Question : बुद्ध की कौन सी शिक्षाएं आज सर्वाधिक प्रासंगिक हैं और क्यों? विवेचना कीजिए।
(2020)
Answer : बुद्ध की शिक्षाएं उनकी मृत्यु के बाद उनके शिष्यों द्वारा संकलित विनय पिटक, सुत्त पिटक एवं अभिधम्म पिटक में संहिताबद्ध है, जो उनकी मृत्यु के 2500 साल बाद आज भी प्रासंगिक है।
वर्तमान समय में बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता
ऐसा भी नहीं है कि बुद्ध की सभी शिक्षाएं पूर्ण रूप से वर्तमान में प्रासंगिक हैं, बुद्ध का जीवन को दुखमय मानने का सिद्धांत वर्तमान में तार्किक प्रतीत नहीं होता तथा यह मनुष्य को निराशावादी बना सकता है।
अन्ततः यह कहा जा सकता है कि बुद्ध की शिक्षाओं की उपयोगिता आज के समय में बढ़ गई है, क्योंकि नैतिकता, करुणा एवं संवेदनशीलता वर्तमान विश्व को शांति एवं संघर्ष मुक्त बनाने के साथ ही सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये सबसे ज्यादा आवश्यक है।
Question : “शक्ति की इच्छा विद्यमान है, लेकिन विवेकशीलता और नैतिक कर्त्तव्य के सिद्धान्तों से उसे साधित और निर्देशित किया जा सकता है।” अन्तरराष्ट्रीय संबंधों के सन्दर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिए।
(2020)
Answer : शक्ति हमेशा से अन्तरराष्ट्रीय संबंधों का सबसे मजबूत निर्धारक रही है। यही कारण है कि सभी राष्ट्र शक्ति प्राप्त करने के लिये हमेशा प्रयासरत् रहते हैं। जिसके कारण सम्पूर्ण विश्व में भय का वातावरण बना रहता है जिसको सन्तुलित करना सबसे बड़ी समस्या है।
अन्तरराष्ट्रीय परिदृश्य में सभी राष्ट्र हमेशा अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास करते रहते हैं, जिसमें वह अपने नैतिक कर्त्तव्य एवं विवेक से परे चले जाते हैं। अन्तरराष्ट्रीय संबंधों में विवेकशीलता का प्रयोग स्वेच्छाचारी नहीं हो सकता, बल्कि दृढ़ निश्चय एवं अनुभवजन्य साक्ष्यों के आधार पर शक्ति का प्रयोग करने की आवश्यकता है। इसलिये अन्तरराष्ट्रीय संबंधों में सम्मेलन, संधियां तथा प्रथागत् नियम विवेकशीलता पर आधारित है। उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु परीक्षण, अमेरिका का पेरिस जलवायु समझौते से बाहर जाना तर्कहीनता अथवा व्यक्तिपरक स्वभाव पर आधारित है।
राष्ट्रों को शक्ति के प्रयोग के नैतिक सिद्धान्तों जैसे-अहिंसा, समानता, सहानुभूति एवं करुणा का पालन करने के साथ ही संयुक्त राष्ट्र के चार्टर, भारत के पंचशील सिद्धान्त को ध्यान में रख कर नैतिकता पूर्वक शक्ति का अर्जन एवं प्रयोग करना चाहिये। इथोपिया एवं इरीट्रिया के बीच शांति की स्थापना तथा इजराइल एवं अरब शांति वार्ता नैतिक कर्त्तव्यों से प्रेरित है, वही प्रयोजित आतंकवाद, ट्रेडवार आदि नैतिक कर्त्तव्यों की अवहेलना है।
निष्कर्षतः सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय संवेदना वाली अन्तरराष्ट्रीय समस्यायें तभी सुलझाई जा सकती हैं, जब राष्ट्र एक होकर नैतिक सिद्धान्तों और विवेक पर आधारित उच्च मानकों की स्थापना करे। साथ ही शक्ति का विवेक एवं नैतिक सिद्धान्तों के अनुसार प्रयोग ही वैश्विक शांति की स्थापना एवं संघर्षों को समाप्त करने में सहायक हो सकता है।
Question : भारत में लैंगिक असमानता के लिये कौन से मुख्य कारक उत्तरदायी है? इस सन्दर्भ में सावित्रीबाई फुले के योगदान का विवेचना कीजिए।
(2020)
Answer : लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव के कारण लैंगिक असमानता की स्थिति उत्पन्न होती है। भारत में लैंगिक असमानता के उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं-
भारत में लैंगिक असमानता की जड़े बहुत गहरी हैं, जिसे वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक-2020 में भारत की स्थिति (153 देशों में 112वां) से समझ सकते हैं। जिसके लिये अभी भी व्यापक सुधार की आवश्यकता है। हालांकि कानून एवं सरकार के स्तर पर कार्य किये जा रहे है, लेकिन इन्हें मूर्त रूप तभी मिल सकता है, जब ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को इनका लाभ मिले।
Question : ‘सामयिक इंटरनेट विस्तारण ने सांस्कृतिक मूल्यों के एक भिन्न समूह को मनासीन किया है जो प्रायः परंपरागत मूल्यों से संघर्षशील रहते हैं।’विवेचना कीजिए?
