Question : विधि एवं नियम के बीच विभेदन कीजिए। इनके सूत्रीकरण में नीतिशास्त्र की भूमिका का विवेचना कीजिये।
(2020)
Answer : विधि एवं नियम में निम्नलिखित अन्तर है-
विधि | नियम |
विधि किसी वैधानिक संस्था द्वारा बनाया जाता है, जो इस राज्य पर लागू होता है। |
विधि को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये प्रक्रियागत दिशानिर्देशों का समूह नियम है। |
विधि सरकार या शासकों द्वारा निर्धारित की जाती है। |
नियम संगठनों या व्यक्तियों द्वारा निर्धारित किये जाते हैं, जिन्हें परिस्थितियों के अनुसार समायोजित किया जाता है। |
विधि कठोर होती है, जिनके टूटने पर सजा का प्रावधान होता है। |
नियम लचीले होते हैं, जो बदलते रहते हैं। |
कानून समाज में व्यवस्था बनाये रखने के उपकरण है। |
नियम हमें समाज में रहने के लिये तैयार करते हैं। |
विधि एवं नियम के सूत्रीकरण में नीतिशास्त्र की भूमिका
उपर्युक्त उदाहरणों से पता चलता है कि विधि एवं नीतिशास्त्र दोनों विरोधी तथा सहायक हो सकते हैं। जब नैतिक समयानुकूल नहीं रह जाती तो विधि की विरोधी होती है, जब नैतिक मानदंड समय के अनुसार बनी रहती तथा विधि बनाते समय परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है, तो यह सहायक हो जाती है।
Question : सकारात्मक अभिवृत्ति एक लोक सेवक की अनिवार्य विशेषता मानी जाती है, जिसे प्रायः नितांत दबाव में कार्य करना पड़ता है। एक व्यक्ति में सकारात्मक अभिवृत्ति क्या योगदान देती है?
(2020)
Answer : अभिवृत्ति किसी व्यक्ति में किसी विषय के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक भाव की उपस्थिति है। यदि व्यक्ति की विषय के प्रति अभिवृत्ति सकारात्मक है, तो उसकी प्रतिक्रिया भी अनुकूल होगी तथा नकारात्मक अभिवृत्ति होने पर प्रतिक्रिया प्रतिकूल होगी। इसी कारण सकारात्मक अभिवृत्ति एक लोक सेवक की अनिवार्य विशेषता मानी जाती है।
एक लोक सेवक अपने सेवा काल के दौरान करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित करता है। इस दौरान उसे राजनीतिक दबाव, व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में सन्तुलन, कार्य का अतिशय भार, मानसिक तनाव जैसी परिस्थितियों में कार्य करना पड़ता है।
इस परिस्थिति में सकारात्मक अभिवृत्ति एक लोक सेवक को समाज के कल्याण के लिये अपनी योग्यता का उपयोग करने हेतु निर्देशित करती है। साथ ही यह प्रशासन एवं जनता के मध्य समन्वय स्थापित करने के साथ ही अपने कार्यों के निर्वहन के दौरान तनाव प्रबन्धन में सहायता करती है।
एक व्यक्ति में सकारात्मक अभिवृत्ति निम्नलिखित योगदान देती है-
निष्कर्षतः सकारात्मक अभिवृत्ति जहां एक ओर लोक सेवक को जनता के प्रति कार्य करने एवं अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति जवाबदेह बनाती है, वहीं व्यक्ति को जीवन एवं समाज के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करके एक कुशल नागरिक बनाने में सहायता करती है।
Question : ‘लोक सेवक’शब्द से आप क्या समझते हैं? लोक सेवक की प्रत्याशित भूमिका पर विचार कीजिए।
(2019)
Answer : एक लोक सेवक आम तौर पर एक ऐसा व्यक्ति होता है जो नियुक्ति या चुनाव के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। एक लोक सेवक अपने व्यक्तिगत हितों से ज्यादा महत्त्व जनता के हितों को देता है। एक लोक सेवक के वेतन का वित्त-पोषण करदाता के कर या सार्वजनिक धन द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से किया जाता है। यही कारण है कि इन्हें लोक सेवक या जनता का सेवक के रूप में जाना जाता है। लोक सेवकों के कर्त्तव्य, सरकार के कर्त्तव्यों और जिम्मेदारियों की तरह काफी विस्तृत होते हैं।
प्रशासनिक विवेक (Administrative Discretion): लोक अधिकारी या सरकारी अधिकारी लोक नीतियों के महत क्रियात्मक ही नहीं हैं। वे लोगों के जीवन से संबंधित निर्णय भी लेते हैं; जैसेः कर के बारे में, लोगों के बचाव या निलंबन के बारे में। ऐसा करते समय वे अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं। यहां सवाल यह है कि नैतिक दुविधा को टालने हेतु निर्णय कैसे लिये जायें? दूसरे शब्दों में, सामान्य कल्याण का संवर्द्धन, बहुत हद तक प्रशासनिक विवेक के उपयोग या दुरुपयोग पर निर्भर करता है।
विधायन द्वारा निर्धारित नियम एवं विनियम के तहत और प्रख्यापित प्रक्रियाओं के भीतर, लोक अधिकारियों के लिए विवेक के इस्तेमाल की व्यापक संभावनाएं होती हैं।
भ्रष्टाचार (Corruption): बहुसंख्यक अधिकारी सार्वजनिक पद के लिए आवश्यक उच्च मानकों का पालन करते हैं और सामान्य कल्याण के संवर्द्धन के प्रति समर्पित होते हैं। सार्वजनिक अधिकारियों का नैतिक मानक संपूर्ण रूप से समाज से प्रत्यक्षतः संबंधित होता है। यदि लोग यह स्वीकार करते हैं कि त्वरित प्रत्युतर को सुनिश्चित करने के लिए एक लोक अधिकारी प्रोत्साहन को स्वीकार करते हैं, तब लोगों की नजर में अधिकारियों व लोगों का नैतिक आचरण मानक वस्तुतः सौहार्द्रपूर्ण होता है।
प्रशासनिक गोपनीयता (Administrative Secrecy): एक क्षेत्र जो कि खुद ऐसी परिस्थितियां एवं कार्रवाइयां सृजित करने में सक्षम है और जो कि एक बड़ी नैतिक दुविधा सिद्ध हो सकती है, वह है सार्वजनिक व्यवसायों का गोपनीय आचरण। यह ऐसा इसलिए है कि क्योंकि गोपनीयता अनैतिक आचरण को छिपाने का एक अवसर उपलब्ध करा सकता है। गोपनीयता, भ्रष्टाचार का मित्र है और भ्रष्टाचार का व्यवहार हमेशा गोपनीयता में किया जाता है। सामान्यतया यह स्वीकार किया जाता है कि लोकतंत्र में लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार क्या करना चाहती है और सार्वजनिक मामलों का प्रशासन खुले रूप में किये जाये, यह लोगों के हित में है।
