उच्चतम न्यायालय ने 2017 में अपना फैसला सुनाते हुए निजता के अधिकार को भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया।
प्रधान न्यायाधीश जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकारों के अंतर्गत प्राकृतिक रूप से निजता का अधिकार संरक्षित है।
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए- एम- सप्रे, न्यायमूर्ति डी- वाई- चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
उन्होंने भी समान विचार व्यक्त किए। फैसले से पहले मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी कि क्या निजता के अधिकार को संविधान में प्रदत्त एक मौलिक अधिकार माना जा सकता है? सुनवाई के दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुड़े अनेक सवाल पूछे।
इस बीच, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार जीने की स्वतंत्रता में ही समाहित है। उनका यह भी कहना था कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार शामिल है।