Question : निम्नलिखित में से प्रत्येक उद्धरण का आपके विचार में क्या अभिप्राय है-
(2020)
Answer : (a) स्वामी विवेकानन्द ने व्यावहारिक जीवन में वेदान्त दर्शन की उपयोगिता बताने के क्रम में उक्त उद्धरण को प्रस्तुत किया था।
(b) यहां स्वयं का अर्थ आत्मज्ञान से न होकर मानव अस्तित्व के उद्देश्य को जानने से है। गांधी सेवा भाव को ही मनुष्य के जीवन का उद्देश्य मानते हैं, क्योंकि यही सही मायने में मनुष्य की मनुष्यता का मूल गुण है।
(c) सुकरात ने इस उद्धरण के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि सापेक्ष भावनात्मक मूल्यों पर आधारित नैतिकता अपने आप में अशिष्ट होती है अर्थात् सापेक्ष भावुकता पर आधारित विकल्प नैतिक विकल्प नहीं हो सकता है।
Question : संवेगात्मक बुद्धि आपके अपने संवेदों से आपके विरुद्ध कार्य करने के बजाय आपके लिए कार्य करवाने का सामर्थ्य है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? विवेचना कीजिये।
(2019)
Answer : संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य किसी की अपनी तथा दूसरों की भावनाओं को समझने की क्षमता और उन्हें विनियमित करने और प्रबंधित करने और कार्यों को निष्पादित करने के लिए उपयोग करने की क्षमता है। यह उन प्रशासकों के सामाजिक कौशल का आधार है जो संगठनात्मक प्रभावशीलता में योगदान करते हैं। इसके अंतर्गत आत्म जागरूकता, प्रेरणा, सहानुभूति, आत्म प्रबंधन जैसे मूल्यों का संचालन होता है।
बौद्धिक लब्धि (आई.क्यू.), ई.क्यू. से भिन्न है। आई.क्यू. किसी व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता को मापता है, जो तार्किकता पर आधारित होता है। उच्च आई.क्यू. संतुष्ट जीवन, सामाजिक सम्मान या उपलब्धि की गारंटी नहीं देता है।
भावनात्मक बुद्धि हमारे विरुद्ध नहीं, बल्कि हमारे लिए कार्य करवाने का सामर्थ्य है। इसे, निम्न प्रकार समझा जा सकता हैः
इस प्रकार भावनात्मक बुद्धिमत्ता एक दक्ष, समानुभूति और निष्पक्षता युक्त प्रशासन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावनाओं की कहीं भी अभिव्यक्ति और अधिकता को रोकने में मदद करती है। यह आगे किसी प्रकार की बाधा को पैदा करने के बजाय एक सकारात्मक दृष्टिकोण और स्थायित्व प्रदान करने में मदद करती है।
Question : निम्नलिखित में से प्रत्येक उद्धरण के आपके लिए क्या मायने हैं?
(2019)
Answer : (a) एक अपरीक्षित मानव जीवन, जीवन के अस्तित्व के अर्थ और उद्देश्य से वंचित जीवन होता है। आत्मनिरीक्षण करने की क्षमता नैतिक अखंडता और सामाजिक एकजुटता के लिए प्रतिबद्धता का आह्वान करके व्यक्तिवादी गैरबराबरी को दूर करती है। जैसे बीज को अंकुरण के लिए मिट्टी, धूप और पानी की जरूरत होती है, वैसे ही मानव जीवन को इसके विकास के लिए आत्मनिरीक्षण और परीक्षा की जरूरत होती है। जीवन में अनुभवों से प्राप्त समझ, स्वयं और ब्रह्मांड को समझने में उसकी बुद्धि को समृद्ध करती है।
(b) महात्मा गाँधी का यह वाक्य मानव जीवन और उसके विकास के क्रम में हमेशा विचारणीय है। यह संस्कृत भाषा में वेदों में वर्णित ‘‘यद्भावं तत् भवति” का ही लगभग हिंदी रूपांतर है। महात्मा गांधी के इस उद्धरण में बताया गया है कि एक आदमी को उस तरह के विचारों से वर्णित किया जा सकता है, जैसा विचार वह चुनता है। विचार या तो सकारात्मक या नकारात्मक हो सकते हैं। यह अच्छा या बुरा, आनंददायक या उदासी देने वाला हो सकता है। मनुष्य जैसा विचार करता है वही उसको आकर्षित करता है। व्यक्ति मन में जैसा विचार और विश्वास धारण करता, वैसा उसको परिणाम भी प्राप्त होता है। किसी का विचार उसे उसी तरह ढाल सकता है जिस तरह का व्यक्ति वह बनना चाहता है।