(2020)
Answer : इन्टरनेट आज के समय मानव जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, जो न सिर्फ सूचना के आदान-प्रदान तक अपितु यह अब अपने परिष्कृत रूप में एक बहु-विषयक उपकरण के रूप में सामने आया है। किन्तु इसके विपरीत इन्टरनेट के अनेक दुष्प्रभाव भी है, जैसे- मनुष्य का आभासी दुनिया में जाना एवं भावनात्मक लगाव का कम होना, साथ ही इसने सांस्कृतिक मूल्यों में भी व्यापक परिवर्तन किये हैं।
इन्टरनेट विस्तारण से नये सांस्कृतिक मूल्यों वाले समूह परंपरागत मूल्यों से निम्नलिखित तरीके से संघर्षशील रहते हैं-
इन्टरनेट ने यद्यपि समाज में कुछ संघर्ष उत्पन्न किया है, फिर भी इसने वैश्वीकरण की गति को बढ़ाकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’की अवधारणा को बल प्रदान किया है, अतः आवश्यक है कि हम इन्टरनेट का अपने हित में प्रयोग करें, किन्तु यह भी प्रयास करें कि आभासी दुनिया में इतना न खो जाये कि हमारी मौलिकता ही नष्ट हो जाये।
Question : ‘अंतःकरण का संकट’का क्या अभिप्राय है? सार्वजनिक अधिकार क्षेत्र में यह किस प्रकार अभिव्यक्त होता है?
(2019)
Answer : ‘अंतःकरण का संकट’को ऐसी स्थिति के रूप में माना जा सकता है जिसमें लोगों को अपनी अंतरआत्मा या अंतःकरण के निर्णय और अपने कर्त्तव्य या जिम्मेदारी के बीच चयन करना होता है। यह संकट विशेष रूप से ईमानदार लोक सेवकों और ईमानदार जनप्रतिनिधियों में देखने को मिलता है। यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में नैतिक रूप से अनुचित या गलत होने की दुविधा है। कभी-कभी जटिल और भावनात्मक स्थितियों में यह तय करना बहुत कठिन हो जाता है कि क्या करना सही है?
