Question : एक विचार यह है कि शासकीय गुप्त बात अधिनियम सूचना के अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन में एक बाधा है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? विवेचना कीजिये।
(2019)
Answer : सरकारी गोपनीयता अधिनियम को सरकारी दस्तावेजों की विशेष रूप से रक्षा जैसे संवेदनशील मामले को सार्वजनिक डोमेन में लाने से बचाने के लिए बनाया गया था। भले ही ऐसा प्रतीत होता है कि यह अधिनियम आरटीआई को लागू करने में बाधा है, लेकिन इसके अस्तित्व में रहने के अंतर्निहित कारण भी हैं।
आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम आरटीआई के क्रियान्वयन में बाधक कैसे?
सरकारी गोपनीयता अधिनियम की आवश्यकता क्यों?
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि वर्तमान में एक ऐसी प्रणाली बनाने की आवश्यकता है जो आरटीआई और सरकारी गोपनीयता अधिनियम के बीच के विवादों और समस्याओं को सुलझाने तथा इनमें समन्वय और संतुलन बनाने का काम करे। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि दोनों अधिनियम अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं और इन्हें एक-दूसरे को लागू करने में बाधा के रूप में नहीं देखा जा सकता।
Question : शासन में सत्यनिष्ठा से आप क्या समझते हैं? इस शब्द की आपकी अपनी समझ के आधार पर सरकार में सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये।
(2019)
Answer : पारंपरिक सिविल सेवा मूल्यों, यथा- क्षमता, सत्यनिष्ठा, जवाबदेही तथा देश भक्ति के अलावा सिविल सेवकों के लिए यह भी जरूरी है कि वे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, मानवाधिकारों के प्रति आदर, दया, करुणा जैसे मूल्यों को भी अपनाएं। कुशल एवं प्रभावी शासन तथा सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए ईमानदारी का होना अति आवश्यक है।
सरकार में सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करने के उपाय
शासन में सत्यनिष्ठ की कमी समाज के सबसे बड़े खतरों में से एक बन गई है। सत्यनिष्ठा और नैतिक प्रथाओं का पालन करने के लिए उनके बीच कुछ खास कदम उठाए जा सकते हैं-
कानूनों और नीतियों के अलावा, सरकार को सरकारी कर्मचारियों में व्यवहार परिवर्तन लाने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि वे आम जनता की समस्या को आसानी से समझ सकें और आम जनता के कल्याण हेतु फ्सरकार के लोकतांत्रिक लक्ष्यय् को पूरा कर सकें।
Question : उपयुक्त उदाहरणों सहित ‘‘सदाचार-संहिता” और ‘‘आचार-संहिता” के बीच विभेदन कीजिए।
(2018)
Answer : किसी भी व्यवसायिक जीवन में उस व्यवसाय से जुड़ी कुछ सदाचार संहिता तथा आचार संहिता होती है जो उस व्यवसाय के गतिशील होने में सहायक होता है। किंतु सदाचार संहिता तथा आचार संहिता के लक्ष्य समान होने के साथ-साथ इनके बीच विभेदन भी स्पष्टतः परिलक्षित होता है।
सदाचार संहिता- सदाचार संहिता या नीति संहिता सामान्य व मूर्त होती है जो कुछ मानदंडों को निर्धारित कर प्रशासकों के व्यवहार में सुनिश्चितता लाती है।
आचार संहिता- आचार संहिता विशिष्ट व मूर्त होती है तथा यह भी कुछ मानदंडों को निर्धारित कर प्रशासकों के व्यवहार में सुनिश्चितता लाती है।
दोनों का लक्ष्य समान होते हुए भी इनकी पद्धतियों तथा विशेषताएं भिन्न-भिन्न हैं, जिसे निम्नलिखित विभेदन से समझा जा सकता है-
अतः सदाचार संहिता तथा आचार संहिता के बीच स्पष्ट विभेदन होते हुए भी इनकी प्रकृति समानार्थक प्रतीत होती है जो किसी लक्ष्य की प्राप्ति में साथ-साथ भूमिका निभाते हैं।
Question : लोकहित से क्या अभिप्राय है? सिविल कर्मचारियों द्वारा लोकहित में कौन-कौन से सिद्धांतों और कार्यविधियों का अनुसरण किया जाना चाहिए?
(2018)
Answer : लोकहित सामुहिक रूप से जनता के हित को कह सकते है। इसकी अवधारणा लोकनीति, प्रजातंत्र, सरकार के स्वरूप, राजनीति, नीतिगत बहस, जनकल्याण सरकारी नियोजन, न्याय के लिए आवश्यक है। सैद्धांतिक रूप से सार्वजनिक हित उसे कहते है जिसमें या तो प्रत्येक व्यक्ति लाभान्वित हो या फिर जिससे लोगों के एक वर्ग को लाभ हो और दूसरो को कोई नुकसान न हो।
लोकहित को बढ़ावा देना लोकसेवकों का प्रमुख कर्त्तव्य होता है। लोकहित को बढ़ावा देने के लिए सिविल सेवकों को निम्नलिखित सिद्धांतों और कार्यविधियों का अनुसरण करना चाहिए-
Question : ‘‘सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तिकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनःपरिभाषित करता है।” विवेचना कीजिए।
(2018)
Answer : सूचना का अधिकार अधिनियम का अभिप्राय किसी लोक प्राधिकारी द्वारा नियंत्रित सूचनाओं तक पहुंच से है। सूचना की परिभाषा में सरकारी दस्तावेज और सरकारी रिकॉर्ड का निरीक्षण भी शामिल है और उनके प्रमाणित उद्धरण भी सत्यापन के लिए प्राप्त किए जा सकते है। यह अधिनियम फाइलों व दस्तावेजों तक ही सीमित नहीं है बल्कि जनता को जमीनी सच्चाई से अवगत करता है। सूचना प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक पहुंच को सुनिश्चित करने का प्रावधान सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बनाने के साथ-साथ नगरिकों के सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है क्योंकि नागरिक अब सार्वजनिक हित से जुड़े किसी भी विषय पर सूचना प्राप्त कर सकते है। यह अधिनियम शासन, प्रशासन में नागरिकों की भूमिका को बढ़ाकर नागरिक अनुकूल प्रशासन का निर्माण करता है।