(c) पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपने इस उद्धरण के माध्यम से शुचिता की गुणवत्ता पर प्रकाश डाला है और मानव हृदय उसके चरित्र, राष्ट्र और दुनिया के बीच एक समन्वय को प्रदर्शित किया है। शुचिता में नैतिक रूप से सही और न्यायपूर्ण होने का गुण है, जो किसी भी शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज का आधार बनती है। प्रत्येक धर्म शुचिता की गुणवत्ता पर ज्यादा जोर देता है और अंत तक समाज में इसे बनाये रखने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए- हिंदू पौराणिक कथाओं और ग्रंथों में शुचिता का मार्ग अर्थात् धर्म को प्रत्येक मनुष्य का आदर्श मार्ग या परम कर्त्तव्य माना जाता है।
Question : वर्तमान संदर्भ में निम्नलिखित में से प्रत्येक उद्धरण का आपके विचार से क्या अभिप्राय है
(2018)
Answer : (a) प्रत्येक वस्तु, व्यक्ति, विचार आदि के दो पहलू होते है यथा अच्छा पक्ष और बुरा पक्ष। इन दोनों पक्ष अर्थात पहलूओं जिसकी मात्र ज्यादा होती है और जो तत्कालीन परिस्थितियों में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर पाता है उसी आधार पर उसका मूल्यांकन किया जाता है।
(b) महात्मा गांधी के उपरोक्त कथन से तात्पर्य है कि विवेकी व्यक्ति कभी भी क्रोध में निर्णय नहीं लेता और निर्णय लेते समय अन्य के मत का भी सम्मान करता है। क्रोध में होने पर व्यक्ति अच्छे एवं बुरे के मध्य विभेद नहीं कर पाता है और कुछ ऐसा कर बैठता है बाद में उसके बारे में सोचने पर स्वयं उसे पछतावा होता है जैसे क्रोध में आने पर बिना जाने गाली देना, झगड़ा करना, सड़क पर गाड़ी टकराने पर एक दूसरे की हत्या कर देना। क्रोधित व्यक्ति क्रोध के वशीभूत होकर तत्काल अपने निर्णय की पुष्टि करने को आतूर होता है जिसका परिणाम नकारात्मक होता है। जब व्यक्ति दूसरों के विचारों, भावों का सम्मान नहीं करता अर्थात अन्य के विचारों को महत्व नहीं देता तो उसका निर्णय पूरी तरह उचित नहीं होता है। उदाहरण के लिए वर्तमान समय में देश के अंदर अलग अलग विचारों को मानने वालों के मध्य तथा कथित असहिष्णुता का भाव देखने को मिलता है जो कहीं न कहीं देश में अराजकता को बढ़ावा देता है और साम्प्रदायिक सद्भाव को कमजोर करता है।
(c) तिरुक्कुरल का यह कथन परिणामवादी नैतिकता को व्यक्त करता है। यहां पर वे साधन की जगह साध्य की पात्रता को महत्व देते है अर्थात वे मानते है कि कुछ गलत काम करने पर उसका परिणाम समाज के हित में होता है तो वह गलत कार्य गलत नहीं रह जाता। यह सही है कि हमें अपने जीवन में सत्य का पालन करना चाहिए किन्तु कई बार परिस्थितियां ऐसी होती है कि हमारे द्वारा बोला गया सत्य सार्वजनिक कल्याण के विरुद्ध हो सकता है। इसे हम एक उदाहरण के माध्यम से समझ सकते है। कल्पना कीजिए कि आप एक भारत सरकार की गुप्तचर एजेंसी के अधिकारी है और आपके दुश्मन देश द्वारा गिरफ्रतार कर लिया जाता है तो आप उस परिस्थिति में सत्य की जगह असत्य बातों का प्रयोग करते है तो वह असत्य सत्य से भी बड़ा माना जाता है। यदि असत्य बोलने से समाज का हित हो, संवैधानिक मूल्यों की स्थापना होती है, लोगों में नैतिक गुणों का संचार हो और कार्य में प्रति लगाव बढे तो उस परिस्थिति में असत्य भी सत्य का स्थान ले लेता है।
