1990 के बाद बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत ने भी अपनी विदेश नीति में बदलाव किया है।
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात शीत युद्ध की समाप्ति हुई। इसके बाद विश्व में एक ध्रुवीय व्यवस्था कायम हो गई है।
परमाणु शक्ति के रूप में भारत की छविः भारत ने अपनी परमाणु नीति की समीक्षा 1998 में किया था। अतः इस नीति के कारण भारत ने मई 1998 में पोखरण अभियान के नाम से परमाणु परीक्षण कर पूरे विश्व को अपनी परमाणु क्षमता का परिचय दे दिया है और पूरे विश्व में यह संदेश भी दिया कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांति के लिए है न कि युद्ध के लिए।
भारत का एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभारनाः प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में भारत को उभारना भी विदेश नीति का प्रमुख लक्ष्य बन गया है। भारत चाहता है कि 21वीं शताब्दी में वह एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आए। आज भारत अपनी सॉफ्टवेयर तकनीक के कारण विश्व के चुनिंदा देशों में से एक हो गया है।
दक्षिण एशिया का नेतृत्व और प्रतिनिधित्वः वर्तमान में भारतीय विदेश नीति का एक लक्ष्य यह भी है कि वह दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा देश होने के नाते अपनी प्रमुख भूमिका अंतरराष्ट्रीय राजनीति में निभाए। भारत चाहता है कि इस क्षेत्र के सभी विवाद आपसी सहयोग तथा द्विपक्षीय आधार पर सुलझाए जाने चाहिए। किसी तीसरी शक्ति के हस्तक्षेप का भारत ने विरोध किया है। भारत ने कश्मीर विवाद पर पाकिस्तान से बातचीत के द्वारा हल करने की पेशकश की है।
अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए प्रयास करने की नीतिः भारत की विदेश नीति का प्रमुख आधार है अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा की स्थापना। वर्तमान में भी भारत ने इस नीति पर कार्य जारी रखा है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा विश्व शांति के प्रत्येक प्रयास में सहभागी बने रहने की नीति अपनाई है। भारत ने खाड़ी युद्ध (1991), अफगानिस्तान में शांति की स्थापना, रूस-यूक्रेन विवाद या फिर इजरायल-फिलिस्तीन विवाद सभी में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया है।
नाम की प्रासंगिकता को बनाये रखनाः भारत ने 1990 के बाद बदले हुए अंतरराष्ट्रीय परिवेश में भी गुटनिरपेक्षता को अपनी विदेश नीति का प्रमुख लक्ष्य स्वीकार किया है। 1990 के बाद इस मंच को भारत विकासशील देशों के लिए आर्थिक मुद्दों की मांग के लिए पेश करना चाहता है। भारत की मान्यता है कि नाम एक ऐसा विश्वस्तरीय मंच है जिसकी अवहेलना कोई नहीं कर सकता।
पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों को ज्यादा महत्वः वर्तमान में भारत की विदेश नीति में पडोसी प्रथम को तरजीह दी जा रही है तथा गुजराल सिद्धांत जिसमें पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने पर बल दिया गया, पर अधिक बल दिया जा रहा है।