Question : व्यापक राष्ट्रीय शक्ति (CNP) के तीन मुख्य घटकों, जैसे- मानवीय पूंजी, मृदु शक्ति (संस्कृति एवं नीतियां) तथा सामाजिक सद्भाव की अभिवृद्धि में नीतिशास्त्र एवं मूल्यों की भूमिका की विवेचना कीजिए?
(2020)
Answer : व्यापक राष्ट्रीय शक्ति मुख्य रूप से एक चीनी अवधारणा है, जो पश्चिमी अवधारणा के विपरीत किसी राष्ट्र की समग्र शक्तियों का योग प्रदर्शित करती है। इसके मुख्य घटकों में उस राष्ट्र की आर्थिक शक्ति, सैन्य शक्ति, शिक्षा की स्थिति, तकनीकी क्षमता, मानव पूंजी का प्रयोग, सामरिक शक्ति, सामाजिक सद्भाव एवं सांस्कृतिक प्रभुत्व को शामिल किया जाता है।
किसी राष्ट्र की व्यापक राष्ट्रीय शक्ति के तीन मुख्य घटकों-मानव पूंजी, सामाजिक सद्भाव एवं मृदु शक्ति की वृद्धि में नीतिशास्त्र एवं मूल्यों की निम्नलिखित भूमिका है-
अन्ततः व्यापक राष्ट्रीय शक्ति में राष्ट्र की मानवीय पूंजी, मृदु शक्ति एवं सामाजिक सद्भाव का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह राष्ट्र को आन्तरिक रूप से आर्थिक सक्षम एवं अखण्ड बनाने के साथ ही वैश्विक स्तर पर राष्ट्र की छवि को प्रदर्शित करने में सहायता करती है।
Question : “शिक्षा एक निषेधाज्ञा नहीं है, यह व्यक्ति के समग्र विकास और सामाजिक बदलाव के लिये एक प्रभावी एवं व्यापक साधन है।” उपर्युक्त कथन के आलोक में नई शिक्षा नीति 2020 का परीक्षण करें।
(2020)
Answer : शिक्षा एक ऐसा उपकरण है, जो न सिर्फ मानवीय क्षमताओं का संवर्द्धन करती है, बल्कि एक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण एवं राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देती है। इससे मनुष्य की आन्तरिक शक्तियों का विकास तथा व्यवहार को परिष्कृत करने में मदद मिलती है। यह आर्थिक विकास, न्याय, समानता एवं वैज्ञानिक उन्नति की कुंजी है। शिक्षा न सिर्फ यह बताती है कि मनुष्य को कैसा आचरण करना चाहिये, बल्कि वह मनुष्य के बुद्धि-विवेक एवं ज्ञान का उन्नयन कर उसकी आत्मोन्नति पर विशेष जोर देती है। नई शिक्षा नीति-2020 राष्ट्र में शिक्षा के वातावरण में बदलाव के कई प्रस्ताव करती है, जो निम्नलिखित हैं-
अन्ततः कुछ चुनौतियों के बाद भी NEP-2020 में वे सभी विशेषतायें हैं, जो भारत को एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करके वैश्विक महाशक्ति बनने में मदद कर सकती है।
Question : “घृणा व्यक्ति की बुद्धिमता और अन्तःकरण के लिये संहारक है, जो राष्ट्र के चित्त को विषाक्त कर सकती है।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर की तर्क संगत व्याख्या करें?
(2020)
Answer : इसमें कोई सन्देह नहीं है कि घृणा व्यक्ति की बुद्धिमता तथा राष्ट्र के चित्त दोनों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। जहां घृणा व्यक्ति में गुस्सा, हिंसक मनोवृत्ति को बढ़ावा, असुरक्षा की भावना, आत्मविश्वास में कमी आदि को बढ़ावा देती है, वहीं घृणा के कारण राष्ट्र में सांप्रदायिक एवं हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा, धर्मनिरपेक्षता के समक्ष संकट, महिला अपराधों में वृद्धि एवं आतंकवाद का उदय जैसी घटनाएं होती हैं, जिसे निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से समझा जा सकता है-
Question : संवेगात्मक बुद्धि के मुख्य घटक क्या है? क्या इन्हें सीखा जा सकता है? विवेचना कीजिए।
(2020)
Answer : संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य स्वयं की भावनाओं को पहचानने तथा दूसरों की भावनाओं को समझने, फिर इस ज्ञान का उपयोग कर निर्वाचन व कार्य करने से है। डेनियल गोलमैन ने इसके निम्नलिखित घटक बताये हैं-
संवेगात्मक बुद्धि के घटकों को सीखने की प्रक्रिया-
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि संवेगात्मक बुद्धि एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति में नेतृत्व, प्रबन्धन जैसे गुणों का समुचित विकास होता है, जिसका उपयोग राष्ट्रहित में किया जा सकता है।
Question : सार्वजनिक जीवन के आधारिक सिद्धांत क्या हैं? इनमें से किन्हीं तीन सिद्धांतों को उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये?
(2020)
Answer : सार्वजनिक जीवन के ऐसे गुण और लक्षण होते हैं जिन्हें प्रत्येक जन प्रतिनिधि या अधिकारी को स्वयं के अंदर विकसित करना चाहिए। इन गुणों को विकसित करने के लिए कुछ सिद्धांतों का पालन करना होता है, जिन्हें सार्वजनिक जीवन के मूल सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। इनमें से तीन प्रमुख इस प्रकार हैं-
Question : सांविधानिक नैतिकता से आप क्या समझते हैं? सांविधानिक नैतिकता का अनुरक्षण कोई किस प्रकार करता है?