Question : ‘‘बड़ी महत्वाकांक्षा महान चरित्र का भावावेश (जुनून) है जो इससे संपन्न है वे या तो बहुत अच्छे अथवा बहुत बुरे कार्य कर सकते है। यह सब कुछ उन सिद्वांतों पर आधारित है जिससे वे निर्देशित होते है।” नेपोलिन बोनापार्ट का उदाहरण देते हुए उन शासकों का उल्लेख कीजिये जिन्होंने
(2017)
Answer : दुनिया के महान कार्य अपने आप या आकस्मिक रूप से नहीं हुए है, अपितु इसके पीछे एक बड़ी महत्वाकांक्षा का जूनून कार्य कर रहा था। उच्च महत्वाकांक्षी व्यक्ति समाज को एक नई दिशा प्रदान कर सकता है।
यदि वे उच्च सिद्धांतों का पालन करे लेकिन निकृष्ट विचारों से सचांलित महत्वाकांक्षी व्यक्ति समाज व देश का अहित कर सकते हैं। इतिहास के कई उदाहरण इसके साक्षी हैं-
(i) ऐसे महत्वाकांक्षी शासक जिन्होंने समाज व देश का अहित किया हो- जब बड़ी महत्वाकांक्षा निकृष्ट सिद्धान्तों पर आधारित होती है तो वह समाज व देश के लिए विनाशकारी सिद्ध होती है, इससे देश अनेक समस्याओं से ग्रस्त हो जाता है। जनता को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए हिटलर एवं मुसोलिनी ने क्रमशः नाजीवाद एवं फॉसीवादी सिद्धांतों के द्वारा दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध की ओर धकेल दिया जिसके कारण विश्व को अपूर्णनीय क्षति उठानी पड़ी। इसी प्रकार हुस्नी मुबारक, सद्दाम हुसैन, किंमजोंग इन तानाशाहों ने अपने देश की जनता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन कर उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया।
(ii) ऐसे महत्वाकांक्षी शासक जिन्होंने समाज व देश के विकास के लिए कार्य किया हो- बड़ी महत्वाकांक्षा एवं उच्च सिद्धांतों का पालन करने वाला महान चरित्र समाज देश के विकास को नवीन दिशा प्रदान करता है। वह समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर समाज में नई शक्ति का संचार करता है। इन महान चरित्रों में शामिल हैं- अशोक महान जिसने धम्म सिद्धांत का पालन कर दुनिया के समक्ष जो उदाहरण पेश किया उसका पालन आज भी देश एवं विदेश दोनो जगह देखा जा सकता है। इसी प्रकार अकबर महान, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नहेरू, मुस्तफा कमाल पाशा, नेल्सन मंडेला आदि महान विभूतियों के जीवन वृत्त
पर नजर डालने पर ज्ञान होता है कि इनकी सकारात्मक सोच ने देश और समाज के लिए कुछ विशेष करने की महत्वाकांझा ने ही इन्हें इतिहास के महानतम युग पुरुषों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। इस तरह हम कह सकते हैं कि बड़ी महत्वाकांक्षा तभी समाज, देश और विश्व के विकास में काम आ सकती है, जब वह उच्च सिद्धांतों से परिपूर्णित हो।
Question : ‘‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि किसी राष्ट्र को भ्रष्टाचार मुक्त और सुंदर मनों वाला बनाना है तो उसमें समाज के तीन प्रमुख लोग अंतर ला सकते है। वे हैं पिता, माता, एवं शिक्षक” – ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। विश्लेषण कीजिये।
(2017)
Answer : ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी का उपरोक्त कथन राष्ट्र के विकास में पिता, माता और शिक्षक के माध्यम से बच्चों की भूमिका को रेखांकित करता है। बच्चे देश का भविष्य होते हैं, वही आगे चलकर देश की बागडोर संभालते हैं। इसलिए यदि शैशव अवस्था में ही बच्चों के मन में नैतिक मूल्यों जैसे ईमानदारी, सहिष्णुता, निष्पक्षता, सहानुभूति, दया, करूणा प्रेम आदि का समावेश कर दिया जाए तो कोई भी राष्ट्र भ्रष्टाचार मुक्त और सुंदर मनों वाला बन सकता है।
Question : प्रशासनिक पद्धतियों में भावनात्मक बुद्धि का आप किस तरह प्रयोग करेंगे?
