भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्व

ऐतिहासिक परम्पराओं, भौगोलिक स्थिति और भूतकालीन अनुभव भारतीय विदेश नीति के निर्माण में प्रभावक कर्तव्य रहे हैं।

नीति के निर्धारक तत्वों का वर्णन निम्नलिखित है-

  • भौगोलिक तत्वः किसी भी देश के वैदेशिक नीति के निर्धारण में उस देश की भौगोलिक परिस्थितियों का महत्वपूर्ण हाथ होता है। भारतीय विदेश नीति के निर्माण में भारत के आकार, एशियाई देशों में उसकी विशेष स्थिति, एशियाई उपमहाद्वीप में उसकी भूमिका तथा भारतीय भू-भाग से जुड़ी सामुद्रिक तथा पर्वतीय सीमाएं जैसे भौगोलिक तत्व की महत्ता है। भारत के उत्तर में साम्यवादी चीन, इस्लामिक देश पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर अफगानिस्तान है। इन देशों की सामाजिक, राजनीतिक, वैदेशिक नीति को देखकर भारत अपने वैदेशिक सबंध निर्धारित करता आ रहा है।

गुटबंदीः भारत जब स्वाधीन हुआ तो विश्व दो गुटों में बंटा हुआ था। इन दो गुटों की प्रतिद्वंद्विता शीत युद्ध का कारण बनी जब भारत स्वतंत्र हुआ तो उसके सामने यह प्रश्न आया कि वह किस गुट के साथ जाए। भारत ने इस स्थिति में गुटों से पृथक रहना ही ठीक समझा क्योंकि यह दोनों गुटों के बीच सेतु संबंध का कार्य करना चाहता था। भारत द्वारा तटस्थता और असंलग्नता को वैदेशिक नीति अपनाने का प्रधान कारण यही था कि भारत दोनों गुटों से अलग रहते हुए भी दोनों से मैत्रीपूर्ण संबंध भी बनाए रखना चाहता था।

विचारधाराओं का प्रभावः भारत की विदेश नीति के निर्धारण में शांति और अहिंसा पर आधारित गांधीवादी विचारधारा का भी गहरा प्रभाव दिखाई देता है। इस विचारधारा से प्रभावित होकर ही संविधान के अनुच्छेद 51 में विश्व शांति की चर्चा की गई है।

  • विश्व की दो विचारधाराएं मार्क्सवाद और उदारवाद किसी में भी प्रत्यक्ष रूप से भारत का पूर्ण विश्वास नहीं था बल्कि उसने मिश्रित विचारधारा को अपनाकर मिश्रित अर्थव्यवस्था को भी चुना और इसका प्रभाव भारत की विदेश नीति निर्धारण में भी रहा है।

आर्थिक तत्वः भारत की आर्थिक उन्नति तभी संभव थी जब अन्तरराष्ट्रीय शांति बनी रहे। आर्थिक दृष्टि से भारत का अधिकांश व्यापार पाश्चात्य देशों के साथ था और पाश्चात्य देश भारत का शोषण कर सकते थे।

भारत अपने विकास के लिए अधिकतम विदेशी सहायता का भी इच्छुक था। इस दृष्टिकोण से भारत का सभी देशों के साथ मैत्री का रखना आवश्यक था और वह किसी भी एक गुट से नहीं बंध सकता था। गुटबंदी से अलग रहने के कारण उसे दोनों गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त हो सकती थी।

सैनिक तत्वः स्वतंत्रता के समय भारत की सैन्य स्थिति काफी दुर्बल थी। अपनी रक्षा के लिए वह पूरी तरह विदेशों पर निर्भर था। अपनी सैनिक दुर्बलता के कारण ही वर्षों तक शिकंजे में रखने वाले ब्रिटेन के राष्ट्रमंडल का सदस्य बना, ताकि उसे समय अनुसार सैनिक सहायता मिलती रहे। इस दृष्टिकोण से भारत का सभी देशों के साथ मैत्री का बर्ताव रखना भी आवश्यक था।