‘अंतःकरण का संकट’को सार्वजनिक क्षेत्र में प्रकट करने के तरीके
यह सिविल सेवकों द्वारा ऐसे निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्रकट होता है जहां निर्णय भारी संख्या में लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह समस्या तब उत्पन्न होती है जब लोक सेवकों पर अनैतिक निर्णय लेने या अनैतिक नीतियों को लागू करने के लिए दबाव डाला जाता है। यह नैतिकता और कानून के बीच मतभेद में भी प्रकट होता है। कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए यह अधिक मजबूत अर्थों में नैतिक दुविधा का मामला है। जब अंतरात्मा का संकट होता है, तो व्यक्ति को यह भय होता है कि उसकी कार्रवाई अंतरात्मा की आवाज के खिलाफ हो सकती है और इसलिए यह नैतिक रूप से गलत होगा।
कभी-कभी, हम उस तरीके से कार्य करने में सक्षम नहीं होते हैं जो हमारे मूल्य और सिद्धांतों के अनुपालन में होता है। या तो कुछ बाहरी चीजों या भौतिक लालच के कारण, हम कभी-कभी अपनी अंतरात्मा की आवाज को दरकिनार करते हैं और इसके विपरीत काम करते हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र में नैतिकता के समक्ष ऐसे संकटों का आना आम है। लोक सेवक के लिए ऐसे संकट को दूर करने की सबसे बेहतर कुंजी होगी कि वह सभी आयामों को ध्यान में रखते हुए, इच्छाओं या दबावों से खुद को मुक्त करते हुए, सार्वजनिक सेवा, नैतिक संहिता और कानूनी ढांचे के अंतर्गत शांत और सच्चे मन से अपने कर्त्तव्य का पालन करे।
Question : नागरिकों के अधिकारपत्र (चार्टर) आंदोलन के मूलभूत सिद्धांतों को स्पष्ट कीजिए और उसके महत्व को उजागर कीजिये।
(2019)
Answer : नागरिक चार्टर एक सरकारी संगठन द्वारा नागरिकों/ग्राहक समूहों को प्रदान की जा रही सेवाओं/योजनाओं के संबंध में प्रदान की जाने वाली स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं का एक दस्तावेज है। नागरिक चार्टर का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना है। इसका उद्देश्य नागरिकों और प्रशासन के बीच एक पुल का निर्माण करना है और नागरिकों की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशासन को सुव्यवस्थित करना है।
नागरिक चार्टर के निम्नलिखित सिद्धांत हैं-
नागरिकों के अधिकारपत्र का महत्त्व
एक नागरिक चार्टर अपने आप में एक व्यापक व्यवस्था है। यह एक ऐसा हथियार है जो यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों का किसी भी सेवा वितरण मॉडल में हमेशा विश्वास बना रहे।
Question : सिविल सेवाओं के संदर्भ में सार्विक प्रकृति के, तीन आधारित मूल्यों का कथन कीजिए और उनके महत्व को उजागर कीजिए।
(2018)
Answer : सिविल सेवाओं की प्रकृति को देखते हुए एक सिविल सेवक में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, निष्पक्षता, प्रतिबद्धता, सहिष्णुता, समर्पण, सेवा भावना, राजनीतिक तटस्थता जैसे मूल्यों का होना नितांत आवश्यक है, जिससे सिविल सेवक की कार्यपद्धति के निष्पादन में दक्षता आ सके।
सिविल सेवक की सार्विक प्रकृति के तहत तीन प्राथमिक मूल्य निम्नलिखित हैं-
एक सिविल सेवक के सहिष्णु रहने से उसके अधीनस्थों के साथ विवाद कम होते हैं तथा दूसरे के विचारों को सुनने की क्षमता बढ़ती है। सहिष्णुता के कारण ही सामाजिक संस्कृति का विकास होता है जो लोक सेवा के लिए भी आवश्यक है।