भाई-भतीजावाद (Nepotism): ‘भाई-भतीजावाद’का आचरण (योग्यता के सिद्धांत की उपेक्षा करते हुये अपेन संबंधियों या दोस्तों को सार्वजनिक पद पर नियुक्त करना) लोक सेवा की गुणवत्ता के क्षय का कारण बन सकता है। एेसे कुछ चयनित लोगों का नीति निर्माताओं से व्यक्तिगत संबंध और आसानी से निलंबित या तबादला न किये जाने की निश्चिंतता के बल पर नियंत्रण उपायों को बिगाड़ने से ‘समूह का मनोबल’(esprit de corps) एवं विश्वास भंग होता है, जिसका परिणाम भ्रष्ट प्रशासन के रूप में सामने आता है।
सूचना रिसाव (Information leaks): आधिकारिक सूचनाएं अक्सर इस कदर संवेदी स्वभाव की होती हैं (उदाहरण के तौर पर, लंबित कर वृद्धि, कर्मचारी की छंटनी, पेट्रोल/डीजल की कीमत में बढ़ोतरी इत्यादि) कि सूचना का प्रकटन अराजकता, भ्रष्ट आचरण को जन्म दे सकती है या कुछ लोगों को अनुचित मौद्रिक फायदा पहुंचा सकती है। इसलिए सार्वजनिक उद्घोषणा से पूर्व अधिकारिक सूचना को प्रकट करना, प्रक्रियागत निर्धारण (procedural prescriptions) का उल्लंघन है और यह नैतिक दुविधा हो सकता है।
सार्वजनिक जवाबदेही (Public Accountability): चूंकि, सार्वजनिक अधिकारी लोक नीतियों के क्रियान्वयक होते हैं, इसलिए उन्हें आधिकारिक कार्यों/कार्रवाइयों के लिए अपने वरिष्ठ अधिकारियों, न्यायालय एवं लोगों के प्रति जवाबदेह होना चाहिये। हालांकि, उनके लिए यह संभव है कि वे निर्धारित प्रक्रियाओं, पेशागत बहाना और यहां तक कि राजनीतिक पदधारकों रूपी पर्दे के पीछे जाये।
नीतिगत दुविधाएं (Policy dilemmas): नीति निर्माता अक्सर प्रतिस्पर्धी उत्तरदायित्वों का सामना करते हैं। उनका, अपने वरिष्ठों के प्रति विशेषीकृत निष्ठा होती है, पर साथ ही समाज के प्रति भी निष्ठा होती है। उन्हें अन्य की ओर से और अन्य के हित में कार्य करने की स्वतंत्रता होती है, पर उन्हें अपने वरिष्ठों एवं समाज को अपने कार्यों के लिए जवाब जरूर देना होगा। राजनीतिक प्रक्रियाओं का आदर करने का आधिकारिक दायित्व, उसकी अपनी इस सोच की, कि नीति निर्माण के उद्देश्यों का कैसे आचरण किया जाता है, से संघर्ष हो सकता है। दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक पद पर बैठे किसी अधिकारी की दुविधा, लोक हित पर उसके अपने विचार और विधि की आवश्यकता के बीच संघर्ष है।
इस प्रकार यदि देखा जाये तो एक लोक सेवक का कार्य किसी परिस्थिति विशेष में नौकरी या कर्त्तव्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक प्रयास है जो वृहत सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करता है।
Question : लोक निधियों का प्रभावी उपयोग विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु निर्णायक है। लोक निधियों के अल्प उपयोग एवं दुरुपयोग के कारणों का समालोचनात्मक परीक्षण करते हुए उनके निहितार्थों की समीक्षा कीजिए।
(2019)
Answer : लोक सेवक राज्य की अर्जित सार्वजनिक निधियों के न्यासी के रूप में कार्य करते हैं। अतः यह उनकी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी बनती है कि वे उन निधियों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करें। इन निधियों के कम उपयोग या इनके उपयोग न किए जाने के विभिन्न कारण हैं, जो नीचे दिए गए हैं-
कम उपयोग के कारण
सार्वजनिक निधियों के गलत उपयोग के कारण
निहितार्थ
Question : “लोक सेवक द्वारा अपने कर्त्तव्य का अनिष्पादन भ्रष्टाचार का एक रूप है।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर की तर्कसंगत व्याख्या करें।
(2019)
Answer : ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल भ्रष्टाचार को शक्ति के दुरुपयोग का एक रूप मानता है। यह राजनीतिक व्यवस्था और संस्थानों में आम लोगों के विश्वास को कमजोर करता है। एक अविश्वासपूर्ण या उदासीन जनता भ्रष्टाचार को चुनौती देने में एक और बाधा बन सकती है। नौकरी के प्रति समर्पण एक लोक सेवक के सबसे अधिक अपेक्षित कर्त्तव्यों में से एक है और अपने कार्य के प्रति उदासीनता को भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखा जाता है।
सभी सिविल सेवकों के लिए जनता का कल्याण सबसे प्रमुख दायित्व माना जाता है। अपने सार्वजनिक कर्त्तव्य के प्रति लापरवाही लोगों की स्वतंत्रता, स्वास्थ्य, शिक्षा, अधिकारों और यहां तक कि जीवन को भी कभी-कभी नुकसान पहुंचाती है। इसलिए एक लोक सेवक द्वारा कर्त्तव्य का अतिक्रमण भी भ्रष्टाचार का एक रूप माना जाता है।
उदाहरण के लिए, समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने वाले डॉक्टर के कारण मरीजों की जान को खतरा हो सकता है, एक शिक्षक का अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करना, न केवल बच्चों के भविष्य को खतरे में डालता है, बल्कि समाज का भविष्य भी अंधकारमय बनाता है।
एक सार्वजनिक अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह सरकार के नियमों और विनियमों का पालन करे। संस्था की पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए निर्देशानुसार कार्य करना आवश्यक है। निर्देशों का पालन करने में उसकी विफलता की तुलना भ्रष्ट आचरण से की जा सकती है। निर्देशों का पालन प्रभावी प्रशासन, कानून और व्यवस्था, कल्याणकारी नीतियों के उद्देश्यों की प्राप्ति में विफलता और अंततः सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय जैसे संवैधानिक लक्ष्यों की प्राप्ति की गारंटी प्रदान करता है।
लोक सेवकों द्वारा अपने कर्त्तव्यों का गैर-निष्पादन नैतिक, कानूनी और संवैधानिक रूप से भ्रष्टाचार का एक रूप है, क्योंकि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम सार्वजनिक कर्त्तव्य के गैर-निष्पादन को अपराध मानता है। इसलिए, प्रत्येक सिविल सेवक को संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने और जनता के जीवन में बदलाव का वाहक बनने के लिए अनिवार्य रूप से अपना कर्त्तव्य निभाना आवश्यक है, ताकि आम जनता उन अधिकारों का आनंद ले सके, जिसके वे हकदार हैं।
Question : भारत में हाल के समय में बढ़ती चिंता रही है कि प्रभावी सिविल सेवा नैतिकता, आचरण संहिताओं, पारदर्शिता उपायों, नैतिक एवं शुचिता व्यवस्थाओं तथा भ्रष्टाचार निरोधी अभिकरण को विकसित किया जा सके। इस परिप्रेक्ष में तीन विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता को महसूस किया गया है जो