सूचना का अधिकार प्रशासन में पारदर्शिता और जबावदेही को तय करके देश में सुशासन की अवधारणा को मजबूत बनाने में सहयोग करता है। यह अधिकार लोगों को विभिन्न नागरिक अधिकार जो उन्हें प्राप्त है, की जानकारी प्राप्त हो रही है, इस प्रकार यह शासन के लोकतांत्रिकरण का साधन भी है। सूचना के अधिकार ने देश को एक नए लोकतंत्र को आधार दिया है। जिसमें नागरिकों को सूचना का अधिकार प्राप्त है, कार्यपालिका के पास शासकीय गोपनीयता का कानून है, न्यायपालिका के पास न्यायालय की अवमानना संबंधी कानून है।
इस अधिनियम ने सभी सरकारी संरचनाओं की जवाब देहिता और उत्तर दायित्व सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है क्योंकि अब सरकारी संस्थाओं को मांगी गयी जानकारी देनी होती है यदि नहीं देते तो उसका कारण बताना होता है। यदि देरी होती है तो जुर्माना लगता है।
Question : वर्द्धित राष्ट्रीय संपति के लाभों का न्यायोचित वितरण नहीं हो सका है। इसने ‘‘बहुमत के नुकसान पर केवल छोटी अल्पसंख्या के लिए ही आधुनिकता और वैभव के एन्क्लेव” बनाए हैं। इसका औचित्य सिद्ध कीजिये।
(2017)
Answer : भारतीय सविधान के भाग-4 में वर्णित राज्य के नीतिनिर्देशक सिद्धांतों के अत्तर्गत अनुच्छेद 39 में राष्ट्रीय संपत्ति के न्यायोचित वितरण की संकल्पना व्यक्त की गयी है और राष्ट्रीय संपत्ति के लाभों का न्यायोचित वितरण दायित्व राज्य को सौंपा गया है। किन्तु दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव, लोगों में जागरूकता की कमी, लचीले कानून, न्यायायिक कार्यवाही में बिलम्ब आदि कारणों से राज्य अपनी जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वहन नहीं कर सका। इसी का परिणाम है कि हमने समावेशी, सतत एवं तीव्र विकास की जो संकल्पना अवधारित की थी उसका अक्षरशः पालन नहीं हो सका तथा देश में आर्थिक असमानता का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है।
आक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि गरीब निरंतर गरीब होता जा रहा है और अमीर उतना ही अमीर होता जा रहा है। देश के 1% लोगों के पास देश की कुल 58% सम्पत्ति का नियंत्रण है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि सार्वजानिक पद पर बैठे व्यक्तियों में अदूरदर्शिता, सत्यनिष्ठा और ईमानदारी का अभाव है। लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में बहुमत का शासन होता है किन्तु समावेशी विकास की मनोवृत्ति के बिना विकास केवल कुछ लोगों तक सिमटकर रह जाता है। निष्पक्षता, गैर-तरफदारी आदि मूल्यों के अभाव के कारण बहुमत आज भी राष्ट्रीय संपत्ति के लाभों से वंचित है। इससे इंडिया और भारत के मध्य का विभाजन लगातार बढ़ता जा रहा है। इस ओर जहां कुछ लोग आधुनिक अभिवृत्ति से परिपूर्ण होकर राष्ट्रीय संपत्ति के लाभों पर नियंत्रण स्थापित करते जा रहे है वहीं इसकी ओर अल्पसंख्यक जनता अपनी दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष कर रही है।
इस असमानता के लिए भ्रष्टाचार आदि कारण उत्तरदायी हैं। फिर यह नैतिक मूल्याें पर भी संकट उत्पन्न कर देता है क्योंकि व्यक्ति अत्यधिक लाभ प्राप्त करने के लिए साधन की पवित्रता को ध्यान में नहीं रखता है। इससे एक प्रकार की भोगवादी प्रवृत्ति का विकास होता है जो राष्ट्र के लिए अन्य बुरे प्रभाव उत्पन्न करती है। इस तरह से समावेशी विकास की मनोवृत्ति के अभाव में ऐसी समस्या का उदभव होता है और इसके समाधान के लिए कानून के साथ-साथ नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
Question : अनुशासन में सामन्यतः आदेश पालन और अधीनता निहित है। फिर भी यह संगठन के लिए प्रति-उत्पादक हो सकता है। चर्चा कीजिये।
(2017)
Answer : किसी भी व्यक्ति के विकास और संस्थान की प्रगाति के लिए अनुशासन अनिवार्य शर्त है। अनुशासन के अभाव में बेहतर संगठनात्मक कार्य संस्कृति का विकास नहीं हो पाता है और इसका असर संस्थान की प्रगति पर नकारात्मक रूप से पड़ता है। संगठन में अलग-अलग स्तर के अधिकारी और कर्मचारी होते हैं जिससे अधिकारियों और कर्मचारियों का एक पदानुक्रम बन जाता है और जो अधिकारी कर्मचारी पदानुक्रम में ऊपर होता है उसके आदेश या आज्ञा, सलाह का पालन पदानुक्र में नीचे वाले अधिकारी कर्मचारियों को करना पड़ता है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि अनुशासन में आदेश पालन और अधीनता निहित होती है।
यदि किसी संगठन या प्रशासन में अधिकारी-कर्मचारी अपने उच्च स्तर के अधिकारी के निर्णयों का पालन करते हैं तो ऐसा माना जाता है कि संगठन में अनुशासन बना हुआ है। अनुशासन के कारण कार्य सही समय पर और सही तरीके से होने की संभावना बढ़ जाती है जो संगठन के लिए लाभदायक होता है। यही वजह है कि अनुशासन को बनाए रखने के लिए उच्च स्तर के अधिकारी के पास निम्न स्तर के अधिकारी, कर्मचारी को दंडित करने का अधिकार होता है। इससे एक तरह से अधीनता की भावना पैदा होती है। संगठन की सतत प्रगति के लिए आदेश का पालन और अधीनता दोनों आवश्यक है। इससे एक तरफ संगठन का कामकाज सुचारू रूप से चलता है वहीं दूसरी ओर उच्च स्तर का अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यों की निगरानी भी कर सकता है। इससे संगठन में बेहतर कार्य संस्कृति का विकास होता है जो संगठन के विकास के लिए लाभदायक होता है। लेकिन हमे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हर प्रकार से अनुशासन अर्थात आदेशपालन और अधीनता किसी संगठन के लिए प्रति-उत्पादक भी हो सकती है। यदि हमेशा संगठन का उच्च अधिकारी निम्न अधिकारियों से आदेश पालन कराता रहेगा तो वह निम्न अधिकारियों के विचार से परिचित नही हो पाएगा और संगठन में एक प्रकार की तानाशाही व्याप्त होने का खतरा बढ़ सकता है जिससे संगठन की कार्य संस्कृति प्रभावित होगी और टीम वर्क की भवना कमजोर होने पर संगठन की उत्पादकता पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