Question : सिविल सेवा के संदर्भ में निम्नलिखित की प्रासांगिकता का परीक्षण कीजिये
(2017)
Question : रक्षा सेवाओं के संदर्भ में, ‘देशभक्ति’ राष्ट्र की रक्षा करने में अपना जीवन उत्सर्ग करने तक की तत्परता की अपेक्षा करती है। आपके अनुसार, दैनिक असैनिक जीवन में देशभक्ति का क्या तात्पर्य है? उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उसको स्पष्ट कीजिए और अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
(2014)
Answer : रक्षा सेवाओं में कार्यरत रक्षा कर्मियों से सचमुच इस बात की उम्मीद की जाती है कि वे देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देंगे और वास्तविक में ऐसा होता भी है क्योंकि आए दिन देश की सीमा पर हो रहे वारदातों में ये देशभक्त अपने प्राणों को न्योछावर करते हैं या फिर युद्ध की स्थिति में इन्हें देश के रक्षार्थ अपने जीवन का बलिदान देना पड़ता है। परंतु देशभक्ति का यह जज्बा सिर्फ रक्षा सेवा में संलग्न लोगों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। असैनिक जीवन में भी देश के प्रति कर्त्तव्यों के निर्वाह की जिम्मेदारी होनी चाहिए और इस कर्त्तव्य का निर्वाह करके ही देशभक्ति का निर्वाह किया जा सकता है।
वस्तुतः देशभक्ति का अभिप्राय है- राष्ट्र के विकास में योगदान, सम्पूर्ण राष्ट्र के साथ आत्मीकरण तथा देश के नागरिक होने के नाते नागरिकता के मूल्य एवं कर्त्तव्य का बोध। रक्षा सेवा से जुड़े व्यक्ति देश की रक्षा अवश्य करते हैं और यह देशभक्ति का एक पहलू अवश्य है परंतु राष्ट्र की अखण्डता को संरक्षित करने एवं एकीकरण द्वारा इसके ढांचे को मजबूती प्रदान करने में असैनिक दैनिक जीवन जीने वाले लोगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। किसी देश में रह रहे विभिन्न प्रजातियों, भाषाओं, वहां के लोगों की सभ्यता, लिंग, आयु, वर्ग, जाति, समुदाय तथा देश के सदस्यों के जीवन, आदत, पसंद आदि से भी राष्ट्रीय चरित्र निर्धारित होता है।
अतः अगर बाहृय आक्रमण से सुरक्षा प्रदान कर रक्षा कर्मी देशप्रेम के कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं तो दैनिक असैनिक जीवन से जुड़े व्यक्ति निम्नांकित तरीके से राष्ट्र को आंतरिक मजबूती प्रदान कर देश सेवा प्रदान कर सकते हैं
जहां तक व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास का प्रश्न है तो राष्ट्रीय एकता और एकीकरण के लिए मैं ऐसा पाठ्यक्रम बनाकर सरकार के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं जो बच्चों में न केवल ज्ञान विकसित करे बल्कि उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को विकसित कर सके और उनके दृष्टिकोण को व्यापक बना सके। इसके पीछे तर्क यह है कि इससे संकीर्णता दूर होगी। एकत्व के भाव को बढ़ावा मिलेगा, राष्ट्र के प्रति निष्ठा तथा त्याग की भावना को विकसित करने में मदद मिलेगी, सामूहिक लक्ष्य तय करने में मदद मिलेगी, स्वस्थ राजनीति का मार्ग प्रशस्त होगा, आर्थिक सम्पन्नता का मार्ग प्रशस्त होगा तथा ‘मैं’के जगह ‘हम’का भाव विकसित होगा।
Question : लोक जीवन में ‘सत्यनिष्ठा’से आप क्या अर्थ ग्रहण करते हैं? आधुनिक काल में इसके अनुसार चलने में क्या कठिनाइयां हैं? इन कठिनाइयों पर किस प्रकार विजय प्राप्त कर सकते हैं?