सिविल सेवाओं में शुचिता और नैतिकता को आत्मसात करने हेतु प्रत्यक्ष रूप से प्रासंगिक हैं। यह क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
उपरोक्त तीनों मुद्दों का हल निकालने के लिए संस्थागत उपाय बताएं।
(2019)
Answer : प्रशासन सिविल सेवकों के बीच नैतिक आचरण को बढ़ावा देने के लिए तीन दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करता है- नैतिक मूल्य, क्षमता और उनके लिए नैतिक मानक। इस केस स्टडी में इन्हीं मुद्दों की पहचान की गई है और प्रश्न में तीन विशिष्ट क्षेत्रों में ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया है। प्रश्न में उल्लेख किए गए मुद्दों को हल करने के उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) नैतिक मानकों और इमानदारी के विशिष्ट खतरों का पूर्वानुमान करनाः इसके अंतर्गत सेवाओं और अधिकारियों का आवधिक मूल्यांकन सुनिश्चित करना। अधिकारी नैतिक मोर्चे पर किस प्रकार के खतरे का सामना कर रहे हैं, इनका पता लगाना तथा इसके लिए उनकी समय-समय पर उपयुक्त प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
(2) सिविल सेवकों की नैतिक सक्षमता को सशक्त करनाः इसके अंतर्गत सिविल सेवकों को प्रशिक्षण के दौरान उन्हीं परिस्थितियों का अनुभव कराया जाता है, जिनका वे अपनी सेवा के दौरान सामना कर सकते हैं। ऐसा प्रशिक्षण वातावरण अधिकारियों के कौशल और नैतिकता दोनों में उनकी क्षमताओं की जांच करने में सफल होगा। यदि कोई अधिकारी इस अवधि के दौरान अपने नैतिक मूल्यों से विचलित होता है, तो उसका मार्गदर्शन किया जाये। इसके साथ ही साथ सिविल सेवकों को अपनी नौकरी के महत्त्व तथा समाज और संगठन के प्रति उनके दायित्व के बारे में जागरूक किया जाये, उन्हें बताया जाये कि समाज और संगठन के प्रति उनकी क्या जिम्मेदारी है और इसका देश और समाज के लिए क्या महत्त्व है। इस प्रकार से उनको जिम्मेदार बनाना तथा नैतिक जिम्मेदारी का एहसास कराना उनके अंदर नैतिकता और ईमानदारी कि भावना को प्रबल करेगा।
(3) सिविल सेवाओं में नैतिक मूल्यों और ईमानदारी की अभिवृद्धि के लिए, प्रशासनिक प्रक्रिया एवं प्रथाओं का विकास करनाः इसके तहत संगठन एक अलग विभाग बना सकता है, जिसके अंतर्गत अधिकारियों के नैतिक पहलू से संबंधित मामलों पर विचार हो। ऐसे विभाग में अधिकारियों के पहले के इतिहास और उनकी नैतिक कार्य प्रणाली से संबंधित जानकारी होगी, जिससे अधिकारियों के बारे में एक संभावित परिणाम निकाला जा सकता है और उनपर नजर रखी जा सकती है। अनैतिक कृत्यों के लिए अधिकारियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान हो। वैसे वर्तमान में दंड के तरीके को प्रशानिक वातावरण के लिए नकारात्मक माना जाता है, लेकिन जब सभी सकारात्मक और अच्छे उपाय विफल हो जाएं, तो डर और सजा ही अंतिम उपाय के रूप में बचती है।
Question : हित-विरोधिता से क्या तात्पर्य है? वास्तविक और संभावित हित-विरोधिताओं के बीच के अंतर को उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
(2018)
Answer : हित विरोधिता से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जहां व्यक्ति के पास आधिकारिक शक्ति होते हुए भी वह उसका प्रयोग व्यक्तिगत हित में कर सकने की स्थिति में न हो।
हित विरोधिता वास्तविक तथा संभावित दोनों प्रकार की हो सकती है यथा- वास्तविक हित विरोधिता से तात्पर्य किसी ऐसे कृत्य से है जिसका संबंध व्यक्ति द्वारा लिए गए निर्णय के अल्पकाल में ही व्यक्ति के समक्ष उपस्थित हो जाता है।
उदाहरण के लिए एक लोक सेवक लोक सेवा के साक्षात्कार पैनल का अध्यक्ष है तथा उसी के बोर्ड में एक अभ्यर्थी जो उसका करीबी रिश्तेदार है। ऐसी स्थिति हित विरोधिता के वास्तविक चरण को इंगित करती है।
वहीं दूसरी ओर संभावित हित विरोधिता से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा किए गए उस कृत्य से है जिसकी परिणति के बारे में वह खुद आश्वस्त न हो या उसका परिणाम दीर्घकालिक रूप में आने की संभावना हो। उदाहरण के लिए एक लोक सेवक द्वारा किसी सड़क निर्माण प्रोजेक्ट के लिए निविदाएं जारी करें और वह प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक निर्मित हो जाए किंतु कुछ वर्षों पश्चात उसके किसी रिश्तेदार द्वारा वहां भूखंड खरीदने या पूर्व में भूखंड होने की बात सामने आए जिसका आपको अदांजा न रहा हो तो इस प्रकार की हित विरोधिता संभावित हित विरोधिता कहलाती है।
अतः हित विरोधिता के समय व्यक्ति द्वारा निष्पक्ष, सत्यनिष्ठा तथा ईमानदारी के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए जो सार्वजनिक हित में हो।
Question : ‘‘नियुक्ति के लिए व्यक्तियों की खोज करते समय आप तीन गुणों को खोजते हैं: सत्यनिष्ठा, बुद्धिमत्ता और ऊर्जा। यदि उनमें पहला गुण नहीं, तो अन्य दो गुण आपको समाप्त कर देंगे।” - वॉरेन बफेट
वर्तमान परिदृश्य में इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
(2018)
Answer : वारेन बफेट द्वारा कहा गया यह कथन किसी व्यक्ति के गुणों की सकारात्मक अभिव्यक्ति तथा नकारात्मक अभिव्यक्ति को इंगित करता है अर्थात अगर व्यक्ति के गुणों की सकारात्मक अभिव्यक्ति हो तो वह समाज के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन सकता है तो वहीं उनके गुणों की नकारात्मक अभिव्यक्ति समाज को गहरे संकट में भी डाल सकती है।
सार्वजनिक हित या निजी हित में कभी भी किसी व्यक्ति की नियुक्ति उसकी सत्यनिष्ठा, बुद्धिमत्ता तथा उसकी ऊर्जा के आधार पर की जाती है अर्थात अगर व्यक्ति बुद्धिमान तथा कार्य के प्रति ऊर्जावान है तो वह किसी भी कार्य को बेहतर रूप से निष्पादित करेगा किंतु एक गुण जो उसके कार्य करने की पद्धति तथा आचरण में सर्वोच्च होना चाहिए वह है उसकी सत्यनिष्ठा अर्थात अगर व्यक्ति में बुद्धिमत्ता और ऊर्जा है तो उसका उपयोग वह अच्छे या बुरे कार्यों कर समाज के लिए उपयोगी या हानिकारक भी हो सकता है किंतु जिस कार्य के लिए वह नियुक्त हुआ है उसके प्रति उसकी सकारात्मक सत्यनिष्ठा उस कार्य को दक्षता तथा प्रभावशीलता के साथ पूर्ण करेगी।