(2019)
Answer : संवैधानिक नैतिकता को संविधान को मजबूती देने वाली विषय वस्तु के रूप में संदर्भित किया जाता है। इस दृष्टिकोण से शासन प्रणाली को संविधान में निहित नैतिक निहितार्थ के माध्यम से शासित होना चाहिए। डॉ. अंबेडकर के दृष्टिकोण से, संवैधानिक नैतिकता उन समझौतों और प्रोटोकॉल को संदर्भित करती है जहां संविधान विवेकाधीन शक्ति को निहित करता है और मौन रहता है। संवैधानिक नैतिकता के तत्वों में स्वतंत्रता एवं आत्म-संयम, बहुमत की मान्यता और देवत्वारोपण पर संदेह शामिल हैं।
संवैधानिक नैतिकता बनाए रखने के निम्नलिखित उपाय हैं-
ईमानदारी का अर्थ व्यापक है, इसमें न्यायनिष्ठा, सत्यनिष्ठा, तटस्थता, जवाबदेहिता, पारदर्शिता, सत्य जैसे मूल्यों का अनुसरण शामिल है। ईमानदार होने का अर्थ केवल भ्रष्टाचार से दूर रहना नहीं है, बल्कि इन नैतिक मूल्यों का अनुसरण करना भी आवश्यक है।
संवैधानिक कानूनों के प्रभावी होने के लिए संवैधानिक नैतिकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। संवैधानिक नैतिकता के बिना संविधान का संचालन मनमाना, अनिश्चित और द्वेषपूर्ण हो जाता है। ‘संवैधानिक नैतिकता’को बनाए रखना वास्तव में हमारे अधिकारों के साथ-साथ हमारे नैतिक कर्त्तव्य का भी एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे संभव बनाने के लिए समाज के सभी वर्गों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।
Question : सार्वजनिक क्षेत्र में हित संघर्ष तब उत्पन्न होता है, जब निम्नलिखित की एक-दूसरे के ऊपर प्राथमिकता रखते हैं:
(a)पदीय कर्तव्य
(b)सार्वजनिक हित
(c)व्यक्तिगत हित
प्रशासन में इस संघर्ष को कैसे सुलझाया जा सकता है? उदाहरण सहित वर्णन कीजिये।
(2017)
Answer : सामान्यतः सार्वजनिक क्षेत्र में हित संघर्ष उस समय उत्पन्न होता है जब व्यक्ति के व्यक्तिगत हितों और सार्वजनिक हितों के मध्य टकराहट उत्पन्न होता है। साथ ही व्यक्ति अपने पदीय कर्तव्यों को भूलकर सार्वजनिक हितों पर व्यक्तिगत हितों को वरीयता देने लगता है।
प्रशासन में इस प्रकार के संघर्ष की निम्नांकित तरीके से सुलझाया जा सकता है-
Question : स्पष्ट कीजिए कि आचारनीति समाज और मानव का किस प्रकार भला करती है?
(2016)
Answer : मानवीय और सामाजिक क्रियाकलापों में आचारशास्त्र का परिणाम वस्तुतः नैतिक मूल्यों की प्रकृति से निर्धारित होता है। ज्ञातव्य है कि आचारशास्त्र मानवीय क्रियाकलापों का अध्ययन करता है। अतः यदि कोई मनुष्य अपने क्रियाकलापों में नैतिकता के मानदंडों का पालन करता है तब एक सिर्फ उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है बल्कि स्वयं उसके अंदर सदगुणों का विकास होता है। आचारशास्त्र व्यक्ति को विपरित परिस्थितियों में भी सहज रखने में सहायक होती है तथा व्यक्ति के अंदर सहिष्णुता का विकास होता है जिससे समाज में एकता एवं स्थायित्व का विकास होता है। चूंकि आचारशास्त्र वैज्ञानिक अध्ययन है और इसलिए एक लाभ यह भी है कि बहुत सी प्रचलित त्रुटियां तथा रूढि़वादी नीति संबंधी अंधविश्वासों से मस्तिष्क मुक्त हो जाता है। मनुष्य अज्ञानता के कारण बहुत सी ऐसी बातें नीतियुक्त मानता है जो वास्तव में नीति की दृष्टि से मान्य नहीं है। अतः मानव प्रचलित रीति रिवाजों की बुराइयों से मुक्त हो उनमें परिवर्तन लाता है जो समाज के लिए एक स्वस्थ दिशा प्रदान करती है। पुनः प्रत्येक समाज कुछ मूल्यों के आधार पर खड़ा होता है और यह समाज को बांधे रखता है। इन मूल्यों के त्याग से या अनावश्यक फेरबदल से सामाजिक व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है। अतः आचारशास्त्र नैतिक मूल्यों पर जोर देकर सामाजिक व्यवस्था के स्थायित्व और समायोजन में मदद करती है। वर्तमान भौतिकवादी युग में आचारशास्त्र और भी आवश्यक है। विज्ञानों द्वारा शारीरिक सुख के साधनों को बढ़ा लिया गया है परंतु इनका प्रयोजन अस्पष्ट है।इसका फल वर्तमान संघर्ष, विषमता तथा कुस्सित आचरण के रूप में प्रत्यक्ष है। आचारशास्त्र ही व्यक्ति को ऐसे में सही मार्ग बतलाता है। अतः इसकी उपयोगिता व्यक्ति और समाज दोनों के लिए संदेह से परे है।
Question : ‘पर्यावरणीय नैतिकता’का क्या अर्थ है? इसका अध्ययन करना किस कारण महत्वपूर्ण है? पर्यावरणीय नैतिकता की दृष्टि से किसी एक पर्यावरणीय मुद्दें पर चर्चा कीजिए।
(2015)
