वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बदलते परिदृश्य के कारण भारत की विदेश नीति में भी बदलाव आया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विदेश नीति में जिन विचारों को अपनाया गया था उनमें समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है।
पंचशील
भारत और चीन के तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार और शांति के समझौते पर 28 अप्रैल, 1954 को हस्ताक्षर किए गए थे। यह समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के पहले प्रीमियर (प्रधानमंत्री) चाऊ एन लाई के बीच हुआ था। यह शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत पर आधारित है।
गुट निरपेक्षता
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सम्पूर्ण विश्व का दो गुटों - पूंजीवादी गुट तथा साम्यवादी गुट में बंट जाना एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में शीत-युद्ध की अवधारणा को जन्म दिया। तीसरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि वे किस गुट में शामिल हों या न हों, नवोदित स्वतन्त्रता राष्ट्र फिर से पराधीनता की जंजीर में जकड़े जाने से भयभीत थे। इसलिए उन्होंने इन गुटों से दूर रहकर ही अपनी स्वतन्त्रता को सुदृढ़ आधार प्रदान किया। उन्होंने गुटों से दूर रहकर अपनी निष्पक्षता का परिचय दिया, जिससे गुटनिरपेक्षता की नीति का जन्म हुआ।
अर्थ
साधारण रूप से भारत की गुटनिरपेक्षता से अर्थ है कि हम हर विषय को उस समय की परिस्थितियों के संदर्भ में योग्यता के अनुसार आंकना तथा विश्व शांति और अन्य उद्देश्यों के संदर्भ में उचित निर्णय लेना। गुटनिरपेक्षता का अर्थ है अपने आप को सैनिक गुटों से दूर रखना तथा जहां तक सम्भव हो तथ्यों को सैनिक दृष्टि से न देखना।
यदि ऐसी आवश्यकता पड़े तो स्वतन्त्र दृष्टिकोण रखना तथा दूसरे देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना गुटनिरपेक्षता के लिए आवश्यक है। अर्थात विभिन्न शक्ति गुटों से तटस्थ या दूर रहते हुए अपनी स्वतन्त्र निर्णय नीति और राष्ट्रीय हित के अनुसार सही या न्याय का साथ देना।
विशेषता
उपलब्धि