वर्तमान परिदृश्य में ऐसे कई उदाहरणों को लिया जा सकता है जैसे सत्या नडेला, अजीत डोभाल, अशोक खेमका, किरण बेदी, सुंदर पिचई आदि ऐसे कई व्यक्तित्व हैं जिन्होंने बुद्धिमत्ता तथा ऊर्जा का उपयोग सत्यनिष्ठा के साथ किया, जो आज समाज में एक नजीर पेश करते हैं। वहीं दूसरी ओर इसके विपरित उदाहरण बगदादी, ओसामा बिल लादेन जैसे आतंकी जिन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता तथा ऊर्जा का उपयोग गलत क्षेत्र में किया, जो उनके तथा समाज के लिए हानिकारक रहा।
जब व्यक्ति की सत्यनिष्ठा उसकी बुद्धिमत्ता तथा ऊर्जा के साथ गठजोड़ करती है तो वह उसके लिए तथा नियोक्ता के लिए बेहतरी के मार्ग खोलती है किंतु सत्यनिष्ठा के अभाव में अन्य दोनों गुण उसके तथा नियोक्ता के लिए विपरीत प्रभाव लेकर आते हैं।Question : ‘‘अच्छा कार्य करने में, वह सब कुछ अनुमत होता है जिसको अभिव्यक्ति के द्वारा या स्पष्ट निहितार्थ के द्वारा निषिद्ध न किया गया हो।” एक लोक सेवक द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने के संदर्भ में, इस कथन का उपयुक्त उदाहरणों सहित परीक्षण कीजिए।
(2018)
Answer : इस कथन में यह उल्लिखित किया गया है कि एक लोक सेवक हमेशा अपनी आचार संहिता (Code of Conduct) का अनुकरण नहीं कर पाता क्योंकि सभी निर्देश आचार संहिता में उल्लिखित हों यह जरूरी नहीं। अतः ऐसे कुछ प्रकरण लोक सेवक के सामने आ सकते हैं जहां उसे अन्य कारकों का प्रयोग करना पड़ता है। (जिसमें कुछ पूर्वादाहरण, वरिष्ठ या अधीनस्थ की सलाह तथा अपनी अंतरात्मा का अनुकरण किया जाता है।) लोक सेवक के समक्ष उसके कार्यकाल में ऐसे कई उदाहरण दृष्टिबद्ध होते हैं जहां संविधान तथा कानून स्पष्ट नहीं होते तथा साथ ही स्पष्ट नियम एवं निर्देश का अभाव होता है। अतः ऐसी परिस्थितियों में कार्य की गुणवत्ता (अच्छाई) को देखते हुए निर्णय करना भी अवश्यम्भावी हो जाता है। जैसे-
अतः लोक सेवकों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में केवल संविधान तथा कानून (नियम, निर्देश) के साथ-साथ अन्य कारकों का भी प्रयोग करना पड़ता है जिससे कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को मूर्त रूप दिया जा सके।
Question : कार्यवाहियों की नैतिकता के संबंध में एक दृष्टिकोण तो यह है, कि साधन सर्वोपरि महत्त्व के होते हैं और दूसरा दृष्टिकोण यह है कि परिणाम साधनों को उचित सिद्ध करते हैं। आपके विचार में इनमें से कौन-सा दृष्टिकोण अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क पेश कीजिए।
(2018)
Answer : नैतिकता की कार्यवाहियों के संबंध दो दृष्टिकोणों में परस्पर आन्दोलन जैसी स्थिति रहती है- कर्त्तव्यवाद/नियमवाद (Deoutology) तथा परिवारवाद/प्रयोजनवाद (Teleology)/ कर्त्तव्यवाद से तात्पर्य है कि साध्य से अधिक महत्वपूर्ण साधन है अर्थात साधन नैतिक होने चाहिए जो साध्य को उचित सिद्ध करते हैं वहीं परिवारबाद में परिणाम (साध्य) को नैतिक माना गया है जो साधनों को उचित ठहराता है जहां के बल उसका साध्य पूरा होना चाहिए।
कर्त्तव्यवाद में नियमों को ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है चाहे उसका परिणाम अनैतिक ही क्यों न हो जैसे सच बोलना सामाजिक नियम है तथा व्यक्ति का कर्त्तव्य भी है किन्तु ऐसा सच जो किसी निर्दोष की जान ले सकता है उसकी तार्किकता वहां तक न्यायलंगत है।
जैसे- हिंसक भीड़ द्वारा किसी निर्दोष को मारने के लिए जाना जो आपकी शरण में आया हुआ हो किन्तु आप सच का साथ देते हुए हिंसक भीड़ के पूछने पर उसे उनके हवाले कर देते है।
वहीं परिणामवाद में जन्हाय थे सर्वोच्च माना जाता है चारों उसके लिए सावन कैसा भी हो। जैसे देश की सुरक्षा के लिए या नागरिक सुरक्षा के लिए सैनिकों द्वारा हिंसक कार्यवाही करना।
अतः एक दृष्टिकोण में सायन की पवित्रता पर बल दिया गया है सटे दृष्टिकोण में साध्य की पवित्रता पर फलतः दोनों ही दृष्टिकोण में एक पक्ष नैतिकता के बिन्दू पर खरा नहीं उतरता है।
अतः दोनों दृष्टिकोण पर विचार करते हुए मध्यमवर्गीय दृष्टिकोण उपर्युक्त हो सकता है जहां साधन तथा साध्य सकल स्थान तथा परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित होना चाहिए अर्थात् वहीं साधन तथा साहित्य नैतिक है जो अधिकतम लोग के हितों की पूर्ति करते हो/कलतः गांधी के अनुसार साधन तथा साध्य दोनों की पवित्रता ही सुनिश्चित होनी चाहिए।
Question : लोक प्रशासन में नैतिक दुविधाओं का समाधान करने के प्रक्रम को स्पष्ट कीजिए।
(2018)
Answer : नैतिक दुविधा से तात्पर्य दो या दो से अधिक नैतिक विकल्पों में से एक विकल्प को चुनने की असमर्थता, जहां सभी विकल्प लगभग बराबर है तथा एक विकल्प को चुनने पर आत्मसंतुष्टि या भाव न आना/किन्तु एक विकल्प को चुनना जरूरी हो। लोक प्रशासन में नैतिक दुविधा के प्रश्न सामान्यतः प्रत्यक्ष अनुभूत होते रहते है। अतः इनके समाधान का प्रक्रम निम्नलिखित हैं-
अतः लोक प्रशासन में उत्पन्न नैतिक दुविधाओं के समाधान के लिए नैतिक मार्गदर्शन के क्रम में उपर्युक्त संदर्भों को वरीयता क्रम में रखना चाहिए जिससे उचित मार्गदर्शन पाकर नैतिक दुविधा को हल किया जा सके।
Question : शक्ति, शांति एवं सुरक्षा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के आधार माने जाते हैं। स्पष्ट कीजिये।
(2017)
Answer : भूमण्डलीकरण के युग में प्रत्येक देश एक दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़ गया है। एक देश की घटना समस्त विश्व को प्रभावित करने लगी है। फिर भी बेहतर अंतर्राष्ट्रीय संबंध के लिए शक्ति, शांति एंव सुरक्षा तीनों आवश्यक है।