अतः स्पष्ट है कि अनुशासन में सामान्यतः आदेश पालन और अधीनता निहित है। फिर भी यह संगठन के लिए प्रति उत्पादक भी हो सकता है।
Question : भारत के संदर्भ में सामाजिक न्याय की जॉन रॉल्स की संकल्पना का विश्लेषण कीजिए
(2016)
Answer : राजनीतिशास्त्र में लाभ की अवधारणा हमेशा से विमर्श का विषय रहा है। इस विमर्श में इस प्रश्न पर विचार किया जाता है कि समाज में वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों तथा लाभों का वितरण किस आधार पर किया जाए कि वह न्यायपूर्ण हो अर्थात समाज में न्याय की स्थापना हो। इस संबंध में जॉन रॉल्स ने अपनी पुस्तक थ्योरी ऑफ जस्टिस में न्याय सिद्धांत प्रस्तुत किया है। रॉल्स के मुताबिक व्यक्ति स्वभाविक रूप से अपने स्वयं के हितों से प्रेरित होते हैं वे ऐसी सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को स्वीकार करेंगे जो उनके हितों के अनुकूल होगी। जब कोई व्यक्ति राज्य के गठन के विषय में अपनी स्थिति स्पष्ट करता है तो उसमें अपने हितों को देखता है। वह स्पष्ट करता है कि उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसी होगी? वे धनी होंगे या निर्धन। इसलिए उन्हें एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का चयन करना चाहिए जो न्यायपूर्ण हो एवं चयन के बाद उन्हें ऐसा न लगे कि किसी अलाभकारी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत का प्रथम तत्व है व्यापक आधारभूत स्वतंत्रता का सिद्धांत। यह सिद्धांत स्वतंत्रता से संबंधित है। इस सिद्धांत के अनुसार सभी आधारभूत स्वतंत्रताएं जैसे आर्थिक, स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता, बौद्धिक स्वतंत्रता और राजनीतिक स्वतंत्रता इत्यादि शामिल है जिस पर प्रत्येक व्यक्ति का समान अधिकार है। रॉल्स का दूसरा महत्वपूर्ण विचार है अवसर की समानता का सिद्धांत अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को इच्छित पद, आय और सम्पदा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
जॉन रॉल्स का तीसरा महत्वपूर्ण विचार है- आय का पुर्नवितरण सिद्धांत। इसके मुताबिक बाजार/पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का स्वाभाविक परिणाम आय और संपदा का असमान वितरण है। अर्थात बाजार अर्थव्यवस्था में ऐसा देखा जाता है कि जो अमीर हैं वो और अमीर होते जाते हैं तथा जो गरीब हैं वो और गरीब होते जाते हैं।
इसलिए रॉल्स की मान्यता है कि ऐसी स्थिति में आय और संपदा का पुर्नवितरण होना चाहिए ताकि उच्च आय वर्ग से निम्न आय वर्ग की ओर आय का निरंतर बहाव होता रहे। अतः प्रतिस्पर्द्धी बाजार अर्थव्यवस्था से उत्पन्न असमानता को कम करने के लिए गरीबों की क्षतिपूर्ति करना आवश्यक है।
Question : द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा सिफारिशकृत (अनुशंसित) लोक सेवा संहिता की विवेचना कीजिए।
(2016)
Answer : द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा सिविल सेवा संहिता के संबंध में निम्नलिखित बातों को शामिल करने का सुझाव दिया गया है- सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, सार्वजनिक सेवा के प्रति वचनवद्धता, खुली जवाबदेही, ड्युटी के प्रति लगन और उत्कृष्ट व्यवहार। यहां सत्यनिष्ठा से अभिप्राय है कि सिविल सेवकों को अपने अधिकारिक निर्णय निर्माण में सार्वजनिक हित द्वारा मार्गदर्शित होना चाहिए न कि अपने संबंध में अथवा अपने परिवारों अथवा मित्रों के संबंध में किसी वित्तीय अथवा अन्य विचारों द्वारा। निष्पक्षता का अभिप्राय है अपने अधिकाधिक कार्य के निष्पादन में बिना किसी भेदभाव के सबके साथ समान व्यवहार किया जाए।
सार्वजनिक सेवा के प्रति वचनवद्धता के अंतर्गत सिविल सेवकों को उचित प्रभावी, निष्पक्ष और विनम्रतापूर्वक ढंग से सेवाएं प्रदान करनी चाहिए। खुली जवाबदेही के अंतर्गत सिविल सेवक अपने निर्णय और कार्यों के लिए जवाबदेह है और उन्हें इस प्रयोजनार्थ उपयुक्त जांच पड़ताल हेतु अपने आपको पेश करने के लिए तैयार करना चाहिए। ड्युटी के प्रति लगन के अंतर्गत सिविल सेवक सदैव अपनी ड्यूटियों और जिम्मेदारियों के प्रति पूर्ण और अबाध लगन बनाए रखें। उत्कृष्ट व्यवहार के मुताबिक सिविल सेवकों को चाहिए कि वे जनता के सभी सदस्यों के साथ सम्मान और विनम्रता के साथ व्यवहार करना चाहिए। और सदैव इस ढंग से व्यवहार करना चाहिए जिनसे सिविल सेवओं की समृद्ध परंपराएं कायम रहें।
Question : सामाजिक प्रभाव और समझाना-बुझाना स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए किस प्रकार योगदान कर सकते हैं?
