दिसम्बर, 2020 में ‘तेल निर्यातक देशों के संगठन’ (Organçation of Petrolium Exporting Countries-OPEC) अर्थात् ओपेक द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन की सीमा बढ़ाने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है। कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ने से वैश्विक बाजार में इसके मूल्य में गिरावट आएगी जिससे भारत जैसे तेल आयातक देशों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ होगा।
वैश्विक ऊर्जा भू-राजनीति संक्रमण
कच्चा तेल और वैश्विक भू-राजनीतिः कोयले से हटते हुए खनिज तेल को ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में अपनाए जाने के साथ ही मध्य-पूर्व वैश्विक भू-राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा और इसके साथ ही खनिज तेल राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया।
ग्लोबल वार्मिंग और वैश्विक चिंताः लगभग आधी से अधिक सदी से तेल और प्राकृतिक गैस ऊर्जा की भू-राजनीति के केंद्र में रहे हैं। हालांकि तेल और गैस पर इसी अत्यधिक निर्भरता ने ही ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्या को हमारे समक्ष ला खड़ा किया है।
कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रणः पेरिस समझौते के तहत देशों ने पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम किये जाने हेतु कार्य करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
वैश्विक ऊर्जा संक्रमण की चुनौतियाँ
तेल उत्पादक देशों की चुनौतियाँ: वर्तमान में वैश्विक ऊर्जा संक्रमण ने तेल और गैस उत्पादक देशों के लिये एक नई चुनौती प्रस्तुत की है, विशेष रूप से अर्थव्यवस्था में विविधता की कमी वाले ऐसे देश जो अपने खर्च के लिये तेल से प्राप्त राजस्व पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं।
ऊर्जा एकीकरण से उत्पन्न खतरेः अक्षय ऊर्जा के प्रसार से विद्युतीकरण बढ़ेगा और विद्युत के क्षेत्र में सीमा पार व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिये भारत द्वारा ‘एक सूर्य एक विश्व एक ग्रिड प्रणाली (One Sun One World One Grid-OSOWOG)की स्थापना का आ“वान।