संतुलित अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए प्रत्येक राष्ट्र की संप्रभुता का सम्मान होना आवश्यक है। प्रत्येक राष्ट्र अपनी संप्रभुता की रक्षा हेतु शक्ति अर्थात सैन्य साधनों का प्रयोग करता है। यही वजह है कि प्रत्येक राष्ट्र अपनी सुरक्षा हेतु रक्षा शक्ति क्षेत्र में निरंतर खर्च को बढ़ा रहा है। सैन्य खर्च के साथ जहां राष्ट्र की हार्ड पावर विकसित होती है वहीं सॉफ्ट पावर विकसित करने के लिए अपनी सस्ंकृति एवं नैतिक शक्तियों का सहारा लेता है जैसे भारत ने योग को अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित कर अपनी सॉफ्ट पावर को मजबूत किया। इसी सॉफ्ट पावर के माध्यम से भारत अपनी हार्ड पावर को मजबूत करते हुए अंतर्राष्ट्रीय संबंधो का निरंतर विस्तार कर रहा है।
शक्ति के साथ-साथ शांति और सुरक्षा की अवधारणा भी अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शान्ति वह शक्ति है जो राष्ट्र व नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही स्वस्थ अंतर्राष्ट्रीय वातावरण का निर्माण कर समस्त विश्व को विकास के मार्ग पर अग्रसर करती है। वैश्विक स्तर पर शांति नहीं होने पर राष्ट्रों के मध्य सहयोग व सामंजस्य की गुंजाइश कम होती है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तनाव का माहौल बना रहता है। साथ ही अशांति व्यक्ति एवं राष्ट्र की सुरक्षा के लिए प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है। शांति के बिना अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का संचालन नहीं हो सकता है। इससे मत्स्य न्याय की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
विश्व के विकास एवं मानवता के कल्याण के लिए शान्ति का होना अति आवश्यक है। शान्ति के अभाव में दुनिया दो विश्व युद्धों को झेल चुकी है जो समस्त मानवता के लिए एक कलंक के समान है।
अतः कहा जा सकता है कि शक्ति, शांति एव सुरक्षा ये तीनों अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मूलाधार हैं। इनके बिना संतुलित अतंर्राष्ट्रीय संबंधों की परिकल्पना बेमानी होगी।
Question : वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट सद्-जीवन की संकीर्ण धारणा से जुड़ा हुआ है। विवेचना कीजिये।
(2017)
Answer : वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का संकट व्यक्तिगत के साथ-साथ राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एव सांस्कृतिक स्तर पर भी देखा जा सकता है। इसका मुख्य कारण है कि व्यक्तियों ने अच्छे जीवन की संकीर्ण धारणा बना ली है।
सर्वप्रथम नैतिक मूल्यों पर संकट व्यक्तिगत स्तर पर देखा जा सकता है। उपभोक्तवादी संस्कृति ने भौतिक वस्तुओं की बहुलता को एक सुखी जीवन का पर्याय बना दिया है। इससे व्यक्ति में भौतिक वस्तुओं को संचित करने की लालसा बढ़ी है जो व्यक्ति को भौतिक वस्तुओं के लिए अनैतिक कार्य की ओर अग्र्रसर करती है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है तथा ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा आदि नैतिक मूल्यों पर संकट उत्पन्न हो जाता है। इसी तरह राजनीतिक स्तर पर भी नैतिक मूल्यों का संकट उत्पन्न हो गया है। राजनीति समाज कल्याण के लिए न होकर आत्म कल्याण पर केन्द्रित हो गई है। राजनीतिक वर्ग अपने कर्तव्य को भूलकर अपने लाभ के लिए आतिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद को बढ़ावा देता है। इससे दया, करूणा, प्रेम, अहिंसा, सहिष्णुता आदि नैतिक मूल्यों पर संकट उपस्थित हो जाता है।
व्यक्तिगत और राजनीतिक स्तर के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर भी-व्यक्तियों में सामान्यीकरण मनोवृति का विकास हुआ। इससे व्यक्ति की पहचान संकट में पड़ गयी है।
व्यक्ति अपने समाज की परंपराओं को सर्वोत्तम मानकर उसे अन्य पर थोपने का प्रयास कर रहा है। यह सहिष्णुता जैसे मूल्य को कमजोर करता है। धार्मिक एव सांस्कृतिक स्तर पर भी ऐसे संकट देखने को मिल रहे हैं। यह व्यक्ति की संकीर्ण अभिवृत्ति का परिचायक है। एक तरह से रूढिवाद एवं परंपराओं के कारण मानवीय करूणा का दमन होता जा रहा है।
इस तरह सहजीवन की आत्मकेन्द्रित मनोवृति के कारण वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों पर संकट उत्पन्न हो गया है। इसके लिए हमे सर्वजन के हित के कल्याण के साथ मानवतावादी अभिवृति को आत्मसात करना होगा।
Question : विश्वसनीयता और सहन-शक्ति के सद्गुण लोक सेवा में किस प्रकार प्रदर्शित होते है? उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए।
(2015)
Answer : लोकसेवकों में अनेक आधार स्तम्भों ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, सहिष्णुता तथा संवदेनशीलता के होने के साथ साथ उनका विश्सनीय तथा सहनशील होना भी अत्यधिक जरूरी माना जाता है क्योंकि बिना विश्वसनीयता के घटनास्थल पर कही गई सांत्वना भरी बातों का कोई विश्वास नहीं करेगा और न ही बिना सहनशीलता के गुण के वो नागरिकों का उचित विरोध ही सहन कर पाएंगे। परन्तु दुर्भाग्य से वर्तमान समय में भ्रष्टाचार, लालफिताशाही तथा भाई-भतीजावाद जैसे कारणों की वजह से लोकसेवकों की विश्वसनीयता में कमी आई है। वहीं दूसरी और सहनशक्ति की कमी के कारण अनेक बार प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों की लापरवाही व जल्दबाजी के कारण उग्र भीड़ और अधिक उग्र एवं हिसंक होने के कई उदाहरण आए दिन समाचार पत्रों में देखने को मिलते हैं। अतः यह आवश्यक है कि लोकसेवक वर्तमान में व्याप्त अनेक नई एवं जटिल समस्याओं के आलोक में स्वयं में महात्मा गांधी जैसा धैर्य एवं विश्वास उत्पन्न करें ताकि वे सच्चे अर्थों में समाज को कुशल नेतृत्व प्रदान करते हुए देश में स्वतंत्रता समानता एवं भाईचारे के लोकतांत्रिक मुल्यों की स्थापना कर सकें।
Question : ‘‘सामाजिक मूल्य, आर्थिक मूल्यों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण हैं।” राष्ट्र की समावेशी संवृद्धि के संदर्भ में उपरोक्त कथन पर उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए।