(2016)
Answer : स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा आरंभ किया गया राष्ट्रीय स्तर का अभियान है इसके अंतर्गत शहरों में स्वच्छ भारत मिशन एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मल भारत अभियान चलाया जा रहा है। शहरों में जहां प्रत्येक सार्वजनिक स्थल पर घरेलू शौचालयों का निर्माण किया जाना है वहीं गांवों में लोगों की स्वच्छता संबंधी आदतों को बेहतर बनाना, स्वसुविधाओं की मांग उत्पन्न करना तथा भारत को खुले में शौच से मुक्त करना इसके प्राथमिक उद्देश्य हैं।
जहां तक इस अभियान के लिए सामाजिक प्रभाव तथा समझाने-बुझाने की प्रक्रिया की प्रासंगिकता का प्रश्न है तो यह स्पष्ट है कि ये स्वच्छ भारत अभियान में कारगर साबित हो सकती है। इसके दो कारण हैं- सामाजिक प्रभाव उन प्रक्रमों को इंगित करता है जिसके द्वारा हमारा व्यवहार एवं अभिवृत्तियां दूसरे लोगों की उपस्थिति से प्रभावित होती है। दैनिक जीवन में इसके अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। सामाजिक प्रभाव के द्वारा लोगों से अनुरूपता तथा अनुपालन की आशा की जा सकती है। समूह दबाव के कारण व्यक्ति स्वच्छता के लिए आवश्यक शर्तों का अनुपालन करने के लिए प्रेरित हो सकता है। समझाना-बुझाना सामाजिक प्रभाव का ही एक पक्ष है जो दैनिक जीवन का शक्तिशाली पक्ष है और इसके अंतग्रत लोगों में स्वच्छता कार्यक्रम से जुड़ने की अपील की जा सकती है जिसका सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। इसका एक स्पष्ट उदाहरण है डुंगरपुर के जिलाधीश द्वारा जिले की विकास योजना में वहां के समुदाय को जनसहभागिता हेतु सफलतापूर्वक तैयार कर लेना।
अतः स्वच्छता अभियान कार्यक्रम के लिए सामाजिक प्रभाव के अंतर्गत समझाने-बुझाने की प्रक्रिया द्वारा लोगों की अभिवृत्ति व व्यवहार में परिवर्तन लाकर स्वच्छता अभियान के उद्देश्यों को पूरा करना कोई कठिन काम नहीं है।
Question : विधि एवं आचारनीति मानव आचरण को नियंत्रित करने वाले दो उपकरण माने जाते हैं ताकि आचरण को सभ्य सामाजिक अस्तित्व के लिए सहायक बनाया जा सके।
चर्चा कीजिए कि वे इस उद्देश्य की किस प्रकार पूर्ति करते हैं।
(2016)
Answer : विधि एवं आचारनीति दोनों का ही उद्देश्य समाज में एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करना होता है लेकिन दोनों के उद्देश्य प्राप्ति के मार्ग अलग-अलग हैं। आचारनीति व्यक्ति की अभिवृत्ति, मनोवृत्ति में परिवर्तन लाकर, व्यक्ति को सही-गलत, उचित-अनुचित का ज्ञान कराकर उसे सही मार्ग दिखाकर, व्यक्ति के कर्तव्यों को बोध कराकर, व्यक्ति को नैतिक बनाकर एक आदर्श समाज का निर्माण करती हैं। दूसरी तरफ विधि/कानून के प्रावधानों के माध्यम से हमें सही गलत का बोध होता है गलत कृत्यों के लिए कानून में दण्ड का प्रावधान होता है इस दण्ड के भय से तथा समाज में दण्ड पाए व्यक्ति को देखकर व्यक्ति उस गलत कृत्य को करने से बचते हैं तथा समाज में व्यवस्था कायम रहती हैं।
Question : उदाहरण देते हुए यह बताइए कि ये दोनों अपने उपागमों में किस प्रकार एक-दूसरे से भिन्न हैं।
(2016)
Answer : विधि व आचारनीति की कार्य पद्धतियों को हम दिल्ली के निर्भया केस की मदद से समझने का प्रयास करते हैं।
निर्भया केस की गम्भीरता तथा समाज की मांग को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा गठित जस्टिस वर्मा आयोग ने महिला अत्याचार व शोषण से संबंधित सभी कानूनों को पहले से कड़ा करने की सिफारिश की जिसे सरकार ने मान लिया। जिससे दण्ड के अधिक कठोर होने से लोगों में अधिक भय उत्पन्न हो तथा इस तरह के कृत्यों से खुद को दूर रखें। साथ ही दोषियों को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा दी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा जिससे लोगों में संदेश जाए कि गलत कार्य का परिणाम भी गलत होता है।
आचारनीति के तहत सरकार व बहुत से गैर सरकारी संगठनों ने समाज में महिलाओं के प्रति गलत दृष्टिकोण को बदलने तथा सम्मानजनक व्यवहार को बढ़ाने के लिए बहुत से अभियान चलाए हुए हैं जिनसे समाज की अभिवृत्ति व मनोवृत्ति को बदला जा सके जैसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं योजना, गरिमा अभियान, महिला उद्यमी योजना आदि।
Question : हाल में हुई कुछ प्रगतियाँ, जैसे सूचना का अधिकार (आर.टी.आई.) अधिनियम, मीडिया और न्यायिक सक्रियता इत्यादि, सरकार के कार्यों में पहले से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाने में सहायक साबित हो रही है। फिर भी, यह देखा जा रहा है कि कभी-कभार इन साधनों का दुरूपयोग किया जाता है। एक अन्य नकारात्मक प्रभाव यह है कि अधिकारीगण अब शीघ्र निर्णय लेने से डरते हैं। इस स्थिति का विस्तारपूर्वक विश्लेषण कीजिए और सुझाइए कि इस द्विभाजन का हल किस प्रकार निकाला जा सकता है। सुझाइए कि इन नकारात्मक प्रभावों को किस प्रकार न्यूनतमीकृत किया जा सकता है।
(2015)
Answer : सर्तकता एवं निगरानी के संस्थान किसी भी देश के संगठनों एवं विभागों की दक्षता एवं प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। इसी वजह से भारत सरकार द्वारा सन् 2005 में सूचना का अधिकार एक्ट पारित किया गया जिसने देश से भ्रष्टाचार एवं लालफिताशाही की बढ़ती दर पर लगाम लगाने में मीडिया तथा न्यायपालिका की तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