(2014)
Answer : नैतिक मूल्यों एवं संस्थानों दोनों का ही लोकतांत्रिक समाज में महत्वपूर्ण स्थान है। सत्यनिष्ठा ऐसे ही नैतिक मूल्यों में से एक है। लोक जीवन में सत्यनिष्ठा एक मानक नियम के रूप में कार्य कर सकता है जो व्यक्ति और समाज के मार्गदर्शन में सहायक हो सकता है। लोक जीवन में सत्यनिष्ठा के अवलंबन से एक ईमानदार संस्कृति के पनपने में मदद मिल सकती है। यहां सत्यनिष्ठा का अभिप्राय इस बात से है कि व्यक्ति सामान्य जीवन जीने के क्रम में किसी ऐसे व्यक्ति, संस्था, संगठन एवं कार्यों में लिप्त न हो जिसमें सामाजिक एकता,
सद्भाव व भाईचारे को किसी प्रकार का खतरा उत्पन्न हो अथवा हितों का संघर्ष बढ़े और स्वहित के लिए दूसरे की स्वतंत्रता बाधित हो। साथ ही, सरकारी काम-काज में अप्रत्यक्ष अथवा प्रत्यक्ष रूप में बाधा उपस्थित न हो।
सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा के अवलंबन का अभिप्राय है देश के नागरिक होने के नाते यहां के कानून व राष्ट्रीय मूल्यों का न सिर्फ अनुपालन करना बल्कि उनके फलीभूत होने में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भी व्यक्तिगत स्तर पर प्रयासरत रहना। सत्यनिष्ठा सार्वजनिक जीवन के साथ-साथ सार्वजनिक पद पर आसीन लोक सेवकों के लिए भी अपरिहार्य है। लोक सेवकों के लिए सत्यनिष्ठा का अभिप्राय है सार्वजनिक पद से इत्तर व्यक्तियों या संगठनों के साथ वित्तीय या अन्य बाध्यतावश अपने को लिप्त न करना जिससे (लोक सेवकों को) सार्वजनिक कार्य निष्पादन प्रतिकूल रूप से प्रभावित हों।
सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा का पालन करने वाले लोग समाज की भलाई के लिए अपने लक्ष्य से समझौता कर लेते हैं और परहित को स्वहित से ऊंचा स्थान देते हैं। परन्तु ऐसे लोगों के समक्ष कई कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं जो सत्यनिष्ठा का मार्ग अपनाने में बाधा उपस्थित करती हैं। इन कठिनाइयों में कुछ प्रमुख हैं ईमानदार संस्कृति का अभाव, कार्य संस्कृति में दोष, भोगवादी प्रवृत्ति से प्रभावित होने की संभावना, ज्ञान का अभाव, सरकार तथा लोक सेवकों में अविश्वास, गरीबी, अशिक्षा तथा इसके कारण सामाजिक सद्भाव से होने वाले लाभों के प्रति अज्ञानता आदि।
इन कठिनाइयों पर विजय पाने के दो मार्ग हो सकते हैं, प्रथम मूल्यों एवं चरित्र पर जोर देना जो उचित शिक्षा एवं स्वथ्य व्यक्तित्व निर्माण से संभव है। दूसरा उपाय है- पुरस्कार एवं दंड का प्रावधान। सत्यनिष्ठा का पालन करने अथवा न करने की स्थिति में सामाजिक एवं कानूनी दोनों ही स्तरों पर पुरस्कार अथवा दंड की व्यवस्था से भी सार्वजनिक जीवन में स्वस्थ परम्परा की नींव डाली जा सकती है।
Question : जीवन में नैतिक आचरण के संदर्भ में आपको किस विख्यात व्यक्ति ने सर्वाधिक प्रेरणा दी है? उनकी शिक्षाओं का सार प्रस्तुत कीजिए। विशिष्ट उदाहरण देते हुए वर्णन कीजिए कि आप अपने नैतिक विकास के लिए उन शिक्षाओं को किस प्रकार लागू कर पाए हैं।
(2014)
