भारत में न्यायपालिका सुधारः एक परिवर्तनकारी न्यायिक क्रांति

न्यायालय को विभिन्न व्यक्तियों या निजी संस्थाओं के आपसी विवादों को सुलझाने वाले पंच के रूप में देखा जाता है तथा न्यायपालिका कानून की व्याख्या करने और उसे अर्थ प्रदान करने के लिये उत्तरदायी निकाय है; साथ ही यह संविधान का रक्षक और लोकतंत्र का संरक्षक है। ‘न्याय में देरी न्याय से वंचित होने के समान है’ (Justice delayed is Justice denied), यह महत्त्वपूर्ण है कि न्यायपालिका जल्द-से-जल्द इन बाधाओं को दूर करे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके।

भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित प्रमुख चुनौतियां

लंबित मामलों की बड़ी संख्याः भारतीय न्यायालयों के समक्ष 30 मिलियन से अधिक मामले लंबित पड़े हैं। उनमें से 4 मिलियन से अधिक मामले उच्च न्यायालय के पास लंबित हैं, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के पास 60,000 मामले लंबित हैं।

विचाराधीन कैदीः भारतीय जेलों में बंद अधिकांश कैदी वे हैं, जो अपने मामलों में निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं और इस कारण उन्हें निर्णयन तक की अवधि के लिये बंद रखा जाता है।

नियुक्ति/भर्ती में देरीः न्यायिक पदों के हिसाब से 135 मिलियन आबादी के देश में लगभग 25,000 न्यायाधीश ही उपलब्ध हैं। उच्च न्यायालयों में लगभग 400 रिक्तियां हैं, जबकि निचली अदालतों में करीब 35% पद खाली पड़े हैं।

नियुक्ति में पक्षपात और भाई-भतीजावादः भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद के लिये उम्मीदवारों के मूल्यांकन के लिये कोई विशिष्ट मानदंड निर्धारित नहीं है, इसके कारण न्यायिक नियुक्ति में पारदर्शिता का अभाव है, वे किसी भी प्रशासनिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, जो सही उम्मीदवार की अनदेखी करते हुए गलत उम्मीदवार के चयन का कारण बन सकता है।

प्रतिनिधित्व की असमानताः चिंता का एक अन्य क्षेत्र उच्च न्यायपालिका की संरचना है, जहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व पर्याप्त रूप से कम है। 1-7 मिलियन पंजीकृत अधिवत्तफ़ाओं में से केवल 15% महिलाएं हैं। उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत मात्र 11.5 है, जबकि उच्चतम न्यायालय में वर्तमान में 33 कार्यरत न्यायाधीशों में से मात्र चार ही महिला न्यायाधीश हैं।

भारत में न्यायपालिका से संबंधित प्रमुख मानदंड

कार्यकाल की सुरक्षाः एक न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक अपने पद पर बना रह सकता है। उसे ‘सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता’ के आधार पर ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। वेतन और सेवा शर्तों की सुरक्षाः न्यायाधीशों के वेतन, भत्तों आदि को उनकी पदावधि के दौरान अलाभकारी रूप में परिवर्तित नहीं किया जाएगा।

न्यायाधीशों के आचरण पर विधायिका में चर्चा से मुक्त: किसी न्यायाधीश के आचरण या उसके कर्तव्यों के निर्वहन के बारे में संसद में तब तक कोई चर्चा नहीं हो सकती, जब तक कि उसे हटाने का प्रस्ताव न लाया गया हो।

अवमानना हेतु दंडः यदि कोई व्यत्तिफ़ या प्राधिकरण उसके अधिकार को कम या अवमानित करने का प्रयास करता है तो सर्वोच्च न्यायालय न्यायलय की अवमानना (Contempt of Court) के लिये उसे दंडित कर सकता है।

समाधान

  • नियुक्ति प्रणाली में सुधार हेतु न्यायालय में लम्बित रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिये।
  • एक अिखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) का गठन कर भारत को एक बेहतर न्यायिक प्रणाली विकसित करने प्रयास किया जाना चाहिए।
  • जांच प्रक्रिया में सुधारकर भारत सरकार को न्याय प्रणाली में सभी हितधारकों को ध्यान में रखते हुए एक प्रभावी, सक्रिय और व्यापक जांच नीति तैयार करने की आवश्यकता है।
  • लंबित मामलों के समाधान हेतु मेटावर्स प्रौद्योगिकी द्वारा नागरिक मामलों का समाधान, डेटा स्टोर करने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग, कार्यप्रवाह के सरलीकरण के लिये आईटी समाधानों की खोज, वर्चुअल कोर्ट, लाइव स्ट्रीमिंग आदि के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • जिला न्यायालय को प्रभावशाली बनाए जाने की आवयश्कता है तथा निचली अदालतों के न्यायिक ऑडिट को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
  • न्यायपालिका के क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए तथा लिंग-तटस्थ न्यायिक प्रणाली के विकास की आवश्यकता है।