राष्ट्रीय हितः नेहरू ने संविधान सभा में कहा था, ‘किसी भी देश की विदेश नीति की आधारशिला उसके राष्ट्रीय हित की सुरक्षा होती है और भारत की विदेश नीति का भी ध्येय यही है’।

  • भारत के दो प्रकार के राष्ट्रीय हित हैं- स्थायी राष्ट्रीय हित जैसे देश की अखंडता तथा अस्थायी राष्ट्रीय हित जैसे विदेशी पूंजी तथा तकनीकी विकास राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में ही भारत ने पश्चिमी एशिया के संकट में इजराइल के बजाय अरब राष्ट्रों का समर्थन किया।

ऐतिहासिक परम्पराएं: प्राचीन काल से ही भारत की नीति शांतिप्रिय रही है। भारत ने किसी भी देश पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयत्न नहीं किया। भारत की यह परम्परा वर्तमान विदेश नीति में स्पष्ट दिखाई देती है। भारत की विदेश नीति में विश्व शांति और बंधुत्व पर बल दिया गया है, जिसके पीछे ऐतिहासिक परम्परा ही है।

भारतीय वैदेशिक नीति के मूल तत्व व सिद्धांत-

स्वाधीन भारत की विदेश नीति का विश्लेषण करने पर निम्नांकित विशेषताएं भारतीय विदेश नीति की दिखाई देती हैः

  1. गुटनिरपेक्षताः भारतीय विदेश नीति का सबसे महत्वपूर्ण तथा विलक्षण सिद्धांत गुटनिरपेक्षता है। जिस समय दोनों महाशक्तियां शीत युद्ध की नीति पर चल रही थी तब भारतीय निर्माताओं ने विश्व शांति तथा भारतीय सुरक्षा तथा आवश्यकताओं के हित में यही ठीक समझा कि भारत को शीत युद्ध तथा शक्ति राजनीति से दूर रखा जाए।
  2. साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोधः ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अधीन भारत को साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद तथा नस्लवाद की शोषण प्रवृत्ति का पूर्ण आभास है। इन बुराइयों के विरोध को भारत ने अपनी विदेश नीति का मुख्य सिद्धांत माना है।
  3. नस्लवादी भेदभाव का विरोधः भारत नस्लों की समानता में विश्वास करता है तथा किसी भी नस्ल के लोगों से भेदभाव का पूर्ण विरोध करता है। अपनी इस वैदेशिक नीति के सिद्धांत के आधार पर ही भारत ने दक्षिण अफ्रीका के नस्लवादी शासन की कड़ी आलोचना की है।
  4. साधनों की शुद्धताः साधनों की शुद्धता की गांधीवादी सदगुण के प्रभाव में भारत की विदेश नीति, झगड़ों के निपटारे के लिए शांतिपूर्ण साधनों में अपना पूर्ण विश्वास प्रकट करती है। यह वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा पर चलनेवाला राष्ट्र है।
  5. पंचशील की नीतिः साधनों की शुद्धता के विश्वास ने भारत को पंचशील का सिद्धांत अपनाने के लिए प्रेरित किया है। पंचशील सिद्धांत का अर्थ है व्यवहार या आचरण के पांच नियम 20 जून, 1954 को प्रधानमंत्री नेहरू तथा चीनी प्रधानमंत्री चानु- एन लाई के बीच पंचशील के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  6. संयुक्त राष्ट्र संघ तथा विश्व शांति के लिए समर्थनः भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के मूल सदस्यों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र की विचारधारा का समर्थन करने तथा इसके क्रियाकलापों में सक्रियता, सकारात्मक तथा रचनात्मक रूप से भाग लेना भारतीय विदेश नीति का महत्वपूर्ण सिद्धांत रहा है।
  • भारत ने अन्तरराष्ट्रीय झगड़ों का निपटारा हमेशा ही संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में करने की नीति अपनाई है।