चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से सतत विकास के लिए सहयोग प्राप्ति हेतु सरकार द्वारा गांधी जयंती के अवसर पर वेस्ट टू वेल्थ पोर्टल की शुरुआत की गई।
प्रमुख बिंदु
वेस्ट टू वेल्थ पोर्टल प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय के तहत संचालित नौ मिशनों में से एक मिशन है। यह पोर्टल प्रौद्योगिकी प्रदाताओं, सरकारी हितधारकों और शहरी स्थानीय निकायों के मध्य सहयोग स्थापित करेगा।
भारत के लिए आर्थिक लाभ
ऊर्जा का उत्पादनः ठोस अपशिष्ट का उपयोग जब सही प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाता है तो उसे संभावित ईंधन के रूप में देखा जा सकता है। अपशिष्ट से ईंधन उत्पादन हेतु निम्नलिखित तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है-
अपशिष्ट का गैसीकरणः उत्पन्न अपशिष्ट को बायोगैस संयंत्रों जैसी प्रौद्योगिकी के माध्यम से गैस आधारित ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
छर्रीकरण या पेलेटाइजेशन (Pelletçation): पेलेटाइज्ड अपशिष्ट ऊर्जा उत्पादन के दक्ष स्रोत के रूप में कार्य कर सकता है। साथ ही इसे उचित आकार में निर्मित करके पौधों के लिए उर्वरक के समृद्ध स्रोत के रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
सिंचाई के लिए अपशिष्ट का प्रसंस्करणः अपशिष्ट जल का आंशिक रूप से उपचार करना आर्थिक रूप से किफायती होता है। इसे गैर-उपभोग उद्देश्यों जैसे शीतलन या सिंचाई करने के लिए सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सकता है।
पुनर्चक्रण सामग्री (Recycle Materials): पृथक्करण स्तर पर पुनर्चक्रण सामग्री स्वयं एक महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ प्रदान कर सकती है। उदाहरण के लिए, कुछ अनुमान बताते हैं कि भारत द्वारा अपनाया गया चक्रीय अर्थव्यवस्था के मार्ग से वार्षिक 40 लाख करोड़ या 2050 में लगभग 624 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लाभ हो सकता है।
निष्कर्षः अपशिष्ट का प्रसंस्करण विशेष रूप से ई-कचरे का प्रसंस्करण तांबा, सोना, एल्यूमीनियम आदि कीमती धातुओं की निकासी को आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मात्रा में सक्षम कर सकता है। उदाहरण के लिए, भारत में, ई-कचरा उद्योग को सालाना लगभग 3 बिलियन अमरीकी डालर का होने का अनुमान लगाया गया है।