थिरता की बहाली के लिये तालिबान तथा अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ मिलकर कार्य करना होगा।
तालिबान की सत्ता में वापसी को लेकर भले ही कुछ देशों ने समर्थन किया हो, लेकिन तालिबान द्वारा गठित अंतरिम सरकार को मान्यता देने में दुनियाभर के देश जल्दीबाजी करने की स्थिति में नहीं दिख रहे है। भारत को एक अंतर्संबंधित मिटिगेशन रणनीति अपनानी होगी। इससे भारतीय हितों की रक्षा करने और आतंकवाद के जोखिमों को कम करने में म मिल सकती है, साथ ही तालिबान पर पाकिस्तानी आईएसआई के बढ़ते प्रभाव, विशेष रूप से हक्कानी समूह पर नियंत्रण और काबुल में बढ़ती अस्थिरता के साथ अफगानिस्तान में भारत के दीर्घकालिक हितों को सुनिश्चित करना आसान हो सकेगा।