(2017)
Answer : अपनी और दूसरों की भावनाओं की समझ तथा उनका प्रबंधन करना भावनात्मक बुद्धिमत्ता कहलाता है। प्रशासनिक पद्धतियों में भावनात्मक बुद्धि का महत्वपूर्ण स्थान है। भावनात्मक बुद्धि का प्रयोग करके प्रशासक अपने आप को आत्मानियंत्रित रखते हुए स्वयं को और दूसरों को प्रोत्साहित करता है। इतना ही नहीं प्रशासक दूसरों की समस्याओं को बेहतर तरीके से समझ सकता है। भावनात्मक बुद्धि का प्रशासन में अनेक तरीके से प्रयोग किया जा सकता है। इससे व्यक्ति अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखकर सोच-विचार कर कोई निर्णय करता है जिससे उसका निर्णय अधिक फलदायी और प्रभावी होता है। जब प्रशासक दूसरों की भावनाओं को समझता है तो वह पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने से हिचकिचाता है जिससे गैर तरफदारी का मूल्य विकसित होता है। इससे प्रशासक में सेवाभाव को बढ़ावा मिलता है। वह क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए तत्पर रहता है।
Question : महात्मा गांधी की सात पापों की संकल्पना की विवेचना कीजिए।
(2016)
Answer : गांधीजी द्वारा बताए गए सात पाप इस प्रकार हैं- सिद्धांत रहित राजनीति, परिश्रम रहित धनोपार्जन, विवेक रहित सुख, चरित्र शुन्य ज्ञान, सदाचार रहित व्यापार, संवेदना रहित विज्ञान और वैराग्य रहित उपासना।
Question : ‘‘भ्रष्टाचार सरकारी राजकोष का दुरुपयोग, प्रशासनिक अदक्षता एवं राष्ट्रीय विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है।” कौटिल्य के विचारों की विवेचना कीजिए।
(2016)
Answer : कौटिल्य के मुताबिक भ्रष्टाचार समाज में सदा से रहा है। यह मानव स्वभाव में ही विद्यमान है तथा मानव समाज व देश को कई प्रकार से प्रभावित करता है। कौटिल्य के अनुसार राजकोष के दुरूपयोग के अन्तर्गत शासन में नियुक्त आधिकारी धन का दुरूपयोग दो प्रकार से करते हैं एक तो वे किसी कार्य विशेष के लिए आवंटित धन को पूर्णतः/आंशिक अकेले या अन्य जनों के साथ मिलकर हड़प जाते हैं। दूसरा वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की उचित निगरानी नहीं करते तथा उन्हें धन हड़पने का अवसर देते हैं।
Question : क्रोध एक हानिकारक नकारात्मक संवेग है। यह व्यक्तिगत जीवन एवं कार्य जीवन दोनों के लिए हानिकर है।
चर्चा कीजिए कि यह किस प्रकार नकारात्मक संवेगों और अवांछनीय व्यवहारों को पैदा कर देता है।
(2016)
Answer : क्रोध एक भावनात्मक अवस्था है। इसकी तीव्रता कम या ज्यादा हो सकती है। तीव्रता अगर कम हो तो यह साधारण चिढ़चिढ़ापन का रूप ले लेती है और अगर तीव्रता अधिक हो तो क्रोध भयानक और आक्रामक व्यवहार में परिवर्तित हो सकती है। आमतौर पर क्रोध की अवस्था में व्यक्ति स्वाभाविक तौर पर आक्रामक व्यवहार ही करता है अर्थात यह किसी न किसी प्रकार से व्यक्ति के व्यवहार में परिलक्षित हो ही जाता है। परंतु क्रोध का प्रबंधन कर उसे सामान्य व्यवहार में परिवर्तित किया जा सकता है या फिर इसे एक सही दिशा भी दी जा सकती है। अगर क्रोध का बेहतर प्रबंधन न किया जाए तो इसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं। क्रोध के कारण कई बार व्यक्ति अपनी प्रतिक्रिया और व्यवहार को नहीं समझ पाते और दूसरों के साथ अपना संबंध खराब भी कर लेते हैं। पुनः क्रोध की अवस्था में अपने संवेगों का आत्म प्रबंधन करना संभव नहीं हो पाता और उसे इच्छित दिशा में नहीं मोड़ा जा सकता।
अतः व्यक्ति को स्वप्रेरणा नहीं मिलती और व्यक्ति निराशावादी होकर गलत निर्णय ले सकता है। क्रोध की अवस्था में व्यक्ति दूसरे के संवेगों को पहचान पाने में असमर्थ रहता है और इसलिए दूसरे के विचारों को समझ कर प्रतिक्रिया करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में दूसरों के साथ उचित व्यवहार की संभावना कम जाती है। सामान्य अवस्था में हम दूसरों के संवेगों का संचालन कर उसकी अभिवृत्ति में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। परंतु क्रोध की अवस्था में दूसरों के संवेगों का संचालन मुश्किल हो जाता है इससे अंतरवैयक्तिक संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
Question : इसे कैसे व्यवस्थित एवं नियंत्रित किया जा सकता है?