Answer : ‘पर्यावरणीय नैतिकता’से तात्पर्य है एक ऐसा दर्शन जो पर्यावरण के साथ मानवमात्र के नैतिक रिश्तों की व्याख्या करता है। पर्यावरणीय नैतिकता के अन्तर्गत हम मानवीय क्रियाकलापों के पर्यावरणीय प्रभावों को विश्लेषित करते हैं। भारत में सिन्धुघाटी सभ्यता के काल से ही प्रकृति पूजा की एक कड़ी प्राचीन काल से चली आ रही है। परन्तु हाल ही में जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण, प्रौद्योगिकी के विकास तथा नगरीकरण इत्यादि के आलोक में हुए प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के परिणामस्वरूप ‘पर्यावरणीय नैतिकता’का मुद्दा एक ज्वलंत प्रश्न बनकर उभरा है। अतः आज भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कथन ‘‘प्रकृति सबकी इच्छा पूर्ति कर सकती हैं, परंतु मानव के लालच की नहीं” से प्रेरणा पाकर सत्तत् एवं समावेशी विकास के मार्ग पर चलकर प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन के पथ पर चल पड़ा है ताकि वैश्विक ऊष्मण तथा जलवायु परिवर्तन पर लगाम कसते हुए जैव विविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए सतत् विकास किया जा सके।
Question : निम्नलिखित के बीच विभेदन कीजिए
1. विधि और नैतिकता
(2015)
Question : निम्नलिखित के बीच विभेदन कीजिए
1. नैतिक प्रबंधन और नैतिकता का प्रबंधन
(2015)
Answer : नैतिक प्रबंधन, में नैतिकता का समावेश होता है, जो बुरे व्यवहार से परहेज करने का निर्देश देता है। इसे समाज द्वारा व्यापार के लिए वांछित मुल्यों का पूलिंदा कह सकते हैं जिसमें स्पष्ट पारदर्शी तथा नैतिक व्यापार की मान्यताएं निहित होती है। दूसरी और नैतिकता का प्रबंधन एक दिन से लेकर समस्त जीवन पर नैतिक होने का निर्देश देता है। यह हितों के संघर्ष से निपटने, जीवन में संतोषजनक ढंग से प्रदर्शन करने और नैतिक दृष्टि से निर्णय करने में सक्षम बनाता है। ये निजी नैतिक मूल्यों के प्रबंधन से सम्बन्धित अवधारणा है। परन्तु इन्हें पूरे समाज की सहमति की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह व्यक्ति दर व्यक्ति नैतिक मूल्यों के प्रबंधन की आवधारणा है।जो व्यक्ति दर व्यक्ति बदल भी सकती है।
Question : निम्नलिखित के बीच विभेदन कीजिए
1. भेदभाव और अधिमानी बरताव
(2015)
Answer : भेदभावः भेदभाव को दो अर्थो में समझा जा सकता है; पहला सकारात्मक-भेदभाव जैसा की भारतीय संविधान में सामाजिक एवं शैक्षिक आधार पर आरक्षण देकर किया गया है। ऐसा ही सकारात्मक भेदभाव अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को तथा ट्रेन व बस में सफर करते समय महिलाओं, बच्चों तथा विकलांगों के लिए आरक्षित सीटों के सन्दर्भ में भी देखते है। दूसरा नकारात्मक भेदभाव होता है जो भाई-भतीजावाद, पक्षपात इत्यादि के रूप में दिखाई देता है। किसी वर्ग, जाति, धर्म, लिंग या परिवार के लोगों को योग्यता को दरकिनार करते हुए अपने पद का दुरूपयोग करते हुए लाभ पहुंचाना नकारात्मक भेदभाव माना जाता है।
Question : निम्नलिखित के बीच विभेदन कीजिए
1. वैयक्तिक नैतिकता और संव्यावसायिक नैतिकता
(2015)
Answer : वैयक्तिक नैतिकताः
संव्यवसायिक नैतिकता
Question : सभी मानव सुख की आकांक्षा करते हैं। क्या आप इस बात से सहमत हैं? आपके लिए सुख का क्या-क्या अर्थ है? उदाहरण प्रस्तुत करते हुए स्पष्ट कीजिए।
(2014)
Answer : एक सामान्य व्यक्ति ही नहीं बल्कि संत-फकीर आदि भी सुख की आकांक्षा रखते हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकता। वस्तुतः मानव विकास के क्रम में मानव जीवन में सुख एक लक्षित विषय रहा है। परन्तु सुख को परिभाषित करना कठिन है क्योंकि यह एक जटिल विषय है। आम तौर पर इसके दो अर्थ निकाले जाते हैं- प्रथम एक भाव के रूप में तथा द्वितीय एक मूल्यांकन के रूप में। यदि विभिन्न व्यक्तियों से इन दो अलग प्रश्नों के बारे में पूछा जाए तो उनके उत्तरों से ‘सुख’के पैमाने का पता लगाना मुश्किल होगा। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि दो भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए सुख की एक ही परिभाषा हो ऐसा जरूरी नहीं। एक अत्यंत गरीब व्यक्ति भी एक समय विशेष में स्वयं को सुखी मान सकता है अगर वह भावनात्मक रूप से सुख को परिभाषित समझे। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके लिए सुख का अर्थ है- अनिश्चितता एवं चिंता का न होना, सामाजिक और आर्थिक असमानता की समाप्ति तथा सामाजिक विश्वास एवं भरोसे से पूर्ण माहौल। कुछ लोग भौतिक उपलब्धियों को ही सुख के रूप में स्वीकार करते हैं क्योंकि उनके लिए सामाजिक असमानता का होना जैसे एक सामान्य बात है। कुछ ऐसे भी हैं जिनके लिए सुख का अर्थ है उत्तम आहार की पूर्ति, स्वच्छ जल की उपलब्धता के साथ-साथ स्वच्छ पर्यावरण। समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के पूर्ण हो जाने पर स्वयं को सुखी मानते हैं।
Question : मानव जीवन में नैतिकता किस बात की प्रोन्नति करने की चेष्टा करती है? लोक प्रशासन में यह और भी महत्त्वपूर्ण क्यों है?