Answer : जीवन में नैतिक आचरण के संबंध में महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं मेरे लिए काफी प्रेरणादायक रही हैं। मेरे विचार में बुद्ध की शिक्षाएं व्यावहारिक होने के साथ-साथ सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक भी हैं। बुद्ध ने मध्यम मार्ग की शिक्षा दी जो काफी हद तक अरस्तु के स्वर्णिम मार्ग (Golden Mean) से साम्य रखता है। बुद्ध ने अतिशय आसक्ति (भोग-विलास) एवं अतिशय कायाक्लेश को दो अति (Extremes) माना तथा इन दोनों के बीच के मार्ग अपनाने की शिक्षा दी। बुद्ध का मानना था कि संसार दुःखमय जरूर है परन्तु दुख दूर हो सकता है। अर्थात बुद्ध आशावादी थे। उन्होंने दुःख का कारण अविध को माना और दुःख के शमन एवं निर्णय अर्थात् दुःखों के अंत के लिए आष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया। बुद्ध के अनुसार व्यक्ति के लिए निर्वाण इसी जीवन में संभव है। आष्टांगिक मार्ग के अंतर्गत बुद्ध ने सम्यक दृष्टि अर्थात् वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान, सम्यक संकल्प, सम्यक विचार, सम्यक वाक् अर्थात् मधुर वचन, सम्यक कर्मांत अर्थात सत्यकर्मीं का अनुसरण, सम्यक आजीव अर्थात् सदाचार के अनुकूल आजीविका, सम्यक व्यायाम अर्थात् सतत् प्रयत्न, सम्यक स्मृति अर्थात् स्वस्थ धारणा एवं सम्यक समाधि अर्थात् मन की एकाग्रता की सलाह दी जिससे निर्वाण अर्थात् दुःखों का अंत संभव है और वे भी इसी जीवन में। बुद्ध की शिक्षाएं तब भी प्रासंगिक थी और वर्तमान युग में भी प्रासंगिक हैं। वर्तमान परिदृश्य में व्यक्तिगत, सामाजिक राष्ट्रीय अथवा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसी मध्यम मार्ग का अनुसरण कर कई जटिल समस्याओं का समाधान सम्भव है। स्वयं वैश्विक संस्थान संयुक्त राष्ट्र संघ इसी मार्ग का अवलंबन कर कई वैश्विक समस्याओं के समाधान ढूंढ़ने का प्रयत्न करता है जो अधिकांश मामलों में फलीभूत भी हुआ है।
Question : कुछ लोगों का मानना है कि मूल्य, समय और परिस्थिति के साथ बदलते रहते हैं, जबकि अन्य दृढ़ता से मानते हैं कि कुछ मानवीय मूल्य सर्वव्यापक व शाश्वत हैं। इस सम्बन्ध में आप अपनी धारणा तर्क देकर बताइए।
(2013)
Answer : हमारे मूल्य समय के साथ बदल जाते हैं। बाल्यावस्था से वयस्क होने पर हमारे मूल्य बदल जाते हैं। हमारे कार्य भी हमारे मूल्यों को प्रभावित करते हैं। हालांकि कोहेलबर्ग के अनुसार हम अपने जीवन में नैतिक विकास के कई चरणों से गुजरते हैं।
जीवन की परिस्थितियों के अनुसार लोग मूल्यों को अपनाते हैं दृढ़ अनुनय भी मूल्यों को बदल सकते हैं, जैसे यदि एक नौकरशाह जो शुरुआत में ईमानदार रहा लेकिन अपने परिवार व साथियों के दबाव के तहत भ्रष्ट हो जाये। कभी-कभी विवशता भी मूल्यों को बदल देती है। मैं व्यवस्था को बदल नहीं सकता, इसलिए मैं इसे अपना लूंगा।
व्यक्तिगत मूल्यों में हुए परिवर्तन से व्यक्ति इतना परेशान नहीं होता है लेकिन बुनियादी मूल्यों में हुए परिवर्तन से व्यक्ति भारी मानसिक दबाव से गुजरता है।
Question : क्या यह कहना सही है कि ‘इच्छा-स्वातंत्र्य (Freedeom of will)’ एक महत्वपूर्ण मानवीय मूल्य है। यह ‘कर्मवाद’ के भारतीय मूल्य प्रणाली से किस प्रकार सुसंगत है?
Answer : उत्तर: ‘इच्छा-स्वातंत्र्य (Freedom of will)’ एक महत्वपूर्ण मानवीय मूल्य है क्योंकि यह मानवों की नैतिक सिद्धांतों के आधार पर उचित निर्णयों को लेने की क्षमता तथा स्वतंत्रता दोनों को ही व्यक्त करता है। अतः इच्छा-स्वातंत्र्य तथा नैतिक स्वतंत्रता दोनों ही एक ही वस्तु को व्यक्त करते हैं। यह मानव वृद्धि के चरम स्तर तक ऊँचा उठने की मानवीय क्षमता में सकारात्मक विश्वास को व्यक्त करता है।
Question : मानवीय मूल्य तथा नीति-शास्त्र के संदर्भ में ‘स्वतंत्रता’ तथा ‘अनुशासन’ को परिभाषित कीजिए। एक उपयुक्त समस्या अध्ययन के माध्यम से यह बताइए कि सच्ची ‘स्वतंत्रता’ किस-प्रकार प्राप्त की जा सकती है तथा ‘अनुशासन’ इसमें कौन-सी भूमिका निभा सकता है?