(2016)
Answer : क्रोध का प्रबंधन करना आवश्यक है क्योंकि यह एक प्रकार की नकारात्मक संवेगात्मक मानसिक अवस्था है जिसके हानिकारक परिणाम हो सकते हैं। क्रोध के प्रबंधन के लिए सबसे पहले तो यह जरूरी है कि व्यक्ति के लिए अपने संवेगों का ज्ञान तथा उसका विश्लेषण करना आवश्यक है। अपने संवेगों की पहचान कर उन्हें अपनी इच्छाओं को स्वयं पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए अगर ये व्यावहारिक और स्वाभाविक रूप से संभव हो। आमतौर पर क्रोध की अवस्था में व्यक्ति तुरंत ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता है। ऐसे में वह गलत निर्णय भी ले सकता है जिसका परिणाम नकारात्मक हो सकता है।
अतः क्रोध की अवस्था में भी दूसरे की बातों को सुनने की कोशिश करनी चाहिए जिसके पश्चात ही प्रतिक्रिया देना उचित है। आवश्यक समय लेते हुए ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना उचित है। पुनः क्रोध की अवस्था में भी यह समझना जरूरी है कि इस क्रोध का कारण क्या है और इसकी जड़ तक पहुंचकर उस मौलिक समस्या का हल करना जरूरी है। पुनः क्रोध की अवस्था में भी इसे एक सही दिशा दी जा सकती है। ऐसे में संवेगों पर नियंत्रण कर उचित तरीके से ही क्रोध को व्यक्त करना जरूरी है ताकि स्वयं एवं दूसरों को इससे किसी विशेष समस्या का सामना न करना पड़े।
Question : ‘‘मैक्स वैबर ने कहा था कि जिस प्रकार के नैतिक प्रतिमानों को हम व्यक्तिगत अंतरात्मा के मामलों पर लागू करते हैं, उस प्रकार के नैतिक प्रतिमानों को लोक प्रशासन पर लागू करना समझदारी नहीं है। इस बात को समझ लेना महत्वपूर्ण है कि हो सकता है कि राज्य के अधिकारीतंत्र के पास अपनी स्वयं की स्वतंत्र अधिकारीतंत्रीय नैतिकता हो।” इस कथन का समालोचनापूर्वक विश्लेषण कीजिए।
(2016)
Answer : वैबर के अनुसार नौकरशाही की कुछ विशेषताएं हैं जैसे सोपानक्रम वाला संगठन, स्पष्ट तौर पर रेखांकित किया गया प्राधिकार, लिखित नियम आदि। वैबर ने नौकरशाहों के निजी व लोक जीवन के बीच अंतर स्पष्ट किया है। वैबर के मुताबिक नौकरशाह व्यक्तिगत रूप से स्वतंत्र होते हैं परंतु उन्हें कानूनी और विवेकसम्मत प्राधिकार के प्रति उत्तरदायी भी होना पड़ता है। उन्हें उनके लिए कर्तव्यों की एक स्पष्ट सूची होती है जिसके मुताबिक उन्हें अपना कार्य निष्पादन करना पड़ता है परंतु कुछ ऐसे भी कर्तव्य होते हैं जो उस सूची में रेखांकित नहीं किए जाते और इसलिए उन कर्तव्यों से वे मुक्त रहते हैं।
Question : ‘‘भावात्मक प्रज्ञता” क्या होता है और यह लोगों में किस प्रकार विकसित किया जा सकता है? किसी व्यक्ति विशेष को नैतिक निर्णय लेने में यह कैसे सहायक होता है?