परन्तु वर्तमान समय में आरटीआई एक्ट, मीडिया तथा न्यायपालिका की अति सक्रियता का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है जिसके कारण सरकार में पारदर्शिता एवं जवाबदेही तो बढ़ी ही परन्तु साथ ही एक प्रकार की पॉलिसी-पेरालाइसिस की समस्या भी उत्पन्न हो गई थी जिसका मुख्य कारण 2जी स्प्रेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ तथा कोयला-घोटाले के पश्चात् मीडिया, न्यायपालिका तथा आरटीआई एक्ट का अत्यधिक सक्रिय हो जाना माना जा रहा है। इनकी अति सक्रियता एवं दुरूपयोग की वजह से ही अधिकारीगण नए एवं कड़े फैसलें लेने से बचते हैं ताकि उनसे हुई किसी छोटी सी गलती की सम्भावना से भी स्वतः बचा जा सकें।
वर्तमान में आरटीआई के दुरूपययोग तथा मीडिया के पक्षपात के कारण कई ईमानदार अधिकारी निर्णय लेने से डरते हैं। इसी प्रकार देश में अति न्यायिक सक्रियता की वजह से लोकतंत्र के तीन स्तम्भों कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा विधायिका में टकराव की स्थिति अक्सर उत्पन्न हो रही है जिससे देश में शक्ति के पृथक्करण की अवधारणा को क्षति पहुंची है। अतः हाल में उत्पन्न इस सकारात्मक प्रयासों के नकारात्मक प्रभावों को निम्न प्रकार से कम किया जा सकता हैः
Question : आज हम देखते हैं कि आचार संहिताओं के निर्धारण, सतर्कता सेलों/आयोगों की स्थापना, आर.टी.आई., सक्रिय मीडिया और विधिक यांत्रिकत्वों के प्रबलन जैसे विभिन्न उपायों के बावजूद भ्रष्टाचारपूर्ण कर्म नियंत्रण के अधीन नहीं आ रहे हैं।
(2015)
Answer : a. सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अनेक कानून अधिनियमित किए हैं; जैसे-आरटीआई एक्ट, सिटिजन चार्टर, व्हिसल ब्लोअर बिल इत्यादि, फिर भी 2015 में जारी वैश्विक भ्रष्टाचार सूची में भारत 168 देशों में से 76 स्थान पर रहा जो निश्चित ही नीति निर्मात्ताओं तथा बुद्धिजीवियों के लिए एक गम्भीर चुनौती पेश करता है।
भारतीय नीतियों व योजनाओं के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि यहां विश्व भर के शीर्ष देशों की तरह अच्छी नीतियां व योजनाएं बनती है परन्तु उनके क्रियान्वयन में खामियां देखी जाती हैं। इसी प्रकार भारत के पास भ्रष्टाचार रोधी अनेक संस्थाओं, कानूनों तथा अधिनियमों के होते हुए भी कुछ पथभ्रष्ट लोग इनमें निहित कमियों के कारण अपना निजी स्वार्थ साधने में सफल हो जाते हैं।
सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई एक्ट), सीटीजन चार्टर एक्ट इत्यादि नागरिकों को सूचनाएं प्राप्त करने में सक्षम बनाया है वहीं सरकारी प्राधिकारियों पर स्पष्ट, ईमानदार तथा पारदर्शी शासन चलाने का दबाव भी डाला है। 2जी स्पेक्ट्रम, कोलगेट तथा कोमलवेल्थ जैसे बड़े घोटालों का पर्दाफाश करने में आरटीआई एक्ट ने सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
परन्तु देश में फैले व्यापक भ्रष्टाचार को अभी भी समाज में व्याप्त अशिक्षा, जागरूकता की कमी तथा विभिन्न भ्रष्टाचार रोधी संस्थाओं के मध्य आपसी समन्वय की कमी के कारण पूर्णतया समाप्त नहीं किया जा सका है।
भारतीय मीडिया ने अन्ना हजारे के लोकपाल समर्थक आन्दोलन के समय प्रशंसनीय भूमिका निभाते हुए इसे देश की राजधानी से गांधी के गांवो का आन्दोलन बनाकर लोकपाल लाने के लिए केन्द्र तथा राज्यों की सरकारों को मजबूर किया। वहीं दिल्ली में घटित निर्भया बलात्कार कांड के पश्चात मीडिया की सक्रिय भूमिका के कारण ही महिला सशक्तिकरण हेतु नया जुवेनाइल एक्ट पास किया गया जिसमें जघन्य अपराधों के मामले में किशोर अपराधियों की उम्र घटाकर 18 से 16 वर्ष कर दी गई है। उक्त सकारात्मक भूमिका के पश्चात् भी मीडिया पर आए दिन पक्षपात के आरोप लगते रहते हैं जो हमारे सामने लोकतंत्र के उक्त चौथे स्तम्भ को लेकर भी संशय पैदा करते हैं।
उपरोक्त भ्रष्टाचार रोधी संस्थाओं के आलोक में भारत की न्यायपालिका का उल्लेख करना भी आवश्यक है, जिसे आज भी लोग सेना की तरह सम्मान की नजरों से देखते हैं परन्तु, नीचले स्तर की अदालतों में फैले व्यापक भ्रष्टाचार के कारण कभी गरीबों का गर्व कही जाने वाली न्याय प्रणाली आज खुद कठघरे में खड़ी दिखाई देती है।
b. भ्रष्टाचार समाज का अनिवार्य अंग बन चुका है, क्योंकि इसका समाजीकरण हो गया है। परन्तु इसका उन्मूलन कठिन नहीं है। इसके निवारण के लिए निम्नलिखित उपाय इस प्रकार हैं;
Question : लोक सेवकों के समक्ष ‘हित संघर्ष (कन्फ्रिलक्ट ऑफ इन्टरेस्ट) के मुद्दों का आ जाना संभव होता है। आप ‘हित संघर्ष’पद से क्या समझते हैं और यह लोक सेवकों के द्वारा निर्णयन में किस प्रकार अभिव्यक्त होता है? यदि आपके सामने हित संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाए, तो आप उसका हल किस प्रकार निकालेंगे? उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए
(2015)
Answer : एक व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में कई भूमिकाओं को निभाता है, ऐसे में वह अंतर्निहित तौर पर भिन्न हितों एवं वफादारियों को धारण करता है। किसी समय विशेष में ये हित आपस में टकराते हैं या प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह टकराव या प्रतिस्पर्धा ही हित संघर्ष है। ये संघर्ष जीवन के अंग हैं और अपरिहार्य हैं। लोक अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी, से लोक विश्वास के प्रबंधक के रूप में यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने हित से पहले लोक हित को प्राथमिकता दे क्योंकि भ्रष्टाचार तब घटित होता है जब कोई पदाधिकारी, जो कि हित संघर्ष से जुझ रहा है, अपनी निजी या वित्तीय हितों को लोक हितों से ऊपर रखता है।
