कोविड-19 महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अत्यधिक प्रभावित किया है। कोविड-19 के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया, जिससे लोगों का रोजगार एवं व्यवसाय प्रभावित हुआ। जून 2020 में विश्व बैंक द्वारा जारी की गई वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) –3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इस महामारी ने निम्नलिखित क्षेत्रों को प्रभावित किया है-
मांग में गिरावटः कोविड-19 महामारी के दौरान आवश्यक वस्तुओं (चावल, दाल आदि) की जमाखोरी देखी गई। परंतु लॉकडाउन के कुछ ही दिन बाद सब्जियों तथा फलों की मांग में लगभग 60 प्रतिशत तक की कमी हुई, क्योंकि थोक खरीदारों और रेस्तरां बंद होने के कारण इनकी खरीद नहीं की गई। आवश्यक वस्तुओं तथा सब्जियों और फलों के मूल्य में गिरावट के बाद विद्युत, डीजल तथा पेट्रोंल की मांग में क्रमशः 9.2 प्रतिशत 26 प्रतिशत तथा 17 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई, परंतु जून के शुरूआत से ही डीजल तथा पेट्रोंल की दामों में बढोतरी हो रही है।
आपूर्ति का बाधित होनाः कोविड-19 महामारी से हुए लॉकडाउन ने बड़ी कंपनियों की आपूर्तिशृंखलाओं को प्रभावित किया है और केवल अति आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण तक सीमित कर दिया। देश के विभिन्न मंडियों में किसी भी प्रकार की व्यापारिक गतिविधियों के न होने या न्यूनतम गतिविधियों के संचालित होने, श्रम में कमी, परिवहन संबंधी समस्याओं और किसानों की अनिच्छा आदि के कारण कृषि उपज की आपूर्ति प्रभावित हुई है, जिससे थोक कीमतें कम हो गई।
कीमत में गिरावटः मांग और आपूर्ति के साथ-साथ बाजार की परिस्थितियों में हो रहे परिवर्तन के कारण कीमतें अस्थिर हो गई हैं, जिससे समग्र रूप में उभरते बाजारों में वस्तुओं की कीमतों में भारी गिरावट आई है।
भुगतान संतुलन पर प्रभावः वैश्विक लॉकडाउन के कारण आयात-निर्यात आर्डर में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आयी है। कच्चे तेल की कीमतों में कमी, स्वर्ण एवं अन्य आयातों में गिरावट से व्यापार घाटे में कमी हो सकती है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार स्वर्ण की कीमतों में वृद्धि के कारण मार्च के अंतिम सप्ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई है।
मुद्रास्फीतिः RBI के अनुसार निम्न प्रतिफल और कम आय के कारण मांग में गिरावट एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तनावग्रस्त स्थिति में वित विर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति गिरकर 2.4 प्रतिशत हो गई।
करों पर प्रभावः कोविड-19 के कारण लाभ और आय में पहले की अपेक्षा कमी आयी है, जिससे प्रत्यक्ष करों में वृद्धि नहीं की जा सकती है और न ही अप्रत्यक्ष कर में वृद्धि की जा सकती है। क्योंकि अप्रत्यक्ष कर में वृद्धि होने से यह स्फीतिकारी सिद्ध होगा और गरीब लोगों को अत्यधिक प्रभावित करेगा साथ ही साथ मांग में और अधिक कमी आएगी।
निवेशः निवेश से संबंधित सबसे प्रचलित मॉडल हैराड-डोमर मॉडल है, जो बताता है कि किसी भी अर्थव्यवस्था में बचत जितना ज्यादा अधिक होगा, निवेश भी उतना ही अधिक होगा। परंतु कोविड-19 के कारण देश भर में हुए लॉकडाउन के प्रभाव से देश में बेरोजगारी की दर में बढोतरी हुई है, जिससे बचत में कमी आई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार निवेश की संभावनाओं में कमी बनी हुई है।
समाधान
आरबीआई गवर्नर के अनुसार कोविड-19 जैसी महामारी से उत्पन्न कठिन चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्रीय बैंक अपने सभी साधनों या युक्तियों का उपयोग करेगा। उन्होंने कहा कि व्यापक उद्देश्य यह सुनिश्चित करने में मदद करना है कि सभी हितधारकों, विशेषकर वंचितों और कमजोर तबकों के लोगों तक वित्त का प्रवाह निरंतर बना रहे।
तरलता प्रबंधन
लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालनः 50,000 करोड़ रुपये की कुल प्रारंभिक राशि के साथ ‘लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (टीएलटीआरओ 2.0)’ का दूसरा सेट कार्यान्वित किया जाएगा। यह कदम एनबीएफसी और एमएफआई सहित छोटे एवं मध्यम आकार की उन कंपनियों तक धन प्रवाह को सुगम बनाने के लिए उठाया जा रहा है, जो कोविड-19 के कारण आए व्यवधानों से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के लिए पुनर्वित्त सुविधाएं: 50,000 करोड़ रुपये की कुल राशि के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधाएं राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) और राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) को प्रदान की जाएंगी, ताकि उन्हें विभिन्न सेक्टरों की ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाया