इस संधि में इस बात की कोई व्यवस्था नहीं की गई है कि चीन की परमाणु शक्ति से भारत की सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित हो सकेगी।
इस संधि पर हस्ताक्षर करने का अर्थ यह है कि भारत अपने विकसित परमाणु अनुसंधान के आधार पर परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग नहीं कर सकता।
यह संधि 18 मई, 1974 को तब सामने आई, जब भारत ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया।
भारत के अनुसार 1 जुलाई, 1968 को हस्ताक्षरित तथा 5 मार्च, 1970 से लागू परमाणु अप्रसार संधि भेदभावपूर्ण है, यह असमानता पर आधारित, एकपक्षीय और अपूर्ण है।
भारत का मानना है कि परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण निरस्त्रीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिये क्षेत्रीय नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिये।
परमाणु अप्रसार संधि का मौजूदा ढांचा भेदभावपूर्ण है और परमाणु शक्तियों के हितों का पोषण करता है। यह परमाणु खतरे के साए तले जी रहे भारत जैसे देशों के हितों की अनदेखी करता है।