ऊर्जा संक्रमण की कठिन चुनौतियाँ

दिसम्बर, 2020 में ‘तेल निर्यातक देशों के संगठन’ (Organçation of Petrolium Exporting Countries-OPEC) अर्थात् ओपेक द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन की सीमा बढ़ाने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है। कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ने से वैश्विक बाजार में इसके मूल्य में गिरावट आएगी जिससे भारत जैसे तेल आयातक देशों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ होगा।

  • हालांकि वर्तमान में वैश्विक ऊर्जा प्रणाली जीवश्म ईंधनों पर अपनी पूर्ण निर्भरता को कम करने के साथ स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ते हुए एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रही है।
  • वर्तमान में कम कार्बन उत्सर्जन की तरफ यह झुकाव वैश्विक ऊर्जा से जुड़ी भू-राजनीति को भी प्रभावित करता है। ऐसे में भारत की ऊर्जा कूटनीति केवल सस्ते तेल तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिये। बल्कि यह स्वच्छ पर्यावरण की प्रतिबद्धताओं का पालन करते हुए भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने वाली दीर्घकालिक नीतियों पर केंद्रित होनी चाहिये।
  • अतः वर्तमान में द्विपक्षीय ऊर्जा कूटनीति इस परिवर्तन के भू-राजनीतिक परिणामों का प्रबंधन करने के लिये एक महत्वपूर्ण विदेश नीति उपकरण है।

वैश्विक ऊर्जा भू-राजनीति संक्रमण

कच्चा तेल और वैश्विक भू-राजनीतिः कोयले से हटते हुए खनिज तेल को ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में अपनाए जाने के साथ ही मध्य-पूर्व वैश्विक भू-राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा और इसके साथ ही खनिज तेल राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया।

  • 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के बाद से तेल संसाधनों पर नियंत्रण ने कई युद्धों में केंद्रीय भूमिका निभाई है, जैसे कि ईरान-इराक युद्ध (1980-1988), खाड़ी युद्ध (1990-1991) आदि।

ग्लोबल वार्मिंग और वैश्विक चिंताः लगभग आधी से अधिक सदी से तेल और प्राकृतिक गैस ऊर्जा की भू-राजनीति के केंद्र में रहे हैं। हालांकि तेल और गैस पर इसी अत्यधिक निर्भरता ने ही ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्या को हमारे समक्ष ला खड़ा किया है।

  • क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) और पेरिस समझौते (Paris Agreement) पर हस्ताक्षर किये जाने जैसी कई महत्वपूर्ण घटनाओं ने ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती से निपटने हेतु वैश्विक प्रयासों में महत्वपूर्ण कदमों/पहलों को चिह्नित किया।

कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रणः पेरिस समझौते के तहत देशों ने पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम किये जाने हेतु कार्य करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

  • यह विश्व के कई हिस्सों में पहले से ही लागू डीकार्बोनाइजेशन के प्रयासों को मजबूती प्रदान करता है।
  • इन दोनों तत्त्वों के समायोजन ने वैश्विक ऊर्जा प्रणाली को नया रूप देना शुरू कर दिया है। इसे भारत द्वारा अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA) की स्थापना के उदाहरण के रूप देखा जा सकता है।

वैश्विक ऊर्जा संक्रमण की चुनौतियाँ

तेल उत्पादक देशों की चुनौतियाँ: वर्तमान में वैश्विक ऊर्जा संक्रमण ने तेल और गैस उत्पादक देशों के लिये एक नई चुनौती प्रस्तुत की है, विशेष रूप से अर्थव्यवस्था में विविधता की कमी वाले ऐसे देश जो अपने खर्च के लिये तेल से प्राप्त राजस्व पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं।

ऊर्जा एकीकरण से उत्पन्न खतरेः अक्षय ऊर्जा के प्रसार से विद्युतीकरण बढ़ेगा और विद्युत के क्षेत्र में सीमा पार व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिये भारत द्वारा ‘एक सूर्य एक विश्व एक ग्रिड प्रणाली (One Sun One World One Grid-OSOWOG)की स्थापना का आ“वान।

  • विद्युत ग्रिडों का डिजिटलीकरण भी कुछ नए सुरक्षा जोखिम प्रस्तुत करता है क्योंकि आतंकवादी समूह या शत्रु देश आर्थिक और सामाजिक नुकसान पहुंचाने हेतु महत्वपूर्ण सूचनाओं को प्राप्त करने या उन्हें प्रभावित करने के लिये इस प्रणाली को हैक करने का प्रयास कर सकते हैं।