(2014)
Answer : यदि हम मानव सभ्यता के इतिहास और उसके स्वभाव पर बौद्धिक और आनुभविक दृष्टि डालें तो हम पाएंगे कि सभी मनुष्यों की असंख्य आवश्यकताएं, इच्छाएं, लक्ष्य और उद्देश्य हैं जो सामूहिक हैं। सभी मनुष्य मित्रता करना चाहते हैं प्रेम करना चाहते हैं, सुख, स्वतंत्रता और शांति चाहते हैं। वे अपने जीवन में सृजनात्मकता और स्थिरता चाहते हैं, केवल अपने लिए नहीं बल्कि अन्यों के लिए भी। पुनः नैतिकता की जड़ समाज में ही है अर्थात समाज ही नैतिक सिद्धांत स्थापित करता है और उसका पालन भी। वस्तुतः उपर्युक्त सभी आवश्यकताएं तभी पूरी होती हैं जब हम नैतिक सिद्धातों का पालन करते हैं। नैतिकता ही हमें प्रेरणा देती है कि हम एक-दूसरे का सहयोग करें क्योंकि यही हमें भय से मुक्ति प्रदान करेगा चाहे वह भय जीवन का हो, चोरी का हो या फिर धोखे का। वस्तुतः समूह में रहने, सहयोग करने और शांतिपूर्ण जीवन की कामना तथा मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति की आकांक्षा आदि ऐसे मौलिक सत्य हैं जिसे नैतिकता ही सुनिश्चित करती है या फिर जीवन को एक प्रेरणा प्रदान करती है।
Question : ‘मूल्यों’व ‘नैतिकताओं’से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक सक्षमता के साथ नैतिक भी होना किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
(2013)
Answer : एक व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं के प्रति विश्वास, मूल्य होते हैं। ये मूल्य व्यक्ति के व्यवहार व सिद्धान्तों को निर्देशित करते हैं। व्यक्ति में मूल्यों का विकास मुख्यतः संगति व उसकी पारिवारिक व स्कूली शिक्षा के आधार पर होता है। अलग-अलग समाजों में अलग-अलग मूल्य व्यवस्थाएं स्थापित होते हैं और इनमें रहने वाले व्यक्ति इन्हीं मूल्यों से निर्देशित होते हैं। विशेष परिस्थिति में क्या सही है, क्या गलत का निश्चय करना नैतिकता की आचार संहिता है। बिना आचार संहिता के मानवीय व्यवहार को अच्छे व बुरे के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
कार्य नैतिकता कड़ी मेहनत और परिश्रम पर आधारित एक मूल्य है यह एक विश्वास भी है जिसमें कार्य के नैतिक लाभ व चरित्र को बढ़ाने की क्षमता है। एक तरह से नैतिक सुधार द्वारा किसी संगठन में अपव्ययको कम करके व भ्रष्टाचार को समाप्त कर उसके समग्र प्रदर्शन को सुधारा जा सकता है।
Question : लोक सेवा के सन्दर्भ में निम्न शब्दों से आप क्या समझते हैं?
(2013)
Answer : (i) सत्यनिष्ठाः किसी की अपने कार्य के प्रति ईमानदारी व सत्यवादिता सत्यनिष्ठा (Integrity) कहलाती है। इसका प्रमुख पहलू किसी विशेष व्यक्ति या समूह की अनुचित अपेक्षाओं की अनदेखी करना है।
(ii) अध्यवसायः अध्यवसाय (Preseverance), प्रतिबद्धता, कड़ी मेहनत, धैर्य व सहनशीलता है। यह व्यक्ति को कठिनाइयों का दृढ़तापूर्वक सामना करने योग्य बनाता है।
(iii) सेवा भावः एक अधिकारी या कर्मचारी के रूप में अपने कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक निवर्हन सेवा भाव (Spirit of Service) कहलाता है। सेवा भाव के लिए अपने कर्त्तव्यों का परिश्रम पूर्वक पालन ही काफी नहीं है। इस के लिए प्रेम, सहानुभूति, निष्पक्षता, करुणा व क्षमा जैसे गुणों का होना आवश्यक है।
(iv) प्रतिबद्धताः प्रत्येक परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ रहना प्रतिबद्धता (Commitment) है। लोक सेवकों को संविधान द्वारा निर्धारित किये गये लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए।
(v) साहसपूर्ण दृढ़ताः लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु साहसपूर्ण दृढ़ता (Courage or conviction) आवश्यक है। यदि किसी के पास साहसपूर्ण दृढ़ता नहीं है तो वह कभी भी लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकेगा।
Question : दो ऐसे अन्य गुण बताइए जिन्हें आप लोक सेवा के लिए महत्त्वपूर्ण समझते हैं। अपने उत्तर का औचित्य समझाइए।
(2013)
Answer : निष्पक्षताः लोक सेवा के लिए एक प्रमुख गुण निष्पक्षता है। लोक सेवक के लिए आवश्यक है कि उसके निर्णय वस्तुनिष्ठ होने चाहिए और वस्तुनिष्ठता के लिए निष्पक्ष होना जरूरी है।
Question : “राजनैतिक निष्पक्षता भारतीय सिविल सेवा परंपरा का सर्वाधिक पवित्र व महत्त्वपूर्ण सद्गुण है।”
Answer : लोक सेवकों से इस बात की अपेक्षा की जाती है कि वे अपने निजी विश्वास, नीतियों आदि से निरपेक्ष रहते हुए ईमानदारी से देश व सरकार की सेवा करे।
Question : “विधि कम करने वाले कारकों (Mitigating factors) को पहचानता है, लेकिन नैतिक कर्तव्य एक उच्च मानक की मांग करते हैं।”
Answer : विधि नियमों की एक श्रृंखला से मिलकर बना होता है, जो उन कर्त्तव्यों की विफलता के लिए जो तीसरे पक्ष के प्रति होते हैं; भुगतान या प्रतिबन्धों का वर्णन करता है।