(2015)
Answer : किसी भी लोकतांत्रिक एवं सम्प्रभु राष्ट्र के संर्वागीण विकास एवं समावेशी संवृद्धि के लिए आर्थिक मूल्यों के साथ-साथ सामाजिक मूल्य भी अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेजी से विकास करते हुए विश्व के उन्नत एवं आधुनिक राष्ट्रों में अपना नाम तो लिखवा लिया परन्तु आज भी हम आय की गम्भीर एवं देशव्यापी विषमता से जुझ रहे है। उदाहरणार्थ देश का आधे से अधिक धन मात्र 1 प्रतिशत लोगों के पास संकेन्द्रित है तथा वहीं दूसरी और विकास की दौड़ में पीछे छूट गया गांधीजी का अंतिम व्यक्ति आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य तथा आवास जैसी जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से वंछित है।
भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की देश के 296 सबसे अमीर व्यक्तियों के पास संयुक्त अरब अमीरात के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर धन केन्द्रित हो गया है। उपर्युक्त कारणों की वजह से ही देश में क्षेत्रीय एवं व्यक्तिगत विषमता दिनोदिन बढ़ती जा रही है जो अन्ततः अलगाववाद तथा नक्सलवाद जैसी गंभीर चुनौतियां पैदा करती है। अतः 12वीं पंचवर्षीय योजना में सरकार के समावेशी विकास एवं संवृद्धि की अवधारणों को वास्तविक धरातल पर उतारने की महत्ती आवश्कता है ताकि देश में विकेन्द्रित विकास की अवधारणा को बल मिले तथा सामाजिक मूल्यों की स्थापना हो क्योंकि बिना सर्वसमावेशी सामाजिक मूल्यों के मात्र व्यक्ति एवं वर्ग केन्द्रित विकास ना केवल, जन असंतोष को जन्म देगा। बल्कि देश में अपराध की दर को बढ़ाते हुए राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता में भी बाधक होगा।
Question : अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, अधिकांश राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध, अन्य राष्ट्रों के हितों का सम्मान किए बिना स्वयं के राष्ट्रीय हित की प्रोन्नति करने की नीति के द्वारा नियंत्रित होते हैं। इससे राष्ट्रों के बीच द्धंद्व और तनाव उत्पन्न होते हैं। ऐसे तनावों के समाधान में नैतिक विचार किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए।
(2015)
Answer : अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश राष्ट्रों के द्विपक्षीय-संबंध दूसरे देशों के हितों को नजरदांज करते हुए राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने की नीति पर आधारित होते हैं। इस स्तर पर अपने राष्ट्र की प्राथमिकता सर्वोच्च होती है, यहां नैतिक सिद्धांत द्वितीयक होते हैं। जैसे-अमेरिका ने, लोकतंत्र का प्रकाश स्तंभ होते हुए भी तानाशाही अरब शासन का समर्थन किया। स्वयं के हित को जब वरीयता दी जाती है जिसमें हितों के टकराव की समस्या सामने आती है। इसी कारण मानव ने अब तक दो भयंकर विश्व युद्धों का अनुभव किया है।
अक्सर अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध बल, धोखाधड़ी, गुप्त वार्ताओं तथा राष्ट्रीय महत्वकांक्षाओं के द्वारा संचालित होते हैं। इनकी वजह से नैतिक मापदण्डों तथा राष्ट्रीय हितों में अक्सर टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं। राष्ट्रीय सरकारें कई बार अपनी राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए भी नैतिक मुद्दों को त्याग कर सरकार जनता की अकांक्षाओं के अनुरूप फैसले लेती है। इसी प्रकार कई बार सरकारें अपने वर्चस्व को वैश्विक स्तर पर पुनर्स्थापित करने तथा आर्थिक एवं सामरिक हितों को ध्यान में रखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में हस्तक्षेप करती हैं। जैसा की हाल ही में अमेरिका द्वारा इराक-ईरान तथा सीरिया के मामलों में किया गया। अतः वर्तमान समय में जहां अनेक वैश्विक समस्याऐं मौजूद हैं तथा कोई भी देश इन समस्याओं से अछुता नहीं रह गया है, इस बात की महत्ती आवश्यकता है की अब पूरा वैश्विक समुदाय आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता संरक्षण, ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दों पर राष्ट्रीय हितों की जगह वैश्विक हितों को प्राथमिकता दें। संयुक्त राष्ट्रीय संघ, विश्व व्यापार संगठन तथा विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को लोकतांत्रिक एवं समावेशी तरीके से कार्य करते हुए सभी राष्ट्रों खासकर अल्पविकसित एवं समस्याग्रत राष्ट्रों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान देना होगा ताकि राष्ट्रों के मध्य मौजूद आर्थिक एवं सामाजिक विभेद को समाप्त करते हुए नैतिक आधार पर वसुधेव कुटुम्बकम की भावना का विकास किया जा सकें।
Question : लोक सेवकों पर भारी नैतिक उत्तरदायित्व होता है, क्योंकि वे सत्ता के पदों पर आसीन होते हैं, लोक-निधियों की विशाल राशियों पर कार्रवाई करते हैं, और उनके निर्णयों का समाज और पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। ऐसे उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अपनी नैतिक सक्षमता पुष्ट करने हेतु आपने क्या कदम उठाए हैं।
(2014)
Answer : लोक सेवकों के नैतिक दायित्व को ध्यान में रखते हुए अपनी नैतिक सक्षमता को पुष्ट करने हेतु मैनें स्वयं के लिए कुछ मानक सिद्धांत तय किए हैं जिन पर मैं अमल करने की कोशिश करता हूं। ये मानक सिद्धांत कुछ इस प्रकार हैं-
Question : लोक-सेवा के संदर्भ में ‘जवाबदेही’का क्या अर्थ है? लोक-सेवकों की व्यक्तिगत और सामूहिक जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
(2014)
Answer : लोक सेवा के संदर्भ में जवाबदेही का अर्थ है कि सरकारी पद पर आसीन लोग अपने निर्णयों और कार्रवाई के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होंगे। लोक सेवकों के व्यक्तिगत और सामूहिक जवाबदेही को निम्नांकित तरीके से सुनिश्चित किया जा सकता हैः
Question : ‘‘अंतःकरण की आवाज” से आप क्या समझते हैं? आप स्वयं को अंतःकरण की आवाज पर ध्यान देने के लिए कैसे तैयार करते हैं?
