भारत में ठोस अपशिष्ट और उसका प्रबंधन

इसमें औद्योगिक अपशिष्ट, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट, ई-अपशिष्ट, बैटरी अपशिष्ट, रेडियो-एक्टिव अपशिष्ट आदि को छोड़कर ठोस या अर्ध-ठोस घरेलू अपशिष्ट, सैनिटरी अपशिष्ट, व्यवसायिक अपशिष्ट संस्थागत अपशिष्ट, खानपान एवं बाजार से संबंधित अपशिष्ट और अन्य गैर-आवासीय अपशिष्ट, सड़क की सफाई से उत्पन्न अपशिष्ट, सतही नालियों से निकाली गई या एकत्रित गाद, बागवानी अपशिष्ट, कृषि एवं डेयरी अपशिष्ट, उपचारित जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016) शामिल हैं।

ठोस अपशिष्ट के संदर्भ में चिंताएं

यह मानव गतिविधियों का एक अपरिहार्य सह-उत्पाद है जिसका अधिकांश भाग पुनः चक्रित करने योग्य होता है। यह तब चिंता का विषय बन जाता है, जब अपशिष्ट बनने की दर पुनःचक्रण की दर से अधिक हो जाती है।

  • मनुष्य प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के माध्यम से इस चिंता को कम/समाप्त कर सकता है, लेकिन इसके लिए अपशिष्ट के उत्पादन, संग्रह और उपचार के बीच सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है।

भारत में अपशिष्ट उत्पादनः वर्तमान में, भारत वार्षिक रूप से अनुमानतः 62 मिलियन टन (mt) अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जिसमें लगभग 5.6 उज प्लास्टिक कचरा, 7.90 उज खतरनाक अपशिष्ट 1.5 उज ई-कचरा और 0.17 उज जैव चिकित्सा अपशिष्ट शामिल हैं।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधनः लगभग 70% अपशिष्ट एकत्रित और 20% पुनर्चक्रित किया जाता है, इसमें से अधिकांश को या तो लैंडफिल स्थलों (लगभग 31 उज) पर एवं जल निकायों में डाल दिया जाता है या खुले क्षेत्रों में अपशिष्ट का ढेर बना दिया जाता है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) नियम, 2016

  • यह प्ट अनुसूचियों में विभाजित हैं, इसे नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने और स्वच्छ भारत के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
  • इसने नगर पालिका क्षेत्र के बाहर के क्षेत्रों, जैसे शहर से सटी बस्तियों, अधिसूचित क्षेत्रों, सैन्य छावनियों आदि को कवर करने के लिए नगर पालिका को ठोस कचरे के प्रबंधन से हटा दिया है।
  • इसमें प्लास्टिक, ई-कचरा, बायोमेडिकल, खतरनाक और निर्माण एवं विध्वंस के बाद का मलबा जैसे अपशिष्ट को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि वे अलग निमयों के अंतर्गत आते हैं।

विशेषताएं

  • ये नियम अपशिष्ट उत्पन्न करने वालों की पहचान प्रत्येक घर से शुरू करते हैं और इसमें कार्यक्रमों के आयोजक, स्ट्रीट वेंडर, होटल और रेस्तरां आदि शामिल हैं।
  • अपशिष्ट उत्पन्न करने वालों से लेकर जिला अधिकारी और मंत्रालयों आदि जैसे प्राधिकरणों का कर्तव्यों का निर्धारण किया गया है। जैसे, शहरी विकास मंत्रालय (अब MoHUA) ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, पर राष्ट्रीय नीति तैयार करेगा और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समन्वय करेगा, स्थानीय निकायों को तकनीकी दिशानिर्देश, वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण प्रदान करेगा।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा केंद्रीय निगरानी समिति का गठन ताकि वार्षिक रूप से इसके कार्यान्वयन की निगरानी और समीक्षा की जा सके। लैंडफिल से लेकर उत्सर्जन और कम्पोस्ट आदि हेतु संशोधित मानदंड और मानक। उदाहरण के लिए, लैंडफिल स्थल नदी से 10 मीटर, तालाब से 200 मीटर, राजमार्गों, बस्तियों, सार्वजनिक पार्कों और जल आपूर्ति करने वाले कुओं से 500 मीटर और हवाई अड्डों/एयरबेस से 20 किमी दूर होनी चाहिए।
  • डायपर और सैनिटरी पैड जैसे सैनिटरी अपशिष्ट के निस्तारण के लिए निर्माताओं को पाउच या रैपर उपलब्ध कराना होगा।
  • 1500 किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम या इससे अधिक कैलोरी मान वाले गैर- पुनर्नवीनीकरणीय अपशिष्ट का उपयोग ‘अपशिष्ट से ऊर्जा निर्माण संयंत्र’ (वेस्ट टू एनर्जी प्लांट) में ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाएगा। साथ ही उच्च कैलोरी अपशिष्ट का उपयोग सीमेंट या ताप विद्युत संयंत्रों में सह-प्रसंस्करण के लिए किया जा सकता है।