Question : “माता-पिता बच्चे के लिए मूल्य प्राप्ति का एक मात्र स्रोत नहीं हैं, हालांकि यह स्पष्ट है कि मूल्यों की सीख आरंभिक उम्र में घर पर ही आरंभ होती है।”
Answer : मूल्य उन विश्वासों का समूह होता है जो व्यक्तिगत रूप से लोगों में उनके आस-पास के वातावरण से परस्पर वार्तालाप से विकसित होते हैं।
Question : क्या आपको लगता है कि उत्तरदायित्व एवं नीतिशास्त्र निकटता से संबंधित हैं? उपयुक्त उदाहरण के साथ इसे समझाएं।
Answer : उत्तरः उत्तरदायित्व से तात्पर्य है सत्ता में स्थापित लोगों की अपने कार्रवाइयों के प्रति उत्तरदेयता। इसका यह भी तात्पर्य है कि महत्वपूर्ण निर्णयों को लोगों को समझना व बताना ताकि वे इस बात की परीक्षा कर सकें कि वे जो शक्ति धारण करते हैं। उन्होंने अपने उत्तरदायित्व का किस प्रकार निर्वहन किया है।
Question : उपयुक्त उदाहरण के साथ निम्न पदों की व्याख्या करें:
Answer : उत्तरः
(a) सत्यनिष्ठाः सार्वजनिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति को संस्थान या उसके व्यक्तियों के बाहर स्वयं को किसी भी प्रकार के ऐसे वित्तीय अथवा अन्य बाध्यता के अंतर्गत नहीं रखना चाहिए जो कि उनके आधिकारिक कर्तव्यों के निष्पादन को प्रभावित कर सकते हैं।
(b) स्फूर्त अनुकूलनः स्फूर्त अनुकूलन को बहुत बार साधक अनुकूलन (Instrumental Conditioning) कहा जाता है जो कि, किसी व्यवहार के पुरस्कार एवं दंड के आधार पर विकसित, सीखने की प्रक्रिया है। स्फूर्त अनुकूलन के आधार पर किसी व्यवहार तथा उस व्यवहार के परिणाम के मध्य संबंध स्थापित किया जाता है, उदाहरण के लिए जब एक बच्चा दूसरे के साथ दुर्व्यवहार करता है तो वह दंड पाता है, लेकिन जब वह दूसरे की सहायता करता है तो वह पुरस्कार के रूप में उपहार पाता है। इसके परिणामस्वरूप वह दूसरों की सहायता करना सीखता है तथा दुर्व्यवहार से बचता है।
(c) नागरिकताः एक नागरिक किसी राजनीतिक समुदाय का सहभागी सदस्य है। नागरिकता की प्राप्ति किसी राष्ट्र, राज्य या स्थानीय सरकार के कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने पर मिलती है। कोई राष्ट्र अपने नागरिकों को निश्चित अधिकार तथा सुविधाएं प्रदान करता है। इसके बदले में, नागरिकों से देश के कानूनों को मानने तथा दुश्मनों से सुरक्षा की अपेक्षा की जाती है। किसी देश में रहने से यह तात्पर्य नहीं कि वह आवश्यक रूप से उस देश का नागरिक हो। ऐसे लोगों के अधिकार और दायित्व राजनीतिक संधियों तथा वे जिस देश में रह रहे हैं, उसके कानूनों द्वारा निर्धारित होते हैं।
(d) एक मूल्य के रूप में नीतिशास्त्रः नीतिशास्त्र के दो घटक हैं: नैतिक नीतिशास्त्र (Moral Ethics) एवं सद्गुण नीतिशास्त्र (Virtue Ethics)। सद्गुण के रूप में नीतिशास्त्र की संकल्पना के अनुसार, कुछ ऐसे आदर्श हैं जैसे कि उत्कृष्टता (Excellence) या समान हित के प्रति समर्पण जिनकी प्राप्ति हेतु हमें प्रयास करना चाहिए तथा जो हमारी मानवता के पूर्ण विकास को सहयोग देते हैं। इन आदर्शों को सावधानीपूर्वक यह सोचने पर खोजा जा सकता है कि एक मानव के रूप में हममें क्या कुछ बनने की क्षमता है। सद्गुण अभिवृत्तियां हैं, स्वभाव हैं या चारित्रिक लक्षण हैं जो हमें इन क्षमताओं के विकास हेतु योग्य बनाती हैं। वे हमें इस योग्य बनाती हैं कि हम उन आदर्शों का पालन करें जिसे हमने चुना है। ईमानदारी, साहस, करूणा, उदारता, आत्म-नियंत्रण, ये सभी सद्गुण हैं। सद्गुण आदते हैं जिन्हें सीखने और अभ्यास के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। एक सद्गुणी व्यक्ति नैतिक व्यक्ति होता है।
(e) स्व-जागरूकताः गोलमैन ने भावात्मक बुद्धिमता के पांच क्षेत्रों को चिन्हित कियाः आत्म-जागरूकता, आत्म-नियमन, अभिप्रेरण, सहानुभूति तथा संबंध प्रबंधन। स्व-जागरूकता वातावरण या अन्य व्यक्तियों से पृथक स्वयं को पहचानने एवं परीक्षण की क्षमता है। उच्च भावात्मक बुद्धिमत्ता से युक्त व्यक्ति सामान्यतः अधिक स्व-जागरूक होते हैं। वे अपने भावनाओं को समझते हैं तथा अपने मनोविकारों को स्वयं पर शासन नहीं करने देते। वे आत्म-विश्वस्त होते हैं क्योंकि वे तार्किकता पर भरोसा करते हैं तथा अपने भावनाओं को सीमा से बाहर नहीं जाने देते। वे सदैव ईमानदारीपूर्वक अपने मूल्यांकन को तैयार रहते हैं। उन्हें अपनी कमियों एवं क्षमताओं का पता होता है तथा वे इन क्षेत्रों पर कार्य करते हैं ताकि वे अच्छा प्रदर्शन कर सकें। कई लोगों का मानना है कि आत्म-जागरूकता, भावात्मक बुद्धिमता का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।
Question : शक्ति का प्रयोग आवश्यक रूप से हिंसक नहीं होना चाहिए।
Answer : उत्तरः शक्ति का प्रयोग आवश्यक रूप में हिसंक नहीं होना चाहिएः
Question : शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षण नैतिकता का क्या महत्व है?
