राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)

नवंबर 2021 में नीति आयोग द्वारा राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) जारी किया गया।

  • MPI गरीबी को उसके कई आयामों में मापने का प्रयास करता है और वास्तव में प्रति व्यक्ति खपत व्यय के आधार पर मौजूदा गरीबी के आंकड़े प्रदान करता है।

सूचकांक की विशेषताएँ: राष्ट्रीय एमपीआई के मापन हेतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (OPHI) द्वारा विकसित विश्व स्तर पर स्वीकृत एवं मजबूत कार्यप्रणाली का उपयोग किया जाता है।

  • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक की बेसलाइन रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) पर आधारित है, जिसे वर्ष 2015-16 में लागू किया गया था।
  • NFHS-4 के डेटा का उपयोग केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के बड़े पैमाने पर शुरू होने से पहले स्थिति के मापन हेतु आधारभूत बहुआयामी गरीबी पर एक उपयोगी स्रोत के रूप में कार्य करता है।
  • हालांकि यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि NFHS-5 डेटा फैक्टशीट से प्राप्त प्रारंभिक अवलोकन उन स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता और बिजली तक पहुंच में सुधार का सुझाव देती है, जो कि अभाव का संकेत देते हैं। बिहार राज्य की आबादी में गरीबी का अनुपात सबसे अधिक है, इसके बाद झारखंड और उत्तर प्रदेश का स्थान है जहां बहुआयामी गरीबी का स्तर पाया जाता है।

नीति आयोग का विजन डॉक्यूमेंट

2017 में नीति आयोग ने गरीबी दूर करने हेतु एक विजन डॉक्यूमेंट प्रस्तावित किया था। इसमें 2032 तक गरीबी दूर करने की योजना तय की गई थी। इस डॉक्यूमेंट में कहा गया था कि गरीबी दूर करने हेतु तीन चरणों में काम करना होगा-

  • गरीबों की गणनाः देश में गरीबों की सही संख्या का पता लगाया जाए।
  • गरीबी उन्मूलन संबंधी योजनाएं लाई जाएं।
  • लागू की जाने वाली योजनाओं की मॉनीटरिंग या निरीक्षण किया जाए। नीति आयोग ने गरीबी दूर करने के लिये दो क्षेत्रों पर ध्यान देने का सुझाव दिया-पहला योजनाएं तथा दूसरा MSME।
  • देश में वर्कफोर्स के लगभग 8 करोड़ लोग MSME क्षेत्र में काम करते हैं तथा कुल वर्कफोर्स के 25 करोड़ लोग कृषि क्षेत्र में काम करते हैं। अर्थात् कुल वर्कफोर्स का 65 प्रतिशत इन दो क्षेत्रों में काम करता है।
  • केरल राज्य की जनसंख्या में सबसे कम गरीबी स्तर दर्ज किया गया। इसके बाद पुद्दुचेरी, लक्षद्वीप, गोवा और सिक्किम का स्थान है। बिहार में कुपोषित लोगों की संख्या सबसे अधिक है, इसके बाद झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ का स्थान है।