(2013)
Answer : अंतःकरण सही व गलत में विभेद करने की एक योग्यता अंतर्ज्ञान व निर्णय है। नैतिक निर्णय मूल्यों/मानदण्डों से प्राप्त कर सकते हैं। अंतःकरण स्वयं की आवाज होती है। जो कि नैतिक संघर्ष के समय मार्गदर्शन करती है। अंतःकरण, सत्य का एक प्रकार है। यह एक सिद्धान्त है जिसके द्वारा हम सही व गलत में विभेद करते हैं। यह एक मार्गदर्शक अंतः आवाज है, कर्तव्य की भावना अंतःकरण हैं। अंतःकरण एक मूक शिक्षक है। साफ अंतःकरण वाला व्यक्ति, खुशहाल होता है। दोषी अंतःकरण वाला व्यक्ति निराश व उदास होता है। अच्छा अंतःकरण स्थिरता, आनन्द व प्रसन्नता प्रदान करता है। यह आपदाओं, परेशानियों वेदना और दुख से बचाता है। साफ अन्तःकरण वाला व्यक्ति निर्भीक होता है, उसे मृत्यु का भी भय नहीं होता है। जैसे शरीर के लिए अच्छा स्वास्थ्य आवश्यक है वैसे ही आत्मा के लिए अच्छा अंतःकरण आवश्यक होता है।
Question : ‘‘विवेक का संकट” से क्या अभिप्राय है? अपने जीवन की एक घटना बताइए जब आपका ऐसे संकट से सामना हुआ और आपने उसका समाधान कैसे किया।
(2013)
Answer : विवेक द्वारा हम सही गलत में विभेद करते हैं। जब कोई व्यक्ति गलत काम करता है, तो उसका विवेक उसे ऐसा करने से मना करता है और बुद्धिमान व्यक्ति अपने विवेक की बात मान लेता है। विवेक व्यक्ति को एक शिक्षक व एक मित्र की तरह मार्गदर्शन प्रदान करता है। विवेक, व्यक्ति को सही कार्य करने का संकेत देता है।
यदि आपने गलत कार्य किया है तो आप अवसाद ग्रस्त व चिड़-चिड़े हो जाते हैं। जबकि अच्छा कार्य करने पर आप खुश रहते हैं व आनन्द का अनुभव करते हैं। सत्य, धर्म और पूण्य का पालन करके विवेक उज्जवल रहता है।
Question : कई प्रशासकों ने ‘आधारभूत नैतिक मूल्यों’ को मजबूत करने में योगदान दिया है। टिप्पणी कीजिए तथा अपने मत को समझाने हेतु एक समस्या अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
Answer : उत्तर: निम्नलिखित चार आधारभूत मानवीय मूल्य हैं-
(i) स्वतंत्रता (ii) रचनात्मकता (iii) प्रेम (iv) बुद्धिमत्ता
Question : प्रश्न: आपको अभिवृत्ति (attitude) तथा अभिरूचि (aptitude) के बीच चयन करना हो तो आप किसे चुनेंगे और क्यों?
Answer : उत्तरः मैं अभिवृत्ति को चुनूंगा। अभिवृत्ति को लोगों, वस्तुओं, घटनाओं, गतिविधियों, विचारों अथवा पर्यावरण के किसी भी चीज के सकारात्मक अथवा नकारात्मक मूल्यांकन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
Question : किस प्रकार ‘अहम सुरक्षा तंत्र’ (Ego Defence Mechanism) अभिवृत्ति (Attitude) के निर्माण में सहायक हो सकती है?
Answer : उत्तरः अहम (Ego)सुरक्षात्मक तंत्र अभिवृत्ति की एक प्रक्रिया है। यह एक मनौवेज्ञानिक उपकरण है, जिसे लोग मनोवैज्ञानिक हानि से बचने के लिए उपयोग मे लाते हैं। दूसरे शब्दों में, वो स्वयं अपनी नजरों से गिरना नही चाहते हैं। आमतौर पर ऐसी प्रवृत्ति तब दिखाई देती है जब व्यक्ति स्वयं को अपमानित महसूस करता है या वह शर्म, क्रोध या स्वाभिमान के खोने की अवस्था में होता है। अभिवृत्ति को बनाने सम्बन्धी अन्य तंत्र हैं-अस्वीकार, रोकथाम नियंत्रण, अनुमान, विवेकीकरण आदि। यह तंत्र किसी व्यक्ति को बुरी वास्तविकता तथा भ्रम में जाने हेतु समर्थ बनाता है।
Question : भारत में ‘‘नैतिक उत्तरदायित्व’’ (Ethical Accountability) के मार्ग में आपके अनुसार क्या बाधाएं हैं?
Answer : उत्तरः नैतिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने में कुछ बाधाएँ निम्न हैं-
स्व-उत्तरदायित्व की कमीः स्व-उत्तरदायित्व, नैतिक उत्तरदायित्व का सर्वोत्तम अच्छा तरीका होता है। परन्तु उचित व्यवहारिक प्रशिक्षण के अभाव में लोक सेवक इस तथ्य को अपना नहीं पाते हैं।
Question : सिविल सेवकों हेतु महत्वपूर्ण नैतिक चिंताएं तथा दुविधाएं क्या हैं?
Answer : उत्तरः सिविल सेवकों हेतु नीतिशास्त्रीय समस्याएं एवं दुविधाएं:
Question : वह कौन-से प्रावधान हैं जिनके माध्यम से सरकार निजी संस्थानों में मूल्य तथा नैतिकता को प्रवर्तित करती है?
Answer : उत्तर: निजी संस्थानों में नैतिकता के प्रवर्तन हेतु कार्यप्रणाली- श्रमिकों के हितों को सुनिश्चित करने हेतु कानून का निर्माण
Question : केन्द्रीय सिविल सेवा (आचार) नियम में उल्लिखित विभिन्न ‘कदाचार’ क्या हैं? सिविल सेवाओं में नैतिकता को और अधिक मजबूत करने हेतु कौन से अतिरिक्त बिंदु इन नियमों में जोड़े जाने चाहिए?
Answer : उत्तर: ऐसे कृत्य तथा आचरण जो कि कदाचार माने जाऐंगे
अन्य बिंदु जो सम्मिलित किए जाने चाहिएः
आधिकारिक पद का दुरूपयोग न करना तथा लोक वित्त को पूरी सावधानी व किफायत के साथ प्रयोग करना।
Question : केन्द्रीय सिविल सेवा (आचार) नियम में वे कौन से प्रावधान हैं जो सिविल सेवकों को राजनीति तथा चुनाव में भाग लेने से निवारित करते हैं? इन प्रावधानों पर अपने विचार भी प्रकट करें।
Answer : उत्तर: सीसीएस (आचार) नियम 1964 का नियम 5 सरकारी सेवकों को राजनीति में संलग्न किसी राजनीतिक दल या संगठन से जुड़ने से रोकता है। आचार नियम यह भी कहता है कि प्रत्येक सरकारी सेवक को अपने परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में भाग लेने से रोकने का प्रयास करना चाहिए। किसी का पक्ष लेना या विरोध करना तथा चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करना भी निवारित किया गया है।
Question : एक सिविल सेवक की सेवाएं, पुलिस अधिकारियों के इस रिपोर्ट पर, कि, वह सरकारी सेवा में बने रहने के योग्य नहीं है क्योंकि उसने ‘आरएसएस तथा जनसंघ’ की गतिविधियों’ में भाग लिया है, समाप्त कर दी गई। केन्द्रीय सिविल सेवा (आचार) नियम के प्रावधानों के आलोक में अपना मत प्रकट करें। इस मामले में कौन से महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय हैं?