साधारण शब्दों में, वह अधिकारी अपनी लोक क्षमता (पद पर आसीन) के रूप में किए गए किसी निर्णय से मौद्रिक या अन्य पुरस्कार प्राप्त करता है। सार्वजनिक सेवा हमेशा आम भलाई व जन कल्याण के निमित्त होती है जिसे आम परिस्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कि सभी की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है।
एक लोक सेवक को अपनी उन व्यक्तिगत, वित्तीय या राजनीतिक लाभों से आगे आम भलाई को निश्चित रूप से रखना चाहिए जिसका निर्णय उन्हें करना है। साथ ही हित संघर्ष, समान व्यवहार के मूल नीतिशास्त्रीय सिद्धांत में भी हस्तक्षेप करता है। किसी लोक अधिकारी को दूसरों की कीमत पर खुद को लाभ पहुंचाने के लिए अपने पद का अनुचित इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अंत में हित-संघर्ष विश्वास को क्षीण करता है और यह सरकारी निर्णय प्रक्रियाओं में लोगों के विश्वास को उत्तरोतर कम करता है।
Question : वर्तमान समाज व्यापक विश्वास-न्यूनता से ग्रसित है। इस स्थिति के व्यक्तिगत कल्याण और सामाजिक कल्याण के संदर्भ में क्या परिणाम हैं? आप अपने आप को विश्वसनीय बनाने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर क्या कर सकते हैं?
(2014)
Answer : विश्वास न्यूनता अर्थात Trust Depicit का अभिप्राय है एक दूसरे पर विश्वास न करना। यहां समाज में व्याप्त Trust Depicit का अर्थ यह भी है कि लोगों में सामाजिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक संदर्भ में विश्वास की कमी है। उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि समाज में क्रियाशील संगठन/संस्थान/प्रशासन अथवा सरकार जनता के हित के प्रति प्रतिबद्ध हैं और वे मानते हैं कि उनमें ईमानदारी एवं जवाबदेयता की कमी है।
व्यापक स्तर पर विश्वास न्यूनता के कई दुष्परिणाम व्यक्ति और समाज दोनों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। ये दुष्परिणाम कुछ इस प्रकार हैं-
विश्वास न्यूनता को कम करने के लिए मेरे विचार में सार्वजनिक जीवन में कुछ नैतिक मानदंडों को अपनाया जा सकता है। कुछ प्रमुख नैतिक मानदंड जैसे निःस्वार्थनिष्ठता, सत्यनिष्ठा, विषयनिष्ठा, जवाबदेही, निष्कपटता, ईमानदारी और उचित नेतृत्व द्वारा Trust Depicit को समाप्त नहीं तो कम आवश्य किया जा सकता है।
Question : अक्सर कहा जाता है कि निर्धनता भ्रष्टाचार की ओर प्रवृत्त करती है। परन्तु, ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जहां सम्पन्न एवं शक्तिशाली लोग बड़ी मात्र में भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं। लोगों में व्याप्त भ्रष्टाचार के आधारभूत कारण क्या हैं। उदाहरण द्वारा अपने उत्तर को सम्पुष्ट करें।
(2014)
Answer : निर्धनता वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी मौलिक आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में भी सक्षम नहीं होता। ऐसे में अभाव को दूर करने हेतु भ्रष्टाचार की ओर प्रवृत्त होना एक आम प्रवृत्ति है। परंतु-समाज में सम्पन्न व शक्तिशाली व्यिक्तयों यथा हसन अली, प्रदीप बर्मन (डाबर), राधा टिंब्लो (माइनिंग टाइकून) की कमी नहीं है जो करोड़ों अरबों के मालिक होते हुए भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और अपना काला धन विदेशों में जमा कर सरकार को कर देने से बचते रहे हैं।
वस्तुतः हमारे समाज में भ्रष्टाचार के तीन मौलिक कारण रहे हैं- प्रथम, आपत्ति न करने वाले प्राधिकारियों की औपनिवेशिक प्रवृति व सम्पत्ति और मनमाने ढंग से शक्तियों के प्रयोग की प्रवृत्ति- जिस समाज में सत्ता की पूजा की जाती हो वहां सरकारी अधिकारियों के लिए नैतिक आचरण से बच निकलना आसान हो जाता है। दूसरा, हमारे समाज में अत्यधिक विषमताएं हैं। लगभग 90 प्रतिशत लोग असंगठित क्षेत्र के हैं। उनमें से अनेक लोग बिना किसी रोजगार सुरक्षा के निर्वाह करने योग्य मजदूरी पर निर्भर रहते हुए अनिश्चित जीवन यापन करते हैं। लगभग ये सभी कर्मचारी निरक्षर या अर्द्धसाक्षर समाज से हैं। आर्थिक रूप से सबसे कम आय पाने वाले लोक सेवक भी देश के बहुत से लोगों की अपेक्षा ज्यादा खुशहाल हैं उससे भी अधिक तो यह है कि सरकार में नौकरी सत्ता के सभी साज सामान को लेकर आती है। सत्ता की ऐसी विषमता नैतिक व्यवहार पर उच्च वर्गीय दबाव को कम कर देती है और भ्रष्टाचार में संलिप्त होना आसान कर देता है। तीसरा प्रमुख कारण यह है कि स्वतंत्रता के शुरुआती दशकों में सरकार ने नीतियों का एक ऐसा पुलिंदा चुना जिसके परिणामस्वरूप नागरिक सत्ता की दया पर निर्भर हो गए। नियमों की आड़ में आर्थिक गतिविधियों पर अंकुश, अधिक सरकारी नियंत्रण तथा अभावों की अर्थव्यवस्था ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया और भ्रष्टाचार की यह संस्कृति किसी न किसी रूप में आज भी फल-फूल रही है।
Question : हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिए कुछ नवाचारी उपाय सुझाइए।
(2014)
Answer : हमारे देश में महिलाओं के प्रति यौन उत्पीड़न और हिंसा की घटना दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जबकि महिला सुरक्षा के लिए कई कानून मौजूद हैं और उन्हें कठोरतम् बनाने का प्रयास भी किया जा रहा है। वस्तुतः महिलाओं के प्रति इस तरह के व्यवहार की जड़ में हमारे समाज की पितृसत्तात्मक सोंच है जो सदियों से चली आ रही है।
यही वजह है कि महिलाओं को दोयम दर्जा देकर उन्हें कमजोर, निर्भर एवं असहाय समझने की परम्परा अभी भी कायम है। यह एक प्रकार से महिला-गरिमा के खिलाफ तो है हीं साथ ही यह उनके मानवधिकारों का उल्लंघन भी है।
