दक्षिण-दक्षिण सहयोग

दक्षिण-दक्षिण सहयोग से अर्थ दुनिया के विकासशील देशों में तकनीकी सहयोग से है जिसके जरिए सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय संगठन शिक्षाविद् नागरिक समाज और निजी क्षेत्र आपस में मिलकर काम करते हैं और ज्ञान कौशल और सफल उपक्रमों को साझा करते हैं।

यह सहयोग मुख्य रूप से कृषि विकास, मानवाधिकार शहरीकरण स्वास्थ्य जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों पर केंद्रित है। दक्षिण-दक्षिण सहयोग, विकासशील देशों के बीच तकनीकी, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक आदि क्षेत्रों में सहयोग को भी बढ़ावा देता है।

सहयोग का महत्व

  • तकनीक हस्तांतरण, आपात तैयारी और आजीविका के साधनों की बहाली के लिए, ज्ञान के आदान-प्रदान के अभिनव रूपों को अपनाकर कई जिंदगियों में बदलाव लाने में मदद कर सकता है।
  • हाल के सालों में दक्षिण गोलार्द्ध के देशों ने वैश्विक विकास में आधे से अधिक योगदान दिया है; दक्षिण गोलार्द्ध के देशों में आपसी व्यापार उच्चतम स्तर पर है और वैश्विक व्यापार का एक चौथाई से ज्यादा है। अल्प और मध्य आय वाले देशों में बाहर रह कर काम कर रहे प्रवासी कामगारों द्वारा भेजे जाने वाली धनराशि बढ़कर 466 अरब डॉलर हो गई। जिससे लाखों परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिल रही है।
  • महत्वाकांक्षी और दुनिया की कायापलट करने का लक्ष्य रखने वाले 2030 टिकाऊ विकास एजेंडे को तब तक सही मायनों में पूरा नहीं किया जा सकता जब तक नए विचारों, ऊर्जा और विकासशील देशों की सृजनात्कमता को महत्व नहीं दिया जाये।

उत्तर-दक्षिण सहयोग

  • ‘उत्तर’ और ‘दक्षिण’ के विभाजन से तात्पर्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विभिन्नताओं से है जो विकसित देशों (उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित देश) और विकासशील देशों (दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित देश) में मौजूद हैं।
  • हालांकि उच्च आय वाले अधिकतर देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं लेकिन यह मुख्य रूप से वास्तविक भौगोलिक स्थिति पर ही निर्भर नहीं करता। किसी देश को उत्तर या दक्षिण, उसके स्थान की वजह से नहीं बल्कि कुछ निश्चित आर्थिक कारणों और वहां जीवन की गुणवत्ता के आधार पर कहा जाता है। उत्तर-दक्षिण सहयोग सबसे पारंपरिक सहयोग रहा है और तब होता है जब एक विकसित देश आर्थिक रूप से कम विकसित देश को सहायता प्रदान करता है। जैसे प्राकृतिक या मानवीय आपदा के समय में वित्तीय मदद।

ब्यूनस आयर्स प्लान ऑफ एक्शन+40: 18 सितंबर, 1978 को संयुक्त राष्ट्र के 138 सदस्य देशों ने अर्जेंटीना में ‘ब्यूनस आयर्स प्लान ऑफ एक्शन’ (BAPA) को पारित किया जो विकासशील देशों में तकनीकी सहयोग बढ़ाने के नजरिए से किया गया था। इस योजना के माध्यम से अल्प विकसित देशों- दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित अधिकांश देश- के आपस में मिल जुलकर काम करने का रास्ता भी तैयार हुआ।

  • संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के 40 साल पूरे होने पर इस सम्मेलन को ‘ब्यूनस आयर्स प्लान ऑफ एक्शन+40’ (BAPA+40 या बापा+40) का नाम भी दिया गया है। सम्मेलन में होने वाली चर्चा में मुख्य मुद्दा टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडे के लक्ष्यों को पाने में दक्षिण-दक्षिण सहयोग की भूमिका पर होगा। टिकाऊ विकास के 17 लक्ष्य, वैश्विक स्तर पर लोगों के जीवनस्तर को सुधारने और पृथ्वी पर जीवन को शांतिपूर्ण और खुशहाल बनाने की कार्ययोजना है।
  • साउथ-साउथ गैलेक्सीः यह वैश्विक नॉलिज शेयरिंग एंड पार्टनरशिप प्लेटफॉर्म है, जो वैश्विक स्तर पर ज्ञान साझेदारी को संभव बनाता है। इसके जरिए विकासशील देश अपने साझेदारों से डिजिटल माध्यमों पर जुड़ते है और सहयोग करते हैं। मार्च 2019 में ब्यूनस आयर्स में उच्चस्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसे ‘ब्यूनस आयर्स प्लान ऑफ एक्शन+40’ (BAPA+40 या बापा+40) का नाम दिया गया।