Answer : उत्तर: स्वच्छंदता (freedom) स्वतंत्रता (liberty) के द्वारा नियंत्रित, अनुशासित और विनियमित होती है। दूसरे शब्दों में, ‘स्वतंत्रता’ तथा ‘अनुशासन’ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संस्कृत में एक शब्द है ‘स्वाधीनता’। अंग्रेजी भाषा का स्वतंत्रता शब्द इसी संदर्भ में अपना अर्थ रखता है। वस्तुतः यह शब्द दो भागों के योगः- स्व + अधीनता से बना है। इसका तात्पर्य है अपने स्वयं के नियंत्रण में होना।
Question : ‘कर्त्तव्य’ तथा ‘अधिकार’ की परिभाषा दें तथा दोनों के बीच के संबंध को स्पष्ट करें। एक उपयुक्त समस्या अध्ययन के द्वारा कर्त्तव्य की सच्ची संकल्पना को प्रकट करें।
Answer : उत्तर: ‘कर्त्तव्य’ एक आदरपूर्ण शिष्टाचार है जो कि वरिष्ठों, वृद्धों या अभिभावकों के साथ व्यवहार में प्रयुक्त किया जाता है। इसके अंतर्गत स्थानपरक तथा भूमिकागत बाध्यताएं व नैतिक-कानूनी बाध्यताएं भी शामिल हैं। यह न्यायपरायणता के प्रति हमारी निष्ठा पर भी बल देता है।
Question : 2002 में चिकित्सा परिषद् द्वारा प्रस्तुत चिकित्सा नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?
Answer : उत्तर: चिकित्सकीय नीतिशास्त्र के प्रमुख लक्षण
Question : किसी समाज के मूल्य-निर्णय सामाजिक उद्देश्यों के सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं के आधार पर पीढ़ी दर पीढ़ी बदलते रहते हैं।’’ आप इस कथन से कितना सहमत हैं?
Answer : उत्तरः मैं इस बात से सहमत हूँ कि किसी समाज के मूल्य-निर्णय बदल सकते हैं क्योंकि मानवीय मानदंडों के लक्षण प्रयोजनपरकता, विचारपरकता तथा तार्किकता पर आधारित होते हैं।
Question : समता और मानवता, अहिंसा भावना की अभिव्यक्ति है। स्पष्ट करें।
Answer : उत्तरः समता (Civility) देश के कानून अथवा संविधान की परिधि के भीतर रहते हुए स्वयं अथवा अपने परिवेश की देखभाल की मांग करती है। मानवता (Humanity) सहानुभूति, स्नेह, परवाह अथवा देखरेख से संबंधित होती है। यह किसी और को वाचिक अथवा कार्य के रूप से कोई हानि नहीं पहुंचाती। साथ ही, यह व्यक्तिगत प्रयास की जगह सामूहिक प्रयास पर ध्यान केन्द्रित करती है।
Question : मूल्य से आप क्या समझते हैं? प्रमुख विशेषताओं को बताते हुए इसके वस्तुनिष्ठता या आत्मनिष्ठता के संदर्भ पर प्रकाश डालें।
Answer : उत्तरः सामाजिक जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए समाज द्वारा अपनाई गई उच्च नैतिक आदर्श, जिनके लिए नैतिक नियम बनाई जाती हैः मूल्य कहलाते हैं। ईमानदारी, न्याय, शांति आदि उच्च मूल्य है।
मूल्यों की प्रमुख विशेषतएं
मूल्य वस्तुनिष्ठ या आत्मनिष्ठ
Question : क्या आप औरों की भलाई के लिए किए अनैतिक व्यवहार को समर्थन देंगे?
