लोक सेवा में मूल्यों का संकट
प्रत्येक देश में लोक सेवकों के कार्य का एक ‘नैतिक दर्शन’ (Ethical Philosophy) होता है, जो उनके लिए मार्ग निर्देशक का कार्य करता है। लोक सेवकों की मूल्य प्रणाली विभिन्न ‘सांस्कृतिक मानदंडों’(Cultural Standards), शिक्षा तथा संविधान तथा अन्य कानूनों से निर्धारित होती है।
- भारत में लोक सेवा लंबे समय से मूल्यों के संकट से गुजर रही है। राजनीति से लेकर सिविल सेवा तथा न्यायपालिका में ‘भ्रष्टाचार’(Corruption), भाई-भतीजावाद तथा अन्य भ्रष्ट गतिविधियां इतनी व्यापक हैं कि इन्हें सामान्य मानकर स्वीकार कर लिया गया है।
- भारतीय लोक सेवा में मूल्यों के संकट के लिए उत्तरदायी कारक इस प्रकार हैं:
- राजनीतिक संस्कृतिः ‘इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ (Economist ....
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संबंधित सामग्री
- 1 भारत में लोक सेवा मूल्यों की स्थिति
- 2 लोक सेवा में मूल्यों का विकास
- 3 लोक सेवा मूल्यों के समक्ष चुनौतियां
- 4 मूल्यों का संघर्ष
- 5 लोक सेवा के लिए महत्वपूर्ण मूल्य
- 6 लोक सेवा में मूल्य सुशासन का आधार
- 7 ग्रामीण विकास में पंचायतीराज संस्थानों की भूमिका को बढ़ाने वाली पहलें
- 8 स्थानीय स्वशासन से संबंधित मुद्दे
- 9 स्वास्थ्य प्रबंधन में भूमिकाः कोविड-19 प्रबंधन एवं टीकाकरण
- 10 ग्रामीण विकास में पंचायतीराज संस्थानों की भूमिका एवं महत्व
मुख्य विशेष
- 1 स्थानीय स्वशासन ग्रामीण विकास की बुनियाद
- 2 ग्रामीण विकास में पंचायतीराज संस्थानों की भूमिका एवं महत्व
- 3 स्वास्थ्य प्रबंधन में भूमिकाः कोविड-19 प्रबंधन एवं टीकाकरण
- 4 स्थानीय स्वशासन से संबंधित मुद्दे
- 5 ग्रामीण विकास में पंचायतीराज संस्थानों की भूमिका को बढ़ाने वाली पहलें
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