ऐसी घटनाओं को रोकने क लिए समस्या को जड़ से खत्म करना होगा और वह कुछ और नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति है जिसमें बदलाव लाने की जरूरत है।
इसके अलावा इस समस्या के समाधान के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा। इस संदर्भ में कुछ नवाचारी उपायों पर विचार किया जा सकता है जो निम्न प्रकार हैंः
इसके अलावा कुछ अन्य उपाय भी जरूरी हैं, जैसे-
Question : ‘‘सर्वहित में ही हर व्यक्ति का हित निहित है।” आप इस कथन से क्या समझते हैं? सार्वजनिक जीवन में इस सिद्धान्त का कैसे पालन किया जा सकता है?
(2013)
Answer : यह सिद्धांत गांधीजी द्वारा ‘सर्वोदय’के रूप में प्रतिपादित किया गया था जिसका तात्पर्य है सभी लागों की भलाई। गांधीजी ने एक वर्ग-विहीन समाज की परिकल्पना की जिसमें सभी लोगों गरीब, दुर्बल, पिछड़े, शोषित तथा हाशिये पर खड़े सभी का कल्याण हो। उनका सर्वोदय सभी के आर्थिक अभाव की समाप्ति, सामाजिक समानता तथा नैतिक उत्थान पर बल देता है।
गांधीजी का सर्वोदय सिद्धांत भारत की आरंभिक सांस्कृतिक विरासत से भी प्रेरणा ग्रहण करता है जिसमें आरंभिक उक्ति के रूप में सभी के कल्याण की बात कही गई है। यहां तक की कौटिल्य का अर्थशाड्ड भी यह कहता है कि शासक को निष्पक्ष तथा अच्छा होना चाहिए तथा इसका सर्वोच्च बल लोक कल्याण होना चाहिए। प्रजा की भलाई में उसकी भलाई निहित है तथा उनके कल्याण में उसका कल्याण। उसे उस वस्तु को उत्तम नहीं समझना चाहिए जो उसे प्रिय लगे अपितु उस वस्तु को उत्तम समझना चाहिए जो उसकी प्रजा को उचित व प्रिय लगे।
भगवद्गीता में भी सार्वभौमिक कल्याण अथवा सबके कल्याण की प्रतिध्वनी दिखायी पड़ती है। हिंदू शाड्डों के अतिरिक्त जैन तथा बौद्ध धर्म के साहित्य में भी सबों के कल्याण पर समान रूप से बल दिया गया है। सार्वभौमिक प्रेम तथा सार्वभौमिक कल्याण बौद्ध दर्शनशाड्ड के केंद्र बिंदु हैं। जैन भी इसी प्रकार सर्व कल्याण को समान रूप से अपना आदर्श मानते हैं।
समकालीन खाद्य सुरक्षा बिल सर्वोदय सिद्धांत पर आधारित है क्योंकि इसमें मानवीय जीवन चक्र दृष्किोण पर बल रखते हुए रियायती दर पर खाद्यान्न, मोटे अनाज, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, परिवार में महिला को प्रमुख के रूप में मान्यता आदि पर बल देते हुए स्वच्छता, पेयजल तथा भोजन को समन्वित दृष्टि से प्रदान किया गया है।
Question : प्रायः यह कहा जाता है कि ‘‘राजनीति और नैतिकता” साथ-साथ नहीं चल सकते। इस सम्बन्ध में आपका क्या मत है? अपने उत्तर को, उदाहरणों सहित, आधार बताइए।
(2013)
Answer : राजनीति एक आवश्यक मानवीय गतिविधि है। साथ ही यह जटिल व क्लिष्ट है। यह नागरिकों, राजनीतिक दलों, सांसदों सरकारी कार्यकारी अधिकारियों न्यायालयों, मीडिया, व्यापारिक संगठनों, गैर-सरकारी संगठन, धार्मिक व शैक्षिक संगठनों से उच्च स्तर के उत्तरदायित्व और प्रतिबद्धता की अपेक्षा रखती है। राजनेता प्रायः स्वार्थी व भ्रष्टाचारी होते हैं। ‘‘राजनीति में नैतिकता” कई मामलों में एक विरोधाभास लगती है। कई नेता एक देश के सामान्य हितों व अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करते हैं। विशेषरूप से लोकतांत्रिक समुदायों व समाजों में राजनीति व नेताओं के प्रति सम्मान व विश्वास महत्वपूर्ण होता है। कई समस्याएं एक दूसरे पर परस्पर निर्भर करती हैं। उनके लिए कोई भी स्थानीय व क्षेत्रीय समाधान पर्याप्त नहीं होगा। आर्थिक वृद्धि, व्यापार सम्बन्धित मामले, चुनौतियां वित्तीय तन्त्र, मानवाधिकार के प्रवासी मुद्दे, भ्रष्टाचार और सुरक्षा सम्बन्धी मुद्दे, वर्तमान में चुनौतियां हैं। ये चुनौतियां प्रणालीगत हैं। इस कारकों के कारण राजनीति में नैतिकता आवश्यक है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए राजनीजिक प्रतिमानों में बदलाव की आवश्यकता है।
Question : ‘अक्षुण ईमानदारी बरतने’ (maintaining absolute integrity) का क्या महत्व है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट करें।
Answer : उत्तर: पूर्ण सत्यनिष्ठा (integrity) बरतने का महत्वः केन्द्रीय सिविल सेवा (आचार) नियम 1964 का नियम 3(1) कहता है कि ‘सभी सरकारी सेवक को सदैव पूर्ण सत्यनिष्ठा बरतनी चाहिए’।
उदाहरणः कर्नाटक सड़क यातायात निगम में एक कंडक्टर था। उसने लगभग 360.00 रुपये का घपला किया। जांचकर्ता अधिकारी ने उसे दोषी माना तथा अनुशासी प्राधिकार ने उसे दंड के स्वरूप नौकरी से बर्खास्त कर दिया। मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा जिसने बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए तर्क दिया ‘‘कर्मचारी में नियोक्ता का विश्वास हट जाना प्रधान कारक है न कि गबन किए गए धन की मात्रा।’’
Question : ‘‘कॉर्पोरेट शासन का वास्तविक मूल्य नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने से कहीं अधिक है’’। आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।
Answer : उत्तरः यद्यपि भारतीय कॉर्पोरेट ने बोर्ड स्तर की नीतियों तथा प्रक्रियाओं को अद्यतन करने, उनका पुनरावलोकन करने पर ध्यान केन्द्रित किया है, परंतु अधिकांशतः संगठनों का ध्येय अपने बोर्ड में कार्यपालक तथा गैर कार्यपालक निदेशकों को नियुक्त करते हुए विधानों का अनुपालन करने में रहा है।
Question : ‘‘सार्वजनिक एवं निजी शासन की अवधारणा अभिसरण (convergnece) की स्थिति में प्रवेश कर रही हैं’’। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत है?