Answer : उत्तरः नीतिशास्त्र नैतिक आचरण का विज्ञान है जो मानव व्यवहार को मानव मात्र, निर्जीव वस्तुओं, प्राणियों, पारिस्थितिकी तथा पर्यावरण के क्रम में दिशानिर्देशित करता है।
विद्यार्थियों को नैतिक दुविधाओं तथा नैतिक भावनाओं से कैसे निपटें इसका प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
Question : नैतिक व्यवहारों के अभिप्रेरणा (Motivating ethical behaviour) में नैतिक प्रभावकारिता (Ethical efficasy) की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
Answer : उत्तरः नैतिक प्रभावकारिता (Ethical efficasy) नैतिक अभिप्रेरण तथा आचरण को प्रभावित करता है। यह नैतिक व्यवहारों को करने का विश्वास प्रदान करता है तथा उसी के अनुरुप नैतिक मानकों की प्राप्ति हेतु व्यक्तियों को अपने चाल-चलन को नियंत्रित करने में सहायता देता है।
जब व्यक्ति सामाजिक-मानकों को प्राप्त करने हेतु अपने चाल-चलन को नियंत्रित करता है तो स्व-निर्देशन की क्षमता आती है। जब वे ऐसा नहीं करते एवं सामाजिक रूप से अनुपयुक्त व्यवहारों मे लिप्त हो जाते हैं,तो स्व-निर्देशन असफल हो जाता है।
इस प्रकार, नैतिक प्रभावकारिता स्व-निर्देशक गतिविधियों के सुदृढ़ीकरण की भूमिका निभाता है तथा वैसी स्थितियों में नियंत्रण रखता है जो कि नैतिक मानकों हेतु चुनौती उत्पन्न करते हैं।
Question : किसी समाज में नैतिक मूल्यों का निर्धारण किन आधारों पर होता है? स्पष्ट करें।
Answer : उत्तरः नैतिक मूल्यों के विकास के क्रम में परिवार एवं समाज की भूमिका महत्वपूर्ण होती है परंतु अन्य कारकों की भूमिका यथा भौगोलिक परिस्थितियां, जननांकिकी, सामाजिक गतिशीलता आदि की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है।
Question : न्यायेत्तर हत्या से आप क्या समझते हैं? न्यायेत्तर हत्याओं में शामिल नैतिक मुद्दों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः न्यायिक प्रक्रिया से इतर हत्या के किसी भी कृत्य को न्यायेत्तर हत्या की संज्ञा दी जाती है।
न्यायेत्तर हत्या को अंतरराष्ट्रीय विधि द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है। हालांकि ‘यूएस टॉर्चर विक्टिम प्रोटेक्शन एक्ट’ इसे एक जान बूझकर की गई हत्या; जिसे किसी नियमित रूप से गठित न्यायालय के किसी पूर्व निर्णय द्वारा प्राधिकृत न किया गया हो, के रूप में परिभाषित करता है। सरकारी प्राधिकारियों जैसे पुलिस, सेना, खुफिया एजेंसियां इत्यादि को गैर न्यायिक हत्याओं में शामिल पाया गया है। उदाहरण के लिए मुठभेड़, लक्षित हत्याएं, हिरासत में मृत्यु, जेल में कैदियों की मृत्यु और अफस्पा (AFSPA) के तहत होने वाली हत्याएं।
न्यायेत्तर हत्याओं में शामिल नैतिक मुद्दे-
Question : नैतिक संहिता से आप क्या समझते हैं? इसे प्रोत्साहित करने एवं बढ़ावा देने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
Answer : उत्तरः किसी संगठन या संस्था द्वारा अपने कर्मचारियों एवं प्रबंधकों को जारी दिशा-निर्देशों का लिखित समुच्चय, जो उन्हें प्राथमिक मूल्यों और नैतिक मानकों के अनुसार अपने कार्यों का संचालन करने में मदद करता है; नैतिक संहिता या कोड ऑफ एथिक्स कहलाती है।
प्रमुख अभिलक्षण
प्रोत्साहन हेतु क्या किया जाए?
Question : वर्तमान संदर्भ में नैतिक मूल्य के ह्रास को गंभीर सामाजिक एवं सांस्कृतिक संकट के रूप में आंका गया है। युक्ति-युक्त टिप्पणी करें।
Answer : उत्तरः सामाजिक जीवन एवं सांस्कृतिक जीवनशैली से नैतिक मूल्यों का विमुख होना एवं अनैतिक मूल्यों का दिनचर्या में समावेश को नैतिक मूल्य ह्रास की संज्ञा दी जाती है। इसके निम्नलिखित कारण हैं, जो इसे प्रोत्साहित करते हैं या सृजित करते हैं-
विज्ञान का प्रभाव
बाजारवाद का उद्भव
जीवन में जटिलता
द्वेष रूपी अंधी प्रतिस्पर्धा
अनैतिकता का सामाजिक तिरस्कार नहीं
कानून व्यवस्था में नैतिक आचरण पर उचित ध्यान नहीं
शिक्षा व्यवस्था में नैतिक अवयव का अभाव
इस प्रकार, नैतिक मूल्य ह्रास के मुख्य कारणों को चिह्नित करके उनके उपचार की दिशा में उपयुक्त कदम बढ़ाया जा सकता है।
Question : आपने ‘‘नैतिक असफलताओं की रोकथाम और निपटान’’ से अब तक क्या सबक सीखा है? उदाहरण के साथ अपनी टिप्पणी दें।
Answer : उत्तरः ऐसे प्रश्नों में हमें अपने अनुभव प्रकट करना चाहिए। एक उदाहरण दिया जा रहा हैः
Question : अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिक मुद्दे क्या हैं?