Answer : उत्तरः हमारे दैनिक जीवन में समाजोन्मुख अनैतिक व्यवहारों के अनगिनत उदाहरण देखे जा सकते हैं, उदाहरण के लिए अपने दोस्त के स्थान पर छद्म उपस्थिति दर्ज करना। ये कभी-कभी किसी को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से किए जाते हैं और कभी-कभी इनसे दूसरों का नुकसान भी होता है। यह कभी इरादतन किए जाते हैं और कभी गैर-इरादतन। ये कभी भावनात्मक होते हैं तो कभी व्यावहारिक। ये दैनिक घटनाओं के सामान्य अंग होते हैं।
Question : किसी स्वतंत्र समुदाय में स्वतंत्रता तथा उत्तरदायित्व नागरिकता के दो पहलू हैं?
Answer : उत्तरः किसी स्वतंत्र समुदाय में स्वतत्रंता तथा उत्तरदायित्व नागरिकता के दो पहलू हैं:
Question : विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आचार, एक ज्ञान संचालित वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। कथन का परीक्षण कीजिए और वर्तमान सन्दर्भ में आपके अनुसार इसका क्या अर्थ है?
Answer : उत्तर: वर्तमान समय में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय जीवन के सभी आयामों को प्रभावित कर रही है। आज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी वैश्विक अर्थव्यवस्था का केन्द्र है तथा आर्थिक हितों की पूर्ति में सहायक की भिूमका निभा रही है। 1945 में अमेरिका द्वारा जापान पर परमाणु बम गिराए जाने के साथ ही नैतिक मुद्दे विज्ञान के साथ स्पष्ट होने लगे। तब से नैतिक मुद्दे अंतिरजित तरीके से देखे जा सकते हैं, जैसे- जीएम सीड्स, जिनको मानव जीवन व समाज के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
कभी-कभी सरकार कॉर्पोरेट हितों को ध्यान में रखते हुए लोगों में तकनीक की स्वीकार्यता बढ़ाने का भी प्रयास करती है। इस हेतु सरकार प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के तकनीक को सही व लाभकारी बताने वाले तर्कों का सहारा लेती है। चयनित सूचना, गलत सूचना, व्यापक विज्ञापन आदि के द्वारा सार्वजनिक स्वीकृति को लामबंद करने का प्रयास किया जाता है। बौद्धिक सम्पदा अधिकार एक दूसरा मार्ग है जहाँ पर विशालमात्र में प्रावधानों/सूचनाओं के हेरफेर तथा उन्हें अन्य प्रकार से पेश करने के कारण अनेक नैतिक चिन्ताएं उभर रही हैं। असुरक्षित चिकित्सकीय परिक्षण, तीसरी दुनिया के देशों को बिना उचित सहयोग के ऊँचे मूल्यों पर तकनीक का विक्रय तथा खाद्य पदार्थों में रसायनों की उपस्थिति आदि अन्य नैतिक चिंता के विषय है। अतः विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के साथ नैतिक मूल्यों का संतुलित एकीकरण किए जाने की आवश्यकता है।
Question : राजनैतिक अभिवृति को परिभाषित करें। ‘‘राजनैतिक अभिवृति किस प्रकार लोगों के मतदान के व्यवहार को प्रभावित करती है’’ इस कथन का परीक्षण राजनीति के अपराधीकरण को ध्यान में रखते हुए करें।
Answer : उत्तरः राजनीतिक अभिवृति से तात्पर्य ऐसी अभिवृति से है जिसके होने से एक व्यक्ति, समूह आदि का मतदान करते समय व्यवहार प्रदर्शित होता है। साथ ही, उसकी किसी एक दल विशेष की ओर आकर्षण बढ़ता है।
Question : परीक्षा के दौरान आपका सबसे अच्छा दोस्त आपसे अपनी उत्तर-पुस्तिका दिखाने को कहता है। वह आपके उत्तर-पुस्तिका में से नकल करने देने हेतु जोर दे रहा है। एक उपयुक्त कार्रवाई तक पहुंचने से पहले अपने द्वारा विचारे गए सभी कारकों की व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः इस स्थिति में आपकी नैतिकता एवं भावनात्मक समझ की जानकारी होनी अत्यंत आवश्यक है। आपकी कार्य करने की प्रक्रिया सुखवादी तथा नैतिक मूल्य के बीच उत्पन्न हुई टकराव की स्थिति को दूर कर के ही संभव है।