चुनौतियां

अपशिष्ट उत्पन्न होने के कई स्रोतः ठोस अपशिष्ट दैनिक उपयोग की वस्तुओं से उत्पन्न होता है। जिनमें घरेलू उपकरण, उत्पाद पैकेजिंग, खाद्य अवशेष, समाचार पत्र आदि के साथ ही आवासीय क्षेत्र, स्कूल, अस्पताल, रेस्तरा आदि जैसे व्यापक स्रोत शामिल हैं। इससे अपशिष्ट का पृथक्करण और प्रसंस्करण एक चुनौती बन जाती है।

विषाक्त अपशिष्टः इनमें से अधिकांश अपशिष्ट में विषाक्त पदार्थ होते हैं जिनके हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए उचित प्रबंधन और उपचार की आवश्यकता होती है।

शहरी स्थानीय निकायों की समिति क्षमताः मौजूदा ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए नगर पालिका जैसे शहरी स्थानीय निकायों के पास मौद्रिक संसाधन, जनशक्ति और विशेषज्ञता की कमी होती है, जबकि अपशिष्ट से उत्पन्न अवसरों का दोहन करने के लिए महंगे और जटिल क्रियाकलापों की आवश्यकता होती है।

निजी भागीदारीः अपशिष्ट उत्पन्न करने वाले स्रोतों के साथ पश्चगामी संपर्क (इंबाूंतक सपदांहम) के अभाव के साथ ही अपशिष्ट के उपचार से जुड़े सीमित व्यावसायिक अवसरों के कारण निजी क्षेत्र की भागीदारी काफी कम बनी हुई है।

शिक्षा और व्यवहार संबंधी मुद्देः अपशिष्ट की श्रेणियों के संबंध में लोगों में जागरूकता की कमी है, साथ ही इससे जुड़े व्यवहार संबंधी मुद्दे भी हैं, जैसे कचरे को नगर निकायों को सौंपने के बजाय खुले में फेंकना या जलाना (इस पर लगाने वाले शुल्क के कारण भी)।

आगे की राह

आधार का निर्माणः स्रोत पर पृथक्करण और शत- प्रतिशत कचरा संग्रहण को प्रोत्साहित एवं सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा सकते हैं। यह उपलब्ध और प्रसंस्करण योग्य कच्चे माल के साथ प्रसंस्करणकर्ताओं एवं उद्यमियों के लिए आधार के रूप में कार्य करेगा।

अपशिष्ट प्रसंस्करण के लिए संस्थागत समर्थनः अपशिष्ट प्रसंस्करण के नियमों में संस्थागत समर्थन, समर्पित योजनाएं या सब्सिडी उभरते हुए अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षेत्र को अपनाने के लिए निजी क्षेत्र के प्रतिभागियों को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

अनुकूल कारोबारी वातावरणः इस क्षेत्र के विकास के लिए ट्टण उपलब्धता सुनिश्चित करने, सुव्यवस्थित नियामक ढांचे और संबद्ध आर्थिक गतिविधियों के एक संपूर्ण नेटवर्क की जरूरत होगी।

अवसंरचना का निर्माणः अपशिष्ट प्रसंस्करण गतिविधियों की व्यापक स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्रों से लेकर निर्माण एवं विध्वंस के मलबे वाले अपशिष्ट संग्रह स्थलों तक अवसंरचना की आवश्यकता होगी।

  • अवसंरचना की व्यापक उपलब्धता क्रमशः निजी क्षेत्रक और अपशिष्ट उत्पादन के स्रोतों को अग्रगामी एवं पश्चगामी संपर्क प्रदान करेगी।

नागरिकों के बीच जागरूकता उत्पन्न करनाः अपने अपशिष्ट के प्राथमिक संचालक और प्रसंस्कृत सामग्री के उपभोक्ता के रूप में नागरिकों को अपशिष्ट प्रसंस्करण के महत्व के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है। इससे उन्हें पर्यावरण अनुकूल विकल्पों का चयन करने में म मिलेगी।