(2013)
Answer : दूसरों की भावनाओं को समझना तथा संबंधों का प्रभावी प्रबन्धन भावनात्मक प्रज्ञता कहलाता है। भावनात्मक प्रज्ञ व्यक्ति सामान्यतः आत्म जागरूक होते हैं। वे अपनी भावनाओं को समझते हैं इसलिए वे अपनी भावनाओं को अपने पर हावी नहीं होने देते। जो व्यक्ति आत्म नियंत्रित होते हैं वे न तो अधिक गुस्सा होते हैं और न ही जल्दबाजी में कोई निर्णय लेते हैं। वे कुछ भी करने से पहले सोचते हैं।
भावनात्मक प्रज्ञ व्यक्ति सामान्यतः प्रोत्साहित रहते हैं। वे उच्च उत्पादक, चुनौती स्वीकार करने वाले होते हैं। भावनात्मक प्रज्ञ व्यक्ति संवेदनशील होते हैं। संवेदनशील व्यक्ति दूसरों की भावनाओं को अच्छे से समझता है। इसलिए संवेदनशील व्यक्ति संबंधों के प्रबन्धन में सामान्यतः उत्कृष्ट होते हैं।
Question : तीन महान नैतिक विचारकों/दार्शनिकों के अवतरण नीचे दिए गए हैं। आपके लिए प्रत्येक अवतरण का वर्तमान सन्दर्भ में क्या महत्व है, स्पष्ट कीजिएः
(2013)
Answer : (a) प्रकृति इस तरह बनी है कि पारिस्थितिक तन्त्र में एक सन्तुलन बना रहता है। प्रकृति सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है। दुर्भाग्यवश मनुष्य अपने लालच के लिए प्रकृति का अपनी आवश्यकताओं से अधिक दोहन कर रहा है।
(b) सभी व्यक्ति एक हद तक कठिनाइयों से लड़ सकते हैं। यह जीवन का एक हिस्सा है। विपरीत परिस्थितियां हमारी शक्ति, सहनशीलता व जीवन के प्रति हमारे नजरिये की परीक्षा लेती है। व्यक्ति सत्ता को वैसे संभालते हैं इससे उसके चरित्र का परीक्षण किया जाता है। एक चरित्रवान व्यक्ति सत्ता का दुरुपयोग नहीं करेगा, जबकि खराब चरित्र का व्यक्ति सत्ता का उपयोग अपने स्वयं के हितों को पूरा करने के लिए करेगा। कोई व्यक्ति कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम हो सकता है परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि वह दूसरों के लिए अच्छा या निष्पक्ष हो। सत्ता व्यक्ति के कार्यों को प्रभावित कर सकती है।
(c) यह मानवता के शाश्वत आन्तरिक संघर्ष का विषय है। अपनी इच्छाओं पर विजय पाना एक शत्रु पर विजय पाने से मुश्किल होता है। बाह्य संघर्ष की स्थिति में आप आंतरिक संघर्ष को अनदेखा कर सकते हैं। आत्मसंघर्ष की स्थिति में ईमानदारी व सत्यनिष्ठा के एक स्तर पर आना पड़ता है जो कि बहुत सराहनीय तथा मुश्किल होता है। अपनी प्रेरणा व इच्छाओं को समझने लिए आत्मज्ञान होना आवश्यक है। इच्छाओं को विजित करने के लिए आत्मज्ञान होना चाहिए, तब ही आत्मसंयम आयेगा। आत्मसंयम द्वारा इच्छाओं पर विजय पाई जा सकेगी।
Question : जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार “सभी नैतिकता का आधार सबसे बड़ी खुशी का सिद्धांत होना चाहिए।” टिप्पणी कीजिए। एक उपयुक्त समस्या अध्ययन के माध्यम से यह दर्शाइये कि यह सिद्धांत अभी भी प्रासंगिक है।
Answer : उत्तरः बेंथम ने नीतिशास्त्रीय मुद्दों को अधिक व्यक्तिवादी नजरिए से देखा। उसका तर्क तथा कि चूंकि समाज व्यक्तियों से बना होता है, यह पर्याप्त होगा कि पूरे विषय को व्यक्तिगत उपयोगिता-मांग के नीतिशास्त्रीय आधार के रूप में रखकर, देखा जाए।