जा सके। इसके तहत क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी), सहकारी बैंकों एवं माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एमएफआई) को पुनर्वित्त प्रदान करने के लिए नाबार्ड को 25,000 करोड रुपये उधार देने/पुनर्वित्त प्रदान करने के लिए सिडबी को 15,000 करोड़ रुपये और आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए, एनएचबी को 10,000 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। तथा ये सुविधाएं इसलिए दी जा रही है क्योंकि ये संख्या कोविड-19 से उत्पन्न कठिन वित्तीय परिस्थितियों के मद्देनजर बाजार से वित्त जुटाने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
रिवर्स रेपो रेट में कमीः रिवर्स रेपो रेट को तत्काल प्रभाव से 0.25 प्रतिशत कम करके 3.75 प्रतिशत कर दिया गया है, ताकि बैंकों को अपने अधिशेष धन को निवेश करने और अर्थव्यवस्था के उत्पादक सेक्टेरों को ऋण देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अर्थोपाय अग्रिम (डब्ल्यूएमए) की सीमा में वृद्धिः राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अर्थोपाय अग्रिम (डब्ल्यूएमए) की सीमा में 60 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, जो 31 मार्च, 2020 की निर्दिष्ट सीमा के अलावा है। इसका उद्देश्य कोविड-19 को नियंत्रण में रखने एवं इसमें कमी लाने के प्रयासों के लिए राज्यों को अधिक से अधिक सहूलियत प्रदान करना और उनके बाजार उधारी कार्यक्रमों की योजना बेहतर ढंग से बनाने में उनकी मदद करना है। यह व्यवस्था आरबीआई द्वारा प्रदान की जाने वाली अस्थायी ऋण सुविधाएं हैं, जो सरकारों की प्राप्तियों और व्यय में अस्थायी असंतुलन को कम करने में उनकी मदद करती हैं।
नियामकीय उपाय
परिसंपत्ति वर्गीकरणः किसी परिसंपत्ति को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) मानने के संबंध में केंद्रीय बैंक ने निर्णय लिया है कि परिसंपत्तियों को एनपीए के रूप में वर्गीकृत करते समय उस भुगतान स्थगन अवधि पर विचार नहीं किया जाएगा, जिसे मंजूर करने की अनुमति उधार देने वाले संस्थानों को 27 मार्च, 2020 की आरबीआई घोषणा के अनुसार दी गई है। इसका मतलब यही है कि उन खातों के लिए 90-दिवसीय एनपीए मानदंड पर विचार करते समय भुगतान स्थगन अवधि को ध्यान में नहीं रखा जाएगा, जिनके लिए उधार देने वाले संस्थानों ने स्थगन या मोहलत देने का निर्णय लिया है और जो 1 मार्च, 2020 तक मानक या स्टैंडर्ड खाते थे।
समाधान योजना के कार्यान्वयन की अवधी में वृद्धिः भुगतान न की जा रही उन परिसंपत्तियों या खातों से जुड़े विवादों के समाधान की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समाधान योजना के कार्यान्वयन की अवधि 90 दिन बढ़ा दी गई है, जो या तो अभी एनपीए है या जिनके एनपीए बन जाने की आशंका है।
लाभांश का वितरणः अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक और सहकारी बैंक वित्त वर्ष 2019-20 से संबंधित मुनाफे से आगे कोई लाभांश भुगतान नहीं करेंगे। इसकी निर्णय की समीक्षा वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही के अंत में बैंकों की वित्तीय स्थिति के आधार पर की जाएगी। ऐसा बैंकों को पूंजी संरक्षण में सक्षम बनाने के लिए किया गया है, ताकि वे बढ़ती अनिश्चितता के माहौल में अर्थव्यवस्था को आवश्यक सहयोग देने और नुकसान को झेलने की अपनी क्षमता को बरकरार रख सकें।
तरलता कवरेज अनुपात में कमीः विभिन्न संस्थानों के लिए तरलता की स्थिति बेहतर करने के उद्देश्य से अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए तरलता कवरेज अनुपात की आवश्यकता को तत्काल प्रभाव से 100 प्रतिशत से कम करके 80 प्रतिशत के स्तर पर ला दिया गया है।
आपात ऋण सहायता गारंटी योजनाः केंद्र सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौर में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों की संचालन संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें तीन लाख करोड़ रुपये तक की अतिरिक्त ऋण उपलब्ध कराने के लिए आपात ऋण सहायता गारंटी योजना की शुरुआत की। इस योजना से लॉकडाउन के बाद 19 लाख सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को अपना कारोबार फिर से शुरु करने में मदद मिलेगा।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजनाः इसके तहत 1.7 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की गई। इससे तरलता को बढावा मिलेगा तथा मांग को बढावा मिलने के साथ-साथ औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों क्षेत्रकों की चुनौतियों को कम किया जाएगा।
सुझाव
IMF के अनुसार सीमित घरेलु संसाधनों वाले उभरते बाजारों को इस संकट से निपटने के लिए 2.5 ट्रिलियन डॉलर की आवश्कता होगी।