भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कार बाजार है और निकट भविष्य में शीर्ष तीन देशों में से एक बनने की क्षमता रखता है, जहां वर्ष 2030 तक लगभग 40 करोड़ ग्राहकों को मोबिलिटी समाधान की आवश्यकता होगी। हालांकि, पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, ऑटोमोबाइल ग्राहकों की बढ़ती संख्या का परिणाम पारंपरिक ईंधन की खपत में वृद्धि के रूप में सामने नहीं आना चाहिये।
इलेक्ट्रिक वाहन और भारत
उत्पत्ति और बढ़ता दायराः इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) पर अधिकाधिक बल देना वैश्विक जलवायु एजेंडे से प्रेरित है। ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिये कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु पेरिस समझौते के तहत इस एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है।
इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकताः भारत को एक परिवहन क्रांति की आवश्यकता है।
इलेक्ट्रिक वाहनों को भारत का समर्थनः भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है जो वैश्विक 'EV30/30 अभियान’ का समर्थन करते हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को कम-से-कम 30% करना है।
इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता
प्रदूषण नियंत्रणः ‘अंतरराष्ट्रीय स्वच्छ परिवहन परिषद’ (International Council for Clean Transportation-ICCT) के अनुसार, वाहनों के धुएं से होने वाला प्रदूषण वर्ष 2015 में भारत में लगभग 74,000 असामयिक मौतों का कारण बना।
जलवायु परिवर्तनः दिसंबर 2019 में, पर्यावरण थिंक टैंक ‘जर्मनवाच’ द्वारा जारी ‘वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2020’ (Global Climate Risk Index 2020) के अनुसार, भारत में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों में वृद्धि देखने को मिली है। इस सूचकांक में वैश्विक सुभेद्यता के मामले में वर्ष 2017 (14वां स्थान) की तुलना में भारत के रैंक में गिरावट हुई है (वर्ष 2018 में 5 वां स्थान)।
संधारणीय ऊर्जा विकल्पः परिवहन के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देकर भारत में ऊर्जा कमी की चुनौती को हल करते हुए अन्य देशों से आयात किये जाने वाले खनिज तेल पर अपनी निर्भरता को कम करने और ऊर्जा के नवीकरणीय तथा स्वच्छ स्रोतों की ओर बढ़ने में सहायता प्राप्त होगी।
भारत सरकार की वर्तमान नीतियाँ
फेम इंडिया योजनाः सरकार द्वारा फेम इंडिया योजना [Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid and) Electric Vehicles- FAME] के माध्यम से वर्ष 2030 तक भारतीय परिवहन क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों की भागीदारी को बढ़ाकर 30% करने का लक्ष्य रखा गया है।
आर्थिक प्रोत्साहनः सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन, खरीद और चार्जिंग अवसंरचना को मजबूत बनाने के लिये आयकर छूट, सीमा शुल्क से छूट, आदि के रूप में कई प्रकार से आर्थिक प्रोत्साहन देने का प्रयास किया गया है।
चुनौतियाँ
बैटरी निर्माणः आकलन किया गया है कि वर्ष 2020-30 तक भारत की बैटरी की संचयी मांग लगभग 900-1100 GWh होगी।
उपभोक्ता संबंधी मुद्देः वर्ष 2018 में भारत में केवल 650 चार्जिंग स्टेशन ही उपलब्ध थे, जो पड़ोसी समकक्ष देशों की तुलना में पर्याप्त कम है, जहां 5 मिलियन से अधिक चार्जिंग स्टेशन संचालित थे।
नीतिगत चुनौतियाँ: EV उत्पादन एक पूंजी गहन क्षेत्र है जहां ‘ब्रेक ईवन’ स्थिति और लाभ प्राप्ति के लिये एक दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता होती है, जबकि EV उत्पादन से संबंधित सरकारी नीतियों की अनिश्चितता इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है।
प्रौद्योगिकी और कुशल श्रम की कमीः भारत बैटरी, सेमीकंडक्टर्स, कंट्रोलर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन में प्रौद्योगिकीय रूप से पिछड़ा हुआ है जबकि यह क्षेत्र EV उद्योग की रीढ़ है।
घरेलू उत्पादन के लिये सामग्री की अनुपलब्धताः बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों का सबसे महत्वपूर्ण घटक है।