Answer : उत्तरः अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता तब अपनी भूमिका अदा करती है जब किसी प्रकार का विनिमय जैसे- समझौता सन्धि, व्यापार, अनुदान, ऋण इत्यादि सम्पन्न होते हैं।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चिन्ताएँ तब उभरती है जब प्रत्येक भागीदार अपने हितों को सामूहिक मंचों पर सुरक्षित करने लगता है या इस प्रकार की आवश्यकता महसूस की जाती है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिक चिन्ताओं के निम्न क्षेत्र हैं-
अन्य देशों के प्रति राज्य प्रायोजित साइबर अपराध। (जैसे कि अमेरिका ने ईरान के खिलाफ स्टक्सनेट वाइरस का इस्तेमाल किया)
Question : संयुक्त राष्ट्र चार्टर ‘वैश्विक नीतिशास्त्र’ का एक प्रमुख स्रोत है। उपयुक्त संदर्भ में उदाहरणों के साथ टिप्पणी करें।
Answer : उत्तर: संयुक्त राष्ट्र चार्टर की प्रस्तावना के कुछ प्रावधान इस प्रकार हैं- राज्य आधारभूत मानव अधिकार, मानव की गरिमा तथा व्यक्तिगत मूल्य में तथा सहिष्णुता का व्यवहार तथा शांति के साथ मिल-जुलकर रहने में अपनी आस्था की पुनर्पुष्टि करते हैं।
उदाहरणः जब पाकिस्तानी तत्वों ने जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण किया तब सुरक्षा परिषद ने इस मामले में हस्तक्षेप कर युद्धविराम कराया तथा लाइन ऑफ कंट्रोल का निर्माण कराया। हालांकि सुरक्षा परिषद पाकिस्तान को अपनी सेना POK से पीछे हटाने हेतु प्रेरित करने में असफल रही तथा न ही आत्मनिर्णय की व्यवस्था लाने में सफल हो सकी परंतु अस्थायी रूप से शांति स्थापित हो गई।
Question : यह कहा गया है कि ‘‘लोगों को राजी करने में सफलता विभिन्न पहलुओं के अन्योन्य क्रिया पर निर्भर करता है।’’ सभी पहलुओं की व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः प्रोत्साहन सामाजिक प्रभाव का एक प्रकार होता है जिसमें दर्शक को जानबूझकर प्रतीकात्मक माध्यमों से विचारों, अभिवृत्ति तथा कार्य की प्रक्रिया को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। किसी दर्शक को प्रोत्साहित करने के लिए तीन आवश्यक तत्व होते हैं, जो हैं- भावनात्मक अपील (Patho’s), बौद्धिक अपील (Logo’s) तथा प्रतिभा (Etho’s)।
Question : “अंतःकरण के तीन पहलू हैं- ज्ञान, अधिकार तथा संबंध भावनाएं।”
Answer : उत्तर (a): अंतःकरण के आयाम-
Question : ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’ में नैतिक मुद्दे क्या हैं? इन नैतिक मुद्दों को दूर करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
Answer : उत्तर: बौद्धिक संपदा अधिकार एक ऐसा पद है जो ऐसे विधिक अधिकारों से संबंधित है जो रिकॉर्डेड मीडिया, लिखित कार्य, नाम तथा आविष्कारों के संरक्षण और उपयोग से संबंधित है।
बौद्धिक सम्पदा मुख्यत निम्न प्रकार में हो सकती है-
नैतिक मुद्दे
सुझाव
ट्रेडमार्क/हॉलमार्क
सुझाव
Question : एक ट्रस्टी के रूप में राज्य, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने के लिए नैतिक रूप से बाध्य है। सार्वजनिक उपयोग के इन संसाधनों को निजी स्वामित्व में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। आप इस कथन से कितना सहमत हैं?
Answer : उत्तरः भारत में जनता के विश्वास सिद्धांत को एम.सी. मेहता बनाम कमलनाथ के वाद के पश्चात् अपनाया गया जिसमें न्यायालय ने कहा कि उन्हें यह कहते हुए बिल्कुल भी संकोच नहीं हो रहा है कि हिमाचल प्रदेश सरकार पारिस्थितिकी रूप से उपयोगी जमीन को मोटेल प्रबन्धन को देकर जनता के विश्वास का हनन कर रही है।
Question : नए रंगरूटों (New Recruits) के सरकारी सेवा में प्रवेश के समय उनका प्रेरणा और उत्साह आमतौर पर उच्च रहता है। हालांकि, कुछ साल बाद उनकी इन विशेषताओं की तीव्रता में कम होने लगती है। उन कारकों को स्पष्ट करें जिस पर यह कथन आधारित है।
Answer : उत्तरः अनेक लोकसेवकों को प्रशासनिक सेवा के पश्चात् आने वाली चुनौतियों का कोई औपचारिक ज्ञान नियुक्ति के समय नहीं होता है। अतः नियुक्ति के वक्त उनमें अति उत्साह तथा प्रेरणा होती है, परंतु समय के साथ जब वे वास्तविक रूप से समस्याओं एवं चुनौतियों का सामना करते हैं तो यह उत्साह अनेक कारणों से कम होने लगता है जिसके कुछ कारण निम्न हैं-
अतः समय की मांग है कि लोक सेवक निष्पक्ष, निडर व ईमानदार रहते हुए कठिन परिश्रम करे।
Question : शासन में नैतिक तथा नीतिशास्त्रीय मूल्यों की सुदृढ़ता को किस प्रकार सुनिश्चित किया जा सकता है?
Answer : उत्तरः निम्न प्रकार से शासन में नैतिकता को मजबूती प्रदान की जा सकती है-
Question : नैतिक मूल्य आत्म ज्ञान का एक उप-उत्पाद है। कथन का परीक्षण कीजिए और वर्तमान सन्दर्भ में आपके अनुसार इसका क्या अर्थ है?
Answer : उत्तर: आत्म-ज्ञान स्वयं के बारे में पसंद, नापसन्द, गुणवत्ता, क्षमता आदि की जागरूकता से संबंधित होता है। जब एक व्यक्ति के पास आत्म-ज्ञान होता है तब वह स्वयं को जानता है कि वह क्या है तथा वह किस योग्य है या कितना अधिकार रखता है तथा उसके लिए क्या उपयुक्त होगा। ज्ञान के इस प्रकाश में कोई व्यक्ति दायित्वबोध तथा शांति का उपयुक्त रूप में प्रदर्शन करता है। यह उसे गुणों के मूल्यांकन के क्रम में नैतिक परिसीमाओं के भीतर व्यवहार करने हेतु सक्षम बना सकता है। व्यक्ति के स्वयं के मूल्य का ज्ञान सर्वोच्च होता है। स्वयं का आकलन व्यक्तिगत भावना और अंतर्निहित मूल्यों का खंडन सुनिश्चित करता है। व्यक्तिगत भावना को जानना अधिक परिशुद्धता के साथ आगे बढ़ने तथा जोखिम का आकलन करने में सक्षम बनाती है। भ्रमित भावनाएं नैतिक निर्णय निर्माण को कठिन बना सकती है। स्वयं के व्यक्तिगत मूल्यों का ज्ञान आगे आने वाली नैतिक दुविधाओं से बाहर निकलने में भी सहायक होता है। यह संज्ञानात्मक मतभेद की परिस्थिति में मदद कर सकता है जहां व्यक्तिगत मूल्य नैतिक विशेषताओं के मंच पर कसे या जाँचे जाते हैं। अगर किसी व्यक्ति को यह ज्ञान होता है कि वह विशेष या असाधारण परिस्थिति में कैसा व्यवहार करेगा तो वह नैतिक निर्णय लेने में सहज महसूस करता है।
Question : आप IAS की तैयारी कर रहे हैं और एक होस्टल में रहते हैं। आपकी उम्र 25 वर्ष है तथा आपकी रूममेट की भी उम्र 25 वर्ष है। एक दिन आपको आपके रूममेट ने बताया कि उसका रूझान समलैंगिकता में है और निवेदन किया कि यह बात किसी को न बताए। ऐसी स्थित में आपके सामने क्या-क्या नैतिक विकल्प हैं और उनमें से किन्हें चुनना चाहेंगे?
