व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि वर्ष 1996 में प्रस्तुत की गई, जो परमाणु अप्रसार संधि की पूरक है। इस संधि में परमाणु परीक्षण को प्रतिबंधित करके परमाणु प्रसार को रोकने की व्यवस्था की गई।
सीटीबीटी से संबंधित प्रावधान
संधि के तहत भूमिगत, जल और आकाश में परमाणु परीक्षण प्रतिबंधित किया गया है।
संधि में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षण केंद्र (International Monitoring Centre) की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने इस संधि के नए स्वरूप को अपनाया जो परमाणु हथियारों के उपयोग, उत्पादन, हस्तांतरण, अधिग्रहण, संग्रहण व तैनाती को अवैध करार देती है। संधि में अंतरराष्ट्रीय डेटा केंद्र के निर्माण की भी व्यवस्था की गयी है।
भारत पर परमाणु परीक्षणों के चलते प्रतिबंध भी लगाया गया लेकिन भारी दबाव के बावजूद भी वर्तमान में भारत ने व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Test Ban Traty & CTBT) पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है।
भारत का पक्ष
यह संधि अपने वर्तमान स्वरूप में भेदभावपूर्ण, खामियों से भरी है।
पांच परमाणु हथियार-सम्पन्न देशों द्वारा सभी परमाणु अस्त्रें को नष्ट करने के संबंध में कोई निश्चित समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है, जबकि भारत ने दस वर्षीय समय-सीमा का सुझाव दिया था।
विकसित देशों ने कम्प्यूटर सिमुलेशन तकनीक का विकास कर लिया है, जिससे उन्हें परमाणु परीक्षण की आवश्यकता नहीं होगी। इसलिए यह संधि मूलतः विकासशील देशों को परमाणु तकनीक से वंचित करने का प्रयत्न है।
संधि में निहित ‘इन्ट्री इन्टू फोर्स’ (Entry into Force) का प्रावधान राष्ट्रों की संप्रभुता की संकल्पना के विरूद्ध है, क्योंकि इसके अंतर्गत यह कहा गया कि व्यापक परमाणु परीक्षण संधि तभी लागू होगी, जब वे 44 देश इस पर हस्ताक्षर करेंगे जिनके पास परमाणु अनुसंधान की सुविधा है।
परमाणु अप्रसार का दायरा अब और भी व्यापक हो गया है। इसलिए सीटीवीटी पर हस्ताक्षर करने का अभिप्राय, एमटीसीआर और एफएमसीटी (Fissile Material cut-off Tveaty) पर हस्ताक्षर करना होगा।
भारत इसे परमाणु क्षेत्र के साथ-साथ रासायनिक एवं भौतिकी व अन्य परीक्षणों तक विस्तार करना चाहता है।
यह संधि परमाणु विस्फोटों के परीक्षण को बंद करने के साथ परमाणु हथियारों के गुणात्मक विकास और उनके परिष्करण को अन्य माध्यमों से भी रोकती है।
इस संधि को अपनाने से भारत अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण और विकास करने की संभावना छोड़ देगा जबकि चीन एनपीटी के अनुसार अपने शस्त्रगार को बनाए रखने में सक्षम होगा।