जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत की दीर्घकालिक रणनीति

वर्ष 2100 तक भारत समेत अमेरिका, कनाडा, जापान, न्यूजीलैंड, रूस और ब्रिटेन जैसे सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं जलवायु परिवर्तन के असर से अछूती नहीं रहेंगी। कुछ समय पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक शोध टीम ने 174 देशों के वर्ष 1960 के बाद जलवायु संबंधी आंकड़ों का अध्ययन किया है।

  • अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी पर 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की स्थिति में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ मानव के अस्तित्व पर भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
  • वहीं संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UN Office for Disaster Risk Reduction-UNDRR) के अनुसार, भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण हुई प्राकृतिक आपदाओं से वर्ष 1998-2017 के बीच की समयावधि के दौरान लगभग 8,000 करोड़ डॉलर की आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा है।
  • यदि पूरी दुनिया की बात की जाए तो इसी समयावधि में तकरीबन 3 लाख करोड़ डॉलर की क्षति हुई है। हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क के तत्वावधान में आयोजित COP-25 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किये गए।

प्रमुख बिंदु

वित्तीयन के जरिये जलवायु परिवर्तन संकटों का प्रबंधन करना आज उतना ही आवश्यक एवं महत्वपूर्ण हो गया है, जितना कि अन्य उपाय हैं। जलवायु वित्तीयन (Climate Finance) स्थानीय, राष्ट्रीय और पार-राष्ट्रीय वित्तीयन (Transnational Finance) को दर्शाता है।

  • यह लोक, निजी और अन्य स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है। व्यापक स्तर पर निवेशों के जरिये ही उत्सर्जन में कटौती हेतु विभिन्न योजनाएं व कार्यक्रम संचालित किये जा सकते हैं।
  • वर्तमान मानवाधिकार संरक्षण उन्मुखी विश्व में जलवायु वित्तीयन इन्हीं संदर्भों में एक वैध मांग के रूप में उभर रहा है।
  • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) की परिषद द्वारा विकसित धारणा ‘प्रदूषणकर्त्ता भुगतान करे’ (Polluter Pays Principle) ने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही जलवायु वित्तीयन की आवश्यकता को रेखांकित किया था।
  • इस सिद्धांत के जरिये अपेक्षा की गई कि प्रदूषण नियंत्रण उपायों को अबाध रूप से चलाने के लिये प्रदूषणकर्त्ता जिम्मेदारी लें।
  • भारत द्वारा 2005 के स्तर पर वर्ष 2020 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP) की उत्सर्जन की तीव्रता को 20-25 प्रतिशत तक कम करने के लिये स्वैच्छिक लक्ष्य की घोषणा की गई है।
  • वर्ष 2016 में यूएनएफसीसीसी (United Nations Framework Convention on Climate Change - UNFCCC) को भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (Biennial Update Report) के अनुसार, भारत ने 2005 और 2010 के बीच उत्सर्जन की तीव्रता में 12% की कमी हासिल की है।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत की रणनीति

राष्ट्रीय कार्ययोजना में प्रमुख रूप से आठ राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं, जो जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये बहुआयामी, दीर्घकालिक और एकीकृत रणनीतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • राष्ट्रीय सौर मिशनः वर्ष 2010 में इस मिशन की शुरुआत सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये की गई।
  • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशनः इस पहल की शुरुआत वर्ष 2009 में की गई जिसका उद्देश्य अनुकूल नियामक और नीतिगत व्यवस्था द्वारा ऊर्जा दक्षता के लिये बाजार को मजबूत करना और ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में नवीन और स्थायी व्यापार मॉडल को बढ़ावा देने की परिकल्पना करना है।
  • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशनः 2011 में अनुमोदित, इसका उद्देश्य इमारतों में ऊर्जा दक्षता में सुधार, ठोस कचरे के प्रबंधन और सार्वजनिक परिवहन में बदलाव के माध्यम से शहरों का विकास करना है।
  • राष्ट्रीय जल मिशनः राष्ट्रीय जल मिशन इस प्रकार आयोजित किया जाएगा, ताकि जल संरक्षण, जल के अपव्यय को कम करने और राज्यों तथा राज्यों के बीच जल का अधिक समीकृत वितरण सुनिश्चित करने हेतु समेकित जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
  • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशनः हिमालय की रक्षा करने के उद्देश्य से इसने सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय में आसानी के लिये हिमालयी पारिस्थितिकी पर काम करने वाले संस्थानों और नागरिक संगठनों को चिह्नित किया है।
  • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशनः 20 फरवरी, 2014 को केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन को एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शामिल करने के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की गई। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा प्रदान करना अर्थात् अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन से भारत के कम होते वन आवरण को बहाल करना तथा जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिये तैयारी करना है।
  • सतत कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशनः इसे 2010 में शुरू किया गया था। यह विशेष रूप से एकीकृत खेती, जल उपयोग दक्षता, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और संसाधन संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्षा आधारित क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिये तैयार किया गया है।
  • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशनः यह एक गतिशील और जीवंत ज्ञान प्रणाली का निर्माण करता है जो राष्ट्र के विकास लक्ष्यों पर समझौता न करते हुए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिये राष्ट्रीय नीति और कार्रवाई को सूचित और समर्थित करता है।