अगले 20 वर्षों में वैश्विक स्तर पर 7.7 बिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट के कुप्रबंधन का अनुमान है, जो मानव आबादी के भार के 16 गुना के बराबर है। ‘सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायरनमेंटल लॉ’ की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक प्लास्टिक से ग्रीनहाउस गैस (GHG) का उत्सर्जन 56 गीगाटन से अधिक हो सकता है, जो शेष कार्बन बजट का 10.13% होगा।
भारत का अपशिष्ट उत्पादन और संग्रहण
भारत सालाना 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जिसमें से 40% प्लास्टिक अपशिष्ट का संग्रहण नहीं हो पाता।
प्लास्टिक प्रदूषण के बढ़ने का कारण
कोविड-19 महामारी में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक जैसे मास्क, सैनिटाइजर बोतल, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण, खाद्य पैकेजिंग और पानी की बोतल आदि का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
चुनौतियाँ
भारत विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा कचरा पैदा करता है, और अगर 2050 तक तत्काल उपाय नहीं किए गए तो वर्तमान कचरे की संख्या दोगुनी हो जाएगी।
विकल्प
भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं ने ‘सिंगल-यूज प्लास्टिक’ (Single-Use Plsatics) का विकल्प तैयार करने का तरीका खोज लिया है। अखाद्य तेलों और कृषि अपशिष्ट से निकाले गए सेल्यूलोज को मिलाकर, शोधकर्ताओं द्वारा एक जैव-अपघटड्ढ ‘पॉलिमर शीट’ तैयार की गयी है।