कार्टोसैट-3 मिशन

कार्टोसैट-3 तीसरी पीढ़ी का उन्नत उपग्रह है, जिसमें उच्च रिजॉल्यूशन इमेजिंग क्षमता है। इसे 27 नवंबर, 2019 को पीएसएलवी-सी47 के माध्यम से लॉन्च किया गया था, जो एक्सएल कॉन्फिगरेशन ('XL' configuration) (6 सॉलिड स्ट्रैप-ऑन मोटर्स) के साथ पीएसएलवी की 21वीं उड़ान थी तथा पीएसएलवी की कुल उड़ानों में 49वीं उड़ान थी। यह एक पृथ्वी अवलोकन (Earth Observation) उपग्रह है।

पृष्ठभूमि

कार्टोसैट-3, कार्टोसैट शृंखला का नौवां उपग्रह है, जिसे इसरो ने अपने रिमोट सेंसिंग और मैपिंग अनुप्रयोगों के लिए विकसित किया है। पहला ऐसा उपग्रह (कार्टोसैट-1) 2005 के प्रारंभ में भारतीय रिमोट सेंसिंग कार्यक्रम के एक भाग के रूप में लॉन्च किया गया था। कार्टोसैट-3 का मिशन जीवनकाल पांच साल है।

कार्टोसैट-3 का महत्व

  • उच्च रिजॉल्यूशन वाला कैमराः कार्टोसैट-3 का रिजॉल्यूशन 25 सेमी है, यानी यह 500 किमी की ऊंचाई से 25 सेमी आकार की वस्तु की छवि ले सकता है।
  • स्थानिक और स्थलाकृतिक डेटाः यह उपग्रह पृथ्वी का विस्तृत मानचित्र भी उपलब्ध कराएगा, जो वर्तमान में उपलब्ध स्थानिक (spatial) और स्थलाकृतिक (topographical) डेटा में वृद्धि करेगा।

अनुप्रयोग

  • सैन्य और सुरक्षाः भारत की पश्चिमी सीमा पर कई स्थलाकृति संबंधी एवं क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताएं हैं, जिसमें सीमा पार आतंकवाद सबसे प्रमुख है। इस परिदृश्य में इस तरह की उच्च-रिजॉल्यूशन इमेजरी क्षमता महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रतिद्वंदी देशों के साथ भूमि और जल सीमा विवाद है।
  • नागरिक अनुप्रयोगः यह भूमि संसाधनों, शहरी नियोजन, तटीय अध्ययन और विभिन्न सर्वेक्षणों के प्रबंधन और निगरानी में सहायक होगा।

समय-अंतराल की चुनौती

चूंकि इनमें से अधिकांश उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में हैं और स्थानीय माध्य सौर समय (local mean solar time) पर पृथ्वी की सतह के किसी बिंदु से गुजरते हैं। यानी उस जगह पर फिर से आने में एक दिन से अधिक का समय लगता है; अतः एक समय अंतराल टाइम-गैप (time-gap) उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार, कार्टोसैट उपग्रह के एक ही स्थान पर पुनः पहुँचने में एक दिन से अधिक समय लग जाता है।