Answer : उत्तरः समकालीन विश्व के निजी क्षेत्र मात्र बाजार तंत्र द्वारा चालित एक मुक्त प्रतिस्पर्धा तंत्र नहीं हैं, क्योंकि एक वास्तविक प्रतिस्पर्धी कम्पनी जिसे अपने सम्मान व प्रतिष्ठा की परवाह हो उसे स्पष्ट रूप से अपने हितधारकों तथा समाज के हितों के प्रति भी समर्पित होना चाहिए।
Question : हित संघर्ष से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाएं। साथ ही, इससे निपटने के उपायों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः हित संघर्ष वह अवस्था है जिसमें किसी प्राधिकृत व्यक्ति के फैसले से आने वाला प्रतिफल अधिकारी के हित को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है। अर्थात हित संघर्ष की परिस्थिति में अधिकारी के निर्णय जब उसके विवेक द्वारा दिए जाते हैं तो पक्षपात की संभावना बन सकती है। यदि उस निर्णय के प्रतिफल में उस अधिकारी का हित छुपा हो।
इसे निम्न उदाहरणों से समझा जा सकता है-
Question : भारत में व्हिसल ब्लोअर क्षेत्र का विस्तार कैसे किया जा सकता है? उपयुक्त उदाहरण के साथ समझाएं।
Answer : उत्तरः व्हिसल ब्लोअर एक्ट भष्ट्राचार से लड़ने के लिए बनाया गया है, जिसमें भष्ट्राचार की सूचना देने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है ताकि उसे किसी प्रकार का कोई खतरा न हो तथा और भी लोग अपने आस-पास हो रही भष्ट्राचार की घटनाओं की सूचना देने के लिए आगे आए।
भारत में व्हिसल ब्लोअर एक्ट का विस्तार-
Question : ‘‘खुली सरकार वह शासकीय सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि प्रभावी सार्वजनिक निरीक्षण हेतु नागरिकों को दस्तावेजों और कार्यवाहियों तक पहुंच का अधिकार है।’’ आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
Answer : उत्तरः मैं इस कथन से सहमत हूँ। खुली सरकार पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्त्व सुनिश्चित करते हुए सूचनाओं का वितरण अपने नागरिकों में करती है। साथ ही, उनसे पारिवारिक सदस्य की भाँति प्रतिपुष्ठि (Feedback) भी लेती है।
Question : ‘‘भ्रष्टाचार की समस्या के समाधान के प्रयास, शासन के किसी अन्य मुद्दे से अधिक व्यवस्थागत हो गये हैं’’। आप इस कथन से कितना सहमत हैं?
Answer : उत्तरः भारत में भ्रष्टाचार की समस्या का, शासन के अन्य मुद्दों की तुलना में अधिक व्यवस्थित समाधान किए जाने की जरूरत है। मात्र राज्य की आर्थिक भूमिका को छोटा करके एवं निजीकरण व उदारीकरण द्वारा इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। ऐसी सभी प्रक्रियाओं, नियमों तथा कानूनों को समाप्त करना होगा जो भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं तथा कुशल वितरण प्रणाली में बाधा उत्पन्न करते हैं।
Question : वर्तमान में केन्द्रीय और राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए भारत में मौजूद, प्रशासनिक मशीनरी की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
Answer : उत्तरः भ्रष्टाचार रोधी उपायों को निम्न दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(i) प्रक्रियात्मक तथा
(ii) प्रशासनिक अनुमोदन
एजेन्सियां जो भ्रष्टाचार जाँच के केसों से जुड़ी हुई हैं
एजेन्सियां जो प्रशासनिक सत्तर्कता से जुड़ी हुई हैं
Question : भारत में कारपोरेट प्रशासन को मजबूत बनाने में राज्य या राज्य की संस्थाओं की क्या भूमिका है?
Answer : उत्तरः (a) बड़े-बड़े कॉरपोरेट घोटाले जैसे सत्यम, शारदा चिट फंड, Speak asia घोटाला, इत्यादि ने जनचेतना को जागृत किया और ये सोचने पर मजबूर किया कि कॉरपोरेट शासन में सुधार की जरुरत है, और ये उम्मीद की गई है कि कॉरपोरेट में सुशासन को स्थापित करने से न सिर्फ ऐसी घटनाओं में कमी आयेगी बल्कि संगठन के प्रदर्शन पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा एवं गुणवत्ता बढ़ेगी।