Answer : उत्तर: सरकारी सेवक सामाजिक-सांस्कृतिक तथा लोकोपकारी सभी गतिविधियों में भाग लेने हेतु स्वतंत्र हैं लेकिन उन्हें स्पष्ट रूप से ऐसे किसी संगठन में भाग लेने से मना किया गया है जिसका चरित्र राजनैतिक हो।
Question : निगमीय शासन पर कुमारमंगलम बिड़ला समिति की प्रमुख अनुशंसाएं क्या हैं? किसी ऐसे निगम गृह (corporate house) का समस्या अध्ययन प्रस्तुत करें जिसने समिति द्वारा सुझाई गतिविधियों का पालन किया है।
Answer : उत्तर: कुमारमंगलम बिड़ला समिति की अनुशंसाएं:
समस्या अध्ययन (डा. रेड्डी प्रयोगशालाएं)
Question : सिविल सेवकों द्वारा उपहार लेने तथा इसके प्रतिषेध से संबंधित केन्द्रीय सिविल सेवा (आचार) नियम में कौन-से विभिन्न प्रावधान हैं। क्या किसी सिविल सेवक को अपनी सेवानिवृत्ति के समय अनुमान्य सीमाओं के बाहर आने वाले उपहार को ग्रहण करना चाहिए?
Answer : उत्तर: कोई भी सरकारी सेवक अपने परविार के किसी सदस्य या स्वयं को किसी उपहार को ग्रहण करने की स्वीकृति नहीं दे सकता।
Question : सिविल सेवाओं में उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने हेतु केन्द्रीय सिविल सेवा (आचार) नियम में कौन से दंड (penalties) प्रस्तावित हैं? आपको लगता है कि इसमें संशोधन हेतु पर्याप्त आधार मौजूद हैं?
Answer : उत्तर: सीसीएस (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियम 1965 के खंड 11 में दंड (penalties) को व्याख्यायित किया गया है तथा गौण (minor) तथा प्रमुख (major) दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।
Question : उपयुक्त उदाहरण के साथ निम्न पदों की व्याख्या करें:
Answer : उत्तर:
कार्य संस्कृति की प्रकृति-
(i) अधिकारिक/शोषक (ii) उदार (iii) भागीदारीपूर्ण (iv) परामर्शी
तीसरा महत्वपूर्ण घटकः सेवा वितरण में उत्कर्ष्ठता है जो कोई भी संगठन अपने भीतर निरन्तर सुधार के द्वारा ही ला सकता है।
Question : उपयुक्त उदाहरणों के द्वारा निम्नलिखित पदों की व्याख्या कीजिएः
Answer : उत्तर: (a): यह वित्तीय लेन-देन में नियमों के पालन से संबंधित है।
(b): कपटपूर्ण भ्रष्टाचार में रिश्वत लेने वाले व देने वाले दोनों भ्रष्ट आचरण में संलिप्त होते हैं तथा लोक कल्याण को हानि पहुँचाते हैं। इस भ्रष्ट कार्य से उत्पन्न लाभ को लोक सेवक तथा निजी लाभार्थी द्वारा मिलकर बांटा जाता है। भ्रष्टाचार सार्वजनिक अधिकारियों तथा निजी लाभार्थियों द्वारा किया जाता है।
(c): यह एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत किसी सार्वजनिक एजेंसी द्वारा विकासात्मक पहलों हेतु प्रयुक्त वित्तीय तथा गैर-वित्तीय संसाधानों के विवरण, एक सार्वजनिक मंच के माध्यम से, लोगों के साथ साझा किया जाता है।
(d): इससे तात्पर्य ऐसी सामान्यतया स्थिर भावना से होता है जो व्यक्तियों या समूहों द्वारा किसी घटना, नीति या मुद्दे पर रखी जाती है। यह भावना पक्ष और विपक्ष दोनों प्रकार की हो सकती है। राजनैतिक अभिवृत्ति चार स्तरों की पदसोपानिक संरचना से बनी होती है।
(e): लोग अपने आस-पास के लोगों के अध्ययन द्वारा अपनी अभिवृत्ति का निर्माण करते हैं। लोगों की अभिवृत्ति विशेषता उनसे प्रभावित होती है जिनकी वे प्रशंसा करते हैं। बच्चे अपने माता-पिता के प्रत्येक कार्य का अवलोकन करते हैं तथा उनके कार्य करने के ढंग की नकल करते हैं।
Question : सेवा भावना से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख लक्षण क्या-क्या हैं? सिविल सेवा में उसके निहितार्थ क्या है?
Answer : उत्तरः सेवा भावना वह मनःस्थिति है, जिसमें कार्य किसी लाभ या स्वार्थ को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता बल्कि उस भावना के साथ किया जाता है कि यह करना मेरी नैतिक जिम्मेदारी है।
प्रमुख लक्षण
सेवा भावना के निहितार्थ
Question : ‘सही कार्य’ क्या होते हैं? क्या आप मानते हैं कि एक महत्वपूर्ण सार्वभौमिक मूल्य के रूप में यह आज की लोक सेवा में प्रासंगिक है?
Answer : उत्तरः सही कार्य से तात्पर्य, ऐसे कार्यों से हों जो नैतिक सामाजिक मानदण्डों से परिपूर्ण होते हैं। किन्तु कहीं-कहीं इनका अर्थ कानूनी सही कार्य, एवं परम्पराओं के अनुरूप सही कार्य भी होता है। अतः हमें यह ध्यान रखना होगा। आज लोक सेवा में प्रशासक के लिए कानूनी रूप में सही कार्य जितना जरूरी है, उससे ज्यादा जरूरी नैतिक रूप से सही कार्य है।
Question : लोक प्रशासन में सद्गुण किस बात को बढ़ाना चाहता है? क्या आप ऐसा सोचते हैं कि नैतिक प्रशासनिक संस्कृति के लिए आत्मसंयम, साहस और न्याय चार महत्वपूर्ण सद्गुण है?
Answer : उत्तरः सद्गुण का तात्पर्य ऐसे गुणों से है जिनका पालन करने से हमारे कार्यों को नैतिकता का आधार मिलता है। लोक प्रशासन में सद्गुणों की अपेक्षा की जाती है। क्योंकि इन सद्गुणों के होने से लोक प्रशासन का वास्तविक उद्देश्य अर्थात लोक हितों की पूर्ति को सुनिश्चित किया जा सकता है।
Question : सत्यनिष्ठता सिविल सेवकों के लिए एक असाधारण मानवीय चरित्र है। विश्लेषण करें।
Answer : उत्तरः वस्तुतः विचार, अभिव्यक्ति और आचरण में एकरूपता को सत्यनिष्ठता कहते हैं। सत्यनिष्ठता वर्तमान समय में एक दुर्लभ एवं असाधारण मानवीय चरित्र है, जो सिविल सेवा में विरले ही गिनती मात्र के लोगों में देखने को मिलती है।
Question : नौकरशाही कार्य दक्षता एवं कार्य संस्कृति में सुधार लाने के लिए सरकार का आकार छोटा करने एवं कुछ सेवाओं का निजीकरण करने की आवश्यकता है। उदाहरणों के साथ आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
Answer : उत्तरः वैश्वीकरण के उपरांत निर्मित राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि ने संगठित शासन की उप-प्रणाली नौकरशाही की कार्य दक्षता एवं कार्य संस्कृति में सुधार को अपरिहार्य बना दिया है।
सुधार की आवश्यकता क्यों?
समाधान, सरकार के आकार को छोटा करके
समाधान, सेवाओं का निजीकरण करके
समाधान के रूप में अन्य सुधार