जॉन स्टूअर्ट मिल ने बेंथम के दृष्टिकोण में आगे सुधार करते हुए कहाः
Question : स्वामी विवेकानन्द का मत कि ‘संन्यास वह मूल आधार है जिस पर नीतिशास्त्र खड़ा है’ की चर्चा करें।
Answer : उत्तर: विवेकानन्द के अनुसार ‘‘इंद्रियां कहती है पहले मैं। लेकिन नीतिशास्त्र कहता है कि मुझे स्वयं को सबसे अंत में रखना चाहिए।’’
Question : नौकरशाही संरचना पर भावनात्मक समझ (Emotional intelligence) के प्रभाव की व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः नौकरशाही संरचना पर भावनात्मक समझ का प्रभावः
प्रत्यक्ष भावात्मक बुद्धिमता की तीन प्रमुख संकल्पनाएं हैं:
निर्णय निर्माण में सुधारः बिना भावनाओं को शामिल किए तंत्रिकीय स्तर पर निर्णय-निर्माण असंभव है।
Question : निम्न पदों को उचित उदहारण के साथ समझाएं:
(a) भावनात्मक समझ
(b) कपटपूर्ण भ्रष्टाचार
(c) नैतिक लब्धि
Answer : उत्तर: (a) भावनात्मक समझः यह किसी भी व्यक्ति अथवा खुद की भावनाओं को प्रबंधन करने की क्षमता है।
(b) कपटपूर्ण भ्रष्टाचारः किसी व्यक्ति का रिश्वत देने की इच्छा एवं अपना कार्य पूर्ण करवाने की मंशा ही कपटपूर्ण भ्रष्टाचार है। इसमें रिश्वत देने वाले अपने स्वेच्छा से दूसरे व्यक्ति को रिश्वत की पेशगी करते हैं ताकि उनका कार्य हो सके। इस स्थिति में सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र के अधिकारियों से गठजोड़ करते हैं एवं रिश्वत के बदले अपना कार्य पूरा करवाते हैं। यह परंपरा व्यापारिक वातावरण में ज्यादा प्रबल है।
(c) नैतिक लब्धिः सभी मानव नियमों एवं नीतियों के द्वारा संचालित होते हैं ये वो नैतिक मूल्य है जो किसी व्यक्ति को सही राह को पकड़ कर निश्चित निर्णय पर पहुचने की प्ररेणा देते हैं। नैतिक उपलब्धि आंतरिक लब्धि से भिन्न है। नैतिक लब्धि के बिना किए गए कार्य को पूरा होने में संशय की स्थिति बनी रही है।
Question : भारत में नीति निर्माण की समस्याओं का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए तथा समाधान भी बताइये।
Answer : उत्तरः भारत में नीतिनिर्माण में समस्याएं:
भारत में सार्वजनिक नीति निर्माण के सुधार हेतु सुझावः
Question : ‘तटस्थता लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में सिविल सेवा की एक प्रमुख अभिलक्षण है। वर्तमान संदर्भ में जब भारतीय शासन-प्रशासन बहुलीय राजनीतिक व्यवस्था से परिचालित हो रही है। तटस्थता की अवधारणा का भारतीय संदर्भ में परीक्षण करें।
Answer : उत्तरः तटस्थता मूलतः एक राजनैतिक विचार है। सिविल सेवा में तटस्थता एक महत्वपूर्ण सैद्धांतिक अवस्था है। दलीय राजनीति व्यवस्था तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक कि नौकरशाह तटस्थ न हो।
इस प्रकार उपर्युक्त संदर्भों के आलोक में तटस्थता की अवधारणा को भारतीय प्रशासन के संदर्भ में समझा जा सकता है।