कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज

कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (Carbon Capture and Utilisation and Storage-CCUS) (IEA के अनुसार) को उन तकनीकों के समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो जीवाश्म ईंधन, बिजली संयंत्रें आदि जैसे विभिन्न स्रोतों से कार्बन कैप्चर करते हैं। इसमें कैप्चर किए गए CO2 को उपयोग करने के लिये उसका पुनर्चक्रण तथा सुरक्षित और स्थायी भंडारण विकल्पों का निर्धारण किया जाता है।

  • CCUS प्रौद्योगिकियां वर्ष 2050 तक नेट जीरो लक्ष्यों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
  • यह ग्लोबल वार्मिंग को 2°C (डिग्री सेल्सियस) तक सीमित रखने के लिये पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु महत्त्वपूर्ण है, साथ ही पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर 1.5 डिग्री सेल्सियस के लिये बेहतर भूमिका निभा सकती है।

CCUS का अनुप्रयोग

  • CO2 उत्सर्जन की दर को कम करने के लिये वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और ऊर्जा कुशल प्रणालियों को अपनाने के बावजूद जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को सीमित करने के लिये वातावरण में CO2 की संचयी मात्रा को कम करने की आवश्यकता है।
  • CCU द्वारा ग्रीनहाउस वातावरण में फसल उत्पादन को बढ़ावा देना।
  • पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुकूल निर्माण सामग्री के लिये स्टील निर्माण प्रक्रिया का एक औद्योगिक उपोत्पाद (स्टील स्लैग के साथ CO2 का संयोजन)।
  • बढ़ी हुई तेल रिकवरीः CCU प्रौद्योगिकी द्वारा ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन ने CO2 को इंजेक्ट करके एन्हांस्ड ऑयल रिकवरी (EOR) हेतु इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

चुनौतियां

  • यह अपेक्षाकृत महंगी प्रक्रिया है। पुनर्नवीनीकृत CO2 की कम मांग।
  • यह अभी कुछ उद्योगों और अनुप्रयोगों तक ही सीमित है।
  • भारत में 40 प्रतिशत CO2 कृषि, परिवहन आदि जैसे स्रोतों से आता है, जो सीसीयूएस द्वारा संशोधन योग्य नहीं है।