Answer : उत्तरः इस स्थिति में मेरे सामने एक से ज्यादा प्रश्न उठ खड़े हो जायेंगे और हर प्रश्न के साथ कुछ नैतिक विकल्प जुड़े होंगे।
Question : “एक न्यासी के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण राज्य का नैतिक कर्तव्य है। लोगों के उपयोग हेतु निर्धारित ये संसाधन निजी स्वामित्व के रूप में परिवर्तित नहीं किये जा सकते।” आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं?
Answer : उत्तरः ये प्रश्न घोटाले के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय से संबंधित है। संसद में कोल ब्लांक आवंटन पर भारत के नियंत्रक एवं मेहालेखाकर के रिपोर्ट ने ये सवाल पूछने पर मजबूर कर दिया कि प्राकृतिक संसाधनों का असली मालिक कौन है? एवं इसे कैसे उपयोग में लाया जाय?
यह सवाल पहले से ही सर्वोच्च नयायालय में 201 स्पेक्ट्रम मामले में रखी गई थी अपने ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह बात कही थी कि ‘‘अभी तक प्राकृतिक संसाधनों एवं उनकी सुरक्षा को परिभाषित करने के लिए कोई व्यापक कानून नहीं बनाया गया है। अतः इस स्थिति में ये जरूरी हो गया है कि न्यायालय इन प्राकृतिक संसाधनों को परिभाषित एवं नियंत्रण करने के सिद्धांतों पर कार्य करें। लेकिन विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, आम कानूनों और राष्ट्रीय प्रावधानों की जाँच के बाद इस दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय पर पहुँचा है कि-
Question : किसी भी परियोजना के नैतिक रूप से सफल एवं पूर्ण बनाने के लिए निधि पर्याप्तता, नीतिगत ढाँचे एवं संस्थागत क्षमता के बीच परस्पर सांमजस्य होना चाहिए। क्या आप इससे सहमत हैं? उदाहरणों के साथ समझाइए।
Answer : उत्तरः किसी भी परियोजना को सफल बनाने के लिए एवं उसमे शामिल सभी सहकर्मियों के पूर्ण सहयोग को प्राप्त करने में नैतिकता का महत्वपूर्ण योगदान होता है। नैतिकता को नैतिक मूल्यों, विश्वास नियम के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिससे किसी व्यक्ति के जीवन का उसके कार्यप्रणाली पर उचित असर पड़े जिससे वे सही और गलत की पहचान कर सके। किसी भी परियोजना को चालू करने से पहले लाभ उपार्जन एवं कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाना सर्वोपरि होता है। फिर भी, परियोजना प्रबंधक को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि एक जिम्मेदार नागरिक एवं कर्मचारी के रूप में उसके कुछ नैतिक कर्त्तव्य भी हैं।
निंदा का केन्द्र बिन्दु
Question : उपयुक्त उदाहरण के साथ निम्नलिखित पदों की व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः (a) योजना में नैतिकताः योजना प्रक्रिया जन हित को पूरा करने के लिए अतिआवश्यक होता है, जनहित हमेशा से बहस का विषय रहा है कि इसे कैसे परिभाषित किया जा सकता है। इसके लिए लगातार नीतियों एवं कार्यों का अध्ययन एवं निरीक्षण की जरुरत पड़ती है। योजना में मूल्यों का टकराव, इसमें बहुत हद तक निजी हित भी शामिल हो जाता है। इसलिए यह उच्चतम मानक एवं पारदर्शिता तथा ईमानदारी का सभी प्रतिभागियों में विकास पर जार देता है। वे सभी लोग जो योजना प्रक्रिया में शामिल हैं, उन्हें नैतिक मूल्यों के समूहों का पालन करने की जरुरत है। योजना एक कार्यक्रम विविध हितों के बीच संतुलन से ही सही रूप में कार्यांन्वित होता है। एक नैतिक निर्णय भी तथ्यों एवं स्थितियों के बीच संतुलन स्थापित करके दिया जा सकता है जिसमें नैतिक मूल्यों एवं नीतियां भी शामिल होती हैं:
(b) सूचना प्रौद्योगिकी में नैतिकताः आज के समय में सूचना तकनीकी का अनैतिक रूप में प्रयोग का जोखिम बढ़ गया है। इन स्थिति को बढ़ावा देने वाले निम्नलिखित कारक हैं-
(c) सहिष्णुताः सहिष्णुता एक निष्पक्ष, विषयनिष्ठ एवं अनुज्ञात्मक प्रवृति, जो इसके विश्वास, धर्म, राष्ट्रीयता, कार्यप्रणाली, इत्यादि का सम्मान करना है, जो खुद से अलग है। अन्य शब्दों में विश्व में विविध संस्कृतियों परंपराओं एवं कार्यों को एक मानव होने के नाते पूरे आदर के साथ स्वीकार करना।
Question : अंतर्राष्ट्रीय संबंध में शामिल नैतिक मुद्दे क्या हैं? उपयुक्त उदाहरण देकर व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः (b) अक्सर ये कहा जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंध बलधोखा एवं गुप्त षडयंत्र के द्वारा नियंत्रित होते हैं एवं राष्ट्रीय उद्देश्य एवं राष्ट्र लक्ष्य के बीच में जो भी नैतिक मूल्य टकराव की स्थिति में आते हैं, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध में नैतिकता राजनीति, शक्ति एवं नीति के बीच संबंध स्थापित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध में शामिल नैतिक मुद्दे