हाल के दिनों में कई राजनीतिक दलों और सामाजिक चिंतकों ने भारत में जाति जनगणना कराने की मांग की है, जिसका सबसे प्रभावी कारक आरक्षण है।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) का आरक्षण
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जातिगत जनगणना के पक्ष में तर्क
सामाजिक वंचनाः यदि कोई सामाजिक वर्ग वंचना का शिकार है तो उसे मुख्यधारा में लाने का सबसे पहला कार्य, उसकी वास्तविक स्थिति का पता लगाना है, जिससे उनकी वास्तविक संख्या, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का पहचान की जा सके।
सामाजिक न्याय व समावेशी विकासः कोई भी देश सही अर्थों में तभी विकसित व सफल राष्ट्र की श्रेणी में आता है जब वह समाज के सभी वर्गों के कल्याण को सुनिश्चित कर पाता है। ओ.बी.सी. वर्ग यदि वंचना का शिकार है और उसकी आबादी के अनुपात में संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं तो यह माना जाना चाहिये कि देश के संसाधनों के वितरण में व्यापक असमानता विद्यमान है।
जातिगत जनगणना के विपक्ष में तर्क
सामाजिक एवं शैक्षणिक स्थिति पर सूचना की अनुपलब्धताः विभिन्न जातियों के सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के संबंध में सूचना की उपलब्धता का अभाव है, जो वृहद संख्या में जातियों के अतिरिक्त, एक राज्य से दुसरे राज्य में जातियों के भीतर महत्वपूर्ण भिन्नता के कारण सांख्यिकीय रूप से अत्यंत कठिन अभ्यास हो सकता है।
जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा मिलेगाः जातिगत जनगणना देश में जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा देगी। भारत की राजनीति में जाति का प्रभाव हमेशा से रहा है और अभी आगे भी बने रहने की संभावना है। यह समस्या लोकतंत्र की व्यवस्था में व्याप्त कमियों को दर्शाती है, जिसका समाधान तलाशा जाना वैचारिकी के स्तर पर अभी बाकी है।
ओ.बी.सी. के कुछ वर्गों में असंतोष को बढ़ावा देगाः इससे ओ.बी.सी. के कुछ वर्गों में अशांति उत्पन्न कर सकती है क्योंकि इससे लाभ पुनर्वितरित हो जाएगा। ओ.बी.सी. आरक्षण का मुद्दा अतीत में राजनीतिक उथल-पुथल का कारण बन चुका है।
निष्कर्ष
लोकतंत्र की विसंगतियों का बहाना बनाकर किसी वर्ग की वंचना की स्थिति को बरकरार रखना कहीं से भी उचित नहीं है। साथ ही जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण की 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा को बढ़ाए जाने की मांग को समझना भी आवश्यक है। हमें सबसे पहले तो यह समझना होगा कि 50 प्रतिशत की यह सीमा कोईअंतिम व आदर्श लकीर नहीं है। इस तथ्य पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि राज्यों की आबादी में जातीय भिन्नताएं व्याप्त हैं। अनुसूचित जाति व जनजाति के संदर्भ में जनगणना होने के कारण यह आसानी से तय कर दिया जाता है कि उक्त राज्य में उनके लिये कितना प्रतिशत आरक्षण होगा, किंतु ओ.बी.सी. की गणना न होने से वे इस लाभ से वंचित रह जाते हैं। अतः केंद्र के स्तर पर भले ही अधिकतम कोटे की सीमा का ध्यान रखा जाए किंतु राज्यों के स्तर पर इस सीमा में आवश्यकतानुसार बदलाव जरूरी है। इस बदलाव के लिये यह आवश्यक है कि अब जातिगत जनगणना में और देरी न की जाए।